shabd-logo

ऐ खुदा ! - पंकज त्रिवेदी

28 मार्च 2017

164 बार देखा गया 164
featured image


ऐ खुदा ! मुझे ज़िंदगी से कोई शिकायत नहीं । तुमने मुझे वो सब दिया जो मेरे काम का था । मैं जिसके लायक था वो दिया । फिर क्यूं सवाल ?


ऐ खुदा ! मेरी पहचान, मेरी हैसियत से भी ज्यादा हैं । दो वक्त की रोटी, कपडे, मकान और परिवार, प्यार और सुकून । चैन की निंद और नसीब ।

ऐ खुदा ! तुमने मुझे वो दोस्त दिए जो स्नेह रखते हैं मुझसे । जिनसे भी मतान्तर हुआ वो भी मेरे दोस्त ही हैं, क्यूंकि दोनों तरह के दोस्तों से बहुत कुछ सीखने मिला ।

ऐ खुदा ! क्यूं शिकायत करे कोई तुम्हारे लिए, तुम्हारे खिलाफ । तू है ज़रूरतमंदों में, तू है मेरे चाहनेवालों में । तू है या नहीं ये सोचने में क्यूं वक्त बर्बाद करें हम !

ऐ खुदा ! तुमने मुझे इतना सुख और सभी का प्यार दिया । जानता हूँ मैं भी...कुछ भी नहीं रहेगी मेरी स्मृति, मेरे अच्छे कर्मों की सुगंध... तो तुमने भेजा है इसी के लिए ! ।

ऐ खुदा ! तुम्हें पाने के लिए लोग तरसते हैं । मैं सोचूँ, मेरे आसपास के लोगों में तू है । मेरे दिलों-दिमाग में तू । कहीं नहीं होकर भी तू यहीं हो, मेरे आसपास, मेरे अंदर-बाहर !

ममता

ममता

बहुत अच्छा लग रहा है आपका लेखन

29 मार्च 2017

पंकज त्रिवेदी

पंकज त्रिवेदी

आदित्य, आपके शब्दों ने मेरे शब्दों को ज्यादा बल दिया है - धन्यवाद

28 मार्च 2017

Aditya dave

Aditya dave

सही है , हम हमेशा अपने दुखो के लिए या यु कहना ठीक रहेगा की अपनी बेकार की इच्छाओ के लिए सदैव ईश्वर से शिकायत करते है जबकि ये नहीं सोचते की ईश्वर कभी भी हमसे शिकायत नहीं करता | आपकी इस सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत धनयवाद |

28 मार्च 2017

रेणु

रेणु

पंकज जी- ईश्वर के प्रति आपकी कृतज्ञता से भरी हृदयग्राही पंक्तिया पढ़ कर मन भावुक हो गया -- इन शब्दो में आपकी सादगी -- मन की निर्मलता और जीवन के प्रति संतोष का भाव शिखर रूप में दिख रहा है -- सच ही तो है-- यदि हर कोई अपने आसपास के मनुष्यों में ईश्वर को निहारने लग जाये तो उसकी खोज की आवश्यकता नहीं रहेगी --आखिर भगवान् को पुरुषोत्तम जो कहा गया -- इन प्रेरक पंक्तियों के लिए आपको हृदयतल से आभार ! !

28 मार्च 2017

1

दो मुक्तक

5 नवम्बर 2015
0
4
1

(1)हर एक आशियाने में प्यार पलता है जब तक नफ़रत की नींद नहीं टूटती ज़िंदगी में कौन सी पल किसे खटकती मनचाहे से हो जाएं अनचाही पटखनी *पंकज त्रिवेदी -----------------------------------------------(2)दर्द के नाम बेइंतहा प्यार करते लोग बेइंतहा प्यार के नाम दर्द ही देते लोग मजबूर होता है हर किसी का जीवनजीवन

2

सफ़र

15 दिसम्बर 2016
0
3
1

ज़िंदगी ने रफ़्तार पकड़ ली है किसी सुपर फ़ास्ट ट्रेन की तरह | हर दिन नई बात, नए काम और नई मंजिल के सपने को पूर्ण करने के लिए घर से निकलना और शाम होते हुए, घर लौटकर चाय पीते हुए दिनभर के अनुभवों को परिजनों के साथ साझा करना... फिर सभी अपने अपने कार्यों में लिप्त और मैं दिनभर क

3

जल ही हो न तुम !

15 दिसम्बर 2016
0
4
2

तुम्हारी नियति है बहनातुम चाहें - नदी हो या झरना...कुछ भी कहें तुम्हें हम,जल ही हो न तुम ! जब मन हो तेरा बहते हो आँसूं बनकर, तब सारे जल भी बहते है आँसूं बनकर.... *पंकज त्रिवेदी

4

खुश्बू

15 दिसम्बर 2016
0
4
1

खुश्बू का क्या? तुम्हारे जाने के बाद ही आती है ! दबे पाँव, धीरे धीरे... जैसे तुम्हारी याद....!

5

तानेबाने

15 दिसम्बर 2016
0
3
0

तुम्हारे ताने सुनकर भी कैसे बुन गए है हमारे रिश्ते के तानेबाने... ! - पंकज त्रिवेदी

6

कैसे ख़त्म हो पाएगा ?

3 फरवरी 2017
0
3
0

इंतज़ार भी अब मानों ख़त्म हो गया है ऐसा मन को मनाने में बरसों बीते चलो, अच्छा हुआ, अब मान भी लिया आँखें कमज़ोर, याददास्त भी आती-जाती काँपते हाथ में छडी का सहारा चेहरे की चमक पे झुर्रियाँ सिर्फ यादों के सहारे बीतते दिन इंतज़ार ख़त्म हो गया है, कह दिया इंतज़ार इंसान के जीवन में ख़त्म नहीं होता कभी भी पल पल

7

झील - पंकज त्रिवेदी

3 फरवरी 2017
0
3
2

मेरे अंदर एक झील है जैसे यादों की झील जो मेरे लिए संजीवनी बनकर हमेशा मुझे प्रेरित करती रहती है और अपने निर्मल जल से हर बार पवित्र रखती है तुम्हारे लिए इसी झील के किनारे होती थी तुम्हीं से प्यार की कुछ बातें और निभाते थे प्यार की नोंकझोंक भीतुम्हारे मेरे बीच न जाने कितना कुछ बदलता रहा था अंदर-बाहर से

8

शोर - पंकज त्रिवेदी

13 फरवरी 2017
0
0
0

बहुत शोर मचता रहता है शहर की भीड़ में ट्रैफिक के धुएँ में स्कूल-कोलेज में मोहल्ले और बाज़ार में घर में टीवी सीरियलों में सिर्फ शोर ही सुनाई देता है |क्योंकि - कहीं भी किसी को यह पता नहीं होता है कि उनके अन्दर भी एक ऐसा स्थान है जहाँ होती है मन की शांति ! होता है धैर्य औ

9

अलफ़ाज़

13 फरवरी 2017
0
1
1

मेरेअल्फाज़ सेबेहतर मेराअहसास हैजो तुम्हेंसुकून देता हैऔरमुझे तुम !- पंकज त्रिवेदी 

10

जीना है

13 फरवरी 2017
0
1
0

क़त्ल-ए-कोहराम के बीच ही हमें जीना है चंद अल्फाज़ प्यार के लगते यहाँ बौना हैकोई वजूद नहीं देखो यहाँ इंसा के नाम से दौडती ज़िंदगी के पीछे भागकर खोना हैकरवटों को भी लोग सलीके से बदलते हैं मिल जाएँ मौका तो लोग चेहरे बदलते हैं - पंकज त्रिवेदी *

11

तुम्हारे अंदर... – पंकज त्रिवेदी

16 फरवरी 2017
0
1
1

तुम्हारे अंदर प्राण, प्रकृति, जीवन, दर्शन, श्रद्धा, करुणा, दिशा.... सबकुछ है मगर साथ ही गहराई में दर्द का अँधेरा कुआँ भी हैं.... जहाँ मुझे पहुंचना है ....औरउस दर्द की कसक मेंजान फूँक देनी हैहमारे अपने जीवन कीखुशहाली की !

12

तिनके

16 फरवरी 2017
0
1
0

कितनी बारीकियों से बुनती रही मैं हर लम्हा पलपल गिनती हूँ जैसे किसी माला के मनकेज़िन्दगी की आपाधापी में तुम जब आते हो सुकून-ए-मोहब्बत का मेल कैसा है मन उनकेदिल्लगी करने वाले बहुत मिले हैं मुझ कोभटकती राह में मिल जाएं सरेराह तिनके *|| पंकज त्रिवेदी ||

13

ऐसा न हों. ..

16 फरवरी 2017
0
3
2

कहीं ऐसा न हो कि हम जीना छोड़ दें और तुम मेरी ज़िन्दगी के दरवाज़े पे दस्तक देने आओ... पंकज त्रिवेदी

14

पल पल

17 फरवरी 2017
0
2
0

आओ, हमारे रिश्तों के हमारे आत्मिक सम्बन्ध के अहसासों के तानेबाने से जीवन की ऐसी चदरियाँ बुनते रहें मिलकर हम ! आओ, अपने रिश्ते की ऊंचाई और गहराई को भी नांप ले हमदोनों हमारे दिल की धड़कनों को सुनें अपनी आँखों से सिर्फ देखना नहीं अपनी पैनी नज़रों को पवित्रता के गेरुए रंग में रंग लें जहाँ से हमें वैराग्य

15

शब्द थई ने ( शब्द होकर)

19 फरवरी 2017
0
0
1

શ્રી તરૂણ જાનીનો પ્રથમ ગઝલ સંગ્રહ - શબ્દ થઈને - ટૂંક સમયમાં પ્રકાશિત થઇ રહ્યો છે.પ્રકાશક : વિશ્વગાથા ગોકુલપાર્ક સોસાયટી, ૮૦ ફૂટ રોડ, સુરેન્દ્રનગર-૩૬૩૦૦૨ vishwagatha@gmail.comમોબાઈલ : ૯૬૬૨૫૧૪૦૦૭मूल्य : 60-00 श्री तरुण जानी का प्रथम ग़ज़ल संग्रह - शब्द थई ने - (गुजराती) श

16

जीवन या विनाश?

21 फरवरी 2017
0
0
0

बहुत हो गया अब !होगा कुछ तो सिर्फ अवकाश... आसमाँ और धरती के बीच जीवन या विनाश ? *पंकज त्रिवेदी

17

ज़िंदगी

27 फरवरी 2017
0
2
1

सड़क के किनारे बैठा, वो आते जाते लोगों को देख रहा था लगता था, लोग अपने में मस्त थे ! वो सोच रहा था क्या करूँ?ये लोग भी रफूगर ढूँढ रहे हैं- 'मेरी तरह !'ज़िंदगी चिंथडे सी झलक रही थी सब की !! वह मुस्कुराने लगता है थैली से रोटी निकालकर देख-सूंघता है खाता है, आधी कुत्ते को पहले देकर !!*पंकज त्रिवेदी

18

दरमियाँ - पंकज त्रिवेदी

27 फरवरी 2017
0
2
0

19

साथ

28 फरवरी 2017
0
2
5

मन विचारशून्य हो जाता है तब तुम्हारा होना नहीं होना भी एक सा नहीं लगता ! क्यूंकि जो दिल से जुड़े होते है वो हमेशा शून्य में भी साथ देते हैं ! *पंकज त्रिवेदी

20

आँखें होती

28 फरवरी 2017
0
1
0

कर लिया, उन्हें जो करना था हो गया, जो कुछ होना था कोई खुश हुआ, कोई बर्बाद हुआ किसी का घर टूटा, किसी का मन टूटा दिल टूटने की बात तो सभी करते हैं मगर दिल आजकल है किसी के पास क्या?स्वतंत्रता के नाम बेज़ुबाँ की ज़ुबाँ चलती हैशिक्षा के नाम राजनीति उफ़नती है किसी की ओर निर्द

21

दायरे

1 मार्च 2017
0
1
1

शक के दायरे बहुत बड़े होते हैं वो चाहें रिश्ते में या दोस्ती में !किसी को समझने खुद को भी मौका दिया करें !*पंकज त्रिवेदी

22

अरे ओ नदी ! –(निबंध) - ।। पंकज त्रिवेदी ।।

1 मार्च 2017
0
2
2

अरे ओ नदी ! –(निबंध) - ।।पंकज त्रिवेदी ।। *अरे ओ नदी ! तुम क्यूं बहाना ढूँढती हो मुझे मिलनेके लिए ! इतने पत्थर, कंकरोंसे अपनेआप को घसीटती हुई । इठलाती, बलखाती हो, यहीबहाने से दुनिया के लोगों से आँखें चुराती हुई ! नीकल पड़ी हो तुम मन की दृढ़ता औरदिल में प्यार का उमंग लिए । फिर भी क्यूं हिम्मत से नहीं

23

शाम - पंकज त्रिवेदी

8 मार्च 2017
0
2
2

शाम गंभीर सी थी मेरे अंदर-बाहर ! शाम होते ही चूड़ियाँ खनकती कभी अंदर-बाहर ! शाम मुस्कुराती, आज उदास थी मेरे अंदर-बाहर ! शाम बनकर वो आती कभी-कभी मेरे अंदर-बाहर ! शाम अकेलापन महसूस करती है तुम्हारे अंदर-बाहर ! *पंकज त्रिवेदी

24

नियम - पंकज त्रिवेदी

8 मार्च 2017
0
2
0

चीजें टूटने से आवाज़ सुनाई दें ऐसा कोई नियम तो नहीं !बात जब भी टूटने की हों लोग दिल पर आकर ठहर जाएं सिर्फ दिल ही टूटे ऐसा तो नहीं !आवाजें उन चीजों में बिखर जाएं और मौन हो जाएं ! ऐसा होने में नियम टूटता तो नहीं !*पंकज त्रिवेदी

25

कविता - (कविता दिवस पर)

21 मार्च 2017
0
7
4

कविता किसी ने उसे पूछा ? तुम कैसी हो?कविता तुम क्या हो? शब्दों से बुना जाल?मात्राओं का सुशोभन ?कविता कहीं तुम नदी की लहर तो नहीं?किसी के दिल की धड़कन ?कविता किसी के आँसूं या दिल के भाव-रंग कविता तुम क्या हो?कविता तेरे नाम प्यार-वियोग और सुख-दुःख?परिपक्व विचारों की ऊर्जा?कविता न जाने क्या क्या लिख दे

26

दर्द - पंकज त्रिवेदी

25 मार्च 2017
0
1
1

सरफिरे लोग ही मोहब्बत इसलिए कर लेते हैं क्यूंकि नसीब से ज्यादा वो दर्द को चाहते हैं ! *पंकज त्रिवेदी

27

बचपन - पंकज त्रिवेदी

28 मार्च 2017
0
1
1

अपने गम को भूलाकर आओ चलें बचपन के वो लम्हों में फिर से जिएंचाँद तारों से सजता था सपनों का आँगनतुम्हारे मुखड़े में फिर उस चाँद को जिएं कितनी मासूमियत ज़िन्दा हो गई यहाँ उम्र के पड़ाव पर फिर से बचपन को जिएं *- पंकज त्रिवेदी

28

ऐ खुदा ! - पंकज त्रिवेदी

28 मार्च 2017
0
2
4

☻ऐ खुदा ! मुझे ज़िंदगी से कोई शिकायत नहीं । तुमने मुझे वो सब दिया जो मेरे काम का था । मैं जिसके लायक था वो दिया । फिर क्यूं सवाल ?ऐ खुदा ! मेरी पहचान, मेरी हैसियत से भी ज्यादा हैं । दो वक्त की रोटी, कपडे, मकान और परिवार, प्यार और सुकून । चैन की निंद और नसीब ।ऐ खुदा ! तुमने मुझे वो दोस्त दिए जो स्नेह

29

बहुत दूर चली गई थी तुम ! - पंकज त्रिवेदी

7 अप्रैल 2017
0
1
1

बहुत दूर चली गई थी तुम !और मैं तुम्हें आवाज़ तक नहीं दे सका इतनी अनजान भी न थीं और फिर भी न तुम कुछ कह पाई न मैं कुछ बोल पाया ! बहुत दूर चली गई थी तुम !पतझड़ का मौसम भी आ गया फिर से एकबारतुम्हें याद होगा जब तुम छोड़कर गयी थी तब भी पतझड़ का ही मौसम था और मैं अकेला सा ... !बहुत

30

औरत हो तुम ईश्वर भी... ! - पंकज त्रिवेदी

7 अप्रैल 2017
0
2
2

आँगन में पेड़ से गिरने लगे हैं पत्ते आजकल । कड़ी धूप खिलती है गर्मजोशी से और चलती है, बेतहाशा गर्म हवा जिस्म को जलाती हुई । शाम होते होते आँगन के झूले पर बैठ जाती है, मेरे अंदर तक मदहोशी की ठंडी हवा लिए । रात नशे का जाम बनकर पिघलती है । दिनभर की थकान लिये अधलेटा सा तख़्त पे । आँखें मूंद कर मैं सोचता हू

31

दर्द भी... पंकज त्रिवेदी

8 अप्रैल 2017
0
2
1

साला !मित्र के भेष में तो आया था..याद भी बहुत आता है और दर्द भी बहुत देता है !*पंकज त्रिवेदी 8 April 2017

32

सुबह-शाम - पंकज त्रिवेदी

20 अप्रैल 2017
0
2
2

बंधनों से मुक्त रहता हूँ इसलिए तुझमें रहता हूँईच्छाओं का बाज़ार हूँ इसलिए तो बिकता हूँ क्या खोया क्या पाया है हिसाब कहाँ रख पाता हूँ? तेरी यादों का पेड़ बोया है सुबह-शाम दिया जलाता हूँ *पंकज त्रिवेदी (तसवीर : अग्रज श्री हर्षद त्रिवेदी)

33

टपकने दो - पंकज त्रिवेदी

20 अप्रैल 2017
0
1
1

टपकने दो मेरे खून के कतरे कतरे को !यह खून नहीं हैं तुम्हारे गुस्से की लालिमा है !मगर यह पता नहीं कि तुम्हारे गुस्से के साथ मेरे खून के कतरों काकोई रिश्ता तो जरूर होगा !*पंकज त्रिवेदी

34

बस यूं ही मन से जो आया - पंकज त्रिवेदी

20 अप्रैल 2017
0
2
1

सुप्रभातम् जब भी कुछ लिखते लिखते आत्मानुभूति प्रसन्नता की ओर अग्रेसर ले चलें तब वो अभिव्यक्ति सर्वकालीन-सर्वानुभूति में बदलते देर नहीं लगती. मन की ऐसी स्थिति में ऐश्वर्य की चमत्कृति होती है जो हमें दूसरों से अलग पहचान देती हैं. आयासपूर्ण लेखन से बेहतर होगा हम चुपचाप कुछ नया पढ़ते रहें और अपने विचारों

35

देखो न - पंकज त्रिवेदी

20 अप्रैल 2017
0
2
4

देखो न !दोपहर की कड़ी धुप में भी पेड़ों के पत्ते तो झड गए थे मगर हरसिंगार पे आजकल कुछ नई कोंपलें और पत्ते भी !देखो न ! ऐसा लगता है जैसे ज़िंदगी की धुप में आती जाती मुश्किलों में फिर एक बार नई कोंपलें और कुछ हरे से पत्ते दिखाई दिए है ! सुनती हो ?अब फिर से हम एक दूजे का हाथ थामकर चलें और भूल जाएं वो सारी

36

मैं दौड़ रहा हूँ - पंकज त्रिवेदी

20 अप्रैल 2017
0
2
1

आज मन अचानक से सुन्न हो गया है कोई नया विचार नहीं, कोई सुख-दुःख की या आज के नए अनुभव की कोई बात नहींलगता है, मैं खुद को खुद से दूर खड़े रहकर देख रहा हूँ अपनेआप को समझने की कोशिशन समझ पाता हूँ, न समझा पाता हूँ मन शांत भी तो है और कुछ अजीब सा विचारों का प्रवाह जो स्पष्ट भी नहीं हुआऐसा लगता है कि चुपचाप

37

नाम नहीं...! - पंकज त्रिवेदी

2 मई 2017
0
2
2

तुम्हारे चेहरे को मैं यहाँ से पढ़ सकता हूँ । तुमको मैंने दोस्त कहा । उम्र और विचार से भी हम समान- दोस्त हैं । तुम्हें मेरे लिए सम्मान है तो मुझे भी । हम एकदूजे को हम समजते है । जब दोस्त बनाया तो not good, not bad ।क्यूंकि- प्रत्येक इंसान चाहता है कि पूरे परिवार के ब

38

भले हों - पंकज त्रिवेदी

3 मई 2017
0
1
2

मैं फकीरों की रूह हूँ जिस्म इंसान का भले हों रंगों से कोई मतलब नहीं श्वेत में सभी भले होंआडंबर के कायदे क़ानून होते हैं जीने के लिए रूह से रूह का वास्ता रहा यूँ आसपास भले होंभूख से वास्ता मेरा बहुत करीबी रहा है दोस्त मौत से भी दो दो हाथ कर लिए है कष्ट भले होंशिकायतों ने हमेशा घुटने टेक लिए है मान लो

39

कुछ हुआ तो नहीं? पंकज त्रिवेदी

26 मई 2017
0
2
2

आज नदी, पर्वत, जंगल भीतर से विचलित है, तुम्हें कुछ हुआ तो नहीं?पंकज त्रिवेदी

40

इंसान - पंकज त्रिवेदी

29 मई 2017
0
2
2

 उनकी संजीगदी देख मैं हैरान था वर्दी में भी कितना सरल इंसान था पंकज त्रिवेदी

41

कुछ पंक्तियाँ - पंकज त्रिवेदी

1 जून 2017
0
2
2

कोइ खत है न खबर है मैं तुम में ही देखूं रब है* फ़ैली हुई है आँगन में तुम्हारी यादों की निशानियाँ जैसे किसी दरख़्त को प्यार से लिपटीं हुई बेलियां * दूर रहकर भी पास होते हैँ कुछ लोग खास भी होते हैँ* इतना भी सितम मत करो मेरे प्यार परहवा कब रुख बदलकर मेरा कफ़न बनेगी* गौर स

42

ग़ज़ल- पंकज त्रिवेदी

1 जून 2017
0
3
2

अहंकार का कम्बल ओढ़ लोगे तो क्या पवन हैपवन है, तेरी साँसों से छेड़खानी करेगा गोधूली की रज उड़ती रही शाम होते हीकहीं दीया तो किसी के घर चूल्हा जलेगा मन तरंगी है तो तन भी कम नहीं होगाअंग से संत्संग का जब कोई तार जोड़ेगा   - पंकज त्रिवेदी

43

हाँ ! तुम जरुर आओगी - पंकज त्रिवेदी

7 जून 2017
0
2
1

44

खामोशी - पंकज त्रिवेदी

7 जून 2017
0
1
1

मेरी ख़ामोशी को बोलने की तो आदत नहीं बिन कहें समझे उसे कहने की जरूरत नहीं पंकज त्रिवेदी (# बस यूँही)

45

एक दूजे - पंकज त्रिवेदी

7 जून 2017
0
3
3

जब हम बंधन में बंधे थे कोई शर्त से तो न जुड़े थेप्यार हम असीम लुटाये मगर गुलामी की ज़ंजीर से बंधे न थेखुश्बू तब आती थी रिश्तो में एक दूजे पे जब हम मरते थेपंकज त्रिवेदी

46

कहा नहीं जाता - पंकज त्रिवेदी

21 जून 2017
0
4
4

आजकल कुछ कहा नहीं जाता लगता है कुछ लिखा नहीं जातादरमियाँ मेरे उनके मौन पलताबात पे बिन कहे रहा नहीं जातामुद्दतों का फांसला होता तो कहेंसाथ साथ कुछ कहा नहीं जातादुश्वारियाँ बहुत इधर-उधर होगीखुलकर किसीसे बोला नहीं जाताआँगन के पेड़ पर गीत गाता रहाकोई नया पँछी है कहा नहीं जाता * पंकज त्रिवेदी 21 June 20

47

नियति - पंकज त्रिवेदी

21 जून 2017
0
1
1

तुम्हारी नियति थी बिखरना मत कहो यही मुझे अखरतासमेटकर रख ली है सारी यादेंकोई कुछ भी करें नहीं बिखरनास्वाभिमान के गढ़ को तोड़ दिया उन्हीं को हमने देखा यूँ मुकरना *पंकज त्रिवेदी

48

सत्य ही शाश्वत - पंकज त्रिवेदी

21 जून 2017
0
2
2

सत्य ही शाश्वत है कुछ भी हो न जाएं कोई साथ दें न दें सत्त्व का जो साथ हैं खुद पे यकीन कर लो खुद ही बड़ा भगवान खुद माने तुम हो और तुम्हारी आत्मा परमात्मा ! *पंकज त्रिवेदी *(मेरे मित्र के लिए )

49

पूनम का चाँद - पंकज त्रिवेदी

24 जून 2017
0
1
2

नदीदो किनारेबहता पानीउजले कंकरदाने दाने सी रेतगोरा मुखड़ालरजती मुस्कान पूनम का चाँद *- पंकज त्रिवेदी

50

व्यर्थ में - पंकज त्रिवेदी

25 जून 2017
0
1
3

इंतज़ार रहता है तुम उसके अर्थ में और मैं व्यर्थ में ! *पंकज त्रिवेदी

51

पंक्तियाँ - पंकज त्रिवेदी

26 जून 2017
0
1
1

कितना मासूम है अब भी वो ! दरकिनार करता रहता है वो ! ****************** वो सीढियाँ चढ़ रहा था देखते-देखते मेरी ओर...मैं रुक गया, वो अब भी चढ़ रहा है. पंकज त्रिवेदीतसवीर : कार्यक्रम में मंच पर जाते हुए - २०१५

52

सलाम - पंकज त्रिवेदी

26 जून 2017
0
1
1

बिखर गया था मैंपल-पल हज़ारों साल ! समेट लिया उसने पल-पल, हज़ारों सलाम ! *पंकज त्रिवेदी

53

परम चेतना में... - पंकज त्रिवेदी

30 जून 2017
0
3
4

मन कुछ उदास है पर चलना तो होगा. फिर एक माँ को खोने का मलाल आज अपनी ज़िंदगी को अपनी मर्ज़ी मुताबिक़ जीने के लिए साहसी निर्णय सेवा निवृत्ति का अंतिम दिन. कल एक नई सुबह होगी नई दिशाएँ इंतज़ार करती बुलाएगी मुझे डाँवाडोल मन पर दिल के जज़्बात करता रहेगा अटखेलियाँ और... कदम कौन सी दिशा में ले जा

54

आवागमन - पंकज त्रिवेदी

10 जुलाई 2017
0
2
0

 सदियों का कोलाहल शांत हो रहा है लगता है मेरा आवागमन हो रहा है ! *पंकज त्रिवेदी

55

बच्चे देखो - पंकज त्रिवेदी

13 जुलाई 2017
1
1
3

दहशतों में पल रहे हैं बच्चे देखो जातियों में बंट रहे है बच्चे देखो यह कैसे फ़ैल गया शहर में ज़हर कितने सहमे है मासूम बच्चे देखोजान के बदले जान ले ली है मगर कितने अनाथ हो जाएं बच्चे देखोगुनहगार जब तय होंगे तब देखेंगे बेगुनाह के रोज़गार में बच्चे देखो *पंकज त्रिवेदी १३ जुलाई

56

खिड़की

3 दिसम्बर 2018
0
2
2

जब भीखुलती है खिड़कीदिखता है तेरा चेहराऔरहवा की लहर दौड़ आती है औरउन पर सवार आँगन के तुलसी कीताज़गी...... औरगुलाब की पत्तियों की खुशबू...उसके गुलाबी रंगों पर बिखरी हुई धूप से उभरती चमकप्रफुल्लता की सारगर्भित सोचऔरनई दिशाएं खोलती है ये खिड़कीजब भी खुलती है...तेरा चेहरा दिखता है औरखिड़की खुलती है तो भ

---

किताब पढ़िए