देखो न !
दोपहर की कड़ी धुप में भी
पेड़ों के पत्ते तो झड गए थे
मगर हरसिंगार पे आजकल
कुछ नई कोंपलें और पत्ते भी !
देखो न !
ऐसा लगता है जैसे ज़िंदगी की
धुप में आती जाती मुश्किलों में
फिर एक बार नई कोंपलें और
कुछ हरे से पत्ते दिखाई दिए है !
सुनती हो ?
अब फिर से हम एक दूजे का
हाथ थामकर चलें और भूल जाएं
वो सारी ग़लतफ़हमियाँ और
नई कोंपलें, पत्ते और प्यार !
*
( कविता और तसवीर)
पंकज त्रिवेदी
14 April 2017