कितनी बारीकियों से बुनती रही मैं हर लम्हा
पलपल गिनती हूँ जैसे किसी माला के मनके
ज़िन्दगी की आपाधापी में तुम जब आते हो
सुकून-ए-मोहब्बत का मेल कैसा है मन उनके
दिल्लगी करने वाले बहुत मिले हैं मुझ को
भटकती राह में मिल जाएं सरेराह तिनके
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|| पंकज त्रिवेदी ||