लखनऊ : यूपी में चुनाव के अंतिम दो चरणों में सीएम अखिलेश यादव की प्रतिष्टा दांव पर लगी है. दरअसल समाजवादी पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उन्हें अपना गढ़ बचाना ही मुश्किल पड़ गया है. गौरतलब है कि यह वही दो चरण हैं जहां पिछली बार यानी 2012 में सपा की साइकिल सरपट दौड़ी थी. लेकिन मौजूदा स्थिति में भले ही सीएम यह कहें कि पंजे ने साइकिल की हैंडिल को बखूबी पकड़ लिया है. लेकिन साइकिल और तेजी से भागेगी ऐसा कर दिखाना अखिलेश के लिए सामने बड़ी चुनौती होगी.
क्या पूर्वांचल में दौड़ेगी सपा कि साइकिल ?
मालूम हो कि पिछली बार पूर्वांचल के छह जिलों आजमगढ़, देवरिया, गाजीपुर, बलिया, जौनपुर और भदोही की कुल 43 से 35 सीटों पर सपा की साइकिल सरपट दौड़ी थी. हालांकि इन सभी सीटों पर कब्जा कायम रखने के साथ अपेक्षाकृत कमजोर जिलों में अपनी ताकत को बढाने के लिए सपा ने पूरी ताकत लगा दी है. लेकिन राजनीति क विश्लेषक कहते हैं कि इस सभी सीटों पर वही कहानी दोहरा दी जाए यह कहना आसान नहीं है. खास तौर पर जिस तरह से टीम अमित शाह ने पूरी ताकत झोंकी है और सबसे महत्वपूर्ण कि सपा के जनक मुलायम सिंह यादव इस बार चुनाव मैदान से पूरी तरह से अलग हैं, उसका असर भी दिखने लगा है. सीएम का यूथ ब्रिगेड तो है लेकिन सपा के खांटी लोग में वही बात इस बार भी दिखे इसके लिए अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है. मुलायम के साथ ही ग्रासरूट लेबल पर सबसे मजबूत पकड़ रखने वाले शिवपाल का भी चुनाव प्रचार से अलग रहना खास मायने रख रहा है.
क्या कहना है राजनीति के पुरोहितों का ?
राजनीतिक पंडित कहते हैं कि इस बार अगर सपा पिछले प्रदर्शन को दोहराती है या उसके आसपास भी रहती है तो यह सीएम अखिलेश के लिए बड़ी उपलब्धि होगी. सूरत में शिवपाल गिरोह चुनाव बाद विपरीत परिस्थितियों का ठीकरा सीएम और रामगोपाल पर ही फोड़ता नजर आएगा. पूर्वांचल की 89 सीटों पर अंतिम दो चरण में मतदान होना है. अवध के अंबेडकर नगर जिले की आलापुर सीट पर सपा प्रत्य़ाशी के निधन के बाद चुनाव टल गया है जो नौ मार्च को होगा. शेष अन्य 14 जिलों की 89 सीटों में से सपा ने पिछली बार 50 सीटों पर कब्जा किया था. कई जिले तो सपा के लिए बहुत मजबूत साबित हुए थे.
आजमगढ़ में सपा ने 10 में से 9 सीटों पर किया था कब्जा
इसमें मुलायम सिंह यादव का संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ प्रमुख है. आजमगढ़ में सपा ने 10 में से नौ सीटों पर कब्जा किया था. इसी तरह गाजीपुर में सात में से छह, बलिया में सात में पांच, जौनपुर में नौ में सात, देवरिया में सात में पांच और भदोही की सभी तीन सीटों पर सपा की साइकिल जबरदस्त दौड़ी थी. सनद रहे कि पिछली बार अंसारी बंधु की टीम भले ही कौमी एकता दल से चुनाव मैदान में थी पर सपा से इनका कोई बैर नहीं था, लिहाजा इसका फायदा भी मिला था. लेकिन इस बार अंसारी बंधु बसपा यानी मायावती के साथ है. दूसरे भदोही से विजय मिश्र का न होना भी मायने रखता है. फिर जिस तरह की गोलबंदी टीम अमित शाह ने कर रखी है उसे कहीं से कम नहीं आंका जा सका.
मंगलवार को अखिलेश ने आजमगढ़ में कि हैं 7 सभाएं
हालांकि सपा अध्यक्ष व सीएम अखिलेश यादव ने अपनी साख को कायम रखने के लिए ही पूर्वांचल की बागडोर यूथ ब्रिग्रेड को सौंप रखी है. वरिष्ठ नेता जातीय समीकरण बैठाने और चुनाव संचालन का जिम्मा संभाले हैं. पहले पांच चरण से खाली लगभग सारे नेताओं ने पूर्वांचल में गोलबंदी कर ली है. सीएम भी खुद पूर्वांचल में लगातार सभाएं कर रहे हैं. मंगलवार को ही अखिलेश ने आजमगढ़ में सात सभाएं की. गोरखपुर और वाराणसी पर ध्यान देना कहीं ज्यादा जरूरी है. कारण इसमें से एक पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र है तो दूसरा योगी आदित्य नाथ का. इन दोनों ही जिलों में सपा को पिछले चुनाव में खास सफलता नहीं मिली थी. वाराणसी में जहां सिर्फ एक सेवापुरी सीट ही सपा के हाथ लगी थी. शेष सात सीटों पर वह कहीं तीसरे तो कहीं चौथे स्थान पर रही. यही हाल गोरखपुर का रहा जहां नौ में से एक सीट मिली थी. इसके अलावा कुशीनगर में सात में तीन, महराजगंज में पांच में दो और चंदौली में चार में एक सीट मिली थी.