नई दिल्लीः
चुनावी माहौल का हालचाल लेकर बनारस से लौटते वक्त अपने जौनपुर गया था। वहां मल्हनी सीट से बाहुबली और पूर्व सांसद धनंजय सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। फोन पर बात हुई तो बोले खलीलपुर गांव आ जाइए। करीबी सिद्धार्थ सिंह ने बताया कि टीडी कॉलेज के दक्षिणी गेट वाले रोड से कुद्दूपुर क्रासिंग पार करिए। फिर हम वहां से ठिकाने तक ले चलते हैं। खलीलपुर गांव पहुंचे तो देखा यहां दलित आबादी के पास बगीचे में धनंजय सिंह भीड़ जुटाकर गांव वालों को हैंडपंप, राशन, पानी आदि की सौगात देने की बात कर रहे है। लेकिन शर्त है कि सबको आठ मार्च को वोट करना है। करीब एक घंटे तक इस बाहुबली के जनसंपर्क का तौर-तरीका देखा। खेत-खलिहान की पगडंडियों से गुजरकर प्रचार करना। हर गांव में नुक्कड़ सभाएं करना। हर गांव में सौ लड़कों की टीम बनाना...वगैरह...वगैरह। यह देख हमें इस बात का जवाब हमें मिल गया कि क्यों 2002 में महज 27 साल की उम्र में यह शख्स निर्दल विधायक बन गया था। वो भी तब जब पुलिस पीछे पड़ी थी। क्योंकि सियासत में कूदने के पहले इस बाहुबली का नाता जरायम की दुनिया से था। फिर 2007 में यूपी में जदयू जैसी अस्तित्वविहीन पार्टी से यह बाहुबली दूसरी बार विधायक बना। यानी दोनों बार निर्दल कह सकते हैं। भाजपा-बसपा, और सपा जैसी बड़े वोटबैंक वाली पार्टियों से भी चुनाव लड़कर लोग हार जाते हैं, ऐसे में दो बार निर्दल विधायक होना चौंकाने वाली बात है। खैर धनंजय ने सियासी ताकत बढ़ाई तो मेहरबान हुई बसपा ने 2009 में टिकट दे दिया। फिर बाहुबली धनंजय माननीय सांसद हो गए। सियासत में बाप द्वारा बेटों को विधायक बनाना आम है। मगर धनंजय ने नई लकीर खींची। सांसद बनने के बाद रारी सीट से विधायकी छोड़ी तो अपने पिता राजदेव को चुनाव लड़ाकर विधायक बना दिया। यानी यहां बेटे ने बाप को विधायक बना दिया। 2011 में धनंजय के बुरे दिन शुरू हुए। बसपा में आंतरिक लोकतंत्र नहीं होने की बात कहकर बसपा मुखिया मायावती से ही मुठभेड़ ले बैठे तो पार्टी ने निकाल बाहर किया। तब तक धनंजय इलाके में राबिनहुड की छवि बना चुके थे। निधि के अलावा इधर-उधर से जुगाड़ कर इलाके के गरीबों की मदद कर धनंजय ने बाहुबली से सफेदपोश की इमेज मेकिंग पर जोर दिया। नतीजा धनंजय ने इलाके में एक बड़ी पार्टी के बराबर जनाधार खड़ा कर लिया। जब एक आपराधिक मामले में धनंजय जेल गए तो 2012 में पत्नी जागृति को विधानसभा चुनाव में उतारा। मौजूदा सपा सरकार के मंत्री पारसनाथ के खिलाफ तब जागृति ने निर्दल 50 हजार वोट पाए। कहा जाता है कि धनंजय सलाखों से बाहर होते तो बाजी पलट सकते थे। खैर 50 हजार धनंजय का अपना वोट रहा। धनंजय ही क्यों, पूर्वांचल के तमाम बाहुबलियों का उदाहरण लीजिए। चाहे वह मुख्तार अंसारी हों, राजा भैया हों, सबने इलाके में अच्छा-खासा वोटबैंक बना लिया है। वे आज किसी पार्टी के सिंबल के मोहताज नहीं है। अकेले दम जीतने का माद्दा है। एक बाहुबली किसी इलाके में अगर निर्दल 50 हजार वोट पाता है, वो भी जेल में रहते हुए तो यह उन नेताओं के लिए रिसर्च का विषय जरूर होना चाहिए जो कि खुद को खांटी नेता मानते है मगर चुनाव में बाहुबलियों के आगे पानी मांग जाते हैं। सवाल है कि खांटी नेताओं से ऐसी क्या चूक हो रही उस चूक को बाहुबली अपना हथियार बनाकर जनता को लुभा रहे। उत्तर साफ है। खांटी नेता जीतने के बाद जनता को गुलाम समझते हैं, काम के बहाने बनाते हैं, इलाके में समय नहीं गुजारते। दूसरी तरफ जो बाहुबली हैं, वे जानते हैं कि उनकी बाहुबली छवि चर्चा में तो ला सकती है मगर सिर्फ इसके दम पर कोई वोट तो देगा नहीं। इस नाते वे इलाके के जरूरतमंदों तक मदद पहुंचाकर फरिश्ता बनने की कोशिश करते हैं। ठीक उसी तरह जैसे रॉबिनहुड करता था। अमीरों से लूटकर गरीबों में देता था। धनंजय के इलाके में तमाम लोगों से बात हुई तो उन्होंने बताया कि गरीबों की शादियों में राशन पहुंचाना हो या फिर स्कूलों में लड़कों का एडमिशन। विधायक-सांसद रहते बेरोजगार लड़कों को काम दिलाकर युवा ठेकेदारों की फौज खड़ी करना। खिलाड़ियों के लिए टीडी कॉलेज में प्रतियोगिताएं कराना। साईं सेंटर खुलवाने की कोशिश करना। तमाम तरह के खैरात बांटने में धनंजय आगे हैं। जो कि दूसरे नेता नहीं कर पाते। खैर यहां हम किसी बाहुबली का महिमामंडन नहीं कर रहे। सिर्फ यह बता रहे कि अब भी समय है नेताओं को चेत जाना चाहिए, जनता से कटने की जगह जुड़ने की कोशिश करना चाहिए। नहीं तो बाहुबलियों से पिटते रहेंगे।
और आखिर में वोटरलिस्ट में धांधली का खुलासा
धनंजय सिंह ने बड़ी रोचक बात बताई। बोले कि पिता मुलायम की तर्ज पर इस बार अखिलेश ने भी वोटर लिस्ट से चुनाव जीतने का खेल किया है। हमने कहा-वोटरलिस्ट तो आयोग की होती है तो मुस्कुराकर बोले-तैयार तो अखिलेश के अफसरों ने किया है न। सपा का वोटबैंक छोड़कर भाजपा और बसपा के मतदाताओं के नाम बोगस वोटर का हवाला देकर खूब कटे हैं। अपने इलाके का उदाहरण देते हुए बोले कि हमारे मल्हनी में 10 हजार ऐसे वोटर्स का नाम काट दिया गया था, जो कि हमारी सॉलिड वोटबैंक है। पता चलने पर इलेक्शन कमीशन से शिकायत की तो प्रेक्षकों की टीम ने दौरा किया, तब फिर वोट जोड़े गए। भाजपा के नेता रैलियों मे हवा खूब बना रहे, मगर उन्हें वोटरलिस्ट देखने की फुर्सत नहीं है। इस चुनाव में भाजपा वालों की ऐसी हवा निकलेगी कि सब माहौल धरा का धरा रह जाएगा। जब ईवीएम में वोटै नहीं दबेगा तो कैसी हवा। धनंजय बोले-मैं दावे के साथ कहता हूं कि हर सीट पर पांच से दस हजार गैर सपाई वोट कटे हैं। आबादी-वोटर अनुपात जिसे ईपी रेशियो कहते हैं। उसका मानक 61.34 प्रतिशत होता है। कई जिलों में जब आबादी की तुलना में 70 से 75 प्रतिशत वोटर हो गए तो आयोग के निर्देश पर जिला प्रशासन को अनुपात दुरुस्त करने को कहा गया। बस फिर क्या था सत्ता के दबाव में जिला प्रशासन ने सपा के वोबैंक को छोड़कर कैंची दूसरे दलों के वोटबैंक पर चलाई। बोगस वोटर का हवाला देकर नाम काटे गए। यही वजह है कि बहुत जागरूकता के बाद भी इस बार मतदान प्रतिशत उतना नहीं बढ़ा, जितना बढ़ना चाहिए था। यही वजह है कि हर चरण के बाद तमाम खबर आ रही कि अमुक गांव के लोग नाम न होने पर वोट देने से वंचित रह गए। धनंजय ने कहा कि जब 2007 का चुनाव था, तब मुलायम सिंह की सरकार में यही खेल हुआ था। तब से मैं अलर्ट था। लिहाजा इस बार इलाके की वोटरलिस्ट पहले दुरुस्त कराई।