लखनऊ : सियासत के खेल में बीजेपी को मात देने के लिए राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने अपने समस्त घोड़े खोल दिए हैं. यहां तक की साल 2019 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव को लेकर अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं. जिसके चलते बिहार की राजधानी पटना में 27 अगस्त को राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की ओर से एक रैली आयोजित की जा रही है. इस रैली में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का भाग लेना लगभग तय माना जा रहा है. लेकिन इससे यूपी में महागठबंधन की जमीन शायद ही तैयार हो पाए.
महागठबंधन का भविष्य माया पर टिका
बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस रैली के बाबत अभी पत्ते नहीं खोले हैं और उनके रुख पर ही महागठबंधन का भविष्य भी टिका हुआ है. जहां तक अन्य दलों का प्रश्न है तो प्रदेश में कांग्रेस व रालोद अपना वजूद बचाने की कोशिशों में ही जुटे हुए हैं. बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी से बुरी तरह पराजय के बाद सपा और बसपा दोनों को ही अपना वोट बैंक बढ़ाने की चुनौती है. इसीलिए दोनों ही पार्टियों ने संगठनात्मक स्तर पर अपनी सक्रियता बढ़ाई है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जहां कुनबे की कलह के बावजूद पार्टी की सदस्यता बढ़ाने का अभियान शुरू किया तो बसपा प्रमुख मायावती ने अपने कैडर को परंपरागत वोटों को संगठित करने में लगा रखा है.
सपा-बसपा कर सकते हैं एक-दूसरे का सहयोग
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के लोकसभा की सदस्यता छोड़ने के बाद उनके संसदीय क्षेत्र गोरखपुर और फूलपुर में उप चुनाव होने हैं और इसमें अखिलेश और मायावती की संगठनात्मक कोशिशों की भी परीक्षा होगी. एक संभावना यह भी जताई जा रही थी कि दोनों संसदीय क्षेत्रों में सपा-बसपा एक दूसरे का सहयोग कर सकते हैं. दोनों दलों के एक साथ आने पर उप चुनाव में बीजेपी को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.
महागठबंधन को लेकर माया खामोश
इस दिशा में सपा का रुख जहां थोड़ा सकारात्मक रहा है और अखिलेश यादव ने एक दिन पहले खुलकर पटना रैली में शामिल होने की बात भी कही लेकिन, मायावती की चुप्पी सभी संभावनाओं पर भारी नजर आ रही है. पार्टीजनों के अनुसार जून माह में बसपा प्रमुख ने इस बाबत अपने पदाधिकारियों से फीडबैक लिया था तो उन्होंने निगेटिव फीडिंग ही दी थी. इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि बीते विधानसभा चुनाव में बसपा को सीटें भले ही कम मिली हैं. लेकिन वोट प्रतिशत में उसका नुकसान कम है.जिसके चलते वह अलग राह ही चलना चाहती हैं. वैसे भी बसपा उप चुनाव लड़ने में यकीन नहीं रखती. बसपा के टारगेट पर 2019 का चुनाव है और वह इसी पर फोकस करना चाहती है. जहां तक कांग्रेस और रालोद का सवाल है तो चूंकि वह अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत हैं इसलिए प्रदेश के विपक्षी गठजोड़ में उनकी बहुत अहमियत भी नहीं मानी जा रही.