नई दिल्ली : यूपी में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों ने जोर पकड़ लिया है. जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं. विपक्षी पार्टियों ने सत्तारूढ़ पार्टी पर हमला करना शुरू कर दिया है. जिसके चलते विकास के मुद्दे को लेकर सूबे में फिर से सरकार बनाने जा रहे सीएम अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती में एक दूसरे को नीचा दिखने की होड़ मच गयी है. आलम यह है कि दोनों ने गुरुवार को अपने पुराने बुआ- भतीजे के रिश्ते को भुलाकर नए नामों से संबोधन करना शुरू कर दिया है.
सपा और बसपा में छिड़ा शीतयुद्ध
दिल्ली में संसद भवन कि चल रही कार्यवाही में पहुंचे यूपी के सीएम अखिलेश यादव ने जहां गुरुवार को मीडिया से बात करते हुए बसपा सुप्रीमो के दो दिन पहले दिए गए बयान पर पलटवार करते हुए अपनी बुआ मायावती को बीबीसी ( बुआ ब्राड कास्टिंग ) की उपाधि से नवाजा. वहीँ बसपा सुप्रीमो मायावती ने लखनऊ- आगरा एक्सप्रेस वे को अपनी सरकार का प्रोजेक्ट बताते हुए ये आरोप लगाया कि बड़ा बुआ- बुआ कह कर पुकारने वाले बबुआ को तो अपने सूबे में होना चाहिए था. लेकिन वह लखनऊ छोड़कर पार्लियामेंट के चक्कर लगता हुआ यहां पहुंच गया है.
राजनीति में माया को अखिलेश ने छोड़ा पीछे
सूत्रों के मुताबिक सीएम अखिलेश कि राजनीति में सक्रियता देखकर बसपा सुप्रीमो मायावती घबरा गयीं है. दरअसल दो दिन पहले लोकार्पण किये गए लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे को लेकर उसी दिन बहनजी ने अपना यह बयान जारी किया था कि लोगों की जान खतरे में दाल कर अखिलेश ने इस वे का लोकार्पण करा दिया है. जबकि इस मार्ग का काम अभी तक अधूरा है. बताया जाता है कि बसपा सुप्रीमो इस बात से परेशान है कि सीएम अखिलेश का ये प्रोजेक्ट जनता को उनका समर्थक बना सकता है.
सपा का विकास बना माया का खतरा
और तो और लखनऊ में मेट्रो रेल परियोजना और एक्सप्रेस वे के काम अखिलेश को दोबारा सीएम बना सकते हैं. अखिलेश कि झोली में सूबे कि जनता का भारी समर्थन जाते देख मायावती अपने ही बुने चक्रव्यू में फंसती नजर आ रही हैं. जिसके चलते गुस्से से आग बबूला होकर बैंठी मायावती ने गुरुवार को अखिलेश का नया नामकरण करते हुए बबुआ रख दिया. तो यूपी के सीएम भी अपनी बुआ के बयान पर चुप कैसे रह जाते सो उन्होंने भी उनका नया नामकरण करते हुए उन्हें बीबीसी नाम दे दिया.
बसपा को अपनी लुटिया डूबने का खतरा
फिलहाल 500 और 1000 रुपये कि पुरानी नोटें बंद हो जाने से परेशान मायावती को अब ये डर सता रहा है कि उनके पास जमाधन पैसे ही जा चूका है और ऐसे में अगर सूबे की सत्ता भी उनके हाथ से निकल जाएगी तो उनकी पार्टी की लुटिया पूरी तरह से डूब जाएगी.