लखनऊ : चुनाव आयोग के फैसले के बाद अब समाजवादी पार्टी और साइकिल पर अखिलेश यादव का कब्ज़ा होब गया है। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चिन्ह से संबंधित विवाद पर फैसला लेने का कानूनी अधिकार चुनाव आयोग को है. अखिलेश यादव के समर्थन में 5000 से अधिक कार्यकर्ताओं सहित 90 फीसदी विधायकों और सांसदों ने अपना हलफनामा आयोग को सौंपा था। आयोग के इस फैसले के बाद अब साफ़ हो गया है कि उत्तरप्रदेश में मुकाबला सीधे तौर पर समाजवादी पार्टी और बीजेपी के बीच हो चुका है। उत्तरप्रदेश की राजनीति को करीब से देखने वाले जानकार मानते हैं कि मुकाबला अगर उत्तरप्रदेश बीजेपी और सपा के बीच होता है तो यूपी में एक बार फिर ध्रुवीकरण की राजनीति देखने को मिल सकती है। इस ध्रुवीकरण का सबसे ज्यादा नुकसान मायावती को होने की संभावना है। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि उत्तरप्रदेश में दलित और मुस्लिम वोटबैंक मायावती से छिटक सकता है ।
हालाँकि अभी मुलायम सिंह और शिवपाल के अगले कदम का इंतज़ार भी करना होगा कि वह अखिलेश के वोटबैंक को किस तरह प्रभावित करते हैं। मुलायम पहले ही बेटे अखिलेश को मुस्लिम विरोधी बता चुके है। अखिलेश और बीजेपी में मुकाबला होने का मतलब है यूपी में सपा का विरोधी दलित और मुस्लिम वोटबैंक मायावती के पिछड़ने की स्थिति में बीजेपी के पीछे खड़ा होगा। इसका एक कारण यह भी है कि बीजेपी ने यूपी में केशव प्रसाद मौर्या और स्वामी प्रसाद मौर्या को दलितों को साधने के लिए आगे किया है।
साल 2012 के यूपी चुनाव में अखलेश ने मुलायम सिंह की रणनीति और शिवपाल के संगठन के बदौलत चुनाव जीता था। हालाँकि अखलेश चेहरा जरूर थे। इस बार अखिलेश के सामने चुनौती यह है कि उन्हें चुनावी रणनीति खुद बनानी है और यह अखिलेश के लिए बड़ी चुनौती है।