🕎 दीपावली 🕎
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मन के तम को दूर हटाकर , (मात्रा--16)
ज्ञान का दीपक जलाना है।
चौतरफा फैला उजियारा ,
खुद को सत्पथ पर लाना है।।
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सबके मन में प्रीत जगाकर ,
विश्व बंधुत्व को पाना है।
मन की कलुषता मिटे सबकी,
ऐसा कुछ करके जाना है।
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हर घर पहुँचे प्रेम की डोर।
इस दीवाली जोर लगाएँ ।।
मन रावण सबका मर जाएँ ।
घर- द्वार में राम बस जाएँ ।।
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जैसे है दस मुँख रावण के,
वृत्तियाँ हममें सदा रहती।
सर्पो की भाँति फन उठाकर,
सदा हमें वो डँसती रहती ।।
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उन वृत्तियों का नाश ही तो,
सच्ची दीवाली कहलाती ।
मन में जब आते हैं भगवन,
बाती खुद से ही जल जाती ।।
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आओ इसी बार कुछ ऐसा करते है। (मात्रा- 22)
भारत को भारतीयता से भरते है।
सबके जीवन को रौशन कर के हम सब --
असहायों की सुंदर दुनिया रचते है।।
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व्यंजना आनंद (मिथ्या) ✍