विधान--प्रदीप छंद (16,13)
पदांत- लघु गुरु (1 2)
🌹गीत🌹
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चहुँ ओर है छल भरा यौवन,
सहज समर्पण चाहिए ।
प्रेम सरित उद्गम करने को,
अनुरागी मन चाहिए ।।
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परखने की आँखें हो संग,
संतुलन मन बना सके।
ख्वाहिश हो सँवारने की ,
मानवता को ला सके।।
ऐसे पथ के राही को नित,
हमसे नमन चाहिए ।
प्रेम सरित उद्गम करने को,
अनुरागी मन चाहिए ।।
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स्वाहा हो जाएँ वृति सारी,
उनका प्रताप चाहिए ।
बीज अंकुरित होने को तो,
प्राकृतिक ताप चाहिए ।
ईश की चाहत हो दिलों में,
अश्रुपुरित घन चाहिए ।
प्रेम सरित उद्गम करने को,
अनुरागी मन चाहिए ।।**"""""*****""""""*****""""""**
व्यंजना आनंद ✍