🌸मानवता🌸
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मानवता को शब्दों और परिभाषा में बाँधना वक्त बर्बाद करने के सिवा और कुछ भी नहीं ।
बड़े -बड़े समाजशास्त्रियों ने अनेक मानवता के रूप प्रस्तुत किए हैं ।पर हमें उन बड़ी- बड़ी बातों के चक्रभ्यू में फँसने की आवश्यकता नहीं ।
बहुत ही सरल भाषा में हम कह सकते हैं कि जो मानव दूसरे के दुःख को देख दुःखी हो और सुख को देख कर खुश हो जाएँ वहीं वास्तव मे मानव है। मानव धर्म को अपनाना ही मावनता कहलाती है ।
भारी भरकम वाणी हमें मानव नहीं बनाती ,जब हम उन महान सन्तों की बहुमूल्य वाणी हम अपने जीवन में उतारते है तभी जाकर हम मावनता को अपनाते हैं ।
हमारा आचरण ही हमारा परिचायक होता है ।
कहा भी गया है-
🕉आचरणात्
🕉 पाठयति 🕉सःआचार्य।।
हमें अपने आचरण में विनम्रता ,मधुरता,दया,सेवा ,क्षमा, उदारता,आपसी भाई चारा, अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य .......आदि भावों को उतारना होगा तभी जाकर हम मानवता की राह पर चल पाएँगे ।
आज भ्रष्टयुग का समय है।जहाँ भाई- भाई न रहा, माँ भी ममता की दूहाई मांग रहीं है,गुरू का दर्जा भी अब ऊपर नहीं रहा क्योंकि वो भी अपने घृण्य अपराधों से गुरूवों की पदवी शर्मशार कर चूँके हैं ............।ऐसे कई घटनाएँ हम कर चूँके हैं जिससे मानवता अब रोते रही है।
** हमें मानवता को
फिर जगानी होगी ।
लोगों को मानवता
फिर पढ़ानी होगी।
तभी कहीं मानव
फिर मानव बन पाएँगे ।
दानवता छोड़ कर भावुकता अपनाएगे।।
हमें बस जगाने की जरूरत है क्योंकि सबों की भावनाएँ मर चूँकि है इसलिए तो अपराध पर अपराध किये जा रहें हैं ।
दानव से मानव जब हम बन जाएंगे तभी जाकर समाज में मानवता की परिभाषा साक्षात्कार होगी।
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व्यंजना आनंद ✍