विधान---- आल्हा छंद
मात्रिक- -- 31 मात्रा (16 , 15)
पदान्त- ---21
🌹गीत🌹
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नारी ही है जननी तेरी,
नारी ही तेरी पहचान।
नारी का सम्मान करो रे,
करो नहीं अपमान ।।
नारी माता वो ही त्राता,
है तेरी नारी से शान।
रखो हमेशा उस नारी का,
तुम भी सच्चे दिल से मान।।
नारी ही है जननी तेरी;
नारी ही तेरी पहचान ।
नारी का सम्मान करो रे,
करों नहीं उसका अपमान।।
आँसू पूरित नयनों से वो,
करतीं रहती सारे काम।
अपने हृद की व्यथा छिपाती
हँसकर दे उनको सम्मान ।।
नारी ही है जननी तेरी,
नारी ही तेरी पहचान।
नारी का सम्मान करो रे,
करो नहीं उसका अपमान।
वो है अमृत झरी की धारा,
छलकाती है पावन जाम।।
डूबो कर उस रस में तुझको,
धरे चेहरे पर मुस्कान ।।
नारी ही है जननी तेरी,
नारी ही तेरी पहचान।
नारी का सम्मान करो,
करों नहीं उसका अपमान ।।
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व्यंजना आनंद ✍