आनंद*: 🕉 श्रीमद्भगद्गीता 🕉
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* अध्याय 1*
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मेरा भला नहीं है संभव ,
संबंधियों को यहाँ मारकर ।
चाहूँ नहीं मैं राज्य वैभव ,
मौत के घाट सब उतारकर।।31।।
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हे कृष्ण अब ऐसे राज्य की ,
सुख की मुझे चाहत नहीं है ।
न राजभोगी कामना बची
दुख ही मिले राहत नहीं है ।।32।।
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आचार्य, पितामह गुरुवर,सुत,
. युद्ध को हैं तत्पर खड़े।
धन की न रही चाहत मुझको ,
जिस युद्ध पर ये झंडे गड़े ।।33।।
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संबंधियों के शस्त्र मुझको
मार दें चिंता नहीं।
इस युद्ध के प्रतिघात हो
संहार दें चिंता कहीं ।।34।।
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होकर दुखी कहने लगे अब
अर्जुन- "स्वजन को मार दूँ।"
ऐसा कभी होगा नहीं हे
केशव,उन्हें चीत्कार दूँ।।35।।
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व्यंजना आनंद ✍
[9/2, 9:28 AM] व्यंजना आनंद*: *अध्याय 1*
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अर्जुन बोल रहे माधव से,
भाग्य मेरे पाप चढ़ेगा।
आत्मीयजन को मारु तो फिर
मुझे क्य़़ोकर सुख बढ़ेगा।।37-38।।
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नहीं देख रहे ये दुर्बुद्धि,
लोभवश कुलक्षय को भी ।
मित्रद्रोह कृत पातक हैं ये,
विनाश ग्रसे सभी को ही।।39।।
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कुल क्षय का कारण जानिए
धर्म नष्ट जबजब होता ।
धर्म जहाँ पर नहीं रहे तो
अधर्म वहीं अंकुर बोता।।40।।
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धर्म जहाँ पर पले नहीं तो ,
नारी व्यभिचारिणी हो जाती ।
नारी पतन होने से सखा ,
वर्णसंकर सन्तानें आतीं ।।41।।
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यही संतानें सकल कुल को,
नरक का द्वार पहुँचाती है।
पिण्ड अरु तर्पण न होने पर,
पितर को नरक दिखलाती हैं ।।42।।
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व्यंजना आनंद ✍
[9/3, 9:28 AM] व्यंजना आनंद*: 💥 श्रीमद्भगवद्गीता 💥
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💥 अध्याय 1💥
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इन कुलघातियों के कारणसे,
कुल वर्णसंकर होता भ्रष्ट ।
शाश्वत जाति धर्म झुक जाते,
कुल धर्म हो जाता नष्ट ।।43।।
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अर्जुन कहता है हे माधव ,
जब जब धर्म नष्ट होता है ।
असमय सारा कुल मान धर्म ,
स्वर्ग द्वार अपना खोता है।।44।।
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फिर भी सब कुछ जानबूझकर,
हम घृणित अपराधी बन रहे ।
सिर्फ राज सुख भोग की खातिर,
अपनों पर हम यहाँ तन रहे ।।45।।
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शस्त्र को ले धृतराष्ट्र पुत्र,
हमें निहत्था क्यों न मारें।
फिर भी हम आह न करेंगे,
इसमें ही कुशलता जानें ।। 46।।
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संजय बोल रहें हे राजन
अर्जुन धनुष उतार दिए ।
शोकाकुल हो रहें पार्थ हैं
रथ पीछे मुख छिपा लिए ।।47।।
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व्यंजना आनंद ✍