आदरणीय सभी सदस्यों को व्यंजन आनंद का नमस्कार
विषय- -- बाढ़ ।
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🌹सेमरा का जलकुण्ड🌹
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दूरान्त तक,
असीमित यह
जल की प्रचुरता,
मानो एक जलधि ही है।
पर----
निकट से देखा तो-
पाया यह तो स्वयं ही
प्रकृति काल बनकर-
वर्षा का टाण्डव खेल रही है।
वह बाढ़ ले आई है ।
जहाँ गरीबों की झोपड़ियाँ-
और अमीरों के महल
धराशायी हो गये थे।
जीव-जनतुओं ने आश्रय
की आश में दम तोड़ दिये थे।
शायद!
इसी जलपुन्ज में विलुप्त कर।
जहाँ कभी गुंजते थे स्वर-
खुशियों उमंगो के
चहचहाते थे पक्षी जहाँ
घर के मुडेरो पर चढ़कर--
टी .वी,टुट् ,टी .वी. टुट्
कुहू- कुहू-कुहू।
अब नहीं सुनाई पड़ते थे
स्वर विभिन्न पखेरूओ के
अब नहीं सुनाई पड़ती
मस्ती से बहती उमंगती
जल-धाराओं की---
कल-कल ध्वनि ।
छल-छल ध्वनि ।
उदास-----भोर------
और निराश संध्याएँ- -
धूमिल चाँदनी
और मरियल वातास-
उजड़े झोपड़े
और खंडहर बने महल।
जहाँ केवल सुनाई देता
कूहू निशा में उलूकों का
कर्कश स्वर।
रोती माताएँ
बिलखते लाल और
टकटकी लगाए
डबडबाई बूजूर्गो
की आँखें ।
भयंकर , डरावना
सिहर उठता मन,
काँप उठता तन।
यही तो संसार है।
प्रकृति का व्यापार है।।
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✍व्यंजना आनंद (बिहार)