🙏🏻 कर्बला 🙏🏻
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वाह! से जो शुरु हुई ,
आह! पर खत्म होती;
ऐसी कर्बला की कहानी।
सुने व्यंजना की जुबानी।।
हुसैन नाम से सभी वाकिफ।
फातिमा,अली इब्न के वालिद।।
हसन,हुसैन थे अपने सगे भाई।
हुसैन ने भाई से ही धोखा खाई।।
खलीफा बनने की चाहत में ,
वह हुआ बड़ा मगरुर ।
हुसैन से छल कर के,
किया सबसे बहुत दूर ।।
जंग का जब थोड़ा सा इल्म हुआ।
मक्का छोड़ कर्बला पर हुई दूंवा।।
वहां हुसैन आयते लिख रहें थें।
सबके सर इबादत में झुक रहे थे।।
मगरुर यजीद जालिम ने पल भर में,
हमला चारों ओर से बोल दिया।
कर्बला की पाक- साक भूमि पर
छोटे बच्चों तक का लहू घोल दिया।।
हुसैन शहीद तो हुए पर
इस्लामिक झंडा लहरा दिया।
कुर्बानी जाया न हो पाएँ ,
जाते जाते ईमान पढ़ा गया ।।
आज भी है वो मंजर,
कर्बला की उस जमी सा।
आज भी रो रहा ईमान,
उस मोहम्मद रकीब सा।।
कब तक यूँ ईमान को बाँटते रहेंगे हम।
हुसैन की कुर्बानी को नकारते रहेंगे हम।।
अब भी वक्त है जरा सा सभंल जाएँ हम ।
कर्बला की दर्दनाक गाथा न दुहराएँ हम।।
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व्यंजना आनंद ✍