🕉कोमल कठोर कृष्ण 🕉
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पृथा राज्य में पैदा लेकर,
कुन्ती पृथा कहलाई।
'ष्ण' प्रत्यर्पण लगाकर उसमें,
कौन्तेय पार्थ कहलाएँ ।।
पार्थ सारथी बन प्रभु वर,
महाभारत रचवाएँ।
किसकी होती जग में गाथा,
जन जन को बतलाएँ।।
वृन्दावन का त्याग कर ,
मथुरा को वो आएँ।
अस्तित्व रक्षा व सत्य जय
की बातें हमें बताएँ ।।
कंस वध कर कृपानिधान,
पाप से मुक्ति दिलवाएँ।
हर कण- कण में प्रेम भर,
कर्म व प्रेम पाठ पढाये ।।
ब्रज के कृष्ण कोमल बन,
भक्ति राह दिखाएँ ।
पार्थ सारथी बन कर कृष्ण ,
चर्य-अचर्य पाठ पढ़ाये ।।
शरणागति ज्ञान कर्म की
चरण परिणति बताएँ ।
अध्यात्मवाद में आत्मसमर्पण,
की अनुभूति करवाएँ ।।
कोमल कृष्ण ब्रज में बन,
राधा भाव सिखाएँ।
कठोर रूप में जब वें आए,
अध्यात्म संग्राम बताएँ ।।
दोनों रूप अनोखा उनका,
जन-जन को वो भाएँ ।
हृद में प्रेम लौ जलाकर,
वो तारक ब्रह्म कहलाएँ ।।
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व्यंजना आनंद ✍