(१)
किसी समय ज्ञानी, कवि, प्रेमी,
तीनों एक ठौर आए,
सुषमा ही से थे सबने
अपने मन-वाँच्छित फल पाए ।
सुषमा ही उपास्य देवी थीं
तीनों की त्रय कालों में ,
पर विचार सुषमा पर सबने
अलग-अलग ही ठहराए !
(२)
'वह सुषमा थी नहीं, न उसने
तुमको अगर प्रकाश दिया ['
'वह सुषमा थी नहीं, न उसने
तुझे अगर उन्मत्त किया ?'
ज्ञानी औ' कवि की वाणी सुन
प्रेमी आहें भर बोला,
'सुषमा न थी, नहीं यदि उसने
आत्मसात् कर मुझे लिया ['
(३)
एफ व्यक्ति साधारण उनकी
बातें सुनने को आया,
मौन हुए जब तीनों तब वह
उच्चस्वर से चिल्लाया !
'मूढ़ो मैंने अब तक उसको
कभी नहीं सुषमा समझा,
जिसके निकट पहुंचते ही,
आनद नहीं मैंने पाया !'
(४)
एक बिंदु पर अब तीनों के
मिल जाने की आशा थी,
क्या अंतिम ही सबसे अच्छी
सुषमा की परिभाषा थी ।
4. कवि का गीत
गीत कह इसको न दुनियाँ
यह दुखों की माप मेरे!
(१)
काम क्या समझूँ न हो यदि
गाँठ उर की खोलने को?
संग क्या समझूँ किसी का
हो न मन यदि बोलने को?
जानता क्या क्षीण जीवन ने
उठाया भार कितना,
बाट में रखता न यदि
उच्छ्वास अपने तोलने को?
हैं वही उच्छ्वास कल के
आज सुखमय राग जग में,
आज मधुमय गान, कल के
दग्ध कंठ प्रलाप मेरे.
गीत कह इसको न, दुनिया,
यह दुखों की माप मेरे!
(२)
उच्चतम गिरि के शिखर को
लक्ष्य जब मैंने बनाया,
गर्व से उन्मत होकर
शीश मानव ने उठाया,
ध्येय पर पहुँचा, विजय के
नाद से संसार गूंजा,
खूब गूंजा किंतु कोई
गीत का सुन स्वर न पाया;
आज कण-कण से ध्वनित
झंकार होगी नूपुरों की,
खड्ग-जीवन-धार पर अब
है उठे पद काँप मेरे.
गीत कह इसको न, दुनिया,
यह दुखों की माप मेरे!
(३)
गान हो जब गूँजने को
विश्व में, क्रंदन करूँ मैं,
हो गमकने को सुरभि जब
विश्च में, आहें भरूँ मैं,
विश्व बनने को सरस हो
जब, गिराऊँ अश्रु मैं तब
विश्व जीवन ज्योति जागे,
इसलिए जलकर मरूँ मैं!
बोल किस आवेश में तू
स्वर्ग से यह माँग बैठा ?--
पुण्य जब जग के उदय हों
तब उदय हों पाप मेरे !
गीत कह इसको न दुनिया,
यह दुखों की माप मेरे !
(४)
चुभ रहा था जो हदय में
एक तीखा शूल बनकर,
विश्व के कर में पड़ा वह
कल्प तरु का फूल बनकर,
सीखता संसार अब है
ज्ञान का प्रिय पाठ जिससे,
प्राप्त वह मुझको हुई थी
एक भीषण भूल बनकर,
था जगत का और मेरा
यदि कभी संबंध तो यह-
विश्व को वरदान थे जो
थे वही अभिशाप मेरे!
गीत कह इसको न दुनिया,
यह दुखों की माप मेरे !
(५)
भावना के पुण्य अपनी
सूत्र-बाणी में पिरोकर
धर दिए मैंने खुशी से
विश्व के विस्तीर्ण पथ पर,
कौन है सिर पर चढ़ाता
कौन ठुकराता पगों से
कौन है करता उपेक्षा-
मुड़ कर कभी देखा न पल भर ।
थी बड़ी नाजुक धरोहर,
था बड़ा दायित्व मुझपर,
अब नहीं चिंता इन्हें
झुलसा न दें संताप मेरे ।
गीत कह इसको न दुनिया,
यह दुखों की माप मेरे !
हरिवंश राय बच्चन की अन्य किताबें
हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद के पास प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव पट्टी में हुआ था। हरिवंश राय ने 1938 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अँग्रेज़ी साहित्य में एम. ए किया व 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवक्ता रहे। उनके साहित्य में मानव के प्रति प्रेम भावना अभिव्यक्त हुई है। उन्होंने निरंतर स्वार्थी मनुष्यों पर कटु व्यंग किए हैं। रहस्यवादी भावना : बच्चन जी के हालावाद में रहस्यवादी भावना का अनूठा संगम है। उन्होंने जीवन को एक प्रकार का मधुकलश और दुनिया को मधुशाला, कल्पना को साकी तथा कविता को एक प्याला माना है। हिंदी भाषा के एक कवि और लेखक थे। वे हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। हरिवंश राय बच्चन 20 वी सदी के नयी कविताओ के एक विख्यात भारतीय कवि और हिंदी के लेखक थे। इनकी कविताओं के द्वारा ही भारतीय साहित्य में परिवर्तन आया था और इनके द्वारा लिखी गयी कविताएं जिस शैली में लिखी गयी थी वह पूर्व कवियों की शैलियों से अलग थी, यही कारण है कि इन्हें नयी सदी का रचियता भी कहा जाता है। इनकी रचनाओं ने भारत के काव्य में नयी धारा का संचार किया। हांलाकि हरिवंशराय बच्चन अब हमारे बीच मौजूद नहीं हैं लेकिन उनकी कविताओं के द्वारा आज भी उनके जीवित होने का एहसास होता है। उनकी कविताएं वास्तविकता का दर्पण हैं जिनमे जीवन की सच्चाई का अनूठा विवरण देखने को मिलता है। 1926 में, 19 साल की आयु में, बच्चन ने उनकी पहली शादी की, उनकी पत्नी का नाम श्यामा था, जो केवल 14 साल की ही थी। और 24 साल की छोटी सी उम्र में ही टी.बी होने के बाद 1936 में उसकी मौत हो गयी। बच्चन ने तेजी बच्चन के साथ 1941 में दूसरी शादी की। और उनको दो बेटे भी हुए, अमिताभ और अजिताभ। हरिवंशराय बच्चन का निधन 18 जनवरी 2003 में 95 वर्ष की आयु में मुंबई में हुआ और उनकी पत्नी तेजी बच्चन उनके जाने के तक़रीबन 5 साल बाद दिसम्बर 2007 में 93 साल की आयु में भगवान को प्यारी हुई। हरिवंश राय बच्चन की एक बहु-प्रचलित कविता निश्चित ही आपको एक नयी उर्जा प्रदान करेंगी और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेंगी– “कोशिश करने वालों की…” हरिवंश राय बच्चन की “अग्निपथ” वृक्ष हों भले खड़े, हों घने हों बड़े, एक पत्र छाँह भी, माँग मत, माँग मत, माँग मत, अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ। एक प्रसिद्ध कविता। हरिवंश राय बच्चन का कविता संग्रह हरिवंश राय बच्चन का कविता संग्रह इस प्रकार है: तेरा हार, मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल अंतर, सतरंगिनी, हलाहल, बंगाल का अकाल, खादी के फूल, सूत की माला, मिलन यामिनी, प्रणय पत्रिका, धार के इधर उधर, आरती और अंगारे, बुद्ध और नाचघर, त्रिभंगिमा, चार खेमे चौंसठ खूंटे दो चट्टानें बहुत दिन बीते, कटती प्रतिमाओं की आवाज, उभरते प्रतिमानों के रूप, जाल समेटा हैं | हरिवंशराय बच्चन जी द्वारा पाठकों और श्रोताओं को अपनी कृतियों के रूप में जो तोहफा दिया है उसको पूरा देश हमेशा याद रखेगा और उनके इस कार्य की सराहना हमेशा की जाएगी। अपनी कृतियों के जरिये वे आज भी जीवित हैं और हमेशा याद किये जाएंगे।D