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7. मेघदूत के प्रति

28 जुलाई 2022

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(1)

"मेघ" जिस जिस काल पढ़ता,

मैं स्वयं बन मेघ जाता!


हो धरणि चाहे शरद की

चाँदनी में स्नान करती,

वायु ऋतु हेमंत की चाहे

गगन में हो विचरती,


हो शिशिर चाहे गिराता

पीत-जर्जर पत्र तरू के,

कोकिला चाहे वनों में,

हो वसंती राग भरती,


ग्रीष्म का मार्तण्ड चाहे,

हो तपाता भूमि-तल को,

दिन प्रथम आषाढ़ का में

'मेघ-चर' द्वारा बुलाता


'मेघ' जिस जिस काल पढ़ता,

मैं स्वयं बन मेघ जाता!


(2)

भूल जाता अस्थि-मज्जा-

मांसयुक्त शरीर हूँ मैं,

भासता बस-धूम्र संयुत

ज्योति-सलिल-समीर हूँ मैं,


उठ रहा हूँ उच्च भवनों के,

शिखर से और ऊपर,

देखता संसार नीचे

इंद्र का वर वीर हूँ मैं,


मंद गति से जा रहा हूँ

पा पवन अनुकूल अपने

संग है वक-पंक्ति, चातक-

दल मधुर स्वर गीत गाता


'मेघ' जिस जिस काल पढ़ता,

मैं स्वयं बन मेघ जाता!


(3)

झोपड़ी, ग्रह, भवन भारी,

महल औ' प्रासाद सुंदर,

कलश, गुंबद, स्तंभ, उन्नत

धरहरे, मीनार द्धढ़तर,


दुर्ग, देवल, पथ सुविस्तृत,

और क्रीड़ोद्यान-सारे,

मंत्रिता कवि-लेखनी के

स्पर्श से होते अगोचर


और सहसा रामगिरि पर्वत

उठाता शीशा अपना,

गोद जिसकी स्निग्ध छाया

-वान कानन लहलहाता!


'मेघ' जिस जिस काल पढ़ता,

मैं स्वयं बन मेघ जाता!


(4)

देखता इस शैल के ही

अंक में बहु पूज्य पुष्कर,

पुण्य जिनको किया था

जनक-तनया ने नहाकर


संग जब श्री राम के वे,

थी यहाँ पे वास करती,

देखता अंकित चरण उनके

अनेक अचल-शिला पर,


जान ये पद-चिन्ह वंदित

विश्व से होते रहे हैं,

देख इनको शीश में भी

भक्ति-श्रध्दा से नवाता


'मेघ' जिस जिस काल पढ़ता,

मैं स्वयं बन मेघ जाता!


(5)

देखता गिरि की शरण में

एक सर के रम्य तट पर

एक लघु आश्रम घिरा बन

तरु-लताओं से सघनतर,


इस जगह कर्तव्य से च्युत

यक्ष को पाता अकेला,

निज प्रिया के ध्यान में जो

अश्रुमय उच्छवास भर-भर,


क्षीणतन हो, दीनमन हो

और महिमाहीन होकर

वर्ष भर कांता-विरह के

शाप के दुर्दिन बिताता


'मेघ' जिस जिस काल पढ़ता,

मैं स्वयं बन मेघ जाता!


(6)

था दिया अभिशाप अलका-

ध्यक्ष ने जिस यक्षवर को,

वर्ष भर का दंड सहकर

वह गया कबका स्वघर को,


प्रयेसी को एक क्षण उर से

लगा सब कष्ट भूला

किन्तु शापित यक्ष

महाकवि, जन्म-भरा को!


रामगिरि पर चिर विधुर हो

युग-युगांतर से पडा़ है,

मिल ना पाएगा प्रलय तक

हाय, उसका शाप-त्राता!


'मेघ' जिस जिस काल पढ़ता,

मैं स्वयं बन मेघ जाता!


(7)

देख मुझको प्राणप्यारी

दामिनी को अंक में भर

घूमते उन्मुकत नभ में

वायु के म्रदु-मंद रथ पर,


अट्टहास-विलास से मुख-

रित बनाते शून्य को भी

जन सुखी भी क्षुब्ध होते

भाग्य शुभ मेरा सिहाकर;


प्रणयिनी भुज-पाश से जो

है रहा चिरकाल वंचित,

यक्ष मुझको देख कैसे

फिर न दुख में डूब जाता?


'मेघ' जिस जिस काल पढ़ता,

मैं स्वयं बन मेघ जाता!


(8)

देखता जब यक्ष मुझको

शैल-श्रंगों पर विचरता,

एकटक हो सोचता कुछ

लोचनों में नीर भरता,


यक्षिणी को निज कुशल-

संवाद मुझसे भेजने की

कामना से वह मुझे उठबार-

बार प्रणाम करता


कनक विलय-विहीन कर से

फिर कुटज के फूल चुनकर

प्रीति से स्वागत-वचन कह

भेंट मेरे प्रति चढा़ता


'मेघ' जिस जिस काल पढ़ता,

मैं स्वयं बन मेघ जाता!


(9)

पुष्करावर्तक घनों के

वंश का मुझको बताकर,

कामरूप सुनाम दे, कह

मेघपति का मान्य अनुचर


कंठ कातर यक्ष मुझसे

प्रार्थना इस भांति करता

'जा प्रिया के पास ले

संदेश मेरा,बंधु जलधर!


वास करती वह विरहिणी

धनद की अलकापुरी में,

शंभु शिर-शोभित कलाधर

ज्योतिमय जिसको बनाता'


'मेघ' जिस जिस काल पढ़ता,

मैं स्वयं बन मेघ जाता!


(10)

यक्ष पुनः प्रयाण के अनु-

रूप कहता मार्ग सुखकर,

फिर बताता किस जगह पर,

किस तरह का है नगर, घर,


किस दशा, किस रूप में है

प्रियतमा उसकी सलोनी,

किस तरह सूनी बिताती

रात्रि, कैसे दीर्ध वासर,


क्या कहूँगा,क्या करूँगा,

मैं पहुँचकर पास उसके;

किन्तु उत्तर के लिए कुछ

शब्द जिह्वा पर ना आता


'मेघ' जिस जिस काल पढ़ता,

मैं स्वयं बन मेघ जाता!


(11)

मौन पाकर यक्ष मुझको

सोचकर यह धैर्य धरता,

सत्पुरुष की रीति है यह

मौन रहकर कार्य करता,


देखकर उद्यत मुझे

प्रस्थान के हित,

कर उठाकर

वह मुझे आशीष देता


'इष्ट देशों में विचरता,

हे जलद, श्री व्रिध्दि कर तू

संग वर्षा-दामिनी के,

हो न तुझको विरह दुख जो

आज मैं विधिवश उठाता!'

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रचनाएँ
मधुकलश
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मधुकलश हरिवंश राय बच्चन की एक कृति है। श्रेणी:हरिवंश राय बच्चन. हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन" (२७ नवम्बर १९०७ – १८ जनवरी २००३) हिन्दी भाषा के एक कवि और लेखक थे। इलाहाबाद के प्रवर्तक बच्चन हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों मे से एक हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति मधुशाला है। भारतीय फिल्म उद्योग के प्रख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन उनके सुपुत्र हैं। उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। बाद में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ रहे। अनन्तर राज्य सभा के मनोनीत सदस्य। बच्चन जी की गिनती हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में होती है। .
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