लिखने को है बहुत कुछ,लेकिन चल ना पाती ये लेखनी। कहने को है बहुत कुछ,लेकिन कह ना पाती कोई कहानी।हवा तो बहती है बहुत गर्मी में,लेकिन होती नहीं इतनी सुहानी।चाहने वाले तो बहुत है,ले
लेखनी! उत्सर्ग कर अब✒️लेखनी! उत्सर्ग कर अब, शांति को कब तक धरेगी?जब अघी भी वंद्य होगा, हाथ को मलती फिरेगी।साथ है इंसान का गर, हैं समर्पित वंदनायें;और कलुषित के हनन को, स्वागतम, अभ्यर्थनायें।लेखनी! संग्राम कर अब, यूँ भला कब तक गलेगी?हों निरंकुश मूढ़ सारे, जब उनींदी साधन