*केवल मनुष्य ही एक मात्र ऐसा प्राणी है, जिसका व्यक्तित्व निर्माण प्रकृति से ज्यादा उसकी स्वयं की प्रवृत्ति पर निर्भर होता है।**मनुष्य अपने विचारों से निर्मित एक प्राणी है, वह जैसा सोचता है वैसा
जो सबसे पहले क्षमा माँगता है,वह सबसे बहादुर होता है।जो सबसे पहले क्षमा कर देता है,वह सबसे शक्तिशाली होता है।औरजो सबसे पहले भूल जाता है,वह सबसे अधिक सुखी व्यक्ति है।सब दुःख दूर होने के बाद
अगर आप से कोई गलती हो जाए तो बहुत देर तक उस का रोना रोते न रहिए, उस का कारण जान लीजिए और फिर आगे की फ़िक्र कीजिए. धीरज से कमजोर आदमी को भी बल मिलता है, बेसब्री से शक्ति बरबाद होती है।जैस
जिंदगी में भी बहुत तुफान ओर झोंकें आते हैं,और जिंदगी में पेड़ से कमजोर रिश्ते और कमजोर साथी इन झोन्कौ में विलीन हो जाते हैं...!कुछ लोग अपनी अकड़ ओर वैअक्ल की वजह से कीमती रिश्ते खो देते हैं ,और
बहुत से लोग जीवन में सुखी रहते हैं , प्रसन्न रहते हैं मस्त रहते हैं ।और बहुत से लोग जीवन में दुखी रहते हैं , चिंतित और परेशान रहते हैं।क्या कारण है ? बहुत सारे कारण हो सकते हैं। उनमें से एक कारण
एक लड़का एक जूतो की दुकान में आता है गांव का रहने वाला था, पर तेज़ था....उसका बोलने का लहज़ा गांव वालों की तरह का था, परन्तु बहुत ठहरा हुआ लग रहा था... उम्र लगभग 22 वर्ष की रही होगी...दुकानदार की पहली नज़
किसी गांव में एक गड़रिया रहता था। वह लालची स्वभाव का था, हमेशा यही सोचा करता था कि किस प्रकार वह गांव में सबसे अमीर हो जाये। उसके पास कुछ बकरियां और उनके बच्चे थे। जो उसकी जीविका के साधन थे।एक बार वह ग
ठण्ड का मौसम था. शीतलहर पूरे राज्य में बह रही थी. कड़ाके की ठण्ड में भी उस दिन राजा सदा की तरह अपनी प्रजा का हाल जानने भ्रमण पर निकला था. महल वापस आने पर उसने देखा कि महल के मुख्य द्वा
डायरी दिनांक १३/०४/२०२२ शाम के छह बजकर पंद्रह मिनट हो रहे हैं । आज अचानक ज्ञात हुआ कि कल और परसों लगातार दो दिनों का अवकाश है। दूरसंचार क्षेत्र में कार्य करने बालों के लिये दो दिनों का अवकाश मि
माता पार्वती शंकर की दूसरी पत्नीं थीं जो पूर्वजन्म में देवी सती थी सती के विपरीत माता पार्वती का स्वरूप अत्यंत सौम्य है देवी गौर वर्ण की है माता पार्वती निर्मल जल के समान है माता पार्वती के चेहरे प
उदार बनो पर अपने आप को इस्तेमाल मत होने दो प्यार करो पर खुद को ठेस ना लगने दोविश्वास करो पर भोले मत बनो दूसरों की भी सुनो लेकिन अपनी आवाज मत खोने दो कोई कुछ भी बोले अपने आप को शां
बात उस समय की है, जब स्वामी विवेकानंद अपने लोकप्रिय शिकागो धर्म सम्मेलन के भाषण के बाद भारत वापस आ गये थे। अब उनकी चर्चा विश्व के ह
जो मनुष्य दूसरों का भला करके भूल जाते हैं उनका हिसाब प्रकृति स्वयं याद रखा करती है मगर जो मनुष्य आदतन अपने पुण्यों का बहीखाता लिए फिरते हैं इस प्रकृति द्वारा फिर उनके पुण्य कर्मों क
एक वृद्ध संत ने अपने जीवन के अन्तिम समय में अपने बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा - मैं तुम्हें चार अनमोल रत्न दे रहा हूँ, मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि तुम इन्हें सम्भाल कर रखोगे तो तुम इनकी सहायता से
जीवन में पद से ज्यादा महत्व पथ का है। इसलिए पदच्युत हो जाना मगर भूलकर भी कभी पथच्युत मत हो जाना। पथच्युत हो जाना अर्थात उस पथ का त्याग कर देना जो हमें सत्य और नीति के मार्ग से जीवन की ऊं
चिंता चिता सब एक समान हैं दोनों ही मानुष तन नाश करें हैं । चिंता सताए के तन को गलाए तो चिता तन का ग्रास करे है । काल का पहिया भी चले निरंतर काल विकास विनाश करे है । उल्टा चला जब काल का पहिया तो प्र
सम्बन्ध उसी आत्मा से जुड़ता है जिनका हमसे पिछले जन्मों का कोई रिश्ता होता है, वरना.दुनियां के इस भी
नीति शास्त्र कहते हैं कि नीच और अधम श्रेणी के मनुष्य- कठिनाईयो के भय से किसी उत्तम कार्य को प्रारंभ ही नहीं करते। मध्यम श्रेणी के मनुष्य - कार्य को तो प्रारंभ करते हैं मगर विघ्नों
डायरी दिनांक १२/०४/२०२२ शाम के पांच बजकर चालीस मिनट हो रहे हैं । निकृष्ट व्यक्ति कभी भी अपनी निकृष्टता नहीं छोड़ सकता है। यदि कोई निकृष्ट व्यक्ति कुछ दिनों शांत रहे तब वह एक बड़े खेल की
जिंदगी क्या है , सुख दुख की एक रेल है किसको क्या मिला, सब भाग्य का खेल है कोई प्लेटफॉर्म पर पैदा होकर भी खुश है किसी को "राजमहल" भी लगता जेल है किसी को बिन मांगे ही मिल जाता है सब कु