डायरी दिनांक १२/०४/२०२२
शाम के पांच बजकर चालीस मिनट हो रहे हैं ।
निकृष्ट व्यक्ति कभी भी अपनी निकृष्टता नहीं छोड़ सकता है। यदि कोई निकृष्ट व्यक्ति कुछ दिनों शांत रहे तब वह एक बड़े खेल की ही तैयारी कर रहा होता है। एक निकृष्ट के खेल का इंतजार बहुत दिनों से था। आज वह इंतजार समाप्त हुआ।
प्रतिलिपि द्वारा मुझे पहले से ही व्हाट्सअप सेवा प्रदान की है। आज भी मुझे फार्म भरने का मैसेज प्राप्त हुआ। हालांकि मैंने वह फार्म भर दिया पर फिर श्री करन जी से पूछा। ज्ञात हुआ कि जिन्होंने पहले से फार्म भर रखा है, उन्हें दुबारा फार्म भरने की आवश्यकता नहीं है। हालांकि नवीन मैसेज में एक सीक्रेट गिफ्ट देने की बात कही है। देखते हैं कि शायद इस बार कुछ गिफ्ट ही मिल जाये।
श्री राम चरित मानस में वर्णित ग्यारहवें महर्षि का नाम सुतीक्षन है। हालांकि श्री राम चरित मानस में उनका नाम सुतीछन लिखा है। संभवतः यह अवधी भाषा का प्रभाव है। हिंदी भाषा के विभिन्न प्रकारों में अलग अलग शव्दों का प्रयोग किया जाता है।
श्री राम चरित मानस के अरण्य कांड में लिखा है कि भगवान श्री राम चित्रकूट में महर्षि अत्रि से विदा लेकर दक्षिण की तरफ चले। फिर भगवान श्री राम की भेंट महर्षि अगस्त के शिष्य महर्षि सुतीक्षन से हुई। महर्षि को भगवान श्री राम के आगमन का समाचार मिला तो वह खुद भगवान को ढूंढने निकल लिये। पर अत्यधिक प्रेम के कारण मार्ग भूल गये। आखिर एक स्थान पर वह समाधि की अवस्था में बैठ गये। वहीं भगवान श्री राम ने बहुत प्रयासों से महर्षि को जगाने का प्रयास किया। अंत में भगवान ने महर्षि के मन से अपना वह रूप जिसका वह चिंतन कर रहे थे, छिपा दिया। मन से वह रूप लुप्त होते ही महर्षि ने आतुरता से अपने नैत्र खोले तथा सामने प्रभु श्री राम माता जानकी और लक्ष्मण जी को पाया। फिर महर्षि सुतीक्षन प्रभु श्री राम के साथ महर्षि अगस्त के आश्रम पहुंचे। तथा महर्षि अगस्त को भगवान राम के आगमन की सूचना दी।
नाथ कौशलाधीश कुमारा। आए मिलन जगत आधारा।।
राम अनुज समेत वैदेही। निसि दिन देव जपत हैं जेही।।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।