मायावती अपने राजनीति क जीवन की शुरुआत से ही दयाशंकर सिंह जैसों के टट्टी बोल सुनती आ रही हैं. इसकी शुरुआत तब हुई थी, जब उन्होंने अपना घर छोड़कर दिल्ली के करोल बाग में बामसेफ के दफ्तर में रहना शुरू किया था. फिर जब वह बामसेफ के मुखिया कांशीराम के कमरे पर जाकर रहने लगीं,तब इन बातों ने खूब जोर पकड़ा. लोग यह भी भूल गए कि कांशीराम उस कमरे में नहीं रहते. टूर पर रहते हैं. लोग ये भी भूल गए कि मायावती के साथ उनका भाई सिद्धार्थ भी रहता है. क्योंकि लोगों के लिए बहुत आसान होता है. किसी भी औरत को एक झटके में जमीन पर ले आना. बस वेश्या ही तो कहना है.
मायावती के राजनीतिक जीवन की शुरुआत के बारे में पत्रकार अजय बोस ने लिखा है. अपनी किताब में. इसका टाइटल है ‘बहन जी, ए पॉलिटिकल बायोग्राफी ऑफ मायावती.’ इसमें वह लिखते हैं कि जब से 21 साल की मायावती बामसेफ मूवमेंट में सक्रिय हुईं, लोगों को दिक्कत होने लगी. कांशीराम उन्हें लगातार उत्साहित करते. मंच संभालने के लिए, दलित समाज को उनकी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार लोगों के बारे में बताने के लिए. मायावती अपने तेजाबी भाषणों के चलते मशहूर होने लगीं. न तो वह गांधी को बख्शती थीं, और न ही सवर्णों को.
उधर मायावती के पिता प्रभु दास को बेटी की ये सक्रियता रास नहीं आ रही थी. वह चाहते थे कि मायावती आईएएस की तैयारी करे या फिर घर बसा ले. एक दिन झगड़ा बहुत बढ़ गया. उन दिनों मायावती दिल्ली के प्राइमरी स्कूल में टीचर थी. प्रभु दास ने अल्टीमेटम दे दिया. घर में रहोगी तो मेरे हिसाब से. कांशीराम और बामसेफ से मतलब छोड़ना होगा. मायावती ने बाप का घर छोड़ दिया. करोल बाग में बामसेफ का दफ्तर था. वहीं आ गईं, अपना कपड़ों से भरा सूटकेस, कुछ किताबें और जमा पूंजी लेकर. कांशीराम तब टूर पर थे. कुछ दिनों में लौटे. उन्होंने मायावती को ढांढस बंधाया. मायावती बोलीं कि अब मैं अपना जीवन मिशन में लगाना चाहती हूं. न मुझे शादी करनी है, न परिवार से बंधकर रहना है.
कांशीराम को अपनी इस शिष्या का ये संकल्प प्रभावित कर गया.
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