विजय त्रिवेदी की किताब रिलीज हुई है. पूर्व पीएम और बीजेपी लीडर अटल बिहारी वाजपेयी के जिंदादिल किस्सों से भरी है ये किताब. इसका टाइटल है हार नहीं मानूंगा- एक अटल जीवन गाथा. जाहिर है कि ये वाजपेयी की ही एक चर्चित कविता का टुकड़ा है. इस किताब को हार्पर कॉलिन्स ने छापा है. इसी किताब में तमाम किस्से हैं अटल के. हम आपको इसी किताब के कुछ किस्से पढ़ा रहे हैं. आज पढ़िए वो वाला किस्सा, जब वाजपेयी के पीएम रहते कुंभकरण जाग गया.
कुंभकरण जाग गया.
11 मई 1998. कुंभकरण जागने की ख़बर दुनिया को मिली तो सबके मानो होश उड़ गए और कुंभकरण के जागने के साथ ही 7, रेस कोर्स रोड यानी भारतीय प्रधानमंत्री के सरकारी आवास में वाजपेयी की एक धमाकेदार एंट्री हुई. इस सरकारी आवास पर इससे पहले कभी किसी प्रधानमंत्री ने ऐसी एंट्री नहीं की होगी, जैसी एनडीए सरकार के मुखिया और भारतीय जनता पार्टी के नेता प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने की.
कुंभकरण को मेजर जनरल पृथ्वी राज ने जगाया था. उनके साथ मेजर जनरल नटराज भी थे.
भारतीय सेना के ये दो बड़े अफ़सर वहां क्या कर रहे थे?
किसके आदेश पर उन्होंने कुंभकरण को जगाने की कोशिश की?
धरती के गर्भ में सोया हुआ कुंभकरण जब जागा तो धरती कांप उठी. दुनिया के माथे पर सलवटें पड़ने लगीं और सवाल होने लगे कि कुंभकरण के जागने से तो मानो प्रलय आ जाएगी. जितने मुंह, उतनी बातें. महाकवि तुलसीदास की रामचरित मानस में लंका नरेश रावण के भाई कुंभकरण को हमेशा सोते हुए ही दिखाया गया है. कहा जाता है कि वह छह महीने सोता था और छह महीने जागता था, लेकिन जब उस दोपहर 3 बजकर 45 मिनट पर कुंभकरण जागा, तो दुनिया भर में हड़कंप मच गया. ख़ुद को दुनिया का सबसे ताक़तवर मुल्क मानने वाले अमेरिका की तो मानो नींद ही उड़ गई.
नरसिम्हा राव सरकार के वक्त के अनुभवों से नई सरकार को समझ आ गया था कि परमाणु परीक्षण कार्यक्रम को बहुत ही गोपनीयता के साथ करना होगा. इसलिए इसकी तैयारी इतने गोपनीय तरीके से हुई कि सरकार में बैठे ज़्यादातर लोगों को भी इसकी भनक तक नहीं पड़ ने दी गई. पूरे कार्यक्रम को नाम दिया गया ‘ऑपरेशन शक्ति’ और ‘बुद्धा स्माइलिंग’.
इस परमाणु परीक्षण के लिए कोडवर्ड था: ‘कुंभकरण जाग गया’
जगहों के नाम के लिए कोडवर्ड रखे गए ‘ताजमहल’ और ‘व्हाइट हाऊस.’ वै ज्ञान िकों को न केवल सेना के अफ़सरों के नाम और पहचान दी गई. बल्कि उनके आने-जाने और रहने की व्यवस्था सेना के रास्ते की गई थी . वे लोग सीधे परमाणु परीक्षण की जगह तक नहीं जा सकते थे. जैसलमेर और जोधपुर का इलाका भारत की सैनिक छावनी का इलाका है, इसलिए वहां सैनिक अफ़सरों की आवाजाही पर ज़्यादा शक़ शुबहा नहीं होता और इस गोपनीयता का ही फ़ायदा हुआ कि जब भारत के परमाणु शक्ति बनने का ऐलान प्रधानमंत्री वाजपेयी ने किया तो पूरी दुनिया के होश उड़ गए.