वजह जो भी हो पर कहीं न कहीं हम अपने आप से कतराते हैं. अपने आप से सवाल करने में. अपने आप को कटघरे में खड़ा करने में. कुछ सवाल हैं जो हम दूसरों से पूछते हैं. क्योंकि हमारे पास जवाब नहीं हैं. और जो लोग हमसे आगे हैं वो जवाब देते नहीं. कभी कभी लगता है कि हमारे जैसे मूढ लोगों को वो उसी हाल में छोड़ देना चाहते हैं ताकि अपने प्रगतिशील होने का दंभ भरा जा सके. राम के लिये रावण जरूरी है. बैटमैन के लिए जोकर.
लगने के बावजूद कुछ सवाल हैं ‘द ग्रेट इंडियन लिबरल’ से, जो समाज से ऊब चुके हैं. वो ऊबन मिटाते हैं ‘मूढ’ लोगों को कोसकर. पर सवाल नहीं मिटते हैं:
1. आप बताइए कि कितनी वेश्यावृत्ति में फंसी लड़कियों को आपने घर पर बुलाया है और अपने बच्चों से परिचय कराया है कि देखो ये भी इंसान हैं, इन्हें भी दोस्त बना सकते हो.
2. आपने अपने बच्चों को प्रेरित किया है क्या लिव इन में रहने को? अगर समर्थन करते हैं तो प्रेरित भी करना पड़ेगा. ये बहाना नहीं चलेगा कि उनकी च्वॉइस है और उनके दिमाग में चतुराई से डालते रहें कि गलत है.
3. क्या आपने अपनी बीवी ज्यादा कमाऊ चुनी थी? क्या आप अपने बच्चों के पॉटी का ख्याल रखते थे?
4. हमारे बेटों को दबे रंग वाली लड़कियों से प्यार क्यों नहीं होता? हमारी लड़कियां जो शुक्ला, राय, सिंह, माथुर होती हैं. उनको पासवान, राम, पासी से प्यार क्यों नहीं होता?
5. अपने बच्चों से सेक्स के बारे में बात की है आपने कभी?
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