समूचा देश एक वक़्त पर, एक शाम, टीवी स्क्रीन के सामने आकर थम जाय ऐसा किसी देश में कहाँ होता है. लेकिन तीन हफ्ते पहले , 31 दिसम्बर की शाम 7.30 बजे, देश कुछ पल के लिए रुक गया था. सबको इंतज़ार प्रधानमन्त्री मोदी के मास्टरस्ट्रोक का था. लेकिन छुटपुट घोषणाओं के अलावा मोदी राष्ट्र को कोई बड़ा सन्देश नही दे सके. राष्ट्र तो प्रतीक्षा में था पर मोदी ही स्ट्रोक मिस कर गये. जैसे धोनी को मैच पलटने के लिए फ्री-हिट मिल जाये पर वो गेंद छोड़ दे कुछ ऐसी ही मुद्रा में मोदी दिखे.
जिस फ्री-हिट पर मोदी से एक छक्के की गरज थी उस फ्री-हिट पर मोदी ने कोई बड़ा शॉट न खेल कर उस शाम अपने कैडर को मायूस ज़रूर किया था. लेकिन बीजेपी के रणनीतिकारों ने तब संकेत दिए कि दो दिन बाद लखनऊ में मोदी एक विशाल रैली कर रहे हैं और वहां पर कोई बड़ा एलान करके यूपी के चुनाव में बाज़ी पलटने का उनका इरादा है. यानी अगले 48 घंटो में मोदी को एक और फ्री-हिट मिलने वाली थी. लेकिन 2 जनवरी को लखनऊ के विशाल रमा बाई मैदान पर जब लाखों लोग मोदी के आतिशी एलान के उम्मीद में जमा हुए तो नमो एक बार फिर, फ्री-हिट मिस कर गये. इस बार शॉट लगाना तो दूर उन्होंने गेंद ही छोड़ दी.
मोदी ने लखनऊ के रमा बाई मैदान पर इस भारी भीड़ को देखकर ये ज़रूर स्वीकार किया कि ये उनके कैरियर की सबसे बड़ी रैली थी. लेकिन सच ये भी था कि यूपी की बाज़ी पलटने के लिए ये उन्हें दी गयी एक गोल्डन फ्री-हिट थी जिसे वो चूक गये. तब चुनाव आचार संहिता की घोषणा नही हुई थी और मोदी, प्रदेश के सांसद होने के नाते, यूपी के किसानो या मजदूरों को कोई बड़ा तोहफा देकर सपा-बसपा की भ्रष्ट राजनीति पर कुछ वर्षों के लिए विराम लगा सकने का मौका गँवा बैठे. न जाने क्यूँ, इस एतिहासिक रैली में, ‘ओजस्वी’ मोदी का भाषण उनके हाल-फिलहाल के सभी भाषणों में सबसे कमजोर लगा. वो इस रैली के माहौल को सीधे लाखों-लाख वोट में बदल सकते थे लेकिन इस निर्णायक क्षण में मोदी के बल्ले से गेंद दूर निकल गयी. वो एक और फ्री-हिट गँवा चुके थे. उनका कैडर, उनके नेता , उनके समर्थकों को रमा बाई के मैदान से खाली हाथ लौटना पड़ा. पार्टी अपनी सबसे ऐतिहासिक रैली में अपना मोमेंटम खो बैठी. जैसे कोई उफान पर चढ़ती नदी अचानक अपना वेग खो दे. मोदी की इस मिस हुई फ्री-हिट ने चुनाव के नाजुक मोड़ पर नोटबंदी के मुद्दे को पुनर्जीवित कर दिया. यही नही , परिवार के सत्तायुद्ध में उलझे अखिलेश और नकद नारायण के चक्रव्यूह में फंसी मायावती को अपनी दुश्वारियों के बावजूद साहस जुटाने का हौंसला मिल गया.
दो महीने पहले ही , पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक करके मोदी ने राजनीतिक फलक पर जो धाक दुबारा जमाई थी उसने बीजेपी को यूपी में 10-15 साल के बाद नई ताकत दी थी. बीजेपी नवम्बर 2016 में 200 सीट का आंकड़ा पार करते दिख रही थी. मुलायम के कुनबे की कलह और मायावती के खेमे में भगदड़ और फिर नोट बंदी के एलान ने सपा-बसपा के अरबों रूपए के कैश पर स्ट्राइक करके बीजेपी की जीत का रास्ता साफ़ कर दिया था. मोदी को अब केवल यूपी के छोटे व्यापार ी, किसानो और मजदूरों को एक बड़ा पैकेज देकर उनका दिल जीतना था.. और इसी लाइन पर , इसी उम्मीद में, सारा कैडर 2 जनवरी की ऐतिहासिक रैली में मोदी से इस पैकेज का इंतज़ार कर रहा था. लेकिन मोदी पहली बार सन्दर्भ से भटक गये. नोट बंदी से हुए जिस 15-20 प्रतिशत के नफा-नुकसान को उन्हें डैमेज-कण्ट्रोल करना था उस मास्टरस्ट्रोक को वो 2 जनवरी को मिली फ्री-हिट में चूक गये थे.
आज यूपी में बीजेपी 200 से घटकर फिर सपा-बसपा के आसपास खड़ी है. बीजेपी का नेतृत्व इस सच से मुकर सकता है लेकिन आशंकाएं उत्तर प्रदेश को त्रिशंकु विधान सभा की ओर धकेल रही हैं. चुनाव के बाद लखनऊ में मिली जुली सरकार बनती दिख रही है जो यूपी को फिर राजनैतिक अराजकता के दौर में ले डूबेगी. देश की जनसँख्या का पांचवा हिस्सा फिर भ्रष्टाचार से दो चार होगा. साढ़े चार लाख करोड़ रूपए के सालाना बजट या यूँ कहे बीस लाख करोड़ रूपए के पांच बरस के बजट की खुली लूट फिर होगी. कम से कम पिछले दो दशकों से यूपी में ऐसा ही गड़बड़झाला देखने को मिल रहा है. चाचा-भतीजों का वंश हो या बहनजी का परिवार, हमने बीस बरसों में इन दोनो के धन-बल को हज़ारों गुना फलते फूलते देखा है. हमने देखा है कि इन बीस बरसों में कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, आगरा, बरेली या गोरखपुर जैसे बड़े शहरों का क्या दुर्दशा रही है. वो गंगा के मैले घाट, वो ताज के उजड़े किनारे या वो कानपुर की बंद मिलों को आखिर किसकी परवा रही. हां, हमने ये ज़रूर देखा कि कोई नॉएडा से आगरा तक युमना एक्सप्रेस वे बनाकर 50 हज़ार करोड़ का घोटाला करके बच निकला या किसी ने आगरा से लखनऊ तक अरबों रूपए के ग्रीनफ़ील्ड प्रोजेक्ट के नाम पर लन्दन में अपने गुप्त खाते भर लिए.
दोस्तों, यूपी की दुर्दशा बयान करते करते रात गुजर सकती है. लेकिन इस स्याह रात को अब बरसों बाद सुबह का इंतज़ार है. बीजेपी, दूध से भले ही न धुली हो लेकिन चाचा भतीजों की सपा , अजित सिंह की ब्लैक मेल पार्टी, पप्पू की कांग्रेस और मायावती के बिजनेस ग्रुप से कुछ बेहतर है. फैसला तो जनता को ही करना है लेकिन उससे पहले एक फैसला मोदी भी लेने जा रहे हैं. जी हाँ , मोदी को एक बार फिर बाज़ी पलटने के लिए एक और फ्री-हिट मिली है.
1 फरवरी को आम बजट है और 4 फरवरी से मतदान का दौर शुरू होने जा रहा है. भले ही चुनाव अचार संहिता के चलते इस बार मोदी यूपी के लिए ‘स्पेसिफिक पैकेज’ नही दे सकते हैं लेकिन अगर उन्होंने किसानो को बड़ी राहत दी और इनकम टैक्स में निम्न मध्यम वर्ग को छूट दी तो बीजेपी एक बार फिर यूपी में खेल बदल सकती है.
बीजेपी और मोदी के लिए इस सीजन की ये आखिरी फ्री-हिट है. अगर ये फ्री-हिट 31 दिसम्बर या 2 जनवरी की तरह मोदी चूक गये तो 2017 में लखनऊ और 2019 में दिल्ली के नतीजे बीजेपी के लिए बेचैनी से भरे हो सकते हैं.