shabd-logo

वचन--भाग(६)

13 नवम्बर 2021

55 बार देखा गया 55

दिवाकर बहुत बड़ी उलझन में था,कमरें से बाहर निकलता तो उसे अपने पहनावें और चाल ढ़ाल पर शरम महसूस होती,कैन्टीन खाना खाने जाता तो सब काँटे छुरी से खाते और वो हाथ से,उसकी फूहड़ता पर सब हँसते,उसका मज़ाक बनाते,तभी हाँस्टल में रहने वाले एक साथी ने उसका फायदा उठाया, उससे हमदर्दी जताई और उससे दोस्ती कर ली।।

       उसका नाम शिशिर था,उसने दिवाकर से  कहा कि चिंता मत करो दोस्त,मैं तुम्हारी मदद करूँगा और देखना कुछ दिनों में ही तुम इन सबसे स्मार्ट और हैंडसम दिखोगें लेकिन इसके लिए तुम्हें थोड़े पैसे खर्च करने पड़ेगे, नए कपड़े,नए जूते,ये हेयरस्टाइल बदलना होगा, दो तीन महीने के लिए इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स ज्वाइन कर लो,दो तीन तरह के महँगे महँगे घड़ी और चश्मे खरीदने पड़ेगे और कहीं पर भी जाया करो तो टैक्सी से जाया करो।।
      लेकिन इतने पैसे कहाँ से आएंगे? दिवाकर ने पूछा।।
गाँव से मँगवाओं,क्यों घर में पैसे की तंगी है क्या? शिशिर ने पूछा।।
  ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन बड़े भइया घर सम्भाल रहें हैं, पिताजी नहीं रहे तो सारा हिसाब किताब भइया के जिम्मे रहता है और अगर ज्यादा पैसे मँगाए तो भइया हिसाब पूछेंगे, दिवाकर बोला।।
    तो कोई ना कोई बहाना बना देना,अगर स्वयं में आत्मविश्वास लाना चाहते हो तो ये सब करना ही पड़ेगा, नहीं तो बने रहो,देहाती,गँवार, और फूहड़,मेरा क्या जाता हैं? शिशिर ने कहा।।
   नहीं मित्र!तुम्हें ही मेरी मदद करनी होगी और फिर तुम मेरे सीनियर भी हो और यहाँ पहले से रह रहो हो तो यहाँ के बारें में तुम्हें सब पता है, तुम जो कहोगे मैं करूँगा, दिवाकर बोला।।
     ये हुई ना बात,शिशिर बोला।
अब शिशिर ने दिवाकर के तन और मन दोनों का ही कायापलट करना शुरु कर दिया,दिवाकर के साथ शिशिर को भी अय्याशी करने का मौका मिल जाता क्योंकि शिशिर हाँस्टल का सबसे बिगडा़ हुआ लड़का था,उसके गलत चालचलन की वजह से उसके घरवालों ने उसे पैसा भेजना बंद कर दिया था और हाँस्टल में ऐसा कोई नहीं बचा था जिससें उसने उधार ना लिया हो और पैसा ना चुका पाने के कारण हाँस्टल मे अब लोगों ने उसे उधार देना बंद कर दिया था इसलिए उसने दिवाकर को अपना दोस्त बना लिया था अपने फायदे के लिए।।
       उसने दिवाकर के लिए कई जोड़ी कपड़ो सिलवाएं, महँगी महँगी घड़ियाँ खरिदवाई,महँगे महँगे जूते दिलवाएं, दो तीन सोने की चैन बनवाई,साथ में सिगार और सिगरेट भी पीनी सिखा दी,बोला ये पीना बड़े घरों के लड़को की शान होती है और दिवाकर हैं कि बेजुबान जानवर सा उसकी हर बात मानता चला गया।।
         इतना सब सीखने पर भी अभी बात रूकी नहीं थीं कि एक दिन शिशिर एक नई जगह दिवाकर को लेकर गया और वो जगह थी शराबखाना।।
     शिशिर ने वेटर को आर्डर देकर शराब मँगाई,दिवाकर बोला मै ये नहीं कर सकता,किसी को पता चल गया तो मेरी शामत आ जाएंगी और उस रात वो वहाँ से चला आया।।
     इस बात से शिशिर बहुत नाराज हुआ क्योंकि उस रात शराबखाने का बिल शिशिर के हिस्से आया,शिशिर ने अब दिवाकर से बात करना बंद कर दिया, इस बात से दिवाकर परेशान रहने लगा,क्योंकि उसका शिशिर के सिवाय कोई और दोस्त ना था और एक दिन दिवाकर से ना रहा गया और उसने शिशिर से माफी माँग ली और बोला कि___
    ठीक है दोस्त! जो तुम कहोगें,मैं वहीं करूँगा लेकिन अब से कभी भी नाराज ना होना।।
   शिशिर और दिवाकर पहले की तरह फिर घूमने लगे।।
     और इधर दिवाकर की पढ़ाई चौपट हो रही थीं और उधर प्रभाकर गाँव से पैसे भेज भेज कर परेशान था और एक रोज फिर दिवाकर की चिट्ठी गाँव पहुँची,पैसे माँगने के लिए,इस बार प्रभाकर को कुछ समझ नहीं आया कि आखिर देवा को इतने रूपयों की जरूरत क्यों पड़ रही हैं, उसने इस बारें में अपनी माँ कौशल्या से बात की तो कौशल्या बोली कि ऐसा तो नहीं देवा शहर जाकर गलत  संगत में पड़ गया हो।।
      दिवाकर बोला,नहीं माँ! मुझे अपने भाई पर पूरा भरोसा है,वो कभी भी ऐसा कोई काम नहीं करेंगा जिससे बाबूजी की इज्जत पर दाग़ लगे।।
    लेकिन बेटा! आजकल किसी का भरोसा नहीं है, क्या पता शहर जाकर उसे वहाँ की हवा लग गई हो और उसका मन बदल गया हो,कौशल्या बोली।।
    नहीं ,देवा हमलोगों को कभी धोखा नहीं दे सकता, मैं तो बस तुमसे यूँ ही कहने क्या चला आया कि देवा आजकल बहुत पैसे माँग रहा हैं और तुम हो कि ना जाने बात को कहाँ खींचकर ले गई, प्रभाकर ने कौशल्या से कहा।।
     मै तो बस तुझे दुनियादारी के बारें में बता रही थीं, ये दुनिया है बेटा! यहाँ इंसान को बदलते देर नहीं लगती,किसी का कुछ भरोसा नहीं है,ना जाने इंसान कब बदल जाएं, कौशल्या बोली।।
     सही कह रही हो माँ! ये तो मैं अपनी आँखों से देख चुका हूँ, प्रभाकर बोला।।
    कुछ हुआ है क्या? बेटा! कौशल्या ने प्रभाकर से पूछा।।
   ना माँ! वो तो मेरे मुँह से ऐसे ही निकल गया,कल ही देवा को पैसे भेज देता हूँ, वो वहाँ फिजूलखर्ची थोड़े ही कर रहा होगा, जरूरत होगी तभी तो मँगाए हैं पैसे,मैं तो नाहक ही चिंता कर बैठा,प्रभाकर बोला।।
   जैसी तेरी मर्जी बेटा! कौशल्या बोली।।
    और दूसरे दिन ही प्रभाकर ने देवा को मनीआर्डर से रूपए भेज दिए और उधर दिवाकर रूपए पाकर खुश था,अब वो शिशिर के साथ शराबखाने भी जाने लगा,देर रात हाँस्टल लौटता तो सुबह समय से जाग ना पाता और काँलेज की क्लास छूट जाती,इसी तरह  दिवाकर की अय्याशियाँ दिनबदिन बढ़ती जा रहीं थीं और उधर प्रभाकर को लग रहा था कि मेरा भाई पढ़ रहा है।।
     उधर बिन्दवासिनी रोज डाकिया बाबू से पूछती कि उसके लिए कोई चिट्ठी हैं लेकिन दिवाकर शायद अब बिन्दवासिनी को भूल बैठा था,वो शहर की रंगीन दुनिया को ही अपना सबकुछ मान बैठा,उसे ना अब अपना गाँव याद रह गया था और ना गाँववाले।।
     फिर एक रोज देवा की चिट्ठी आई प्रभाकर के पास कि इस बार की छुट्टियों में वो कुछ दिन गाँव में आकर रहेगा, ये खबर प्रभाकर ने सबसे पहले बिन्दवासिनी को सुनाई, बिन्दवासिनी खुशी से झूम उठी और प्रभाकर से बोली इस बार तो मैं सब उसकी ही पसंद की चींजे बना बनाकर उसे खिलाऊँगी।।
     हाँ रे! तेरा जो मन करें वो बनाकर खिलाना अपने देवा को,पहले उसे आ तो जाने दे,प्रभाकर बोला।।
    और वो दिन भी आ पहुँचा जिस दिन देवा आने वाला था,प्रभाकर सुबह सुबह ही तैयार होकर ताँगा लेकर स्टेशन जा पहुँचा,कुछ देर में गाड़ी भी आ पहुँची और दिवाकर गाड़ी से उतरा,प्रभाकर ने जैसे ही उसे देखा तो उसकी आँखे खुली की खुली रह गईं,दिवाकर सूट बूट में बिल्कुल साहब लग रहा था,इस बार दिवाकर,प्रभाकर के चरण स्पर्श करना भूल गया,प्रभाकर को थोड़ा बुरा लगा लेकिन उसने सोचा भूल गया होगा कोई बात नहीं और उसने दिवाकर को गले से लगा लिया लेकिन जब प्रभाकर ने दिवाकर को गले लगाया तो उसे अपनेपन का एहसास ना हुआ,आज उसे अपना छोटा भाई कुछ पराया सा मालूम हुआ, प्रभाकर को लगा कि शायद ये उसका भ्रम है, ये मेरा देवा ही तो है, सफर से आया है थक गया है शायद और फिर इतने दिनों बाद गाँव लौटा इसलिए शायद ऐसा होगा, प्रभाकर खुद को तसल्ली पर तसल्ली दिए जा रहा था।।
       दिवाकर घर पहुँचा, जैसे तैसे कुएँ पर नहाकर खाना खाने बैठा,
  चल आजा,हम दोनों आज बड़े दिनों बाद साथ में खाना खाएंगे, प्रभाकर बोला।।
    और तभी बिन्दवासिनी भी दिवाकर की पसंद के कुछ ब्यंजन लेकर आ पहुँची, उसने प्रभाकर और दिवाकर की थाली में अपनी बनाई हुई चीजें रख दी तभी दिवाकर बोला___
   ये क्या? इतना तेल मसाला मैं नहीं खाता।।
   लेकिन पहले तो तुम ये चींजे बड़े चाव से खाया करते थे देवा! बिन्दू बोली।।
    पहले खाया करता था लेकिन अब नहीं, पहले मैं गवाँर हुआ करता था लेकिन अब मैं शहर में रहने लगा हूँ और वहाँ के लोग ऐसे फूहड़ता से खाना नहीं खाते,चम्मच और छुरी का इस्तेमाल करते हैं और ये क्या पीतल की थालियाँ, वहाँ लोग चीनी मिट्टी की प्लेटों का इस्तेमाल करते हैं और माँ मैं ये कुएँ का खुला पानी नहीं पी सकता,कल से मेरे लिए पानी उबालकर रखा करों, दिवाकर बोला।।
      दिवाकर की बातें सुनकर सब दंग रह गए और बिन्दवासिनी गुस्सा होकर अपने घर आ गई लेकिन देवा ने ना ही बिन्दवासिनी से बात की और ना ही उसे मनाने आया,बिन्दवासिनी बहुत दुखी हुई,इस बार ना तो देवा उसके साथ नहर किनारे गया और ना ही अमरूद तोड़ने।।
    और कुछ दिन गाँव में रहकर देवा फिर से शहर लौट गया।।
       शहर पहुँचकर फिर से उसकी वहीं दिनचर्या शुरु हो गई।।
           पहले साल तो जैसे तैसे नम्बर लाकर देवा पास होकर दूसरे साल में पहुँच गया उसने अपने पास होने की खबर तो प्रभाकर को दी लेकिन नम्बर अच्छे ना आ पाने के कारण नम्बर नहीं बताएं।।
       ऐसे ही साल भर और चलता रहा,अब शिशिर ने दिवाकर को शहर की बदनाम गलियों की सैर करानी शुरु कर दी,क्योंकि शिशिर को पैसों की जरुरत पड़ती और अपन खर्चा वो दिवाकर से इसी तरह निकलवा लेता,बदनाम गलियों में उसकी मुलाकात आफ़रीन नाम की गानें वाली से हुई,जो उम्र में दिवाकर से बड़ी थी लेकिन इतनी खूबसूरत थी कि जो भी पहली बार उसे देख ले वो उसकी खूबसूरती का कायल हो जाएं।।
     और ऐसा गाती थीं कि जैसे कोई कोयल,उसकी आवाज़ सुनकर मुसाफिर भी रास्ता भूल जाते थें और उसकी खूबसूरती पर दिवाकर रीझ बैठा,वो रोज रात को उसका गाना सुनने जाने लगा और इस बात का शिशिर को बहुत बुरा लग रहा था क्योंकि वो भी आफ़रीन को पसंद करता था,लेकिन अब आफ़रीन का दिल दिवाकर पर आ चुका था,वो उसके भोलेपन और साद़गी पर मर मिटी थीं और ये बात शिशिर को अखर गई।।
     और एक रात शिशिर ने दिवाकर से कह ही दिया कि वो आफ़रीन से दूर रहें,
   दिवाकर ने पूछा, लेकिन क्यों?
      तुम ये सवाल पूछने वाले कौन होते हो,शिशिर ने दिवाकर से पूछा।।
    मैं आफ़रीन को चाहने लगा हूँ, दिवाकर बोला।।
    तेरी इतनी औकात,मैने ही सब सिखाया और मेरे ही प्यार पर हक़ जताते तुम्हें शर्म नहीं आती,शिशिर बोला।।
     अरे,जा...जा... मेरे टुकड़ों पर पलता है तू और तू भूल रहा है अपनी औकात,दिवाकर बोला।।
    इतना सुनते ही शिशिर ने दिवाकर पर हाथ उठा दिया और दिवाकर भी कहाँ चुप रहने वाला था,दोनों में गुथ्थमगुत्थी और हाथापाई शुरु हो गई, दिवाकर ने तो गाँव का असली घी दूध खाया था,उसने शिशिर की अच्छे से खब़र ली।।
       चोटिल शिशिर तिलमिला उठा और धमकी देता हुआ बोला,मैं तुझे छोडूँगा नहीं....

क्रमशः__
सरोज वर्मा___

      

16 दिसम्बर 2021

Jyoti

Jyoti

बढ़िया

11 दिसम्बर 2021

Anita Singh

Anita Singh

कहानी का चित्रण बिलकुल हिंदी फिल्मों की याद दिलाता है।सुन्दर👌

8 दिसम्बर 2021

15
रचनाएँ
वचन
5.0
एक ऐसे भाई की कहानी जो अपने पिता को दिए हुए वचन को निभाते हुए अपने छोटे भाई को गलत रास्ते से हटाकर सही रास्ते पर ले आता है...
1

वचन--भाग(१)

13 नवम्बर 2021
6
2
2

<p dir="ltr"><span style="font-size: 1em;">चंपानगर गाँव____</span><br></p><p dir="ltr">

2

वचन--भाग(२)

13 नवम्बर 2021
3
3
3

<p dir="ltr"><span style="font-size: 1em;">उधर शहर में प्रभाकर अपना सामान बाँधने में लगा था तभ

3

वचन--भाग(३)

13 नवम्बर 2021
3
3
3

<p dir="ltr"><span style="font-size: 1em;">प्रभाकर का मन बहुत ब्यथित था,वो गाड़ी में बैठा और लेट गया

4

वचन--भाग(४)

13 नवम्बर 2021
4
3
3

<p dir="ltr"><span style="font-size: 1em;">प्रभाकर को देखते ही कौशल्या बोली___</span><br></p><p dir=

5

वचन--भाग(५)

13 नवम्बर 2021
3
3
3

<p dir="ltr"><span style="font-size: 1em;">प्रभाकर ने कौशल्या से पूछा__</span><br></p><p dir="ltr">

6

वचन--भाग(६)

13 नवम्बर 2021
3
3
3

<p dir="ltr"><span style="font-size: 1em;">दिवाकर बहुत बड़ी उलझन में था,कमरें से बाहर निकलता तो उसे अ

7

वचन--भाग(७)

13 नवम्बर 2021
3
3
3

<p dir="ltr"><span style="font-size: 1em;">दिवाकर ने शिशिर से झगड़ा तो कर लिया था लेकिन उसके बह

8

वचन--भाग(८)

13 नवम्बर 2021
3
3
3

<p dir="ltr"><span style="font-size: 1em;">प्रभाकर का अब कहीं भी मन नहीं लग रहा था,ना ही दुकानदारी म

9

वचन--भाग(९)

13 नवम्बर 2021
3
3
3

<p dir="ltr"><span style="font-size: 1em;">दरवाज़े की घंटी बजते ही समशाद ने दरवाज़ा खोला तो सामने दिवा

10

वचन--भाग(१०)

13 नवम्बर 2021
3
3
4

<p dir="ltr"><span style="font-size: 1em;">अनुसुइया जी,सारंगी को भीतर ले गईं,साथ में दिवाकर भी सब्जि

11

वचन--भाग(११)

13 नवम्बर 2021
3
3
2

<p dir="ltr"></p> <p dir="ltr">रात हो चली थीं लेकिन अनुसुइया जी और दिवाकर की बातें खत्म ही नहीं हो र

12

वचन--भाग(१२)

13 नवम्बर 2021
3
2
2

<p dir="ltr"></p> <p dir="ltr">जुम्मन चाचा ऐसे ही अपने तजुर्बों को दिवाकर से बताते चले जा रहे थे और

13

वचन--भाग(१३)

13 नवम्बर 2021
3
2
2

<p dir="ltr"><span style="font-size: 1em;">प्रभाकर को ये सुनकर बहुत खुशी हुई कि उससे मिलने देवा आया

14

वचन--भाग(१४)

13 नवम्बर 2021
3
2
2

<p dir="ltr"><span style="font-size: 1em;">भीतर अनुसुइया जी,सुभद्रा और हीरालाल जी बातें कर रहे थें औ

15

वचन--(अन्तिम भाग)

13 नवम्बर 2021
3
2
2

<p dir="ltr"><span style="font-size: 1em;">हाँ,भइया मुझे पक्का यकीन है कि सारंगी दीदी आपको बचा लेंगी

---

किताब पढ़िए