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अच्छा, तू माँ से भी मजाक करेगा

28 जनवरी 2022

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कोई छह सौ वर्ष पुरानी बात है। विजयनगर का साम्राज्य सारी दुनिया में प्रसिद्ध था। उन दिनों भारत पर विदेशी आक्रमणों के कारण प्रजा बड़ी मुश्किलों में थी। हर जगह लोगों के दिलों में दुख-चिंता और गहरी उधेड़-बुन थी। पर विजयनगर के प्रतापी राजा कृष्णदेव राय की कुशल शासन-व्यवस्था, न्याय-प्रियता और प्रजा-वत्सलता के कारण वहाँ प्रजा बहुत खुश थी। राजा कृष्णदेव राय ने प्रजा में मेहनत और सद्गुणों के साथ-साथ अपनी संस्कृति के लिए स्वाभिमान का भाव पैदा कर दिया था, इसलिए विजयनगर की ओर देखने की हिम्मत किसी विदेशी आक्रांता की नहीं थी। विदेशी आक्रमणों की आँदी के आगे विजयनगर एक मजबूत चट्टान की तरह खड़ा था। साथ ही वहाँ लोग साहित्य और कलाओं से प्रेम करने वाले तथा परिहास-प्रिय थे।
उन्हीं दिनों की बात है, विजयनगर के तेनाली गाँव में एक बड़ा बुद्धिमान और प्रतिभासंपन्न किशोर था। उसका नाम था रामलिंगम। वह बहुत हँसोड़ और हाजिरजवाब था। उसकी हास्यपूर्ण बातें और मजाक तेनाली गाँव के लोगों को खूब आनंदित करते थे। रामलिंगम खुद ज्यादा हँसता नहीं था, पर धीरे से कोई ऐसी चतुराई की बात कहता कि सुनने वाले हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते। उसकी बातों में छिपा हुआ व्यंग्य और बड़ी सूझ-बूझ होती। इसलिए वह जिसका मजाक उड़ाता, वह शख्स भी द्वेष भूलकर औरों के साथ खिलखिलाकर हँसने लगता था। यहाँ तक कि अकसर राह चलते लोग भी रामलिंगम की कोई चतुराई की बात सुनकर हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते।
अब तो गाँव के लोग कहने लगे थे, ‘‘बड़ा अद्भुत है यह बालक। हमें तो लगता है कि यह रोते हुए लोगों को भी हँसा सकता है। रामलिंगम कहता, ‘‘पता नहीं, रोते हुए लोगों को हँसा सकता हूँ कि नहीं, पर सोते हुए लोगों को जरूर सकता हूँ।’’ सुनकर आसपास खड़े लोग ठठाकर हँसने लगे।
यहाँ तक कि तेनाली गाँव में जो लोग बाहर से आते, उन्हें भी गाँव के लोग रामलिंगम के अजब-अजब किस्से और कारनामे सुनाया करते थे। सुनकर वे भी खिलखिलाकर हँसने लगते थे और कहते, ‘‘तब तो यह रामलिंगम सचमुच अद्भुत है। हमें तो लगता है कि यह पत्थरों को भी हँसा सकता है!’’
गाँव के एक बुजुर्ग ने कहा, ‘‘भाई, हमें तो लगता है कि यह घूमने के लिए पास के जंगल में जाता है, तो वहाँ के पेड़-पौधे और फूल-पत्ते भी इसे देखकर जरूर हँस पड़ते होंगे।’’
एक बार की बात है, रामलिंगम जंगल में घूमता हुआ माँ दुर्गा के एक प्राचीन मंदिर में गया। उस मंदिर की मान्यता थी और दूर-दूर से लोग वहाँ माँ दुर्गा का दर्शन करने आया करते थे।
रामलिंगम भीतर गया तो माँ दुर्गा की अद्भुत मूर्ति देखकर मुग्ध रह गया। माँ के मुख-मंडल से प्रकाश फूट रहा था। रामलिंगम की मानो समाधि लग गई। फिर उसने दुर्गा माता को प्रणाम किया और चलने लगा। तभी अचानक उसके मन में एक बात अटक गई। माँ दुर्गा के चार मुख थे, आठ भुजाएँ थीं। इसी पर उसका ध्यान गया और अगले ही पल उसकी बड़े जोर से हँसी छूट गई।
देखकर माँ दुर्गा को बड़ा कौतुक हुआ। वे उसी समय मूर्ति से बाहर निकलकर आईं और रामलिंगम के आगे प्रकट हो गईं। बोलीं, ‘‘बालक, तू हँसता क्यों है ?’’ रामलिंगम माँ दुर्गा को साक्षात सामने देखकर एक पल के लिए तो सहम गया। पर फिर हँसते हुए बोला, ‘‘क्षमा करें माँ, एक बात याद आ गई, इसीलिए हँस रहा हूँ।’’
‘‘कौन सी बात ? बता तो भला !’’ माँ दुर्गा ने पूछा।
इस पर रामलिंगम ने हँसते-हँसते जवाब दिया, ‘‘माँ, मेरी तो सिर्फ एक ही नाक है पर जब जुकाम हो जाता है तो मुझे बड़ी मुसीबत आती है। आपके तो चार-चार मुख हैं और भुजाएँ भी आठ हैं। तो जब जुकाम हो जाता होगा, तो आपको और भी ज्यादा मुसीबत...!’’ रामलिंगम की बात पूरी होने से पहले ही माँ दुर्गा खिलखिलाकर हँस पड़ीं। बोलीं, ‘हट पगले, तू माँ से भी मजाक करता है !’’
फिर हँसते हुए उन्होंने कहा, ‘‘पर आज मैं समझ गई हूँ कि तुझमें हास्य की बड़ी अनोखी सिद्धि है। अपनी इसी सूझ-बूझ और हास्य के बल पर तू नाम कमाएगा और बड़े-बड़े काम करेगा। पर एक बात याद रख, अपनी इस हास्य-वृत्ति का किसी को दुख देने के लिए प्रयोग मत करना। सबको हँसाना और दूसरों की भलाई के काम करना। जा, तू राजा कृष्णदेव राय के दरबार में जा। वही तेरी प्रतिभा का पूरा सम्मान करेंगे।’’
उस दिन रामलिंगम दुर्गा माँ के प्राचीन मंदिर से लौटा, तो उसका मन बड़ा हल्का-फुल्का था। लौटकर उसने माँ को यह अनोखा प्रसंग बताया। सुनकर माँ चकित रह गईं।
और फिर होते-होते पूरे तेनाली गाँव में यह बात फैल गई कि रामलिंगम को दुर्गा माँ ने बड़ा अद्भुत वरदान दिया है। यह बड़ा नाम कमाएगा और बड़े-बड़े काम करेगा। उसके साथ ही साथ तेनाली गाँव का नाम भी ऊँचा होगा।

(प्रकाश मनु) 

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रचनाएँ
तेनालीराम
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तेनाली 16वीं सदी में विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय के दरबार में कवी और विदूषक थे। वो बहुत ही बुद्धिमान थे और अपनी चतुराई से अपने राज्य की कई मुश्किलों को दूर भी करते थे। लोग तेनालीराम / तेनाली रमन की तुलना राजा अकबर के सलाहकार बीरबल से की जाती है जिनकी चतुराई और बुद्धिमानी की कहानियां हम पढ़ते ही रहते हैं।
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तेनालीराम/तेनाली रामा/तेनाली रमन का जन्म सोलहवीं शताब्दी में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के गुन्टूर जिले के गाँव – गरलापाडु में हुआ था। तेनालीराम एक तेलुगू ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। वह पेशे से कवि

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महाराजा कृष्ण देव राय एक कीमती रत्न जड़ित अंगूठी पहना करते थे। जब भी वह दरबार में उपस्थित होते तो अक्सर उनकी नज़र अपनी सुंदर अंगूठी पर जाकर टिक जाती थी। राजमहल में आने वाले मेहमानों और मंत्रीगणों से भी

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एक बार राजा कृष्ण देव राय के दरबार में एक जादूगर आया। उसने बहुत देर तक हैरतअंगेज़ जादू करतब दिखा कर पूरे दरबार का मनोरंजन किया। फिर जाते समय राजा से ढेर सारे उपहार ले कर अपनी कला के घमंड में सबको चुनौत

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तेनालीराम राजा कृष्ण देव राय के निकट होने के कारण बहुत से लोग उनसे जलते थे। उनमे से एक था रघु नाम का ईर्ष्यालु फल व्यापारी। उसने एक बार तेनालीराम को षड्यंत्र में फसाने की युक्ति बनाई। उसने तेनालीराम क

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हर वर्ष दशहरे से पूर्व काशी की नाटक मंडली विजयनगर आती थी। सामान्यतः वे राजा कृष्णदेव राय तथा विजयनगर की प्रजा के लिए रामलीला किया करते थे। परंतु एक बार राजा को सूचना मिली कि नाटक मंडली विजयनगर नहीं आ

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बीजापुर के सुल्तान इस्माइल आदिलशाह को डर था कि राजा कृष्णदेव राय अपने प्रदेश रायचूर और मदकल को वापस लेने के लिए हम पर हमला करेंगे। उसने सुन रखा था कि वैसे राजा ने अपनी वीरता से कोडीवडु, कोंडपल्ली, उदय

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एक बार राज दरबार में नीलकेतु नाम का यात्री राजा कृष्णदेव राय से मिलने आया। पहरेदारों ने राजा को उसके आने की सूचना दी। राजा ने नीलकेतु को मिलने की अनुमति दे दी। यात्री एकदम दुबला-पतला था। वह राजा के स

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रंग-बिरंगे नाखून

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राजा कृष्णदेव राय पशु-पक्षियों से बहुत प्यार करते थे। एक दिन एक बहेलिया राजदरबार में आया। उसके पास पिंजरे में एक सुंदर व रंगीन विचित्र किस्म का पक्षी था। वह राजा से बोला, 'महाराज, इस सुंदर व विचित्र

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कौवों की गिनती

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महाराज कृष्णदेवराय को तेनालीराम से बेढंगे सवाल पूछने में बड़ा ही आनंद आता था। वे हमेशा ऐसे सवाल पूछते जिसका जवाब देना हर किसी को नामुमकिन सा लगता लेकिन तेनालीराम भी हार मानने वाला नहीं था। वो भी महाराज

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मनहूस कौन

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एक बार महाराज के कानों तक चेलाराम के एक व्यक्ति के बारे में खबर पहुंची। सब लोग बोलते थे कि जो कोई भी चेलाराम का मुंह देख लेता है उसे पूरे दिन एक निवाला तक खाने को नहीं मिलता।वह इंसान पूरे दिन भूखा ही

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तेनालीरामन की ईमानदारी का पुरस्कार तेनालीराम से चिढ़ने वाले कुछ ब्राह्मण एक दिन राजगुरु के पास पहुंचे। क्योंकि वे सभी अच्छी तरह जानते थे कि राजगुरु तेनालीराम का पक्का विरोधी है और तेनाली से बदला लेने म

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रिश्वत का खेल

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कृष्णदेव राय कला प्रेमी थे इसीलिए कलाकारों का प्रोत्साहन बढ़ाने के लिए उनके अच्छे प्रदर्शन के लिए उन्हें पुरस्कार देकर सम्मानित करते रहते थे। कलाकारों को सम्मानित करने से पहले वे एक बार तेनालीराम से जर

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तेनालीराम की खोज

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एक बार तेनालीराम महाराज से किसी बात पर रूठा हुआ था कि महाराज कृष्णदेवराय ने उसे फिर से किसी बात पर डांट दिया। जिसकी वजह से तेनालीराम बिना बताएं वहाँ से कहीं चला गया और दरबार में आना बंद कर दिया। महारा

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तेनालीराम मटके में

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एक बार महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम से इतने नाराज़ हो गए कि उन्होंने उसे अपनी शक्ल न दिखाने का आदेश दे दिया और कहा ,“ अगर उसने उनके हुक्म की अवहेलना की तो उसे कोड़े लगायें जाएंगे।” महाराज उस समय बहुत

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सात जूते मारने वाली चमेली

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चाननपुर गाँव में चांदकुमारी नाम की एक रूपवती कन्या रहती थी। वह विवाह के योग्य हो गई थी लेकिन अपनी माँ के व्यवहार के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। उसकी माँ का नाम चमेली था जो अपने पति माधो को रोज़

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तेनालीराम की मनपसन्द मिठाई

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महाराज, राजपुरोहित और तेनालीराम राज उद्यान में टहल रहे थे कि महाराज बोले , “ऐसी सर्दी में तो खूब खाओ और सेहत बनाओ। वैसे भी इस बार तो कड़के की ठण्ड पड़ रही है। ऐसे में तो मिठाई खाने का मज़ा ही कुछ और है।”

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बूढ़ा भिखारी और महाराज कृष्णदेवराय की उदारता

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सर्दियों का मौसम था। महाराज कृष्णदेव अपने कुछ मंत्रियों के साथ किसी काम से नगर से बाहर जा रहे थे। ठंड इतनी थी कि सभी दरबारी मोटे-मोटे ऊनी वस्त्र पहनने के बाद भी काँप रहे थे। चलते-चलते राजा की दृष्टि ए

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दूध न पीने वाली बिल्ली

1 फरवरी 2022
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एक बार महाराज कृष्णदेव राय ने सुना कि उनके नगर में चूहों ने आतंक फैला रखा है। चूहों से छुटकारा पाने के लिए महाराज ने एक हजार बिल्लियां पालने का निर्णय लिया। महाराज का आदेश होते ही एक हजार बिल्लियां मं

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नली का कमाल

1 फरवरी 2022
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राजा कृष्णदेव राय का दरबार लगा हुआ था। महाराज अपने दरबारियों के साथ किसी चर्चा में व्यस्त थे। अचानक से चतुर और चतुराई पर चर्चा चल पड़ी। महाराज कृष्णदेव के दरबार में दरबारियों से लेकर राजगुरु तक तेनालीर

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मृत्युदंड की धमकी

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थट्टाचारी कृष्णदेव राय के दरबार में राजगुरु थे। वे तेनालीराम से बहुत ईर्ष्या करते थे। उन्हें जब भी मौका मिलता तो वे तेनालीराम के विरुद्ध राजा के कान भरने से नहीं चूकते थे। एक बार क्रोध में आकर राजा न

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रंग-बिरंगी मिठाइयां

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वसंत ऋतु छाई हुई थी। राजा कृष्णदेव राय बहुत ही खुश थे। वह तेनालीराम के साथ बाग में टहल रहे थे। वह चाह रहे थे कि एक ऐसा उत्सव मनाया जाए, जिसमें उनके राज्य के सारे लोग शामिल हों। पूरा राज्य उत्सव के आनं

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