... बड़ा प्रश्न उठा कि आखिर तृप्ति का ये आंदोलन वो धार क्यों नहीं पकड़ पाया जैसा शनि मंदिर में प्रवेश के समय था? पुलिस और दरगाह के कर्मचारियों के एक विरोध पर ही दरगाह में प्रवेश की मुहीम क्यों फीकी पड़ गयी? प्रश्न उठने लगे और 'एक देश एक कानून' की सुगबुगाहट भी उठी. प्रश्न यह भी उठा कि बराबरी का हक़ दिलाने वाली तृप्ति क्या सिर्फ हिन्दू धर्म में ही महिलाओं को बराबरी का हक़ दिलाएंगी? क्या सिर्फ हिन्दू धर्म में ही गुंजाइश है बदलाव की और दुसरे सम्प्रदाय या मान्यताएं कानून के दायरे में नहीं आती हैं? इस मामले पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी चुप्पी साध ली और वैसा त्वरित फैसला नहीं आया, जैसा शनि शिंगणापुर के मामले में आ गया! हिन्दू पण्डे, पुरोहितों और धर्मशास्त्रियों ने भी पुरजोर विरोध किया था अपने पुराने धार्मिक नियम को तोड़ने का किन्तु कोर्ट ने तुरंत फैसला सुना दिया कि महिलाओं को धार्मिक स्थलों पर प्रवेश का अधिकार होना चाहिए. वहीं बात जब इस्लाम की आती है तो जनता तो जनता कानून व्यवस्था भी टालमटोल करते नजर आने लगती है.
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