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ज़िंदगी के रंग कई रे

8 मार्च 2022

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"ज़िंदगी के रंग कई रे" (भाग 1)

धवल उजियारे आसमान में कहीं कोई मेघसभर बादल की परछाई भी नज़र नहीं आ रही चंदा ने चिंतित होकर गोपाल से पूछा।
गोपाल क्या होगा इस साल हमारा बारिश के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे, पूरा साल कैसे कटेगा ? ना घर में धान बचा है इतना की पूरा साल निकल जाए ना फदिए, लगता है ये सूखा खुदकुशी करवा के छोड़ेगा चंदा ने ठंडी साँस छोड़ते दिल में छुपा दर्द बयाँ किया।
गोपाल भी चिंतीत तो था पर पत्नी को सांत्वना देते बोला फिकर ना कर उपर वाला दयालु है, पेट दिया है दांत दिए है तो रोटी का भी इंतेज़ाम वो ही करेगा।
देखते ही देखते भादौ भी बीत गया आसो  में भी बारिश नहीं हुई।
अब तो सिर्फ़ तीनों के हिस्से दो दो रोटी दिन में एक पहर को मिले उतना ही आटा बचा था, छोटा सा खेत झुर्रियों वाला होता चला, कहीं से बारिश की आहट तक नहीं सुनाई दे रही।
चंदा ने आस भरी नज़र से गोपाल की ओर देखा गोपाल की लाचार नज़रों ने चंदा के होंठ सील दिए..!
गोपाल उठकर बाहर चला गया ,शाम तक इधर-उधर भटका, कहीं से कोई मदद मिलने की आस नहीं रही सबको सूखे ने अपनी चपेट में ले लिया था कौन किसकी मदद करे।
रघु कह रहा था उसने सुखदेव साहुकार से कर्ज़ा लिया है शायद वहाँ से कुछ मदद मिल जाए गोपाल ने एक इरादा बनाकर सुखदेव साहुकार के घर की कुंडी खटखटाई।
सुखदेव ने दरवाजा खोला गोपाल को देखकर शाहुकार की आँखों में कुछ ज़हरिले साँप फ़ुत्कारने लगे, जान तो गया था सुखदेव की गोपाल क्यूँ आया है, पर एक संयम बनाते झूठी हंसी चेहरे पर पोते पूछा, बोलो गोपाल कैसे आना हुआ?
गोपाल सर झुकाए बैठा था, आज तक किसीके आगे कभी हाथ फैलाए नहीं थे कहाँ से शुरु करुँ सोच रहा था की सुखदेव ने गोपाल का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, अब इतने भी शर्मिंदा मत हो तुम जैसे बहुत लोगों को सूखे ने अपनी लपेट में लिया है समझ सकता हूँ तुम्हारा दर्द..!
बोलो क्या चाहिए अनाज या पैसे ? 
गोपाल ने पैर पकड़ लिए मालिक आप हमारे लिए भगवान हो, बस थोड़ा सा अनाज ओर कुछ नगद मिल जाए तो सूखा काट लेंगे घरवाली ओर बच्चे के आगे इज्जत रह जाए बड़ी मेहरबानी रहेगी आपकी।
शाहुकार ने धीरे से गोपाल को उठाकर पास में बिठाया ओर पानी का प्याला पकड़ाते बोला,य देखो गोपाल में किसीको अपनी चौखट से खाली हाथ नहीं लौटाता तुम्हारा काम भी हो जाएगा, 
गोपाल बोला मालिक बारिश होते ही खेत में जुवार बो दूँगा ओर उपज मिलने पर आपका कर्ज़ लौटा दूँगा।
थोड़ी देर शाहुकार सोच में पड़ गया फिर बोला तुम कर्ज़ लौटाने की फ़िक्र मत करो मैंने सुना है तुम्हारी जोरू बहुत कमसीन है..!
देखो बुरा मत मानना  पर मुझे पैसे किसीसे वापस मांगना अच्छा नहीं लगता ओर फिर बारिश का कोई भरोसा नहीं इस साल तुम्हें मेरी जरुरत तो पड़ेगी ही तो बस तुम्हारी बीवी चंदा की चांदनी से इस अंधेरे घर में उजाला करते रहो मैं पूरा साल तेरे घर में रोशनी भरता रहूँगा फदिये की खनखन से बोल मंज़ूर है सौदा?
गोपाल गुस्से से सकपका गया अगर हाथ में कुछ होता तो शाहुकार का खून ही कर देता, पर लाचार था बेबस था ओर कोई एेसी जगह नहीं थी जहाँ से दानापानी का जुगाड़ हो सके,
हाथ जोडकर खड़ा हुआ ओर ये बोलकर चला गया की मालिक सोचकर बताता हूँ।
शाम को घर लौटा तो चंदा ने कोई सवाल नहीं किया पति के चेहरे की शिकन से ही पता चल गया कि कुछ चिंता में है, जो कुछ था वो परोस कर सो गई,
गोपाल की भूख दोनों सूखे ने मिलकर हलाल कर दी थी।
दो दिन तक इधर-उधर भटका पर कोई रास्ता नहीं मिल रहा था, की चंदा ने बताया ए जी सुनिए बस अब तो दो दिन का आटा बचा है कुछ किजीए ना,
चंदा के इतना कहने पर गोपाल ने बात पकड़ ली चंदा मैं तो हार गया अब तू ही कुछ कर सकती है।
चंदा सोच में पड़ गई भला मैं क्या कर सकती हूँ..!
कहाँ जाऊँ किसके पास हाथ फैलाऊँ, ये आप क्या बोल रहे हो मेरे बस में होता तो कहीं से भी जुगाड़ करती पर मैं ठहरी अनपढ़ औरत जात कुछ नहीं कर सकती ,
आपकी नज़र में एैसा कोई काम हो तो बताओ मेरे मुन्नें के लिए कुछ भी कर सकती हूँ..!
हम तो खैर कुँआँ पूर ले पर इस नन्ही सी जान की बली कैसे चढ़ा दें।
गोपाल ने आहिस्ता से चंदा को पास बिठाया ओर थोड़ी देर चुपचाप से सोचने लगा, कैसे बताऊँ जो शाहुकार ने बोला है कहीं चंदा बुरा मान गई तो, पर कोई उपाय भी तो नहीं न बारिश के आसार दिख रहे है ना कोई ओर रास्ता बचा है, एक शाहुकार ही है जो तीन ज़िंदगी बचा सकता है,चंदा ने गोपाल की ओर प्रश्नार्थ ओर संवेदना भरी नज़रों से देखा तो गोपाल ने हिम्मत की ओर बोला, चंदा आज में सुखदेव शाहुकार के पास गया था, हमारे हालात के बारे में बताया उसे तो वो मदद के लिए तैयार है
पर..!
पर क्या? चंदा खुश होते उछल पड़ी जल्दी बताओ पर क्या ?
गोपाल बोला पर उसकी एक शर्त है,
कैसी शर्त बताओ जल्दी जो भी शर्त है हम पूरी करेंगे, बस कुछ अनाज ओर नगद के बदले हम अपनी सारी ज़िंदगी उसके खेतों में काम करेंगे हम उसके पैर धोकर पूजेंगे।
गोपाल ने 'ना' में सर हिलाया रहने दो एैसी बात होती तो मैंने कल ही मान ली होती।
तो ? तो फिर कौन सी शर्त है जो तुम मर्द हो कर हाँ नहीं बोलते, चंदा गुस्से से काँप उठी, देखो जी मैं हमरे बचवा को किसी हालत में भूखा तड़पता नहीं देख सकती अगर आप में शाहुकार की शर्त पूरा करने की हिम्मत नहीं तो मैं करुँगी,
गोपाल ने बात पकड़ ली ओर बोला मैं वही तो कह रहा हूँ की अब तू ही कुछ कर सकती है।
हाँ तो मुँह में से कुछ उगलो भी कब से पूछ रही हूँ चंदा अकुलाती गुर्राई, गोपाल बोला जब तक बारिश ना हो ओर हम शाहुकार का कर्ज़ा ना चुका दे तब तक तुझे उसकी रखैल बनकर रहना होगा, 
चंदा का दिल धड़क चुक गया..! 
होश में तो हो क्या बोल रहे हो मन करता है पहले तो तुम्हारा ही गला दबा दूँ, नामर्द कहीं के अपनी लुगाई को किसी ओर की रखैल बनाने से पहले डूब मरते कहीं जाके।
गुस्से में दरवाजा धड़ाम से बंद करके खटिया पर लेटे घंटों रोती रही चंदा,जब तक सारा गुस्सा आँसुओं में बह न गया।
दिन कश्मकश में बीता ओर
वो रात भी बीत गई एक अंधकार मय सुबह का आगाज़ करती, चंदा अनमनी  सी उठी थोड़ा काम किया घर का पर मन नहीं लग रहा था, कितना सोचा कोई उपाय नहीं सूझ रहा, क्या खाना बनाती मुठ्ठी भर आटा डिब्बे से लिपटा हुआ पड़ा था, कुछ दाल के दाने हंसी उड़ा रहे थे।
गोपाल सुबह उठकर ही निकल गया था कहीं से कोई ओर जुगाड़ करने पर निराशा के सिवाय कुछ नहीं मिला बेबस खाली हाथ लिए शाम को लौटा।
दोनों वर लुगाई सर पर हाथ धरे एक दूसरे से नज़रे चुरा रहे थे, आख़री रोटी मुन्ने को खिलाकर दोनों पानी पी कर सो गए।
रात नागिन सी डस रही थी, दोनों के मन में एक ही खयाल चल रहे थे खुदकुशी कर लें..!
पर बीच में लेटे मासूम का चेहरा खयाल को पटक देता था, गोपाल सोच रहा था चंदा क्या निर्णय लेगी चंदा सोच रही थी खुद को किसी ओर मर्द के हाथों सौंपना रूह की मौत होगी, आत्मा की मौत होगी, वैसे भी मरना ही है तो रूह को बेचकर तन को ज़िंदा रख लूँ तो कम से कम तीनों की जिंदगी तो बच जाएगी, ओर फिर उपर वाला कुछ तो रहम करेगा कुछ दिनों की तो बात है।
गोपाल भी क्या करता पूरे इलाके को सूखे ने घेर लिया है सबका यही हाल है जिसका कोई अपना था वो गाँव छोड़कर चले गए पर हमारा तो कहीं कोई नहीं कहाँ जाए हम दोनों, आत्महत्या भी कर लें पर बचवा का क्या दोष..!
५ साल की उम्र दुनिया भी नहीं देखी एक माँ होकर जीते जी कैसे मार दूँ,
आधी रात में प्यासे सुवर रो रहे थे, कुत्ते भौंक रहे थे, मानों मातम की रात हो गोपाल पूरे दिन की रझड़पाट से थकाहारा सो गया। 
चंदा बार-बार देख रही थी दो मासूम की ज़िंदगी एक उसके  निर्णय पर थमी हुई, चंदा ने मन बना लिया ज़िंदगी को यही मंज़ूर है तो यही सही, तन के चिथड़े को भेड़िए के हवाले कर दूँगी महज़ हाड़ मांस ही तो है बदले में मेरे मासूम लल्ला को ज़िंदगी तो मिलेगी। 
मन थोड़ा शांत हुआ तो आँख लग गई ,
सुबह गोपाल की सिसकियों ने चंदा को जगा दिया, गोपाल खुद को बौना महसूस कर रहा था, कभी खुद को तो कभी भगवान को कोस रहा था, आँखें छलक पड़ी चंदा की भी, समझ रही थी घरवाले का दर्द..!
पानी पीलाकर शांत करवाया गोपाल को ओर आँखों ही आँखों में हामी भरकर इतना ही बोली शाहुकार से जाकर बोल दियो बोटी तैयार है।
गोपाल आँख ना मिला पाया चंदा से बस हाथ जोड़कर नतमस्तक सा खड़ा होकर घर से बाहर निकल गया।
शाहुकार के घर जाकर सिर्फ़ हकार में सर हिलाया, सुखदेव को मानों लौटरी लग गई, आँखें चौंधिया कर बड़ी हो गई, अधीरता से शब्द नहीं निकल रहे थे, घर के अंदर गया ओर कुछ नगद ओर दो बोरी जुवार की नौकर से बोलकर रखवा दी गोपाल के सामने, ओर बोला सुन भाई रात को चंदा को खेत वाली हवेली पर भेज दियो मैं वहीं मिलूँगा।
जैसे जैसे रात नज़दीक आ रही थी तीन जिंदगीयों के मन में अलग-अलग अहसासो की अजीब सी धूनी जल रही थी, सुखदेव लालायित सा इधर-उधर हो रहा था,आज वक्त उसे रुका-रुका महसूस हो रहा था, हर कुछ देर बाद आईने में खुद को देख कर मुस्कुरा रहा था, ओर मन ही मन खुद को कह रहा था सुखा तेरे तो भाग ही खुल गये चाँद का टुकड़ा सुना था आज तेरी झोली में आ गिरा है बस कुछ घंटों की देर है।
इधर गोपाल की हालत कुछ पागलों सी हुई जा रही थी, खुशी मनाएँ या मातम, गुस्सा, लाचारी ओर मानसिक पंगुता उसे कचोटे जा रही थी, ज़िंदगी के सारे रंग देख लिए थे इस कालिख ने तो गुलाम ओर अपाहिज ही बना दिया पर कोई चारा भी तो नहीं, जीना है तो ये ज़हर भी पीना पड़ेगा।
चंदा दोहरे भाव से घिरी कुछ भी सोचने की हालत में नहीं थी, बस बच्चे की ज़िंदगी के आगे कुछ ओर सोचना ही नहीं जो होगा देखा जाएगा हे माँ भवानी माफ़ कर देना ये पाप तू करवा रही है, मैं अकेली जान होती तो कब की जान तेरे चरनों में चढ़ा देती पर माँ हूँ किसी भी किंमत पर बालक की बली कैसे चढ़ा दूँ, इस काया में बह रहे लहू का हर कतरा मेरे बच्चे पर कुरबान है बस कभी माँ बनकर देख तू भी हिम्मत ना हार जाए तो कहना।
रात के पहले पहर में चंदा नहा धोकर तैयार हो गई, ना कोई साज ना शृंगार फिर भी तंग चोली ओर आधी साड़ी के कछोटे में लिपटी कयामत लग रही थी, देवों की भी द्रष्टि बदल जाए एैसे रुप ओर नजाकत की मालकिन थी..!
बच्चे को सुलाकर गोपाल ओर चंदा चुपके से निकल रहे थे घर से की गोपाल ने चंदा के पैर पकड़ लिए,ओर इतना ही बोला हो सके तो मुझे बेबस ओर लाचार को माफ़ कर देना, बस इस मासूम का ख़याल ना होता तो इस नर्क में अपने ही हाथों तुझे नहीं धकेलता। चंदा की आँखें कोरी थी नमी को घोलकर पी गई थी, गोपाल को इशारे से हौसला देती आगे बढ़ गई, एक नई ज़िंदगी की खतरनाक डगर पर जो उसकी ज़िंदगी को नया मोड़ देने वाली थी।
घर से खेत की दूरी ज़्यादा न थी पहूँच गए दोनों सुखदेव के फ़ार्म हाउस पर, सुखदेव की हवेली को देखकर दोनों की आँखें चौंधिया गई, ठाठ ओर वैभव बस सुना था आँखों ने कभी देखा नहीं था। सुखदेव ने फूल बिछा रखे थे दरवाजे से लेकर बेडरूम की दहलीज़ तक, गोपाल नतमस्तक हाथ जोड़े खड़ा था तो सुखदेव ने हाथ के इशारे से जाने का फ़रमान जारी कर दिया, इधर-उधर से कमछा खींचकर चंदा तन छुपाने की कोशिश में ज़मीन पर नज़रे गाड़े रुंआँसी सी खड़ी थी, गोपाल ने उसके कँधे पर हाथ रखा ओर जाने के लिए मूड़ा की चंदा ने जोरों से गोपाल का हाथ पकड़ लिया, थोड़ी देर दोनों पति पत्नी में मूक संवाद होता रहा पर फिर गोपाल ने हिम्मत से हाथ छुड़ाकर मानों दौड़ ही लगाई..!
आँसू पोंछते निकल गया हवेली के बाहर ओर एक नाले पर बैठकर सैलाब बहा दिया दिल में उठे सारे दर्द का।
सुखदेव ने चंदा को नखशिख निहारा उफ्फ़ निकल गई मुँह से, जितना सुना था उससे लाख गुना पाया, चंदा की जवानी के रुप के ओर कातिल नैन नक्श के चर्चे बहुत सुने थे आज देखते ही सुखदेव के तनबदन में आग लग गई, कामदेव का रुप ले लिया।
चंदा को गोद में उठाकर अंदर ले गया, हौले से पलंग पर बिठाया, चंदा आँखें मूँदे सर झुकाए बैठ गयी सुखदेव ने चंदा की ठोड़ी पर ऊँगली रखकर हौले से चेहरा उपर उठाया ओर बोला, मेरी रानी शर्माओ नहीं यहाँ की हर चीज़ पर तुम्हारा अधिकार है, मैं भी तुम्हारा ओर ये सब भी, इतना बोलकर सामने पड़ी अलमारी खोलकर चंदा से बोला इसमे से जो चाहे वो कपड़े ओर गहने निकाल लो 
इस बाथरूम में एक से बढ़कर एक सुगंधित साबुन है पहले इस उजले बदन को सुगंधित कर लो, ओर एक दुल्हन की तरह खुद को सजा लो, ओर एक हीरे की नथनी देकर बोला इसे जरुर पहनना आज तुम्हारी नथ उतारने का मौका जो मिला है।
तुम्हें एक अलौकिक स्वर्ग की सैर कराऊँगा तुम तैयार हो जाओ मैं अंगूर की बेटी को होंठों से लगाकर आता हू।
चंदा रुम में अकेली पड़ी तो थोड़ी जान में जान आई,पहले तो पूरे रुम को एक नज़र देखा सुख साह्यबी की हर चीज़ मौजूद थी, चार लोग आराम से सो सके उतना बड़ा पलंग मखमली चद्दर गादी तकिये से सजा आरामदायक।
बाजु में टेबल पर ताज़ा गुलाब के फूलों से सजा गुलदस्ता, ओर चद्दर पर बिखरी गुलाब की पंखुड़ियाँ पूरा कमरे को आह्लादित सुगंध से भर रही थी, सुंदर नक्शी का सर सामान, सुंदर तस्वीरों से सजी दीवारें सब देखकर चंदा अभिभूत हो गई एक मनभावन भाव उभर गया सीने में।
उठकर बाथरूम में गई ओर गर्मी से लथपथ तन को सुगंधित साबुन ओर ठंडे पानी से सराबोर नहलाती रही, तन से मानों बरसों की थकान उतर गई हो एैसे हल्के फुलके तन-मन से सजने लगी। सबसे पहले खुश्बूदार पाउडर से तन के सारे अंगो को प्रफुल्लित किया, अंग-अंग महक उठा, आँखों में काजल, भाल पर बिंदी, होंठों पर लाली, ओर जुड़े में गजरा लगाकर आभूषणों का बक्सा उठाया, हीरे मोती की नक्काशी वाले एक से बढ़कर एक आभूषणों से लद गई चंदा। हरी चूड़ियों से कलाई सजाकर मोटे मोटे पायल को पैरों में बाँधकर कपड़ों की अलमारी खोली तो एक धड़क चुक गई चंदा ज़िंदगी में पहली बार रंग-बिरंगी इतने महंगे सिल्क साटीन की साड़ीयाँ, घाघरा चोली, ओर सलवार कमीज़ देख रही थी। 
एक जोड़ा जच  गया पूरा लाल हरे रंग में जरी बोर्डर का सिल्की  काम वाला धीरे से उठाया ओर पहन लिया, शृंगार पूरा हुआ तो आदमकद के आईने के सामने खुद का अप्रतिम रुप निहारती जा खड़ी हुई..!
खुद के इस रुप को फटी आँखों से देखती ही रही चंदा, किसी राजरानी से कम नहीं लग रही थी क्या सच में मैं इतनी खूबसूरत हूँ? खुद को देखकर उफ्फ़ निकल गई, चंदा को यकीन नहीं हो रहा था, हे उपर वाले इस रतन को कहाँ गरीबी के दलदल में झोंक दिया है, मैं तो एैसे महल मोहलात की शोभा के लायक हूँ इस सुंदरता को किस कायर के हाथों जला रही हूँ।
सोच किसी ओर दिशा में आगे बढ़े उसके पहले चंदा ने सर झटककर विचारों को मन की पटरी से गिरा दिया मुन्ने का चेहरा आँखों के आगे तैरने लगा, ये सिर्फ़ एक चोला है जिसे सुबह होते ही उतार फैंकना है, इस जन्म में एैसे सपने भी नहीं देख सकती बस जल-जलकर मरना है।
इधर गोपाल की रात करवट पे करवट लिए जा रहा थी, नासूर सी रात कट ही नहीं रही, जैसे अंगारों पे लेटा हो, खयालों में एक ही बातें उभर रही थी चंदा ओर सुखदेव की नज़दीकीयों की कल्पना नींद को कोसों दूर ले जा रही थी, अजगर की तरह लपेट रहे थे बुरे खयालात, क्या करुँ कल सुखदेव को मना कर दूँ की चंदा सिर्फ़ मेरी है किसी भी हाल में नहीं भेजूँगा।
पर करुँगा क्या दाना पानी का जुगाड़ बस यही एक उपाय था, आँखों से सावन भादों बहने लगे हे  हे कन्हैया कुछ तो दया कर इस गरीब की इज्ज़त दाँव पर लगी है, जल्दी से वरुण देव की कृपा बरसा दे।
दिल फटा जा रहा था मन करता था ज़ोर ज़ोर से रो दे पर मुन्ना का चेहरा देखते ही सारे ख़याल फूरर हो गए।
चंदा खुद को आईने में देखकर बोली कुछ भी हो पर एक बात तो है मैं हूँ बड़ी सुंदर,चंदा के खयालों को मानों ढाँप लिया हो गया थोड़े लड़खड़ाते कदमों से सुखदेव अंदर आया, बड़ा सजधज कर आया था मानों कोई नवपरिणीत दुल्हा हो।
था तो ४० के आसपास की उम्र का पर कटीला बदन, घुंघराले बाल, कद काठी से कदावर ३०/३२ का लग रहा था, एक नज़र देखते ही चंदा के मन में गुदगुदी होने लगी पर दिल को काबू में करती नज़रे झुकाकर पलंग पे बैठ गई, सुखदेव अब बेकाबू हो रहा था धीरे से चंदा के पास बैठकर बड़े ही प्यार से चंदा के भाल को चूम लिया, साक्षात अप्सरा लग रही हो।
चंदा मेरी रानी तू तेरी असली जगह पर आ गई है, एक अनमोल रतन के साथ उपर वाले ने बड़ा अन्याय किया है रे, नखशिख निहारते चंदा की तारीफ़ किए जा रहा था, बड़ा ही चालबाज़ बंदा था उसे चंदा को लूटना नहीं जीतना था तो सुनहरे शब्दों का जाल बुन रहा था। सुखदेव को चंदा को पाने की कोई जल्दी नहीं थी, उसे चंदा को छीनना था, बड़े ही प्यार से गोपाल की झोंपड़ी से महल की रानी जो बनाना था, सुखदेव चंदा के एक एक अंग की तारिफ़ किए जा रहा था, नज़रों से मानों चंदा की जवानी पी रहा था, कोई जल्दबाज़ी किए बगैर एक अदब के साथ, सच्चे आशिक की तरह चंदा को इतना खास महसूस करवा रहा था मानों चंदा सुखदेव के जीवन की हरियाली हो।
चंदा की सोच के विपरीत का बर्ताव सुखदेव कर रहा था, चंदा सोच रही थी सुवर की तरह टूट पड़ेगा, भेड़िए की तरह पिंख ड़ालेगा, तन को चूसता रहेगा, पर सुखदेव तो बड़ी सहुलियत से चंदा को एक फूल की तरह लाड़ लड़ाए जा रहा था, कुछ फल खिलाएं बड़े प्यार से अपने हाथों से केसर इलाइची वाला दूध कसम दे देकर पीलाता  रहा, तारीफ़ों के पुल बाँधता रहा, फिर पहले एक-एक आभूषण अपने हाथों से उतारते हल्के से चंदा के हर अंग को सहला लेता था, चंदा भी थोड़ी अचंभित सी सहज होने लगी थी, सुखदेव ने एक पार्सल खोला ओर उसमें से एक गुलाबी रंग की नाईटी निकालकर चंदा को थमा दी ओर बोला अपनी दुल्हन के सजीधजी तो मैंने देख लिया, अब ये भारी भरकम कपड़े उतार दो ओर ये सिल्की कपड़े पहन लो, चंदा ने कभी ज़िंदगी में इस तरह के कपड़े नहीं पहने थे तो थोड़ी सकुचाते बोली जी नहीं रहने दिजीए, चंदा की आवाज़ पहली ही बार सुनते सुखदेव कायल हो गया, बोला वाह क्या मंदिर की घंटियों सी आवाज़ है तुम्हारी उपर वाले ने बड़ी फुर्सत से तुम्हें बनाया है तुम्हें,ओर प्यार से पुचकारते चंदा के पास गया ओर धीरे से साड़ी का पल्ला सीने से हटाकर साड़ी निकाल दी, ओर खुद पर काबू पाते बाहर निकल गया इतना बोलकर की बदल लो कपड़े में बाहर खड़ा हूँ।
  चंदा ने घाघरा चोली निकालकर नाईटी पहन ली ओर आईने के सामने जा कर खुद तो निहार ने लगी, आँखों में आँसू आ गये खुद की सुंदरता देखकर, पीछे से सुखदेव आया ओर कमर से पकड़ कर अपनी ओर खींचकर चंदा को दो मजबूत बाँहों में उठा लिया, क्या चीज़ है तू इतनी हसीन, इतनी कमसीन, क्यूँ उपर वाले ने मेरी लकीरों में तुझे नहीं लिखा ओर पलंग पर धीरे से चंदा को सुलाया, गोद में चंदा का सर रखा ओर बोला पगली मैं तुझे प्यार करता हूँ दिलों जान से चाहता हूँ, तू आराम से सो जा आज तू थकी डरी लग रही है सो जा, ओर गाल पर हल्की चुमी  लेते चंदा के बालों में ऊँगलियां घुमाने लगा
चंदा चुपचाप पड़े सोच रही थी ज़िंदगी ने कहाँ से कहाँ लाकर खड़ा कर दिया ये सपना है या सच ?
एक गरीब माँ बाप की संतान ब्याही भी गरीब परिवार में, बस दो वक्त की रोटी ओर तनतोड़ मेहनत के सिवाय कुछ देखा ही नहीं था, क्या एक ज़िंदगी एेसी भी होती है फूल सी खिली-खिली ?
स्वर्ग सी सुंदर मख़मली ओर सहज..!
कहाँ गोपाल की झोंपड़ी,कहाँ ये महल ना गोपाल में कोई बुराई नहीं सीधा,सरल कामकाजी, मेहनती, दिखने में ठिकठाक, सच्चे मन का सीधे तरीके से प्यार जताने वाला इंसान है, पर क्या मैं गोपाल के लायक हूँ..à ओर कुछ ना सही ये नाजुक डली सी कमसीन काया जिसकी कामना हर जवान करता है, पूजता है एैसे हुश्न को क्या एक झोंपड़ी की शान बनकर रहने के लिए बना है, सोचते सोचते चंदा की आँख लग गई कब सुबह हुई पता ही नहीं चला।
सुबह रेशमी पर्दे से झाँकती रश्मियों ने चंदा के गोरे मुखड़े को चूमा तो चंदा की नींद खुल गई, पास में सुखदेव बिना अंगरखे के गहरी नींद में सो रहा था चंदा एकटुक देखने लगी, कल जब यहाँ आ रही थी तो सुखदेव की जो छवि थी मन में उसने एक अलग ही सुखदेव का रुप ले लिया था, शांत फिर भी शेर जैसा, चौड़े सीने को देखकर चंदा को कुछ कुछ होने लगा, साक्षात् कामदेव का रुप मानों निहार रही हो पर एक बार फिर से अंतरंगी खयालों को झटक दिए मन की दहलीज़ पर ही रोक दिए।
एक गरीब को कहाँ सपने देखने का भी हक़ ओर फिर मेरा गोपाल ओर मुन्ना बाट देख रहे होंगे, चंदा झट से खड़ी हुई ओर खुद का असल चोला चढ़ाकर घर जाने के लिए तैयार हुई थोड़ी हलचल हुई तो सुखदेव की नींद भी खुल गई।
सुखदेव चंदा को सीने से लगाकर बोला रात को जल्दी आना ये महल अपनी रानी के बगैर सूना लगेगा,ओर सर पर चुंबन की मोहर लगाकर बड़े प्यार से बोला जा मुन्ना राह देख रहा होगा 
चंदा हूँकार में सर हिलाती निकल गई। पता नहीं क्यूँ मन सच्चाई से परे सोच रहा था, क्यूँ उसे सुखदेव के उपर गुस्सा नहीं आ रहा, क्यूँ अपराध बोझ अनदेखा हो रहा है एक दोराहे पर खड़ी चंदा न इधर की है न उधर की, झोंपड़ी की पावन दहलीज़ को लांघकर महल की मुंडेर पर मन अटका हुआ था की गली के मोड़ पर मुन्ना दौड़ता हुआ आया ओर चंदा से लिपटकर रोने लगा चंदा की आँखें भी नम हो चली, बेटे को गोद में उठाकर जल्दी से घर में जा ही रही थी की पड़ोस की शाँता मौसी ने टोका ए री चंदा सुबह-सुबह कहाँ चली गई थी सब ठिक तो है ना,
चंदा सिर्फ़ जी मौसी कहकर घर में घुस गई।
चुल्हे पर चाय उबलकर कोयला हो रही थी गोपाल बीड़ी की कस पे कस लिए कुछ अजीब भाव चेहरे पर लिए खटिया पर बैठा था चंदा को देखते ही चौक गया, दोनों ही एक दूसरे से नज़रे चुराने लगे, चंदा सामान्य सी रोज़ की तरह काम में जूट गई मानों कुछ हुआ ही नहीं।
गोपाल कुछ ओर ही सोच रहा था उसे लग रहा था की चंदा गुस्सा करेगी, रोएगी थकी हारी होंगी रतजगे से बेहाल चिड़चिड़ी सी, पर उसके विपरीत चंदा लोकगीत गुनगुनाती रोज़ से कई ज़्यादा तरोताजा लग रही थी गोपाल के मन को कहीं चैन नहीं, पूछे तो कैसे पूछे की रात को क्या हुआ पर चुपचाप चंदा की सारी क्रिया देखने के सिवाय कोई चारा न था, चंदा ने फ़टाफट खाना पकाया ओर मुन्ना को खिलाने लगी गोपाल को भी प्यार से पूछा ए जी आपकी थाली भी लगा दूँ,पर गोपाल ने बोला नहीं मुन्ने को खिला दो हमदोनों आज साथ में खायेंगे, चंदा ने सहमति में सर हिलाया ओर मुन्ने को कहानी सुनाते खिलाने लगी।
गोपाल असमंजस में था चंदा के बर्ताव पर, कुछ देर बाद चंदा ने दोनों के लिए थाली लगाई ओर गोपाल को बुलाया दोनों खाने बैठे चंदा मजे से खा रही थी, हिम्मत करके गोपाल ने पूछा तू ठिक तो है ना ? चंदा ने हाँ में सर हिलाया कुछ बोली नहीं तो गोपाल की उत्सुकता ओर बढ़ गई वापस पूछा उस हरामी सुखदेव ने तुझे ज़्यादा तंग तो नहीं किया..!
अब चंदा का कौर हाथ में ही रह गया, आँखों से अंगारे बरसने लगे अरे इतनी ही मेरी फिक्र है तो भेजा ही क्यूँ था वहाँ कर लाते कहीं ओर से जुगाड़ दाना पानी का  तुम जैसे निकम्मों से इतना भी नहीं होता आगे से पूछियो मत ओर आधा खाना छोड़कर ही मुन्ने को लेकर सो गई।
गोपाल खिसीयाना हो गया कहाँ नागिन को छंछेड़ दिया, वो भी घर से बाहर निकल गया शाम होते ही चंदा ने बाकी का काम निपटा लिया, रात का खाना बाप बेटे के लिए बना लिया ओर गोपाल की राह देखने लगी।
गोपाल घर आने से कतरा रहा था तो रात के दस बजे वापस लौटा, 
चंदा ने मुन्ना को खाना खिलाकर सुला दिया था गोपाल के आते ही पूछा कहाँ थे इतनी देर तक पता है ना मुझे छोड़ने आना है,खाना लगा देती हूँ खा लो फिर चले।
गोपाल को एक ओर झटका लगा उसे लगा था आज तो चंदा मना ही कर देगी पर ये तो तैयार बैठी है,फिर भी मन की बात मन में छुपाते बोला तुम्हें नहीं खाना चलो आओ खाना खाकर चलते है,
पर चंदा को पता था सुखदेव खूब खिलाएगा पिलाएगा तो इतना ही बोली मुझे भूख नहीं आप खा लिजीए। चंदा का बर्ताव गोपाल से सहन नहीं हो रहा था पर मन ही मन में ज़लज़ले को पीता रहा, बेमन से थोड़ा खा कर हाथ धो लिए की चंदा बोली चलें अब..!
गोपाल ने कातिल नज़रों से घुरकर कहा रुक बीड़ी के दो कस लगा लूँ इतनी भी क्या जल्दी है,
चंदा ठिठककर बोली वो फिर कहीं मुन्ना जाग ना जाए बस इसिलिए, गोपाल ने हूँकर में सर हिलाया ओर आगे बढ़ गया पीछे चंदा दरवाजा बंद करके निकल ही रही थी की पडोसन शांता मौसी ने टोका, ओ री चंदा इस वक्त कहाँ सब ठिक तो है
चंदा को मन ही मन गुस्सा आया ये डोकरी पूरा दिन गली की ख़ाक़ ही छानती रहती है मोई, पर गुस्से पर काबू करते बोली मौसी जरा पेट में ठिक नहीं तो बस वैद दादा के पास जा रहे है,
शांता डोकरी ने बहुत ज़माने देखे थे एक गूढ़ हंसी मुँह पर थम गई।
अंधेरे को चिरते गोपाल ओर चंदा पैरों को गति देते जा रहे थे मन में एक अकथ्य खयालों की गठरी संभाले, गोपाल से रहा ना गया चंदा को बोला सुन अगर सुखदेव तुझे ज़्यादा परेशान करे तो बोल देना कर्ज़ लिया है कोई गुलामी नहीं लिख दी उसके नाम, ओर सुन कोई बच्चे वच्चे का चक्कर नहीं चाहिए अब तो दुकानों में कई तरह के साधन ओर दवाई मिलती है मुँह पर मार देना दल्ले के..!
अब दल्ला कौन है पहले ये तो तय कर लो चंदा की जुबाँ पर ये शब्द आने वाले थे, की सामने सुखदेव दौड़ते हुए आता दिखा नज़दीक आते ही पहले चंदा को नखशिख देखा ओर गोपाल की ओर देखते बोला, साला तू भले पैसों से कंगाल है पर बीवी के मामले में पूरे गाँव में तुझे कोई टक्कर नहीं दे सकता इतना मालदार है, चंदा ने शर्माकर नैंन झुका लिए तो सुखदेव ने ऊँगलियों से उसका चेहरा उठाकर बोला ओये रानी तेरी ये अदा मार ही ड़ालेगी, गोपाल ने गुस्से में एक शेर की तरह तराप लगाई ओर सुखदेव का हाथ चंदा के चेहरे से हटा लिया।
पर सुखदेव भी मर्द था गोपाल की ओर ऊँगली करके बोला साले एक तो जोरु का गुलाम है उपर से मुझे अकड़ मत दिखा, नगद के बदले ये खूबसूरत माल अपने हाथों से बेचा है अपनी औकात में रहकर बात कर ,
चंदा को बहुत बुरा लगा ओर गोपाल का खुद के सामने अपमान से बौना महसूस करना कुछ अखर गया, तो सुखदेव को सुना दिया गोपाल ने मुझे यहाँ नहीं भेजा मैं खुद अपनी मर्ज़ी से आई हूँ तो गोपाल का यूँ अपमान करना आपको शोभा नहीं देता, चंदा ने खुद ही गोपाल से कहा आप घर जाईये कहीं मुन्ना जाग न जाए कहकर चंदा आगे बढ़ गई।
गोपाल घर की ओर मूड़ा ओर सुखदेव चंदा का पल्लू थामें हवेली की ओर,
हवेली पहुँचते ही गोपाल बोला अरे वाह मेरी रानी सच में तू अपनी मर्ज़ी से आयी है, बता तो सही इस नाचीज़ में एैसा क्या है जो साक्षात मेनका मेरे घर पधारी है,धन्य हो गया मैं, ओर मेरी हवेली पावन हो गई तुम्हारे कदमों की रज पाकर..! ईतने सुनहरे पेकेट में शब्दों को लपेटकर चंदा की चंपी कर रहा था की चंदा का गुस्सा पल भर में पिघल जाता था।
सुनो रानी मेरे लिए तुम्हारी खुशी से बढ़कर ओर कुछ नहीं,मैं बस तुम्हें एक रानी की तरह मान सन्मान ओर प्यार देना चाहता हूँ, तुम यहाँ आकर दिन भर की मसक्कत को भूल जाओ, खाओ, पीओ, खेलों सारे सुख तुम्हारे कदमों में ड़ालता रहूँगा, राज करो इस सुखदेव की हवेली में भी,ओर दिल में भी।
इतनी आवभगत के आगे चंदा हार जाती थी जिस बात का डर खाएँ जा रहा था एैसी एक भी हरकत सुखदेव नहीं कर रहा।
सुखदेव ने चंदा को पूछा क्या आज मेरी रानी मुझे इज़ाज़त देगी की अपने हाथों से उसका शृंगार कर सकूँ?
एैसी नज़रों से सुखदेव बिनती कर रहा था की चंदा मना नहीं कर पाई सिर्फ़ हाँ में सर हिला दिया, आज भी सबसे पहले नहाने को बोला चंदा को भी सुगंधित साबुन से तन-मन तरोताजा करनेका मन था तो चली गई बाथरूम में सुखदेव ने अंगूरी की बेटी को मुँह लगाया ओर बोला अब तेरा नशा बड़ा फ़िका है खुद मैख़ाना मेरे दर पे खड़ा है, रुप की सुराही पीऊँ या तुझे, हंसकर बोतल ही मुँह से लगा ली।
इधर चंदा नहाकर बस एक आधी साड़ी का गमछा लपेटकर बाथरूम से निकली की सुखदेव अंदर आया, गीले बदन ओर टपकते गेसूओं को देखकर सुखदेव आपे से गया, चंदा को हौले से उठाकर पलंग पर पटक दीया, चंदा शरमाकर दुसरी ओर हाथों से चेहरा छुपाते पलट गई गोरी पीठ संगमरमर की याद दिला गई सुखदेव कामातुर हो गया, पर खुद पर काबू पा कर बोला सुनो रानी इधर देखो आज मैं अपनी पसंद की साड़ी तुम्हारे लिए लाया हूँ जरा पहनकर तो दिखाओ मैं बाहर हूँ तुम कपडे बदल लो फिर में तुम्हारा शृंगार करुंगा।
चंदा बोली ठिक है सुखदेव कोई जल्दबाजी नहीं कर रहा था उसे पता था इतना तो हुन्नर है सुखदेव में की आम पककर खुद झोली में टपक पड़ेगा,बस पकाने के लिए वक्त ओर मसक्कत दोनों लगेंगे पर परवाह नहीं, बारिश के अभी कोई आसार नहीं दिख रहे तो बस चंदा की चाँदनी को चाहत का पानी शक्कर में डूबोकर सिंचते रहो जब तक विवश होकर खुद गले ना लग जाए।
सिफ़ोन की दुधिया साड़ी ओर स्लीवलेस ब्लाउज़ में चंदा कोई हिरोइन से कम नहीं लग रही, उसका मादक रुप ओर निखर गया दरवाजे पर खड़ा सुखदेव एकटुक चंदा को प्यासी नज़रों से पी रहा था चंदा ने ज़िंदगी में एेसे कपड़े नहीं पहने थे तो थोड़ी जीज़क रही थी, पर हिम्मत करके बोली आपकी पसंद बहुत अच्छी है, पता नहीं मैं कैसी लग रही हूँ इस साड़ी में..!
सुखदेव ने चंदा को गोद में उठा लिया ओर आईने के सामने बिठाकर बोला सच कहा तुमने मेरी पसंद लाजवाब है, देख लो खुद को आईने में, चंदा अचंभित सी खुद को निहारने लगी कोई शृंगार नहीं सिर्फ़ साड़ी में ही बला की खूबसूरत लग रही थी। सुखदेव ने एक बोक्स खोला ओर नाजुक सा हीरों का नेकलेस चंदा को पहना दिया कानों में दो हीरे जड़ दिए ओर हाथों में दुधिया चुड़ियाँ,
पैरों में पतले पायल पहनाकर जुड़े में मोगरे का गजरा लगाते बेकाबू सा लिपट गया,अब ओर सब्र मुश्किल था पर चंदा की ओर से लज्जा ने पहरा दे रखा था तो सुखदेव खबरदार हो गया नहीं अभी नहीं आम पककर खुद गिरे तभी खाने में जो मजा है वो तोड़कर खाने में कहाँ..!
ओर चंदा से अलग होते हुए बोला कयामत ढा रही हो रानी चलो भूख लगी है कुछ खा लें।
एक बड़े से टेबल पर राजभोग सी दो थाली भात-भात के भोजन से परोसी गई थी चंदा ने कभी देखे भी नहीं थे एैसे-एैसे पकवान सुखदेव अपने हाथों से खिलाता रहा, चंदा की आँखें नम हो चली सुखदेव ने चंदा के आँसू अपनी हथेली पर ले लिए ओर माथे पर चढ़ाकर बोला, अब इसे कैसे ज़ाहिर होने दूँ मेरी रानी की आँखों में शोभा नहीं देते लो आज से ये गुलाम के हुए।
सुखदेव की इस हरकत पर चंदा वारी गई सुखदेव से लिपट गई की बस किजिए इस अभागिन को इतना मान देकर खरीद लिया आपने, 
सुखदेव के मन में लड्डू फूटे पर ना आज नहीं भैया सुखदेव, अभी तो सिर्फ़ अहोभाव ही जगा है कामाग्नि जगने दे फिर मजे लेना, मन ही मन खुश होते चंदा को अलग करके पानी पीलाकर शांत किया ओर बोला पगली मैं कोई शेर या भेड़िया थोड़ी हूँ मेरे भी सीने में दिल है जो तुम पर आ गया है, मुजे तुम्हारा दिल चाहिये, तुम्हारे मन में जगह चाहिये तन का क्या है एक दिन मिट्टी में ही मिलना है।
अरे हाँ तोहार मुन्ने के लिए कपड़े ओर खिलौने लाया हूँ कल लेती जाना साथ नन्ही सी जान खुश हो जाएगी तो मेरे मन को भी आनंद मिलेगा, चलो रात बहुत हो गई है थोड़ा आराम करते है बोलकर चंदा का गाल सहलाते सुला दिया।
चंदा का क्षोभ अब कुछ कम हुआ था सुखदेव की मिश्री सी मीठी बातों ने सहज बना दिया तो चंदा ने पूछा सुनिये क्या एक बात पूछ सकती हूँ?
सुखदेव को तो यही चाहिए था बोला एक नहीं पचासों पूछो ये बंदा आपकी ही अमानत है मेरे आका हुकूम फ़रमाईये,
चंदा ने पूछा आपने शादी नहीं की बीवी बच्चे है या कुँवारे हो।
सुखदेव का चेहरा उतर गया,
ना पूछो तो ही अच्छा है, अब तुमने गड़ा मुर्दा उखाड़ा ही तो बता दूँ, हाँ शादी की थी रेवा से, कुछ दो साल टिकी पर रेवा को किसी ओर से प्यार था तो मुझे छोड़कर भाग गई। उसे क्या कुछ नहीं दिया मैंने धन, दौलत, प्यार, इज्ज़त पर उसने कदर नहीं की मेरी ओर मैंने भी जाने दिया। लोगों ने दूसरी शादी के लिए बहुत बोला पर मन ही नहीं हुआ। 
तुम्हारे बारे में लोगों से बहुत सुना था की गोपाल की बीवी बहुत सुंदर है, कभी देखा नहीं था सिर्फ़ कल्पना में ही तुमसे प्यार किया, हाँ ये मेरा प्यार ही जो तुम्हें यहाँ तक खींच लाया तुम नहीं जानती रेवा के जाने के बाद कोई दिल में बसा है तो वो सिर्फ़ तुम हो..!
चाहता तो एक से बढ़कर एक मिल सकती थी पर दुनिया में तुमसा ओर कोई कहाँ, बोलते चंदा की आँखों में इतने प्यार से झाँका की चंदा आतूर हो उठी सुखदेव की मजबूत बाँहों को तरसती, पर खुद कैसे पहल करती क्या सोचेगा वो ना ना मुझे ये शोभा नहीं देगा, गोपाल का सुर्ख चेहरा नज़रों में उभर आया हाथों की चुड़ीयाँ ओर चुटकी सिंदूर की मर्यादा में बँधी चंदा ठिठक गई।
सुखदेव ने भाँप लिए चंदा के भाव पर उसे भी कहाँ जल्दी थी चंदा के दिल से गोपाल का नामोनिशान मिटाकर खुद को विराजमान होना था, जब तक चंदा की ओर से न्योता नहीं आता तब तक मखमली रास्ता बना रहा था सुखदेव चंदा के दिल तक पहूँचने का।
एक जवान खूबसूरत स्त्री को ललचाने का सारा इन्तज़ाम सुखदेव के पास था पैसा, पावर, गठीला जवान बदन, बस पुराना हटाकर नया बिठाना था।
चंदा को कुछ ओर तोहफ़े से नवाज लिया, रेशमी साड़ीयाँ ओर गहनों के साथ घर के लिए भी कुछ सामान की व्यवस्था कर दी चंदा अहसान तले दबी जा रही थी।
इधर गोपाल की हालत धोबी के कुत्ते सी बन गई न चंदा से कुछ पूछ सकता था, ना गुस्सा निकाल सकता था, उपर वाले से भीख मांगता रहता था बस एक बार बारिश कर दे अन्नदाता तो इस चुंगल से छुटकारा पा लूँ।
पर कहते है ना गरीबी में आटा गीला, कहीं से कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था रात कचोटती रहती है ओर दिन खाने को दौड़ते है,चंदा अब गोपाल के प्रति थोड़ी बेदरकार होती जा रही थी, एैसा नहीं की प्यार नहीं था पर जब सुखदेव के साथ बराबरी करती तब गोपाल कुँएँ के मेढ़क सा दिखता सुखदेव की महाकाय शख्सियत के सामने।
खुद को अब कुछ समझने लगी थी चंदा,
आज गोपाल बहुत अकेला महसूस कर रहा था तो उसने चंदा को बोला सुन आज की रात मेरे पास रह जा मन कुछ उदास है, कितने दिनों से हमदोनों ने साथ में खाना तो छोड़ो दो बात भी ढ़ंग से नहीं की, ओर कुछ तलब भी लगी है आज प्यास बुझा दे।
गोपाल चंदा की कलाई पकड़कर नज़दीक गया ओर बाँहों में भरने की कोशिश की तो, जो चंदा गोपाल के एक इशारे पे खींची चली आती थी उसने धीरे से कलाई छुड़वा ली ओर अनमनी सी मुन्ना देख लेगा का बहाना बनाती रसोई में बर्तन इधर-उधर करने लगी, गोपाल भी मर्द था उसकी भी जरुरियात थी, ओर भूखे इंसान से परोसी हुई थाली छीन लें तो दिमाग हिल ही जाएगा, उसने रसोई में जाकर जबरदस्ती चंदा से प्यार करना चाहा पर चंदा के मन पर सुखदेव  सवार था उसे अब गोपाल तुच्छ ओर निकम्मा लग रहा था,  बेमन से वश तो हुई पर एक लाश की तरह पड़ी रही,मन कहीं ओर था तन में कोई आहट कैसे जगे।
गोपाल का खुमार भी उतर गया खड़ा होकर निकल गया घर से बाहर, आज आसमान से आग बरस रही थी धवल साफ़ बादल दूर-दूर तक काली घटा कहीं से झाँके भी नहीं रही। उम्मीद की कोई किरण नहीं दिख रही गोपाल का आत्मविश्वास डगमगा गया,
इस अकाल ने गोपाल का सुख चैन छीन लिया था, उसे चंदा पर कितना भरोसा था की चंदा कभी किसी ओर की हो ही नहीं सकती, फिर क्यूँ मन अब घबरा रहा है।
चंदा से रिश्ते की गिरह क्यूँ कमज़ोर होती महसूस हो रही है, चंदा से दूरी सोच भी नहीं सकता गोपाल , पर करुँ तो क्या करुँ,क्या मैं अकेला खुदकुशी कर लूँ पीछे माँ बेटे को सुखदेव संभाल लेगा, नहीं नहीं सगे बाप के रहते मेरे मुन्ने को कैसे अनाथ कर दूँ कोई रस्ता नहीं सुझ रहा।
ज़िंदगी की जंग में एक महारथी जीतने की कगार पे खड़ा था तो एक चालक के सारे मोहरे पीटते जा रहे थे, रानी दो ऊँगलियों पे डोर बाँधे कठपुतली सी नचा रही थी सारा खेल अपने हिस्से लेकर, पर शातिर राजा इतनी भी कच्ची गोलीयाँ नहीं खेल रहा, रानी को बस थोड़ी ढ़ील दे रखी थी लोहा गरम होने की देर थी फिर चट भी राजा की ओर पट भी। 
अब चंदा के दिन लंबे होते जा रहे थे रात के इंतज़ार मे पूरा दिन बेकली से बिताती, मुन्ने के प्रति भी लापरवाह होती जा रही थी आज तो हद ही कर दी मुन्ने की तबियत कुछ ठिक नहीं थी तो १० बजने को आये फिर भी सो ही नहीं रहा था, बुखार से तड़प रहा था पर चंदा का मन हवेली में तड़प रहे सुखदेव के दिल की गली में चक्कर लगा रहा था, मुन्ने को कितनी  कहानीयाँ सुनाकर गोद में सुलाया ओर जैसे बिस्तर पर सुलाने लगी तो जाग गया, चंदा ने गुस्से में जोर से थप्पड़ लगा दी मोया सो ही नहीं रहा का बात है कब से सुला रही हूँ, जा मर जा। गोपाल ने  गुस्से से चंदा पर हाथ उठाना चाहा साली रांड रंगरेलीयों के चक्कर में तूने मेरे बचवा पर हाथ उठाया, पर चंदा अब किसीके बस में नहीं थी गोपाल का हाथ उठने से पहले ही जोर से पकड़कर मरोड़ दिया, साले नामर्द अब तू मुझपर हाथ उठाएगा दो मुठ्ठी जुवार का जुगाड़ करने की औकात तो है नहीं आया बड़ा चंदा पर हाथ उठाने वाला।
ओर बाल झटकती गुस्से में तिलमिलाती  घर से निकल गई सीधे सुखदेव की हवेली पर,
सुखदेव दरवाजे की ओर नज़रे गाड़े चंदा का ही रस्ता देख रहा था चंदा को देखते ही मुस्कुरा उठा, आ गई मेरी रानी क्या बात है आज बड़ी देर कर दी आशिक की जान जा रही थी मेरी जान थोड़ा जल्दी आया करो, चंदा कुछ ना बोली पास पड़ी दारु की बोतल उठाई ओर आधी बोतल गटगटा ली, कभी चखी भी नहीं थी तो तम्मर खा गई, सुखदेव हड़बड़ा गया ये क्या तूने दारु पी ली..!
वाह मेरी शेरनी अब तू रंगने रंगी है अपने राजा के रंग में, चंदा का सर घूम रहा था तो बाथरूम में जा कर शाॅवर चालू करके नीचे बैठ गई कुछ देर तक नहाती रही, फिर बाहर आकर सारे कपड़े निकालकर फैंक दिए, सुखदेव फटी आँखों से चंदा का संगमरमर सा निर्वस्त्र तन देखता ही रह गया, कोई देवता तो नहीं था की नज़रे फेर लेता अजन्ता इलोरा की मूरत सी चंदा की जवानी को देखकर सुखदेव पागल हो उठा अब कैसे सब्र करुँ बिन पीए ही नशा बढ़ता जा रहा है, खुद सुराही ढ़क्कन खोलकर बहने लगी है पी लूँ पूरा का पूरा जाम या वापस लौट चलूँ।
ना आज अगर बहक गया तो चंदा को लगेगा मैने नशे में बहकी चंदा का लाभ उठाया, शायद उसकी नज़रों से गिर जाऊँ बेकाबू सा पागल सा हो रहा था सुखदेव पर बाथरूम में जा कर ठंडा पानी ड़ाल लिया तपते तन पर, ओर चंदा को कपड़े पहना कर सुला दिया आज पूरी रात सो नहीं पाया सुखदेव चंदा के तन को पाने लालायित हो उठा बस अब ओर नहीं सहा जाता अगली रात सुहागरात होगी। 
इधर गोपाल का गुस्सा ओर बेबसी चरम पे था, खुद को इतना लाचार कभी नहीं पाया चंदा हाथ से निकलती जा रही थी मुन्ना माँ को याद करते करते रो रोकर सो गया, गोपाल के आँसू बह निकले कोई अपना भी तो नहीं किसके कँधे पर सर रखकर रोऊँ किसे सुनाऊँ अपनी पीड़ा।
इधर नशे की वजह से सुबह चंदा की आँखें देर से खुली १० बज गये थे जल्दी से घर की तरफ़ भागी, सुखदेव ने भी रोकना नहीं चाहा घर आते ही देखा तो वैदकाका मुन्ने को दवाई पीला रहे थे, गोपाल सूनमून सा खड़ा था, वैद जी ने बोला आ गई बेटी सुनो मुन्ने का कुछ दिन ख़याल रखना होगा बहुत कमज़ोर हो गया है, बुखार ठिक होने  में दो तीन दिन लगेंगे ये दवाई हर ४ घंटे बाद देनी है, चंदा ने हाँ में सर हिलाया ओर रसोई में जाकर खाना बनाने लगी..!
मुन्ने को दवाई दी नास्ता करवाया ओर गोपाल से पूछा आप कुछ खाओगे, पर गोपाल ने मना कर दिया रहने दे भूख नहीं चंदा ने ढक कर रख दिया ओर पानी भरने चली गई, दूर-दूर एक कुँआँ था अब तो उसमें भी पानी सूख रहा था, मुश्किल से सिंचकर दो गगरी निकाली चंदा ने।
इधर गोपाल सोच रहा था चंदा कितनी बदल गई है पहले जब खाने को मना करता था तो कसम दे देकर पूछती थी क्यूँ नहीं खाना क्या हुआ है, जबरदस्ती खिलाती थी क्या अब रिश्ता कमज़ोर हो चला है.! चंदा को अब सुखदेव पसंद आने लगा है, कुछ समझ में नहीं आ रहा करुँ तो क्या करुँ,चंदा ने भी कुछ नहीं खाया सर भारी था ओर मुन्ना की चिंता भी।
चंदा को एक ओर बा खाए जा रही थी सुखदेव आगे क्यूँ नहीं बढ़ाया रहा, चाहता तो सुखदेव कल मेरी नशे की हालत का फ़ायदा उठा सकता था पर बंदा है तो खुद्दार ओर नेक अभी तक उसने मेरी मर्ज़ी के बगैर कुछ किया नहीं, सुखदेव के लिए चंदा के दिल में सन्मान का भाव उभर आया ओर थोड़ा प्यार भी।
मुन्ने को हर ४ घंटे बाद दवाई देनी थी आज रात कैसे जाएगी हवेली कुछ भी हो माँ थी तो मन नहीं हुआ,गोपाल को बोली सुनीए आप हवेली जाकर बोल दिजीए आज मुन्ना की तबियत ठिक नहीं तो नही जाऊँगी।
गोपाल मन में थोड़ा खुश हुआ ओर उठकर चला गया सुखदेव से जाकर बोला आज चंदा नहीं आ सकती मुन्ना बिमार है तो,
सुखदेव की खोपड़ी हील गई एैसे कैसे नहीं आएगी साले निकम्मे तू बचवा को नहीं संभाल सकता, जा जाकर भेज दे वरना सारा माल वापस कर, आज तो सुखदेव पका हुआ फल झोली में गिरने के इंतज़ार में था तो कैसे रह सकता था, पर फिर कुछ सोचकर बोला सुन सिर्फ़ आज के दिन कल नहीं आई चंदा तो सारा नदग उगलवाना आता है मुझे जा अब यहाँ से।
गोपाल घर आया तो मुन्ना खेल रहा था दवाई से थोड़ा आराम था तो,
रात को खाना खाते ही मुन्ना सो गया तो गोपाल चंदा के बगल में आया हाथ पकड़कर बोला चंदा नाराज़ हो क्या मुझसे? देखो तुम भी जानती हो मैं ठहरा गरीब आदमी अगर कहीं से दाना पानी का इंतज़ाम कर पाता तो तुम्हें...
इतना ही बोला था की चंदा उठ खड़ी हुई अरे तुम जैसे गरीब नामर्द शादी करते ही क्यूँ है जब बीवी बच्चे संभालने की औकात नहीं तो, भाग ही फूट गये है मेरे  की तुमसे ब्याही एक साड़ी तक तो नहीं दिला सकते जोरू को, हट्टे कट्टे हो चाहो तो क्या नहीं कर सकते पर ना कुछ काम के नहीं ओर एक वो है सुखदेव जो राजरानी  की तरह रखता है मुझे। 
ओह तो ये कहो ना अब इस गरीब की झोंपड़ी में तुम्हारा दिल नहीं लग रहा महारानी बनने के सपने देख रही हो, उस सुखदेव की दौलत ने तुम्हारी जवानी को खरीद लिया है।
पर ये मत भूलो वो ज़मीनदार तुम जैसी सौ ख़रीद सकता है मतलब निकलते ही दूध में से मक्खी की तरह निकाल फैंकेगा आख़िर इस झोंपड़ी में ही आना है वापस।
पर कहते है ना प्यार अंधा होता है चंदा को अब गोपाल की हर बात में नुक्श नज़र आ रहे थे, बस हर पल सुखदेव के खयालों में खोये रहती थी ना घर का खयाल ना गोपाल का, दूसरे दिन कुछ बादल घिर आए गरजे भी बस बारिश का इंतज़ार था, गोपाल खुश हो गया हे प्रभु बस अब ये बादल बरस ही जाए..!
पर चंदा कुछ खुश नज़र नहीं आ रही अगर बादल बरस गए तो सुखदेव से हाथ धोने पड़ेंगे तो बस आज चंदा के हक में कुदरत थी तो बिना बरसे ही बादल छंट गए, ओर गोपाल की पलकों पर आकर बैठ गए।
चंदा को रात का इंतज़ार था ओर गोपाल सोच रहा था आज का दिन ही ना डूबे, पर जो विधाता ने चंदा की लकीरों में लिखा था उसे कौन बदल सकता है,
शाम ढ़ल गई चंदा ने गोपाल ओर मुन्ने के लिए खाना बना लिया ओर आज तो सुखदेव ने जो उपहार में दी थी वो लाल रंग की साड़ी पहनकर तैयार हो गई। सुखदेव थकाहारा घर आया तो चंदा को तैयार देखकर सकपका गया चंदा बोली सुनीये आप जल्दी से खाना खा लिजीए मैं तैयार हूँ फिर मुझे छोड़ने भी आना है, गोपाल के दिमाग की नस फ़ट रही थी चंदा की बात सुनकर, अगर मुन्ने का खयाल ना होता तो चंदा का गला घोंट देता , चुपचाप थोड़ा खाकर खड़ा हो गया तब तक चंदा ने मुन्ने को सुला दिया ,
फिर दोनों निकल पड़े सुखदेव की हवेली की ओर, दोनों के मन में बवंडर चल रहा था कोई बात करने की पहल नहीं कर रहा था, दूर से हवेली दिखी तो गोपाल ने हाथ से इशारा करके चंदा को जाने के लिए बोला ओर आज दूर से ही वापस मूड़ गया। 
चंदा बिंदास कुछ बोले हवेली की ओर चल दी,आज सुखदेव कुछ अलग ही मूड़ में था उसे पता था आज चंदा को कैसे वश में करना है, खटिया बिछाकर सुखदेव इंतज़ार ही कर रहा था की चंदा चुपके से जाकर सुखदेव की बगल में बैठ गई तो चौंककर सुखदेव खड़ा हो गया, आज चंदा ने चंदा ने पहली बार सुखदेव को हाथ पकड़कर बिठा दिया, सुखदेव को कोई जल्दी नहीं थी मन में लड्डू फूट रहे थे पर जानबूझकर मुँह के भाव को छुपाकर बोला मुन्ना कैसा है अब, चंदा ने सिर्फ ठिक है बोलकर सुखदेव का हाथ अपने हाथ में ले लिया ओर बोली क्या आज भी वो नशीली चीज़ मिल सकती है? ज़्यादा नहीं पीऊँगी बस कुछ घूँट सुखदेव को तो इतना ही चाहिए था झट से अंदर से व्हिस्की की बोतल पानी ओर बर्फ ले आया ओर दोनों के लिए पैग बनाने लगा।
ओर चंदा को देखकर बोला इस लाल रंग की साड़ी में परी लग रही हो मेरी रानी इस बंदे का इमान मचल रहा है आज, ओर चंदा के हाथ में ग्लास पकड़ाकर बोला क्या बात है कल आधी बोतल गटगटा ली थी तो कैसा लग रहा था,
चंदा बोली सच बताऊँ दुनिया रंगीन लगने लगी थी, सारे ताप टल गए थे, ज़िंदगी के सारे दर्द भूल गई थी वाह क्या चीज़ है तुम्हारी अंगूर की बेटी, तो बस आज भी सोचा थोड़ी पी कर सारे गमों से निज़ात पा लूँ, ओर चंदा ने पूरा ग्लास उड़ेल दिया पेट में।
धीरे-धीरे नशा बढ़ने लगा तो सुखदेव हाथ पकड़कर चंदा को अंदर ले आया आज सुखदेव से ज़्यादा चंदा तड़प रही थी, साड़ी का पल्लू सरका कर सुखदेव के गले लग गई, ओर जन्मों का प्यासा सुखदेव इस घड़ी का ही इंतज़ार कर रहा था बस आज चंदा ओर सुखदेव की मानों सुहागरात थी नये नवेले दुल्हा दुल्हन से खो गए एक दूसरे में, पूरी रात रममाण रहे।
सुबह दोनों की आँख लगी एक नशा शराब का दूसरा जवानी का दुनिया ही भूल गए दोनों, ओर इधर सुबह के १२ बज गए तो गोपाल का दिमाग हिल गया, अभी तक चंदा आई क्यूँ नहीं, मुन्ना भी रो रहा था गोपाल हवेली जा ही रहा था की चंदा ने दरवाजे पर कदम रखा, गोपाल आगबबूला हो गया क्या कर रही थी अब तक घर का ओर मुन्ने का खयाल है की नहीं कितने बज रहे है पता भी है, पर चंदा पर मानों गोपाल की बात का कोई असर ही नहीं था फटाफट कपड़े लेकर नहाने चली गई ओर रोज की तरह काम पे लग गई, खाना बनाकर मुन्ने को खिलाया ओर खुद खा कर सो गई। गोपाल ने सोचा चंदा हाथ से निकलती जा रही है अब उसे सुखदेव की अमीरी का खुमार चढ़ा है अब तो बस भगवान करें ओर बारिश आ जाए।
पर ना तो बारिश कहीं दूर-दूर तक नज़र आ रही थी ना चंदा को कुछ कह सकता था ये किस कगार पर लाकर खड़ा कर दिया था उपर वाले ने,
अब तो चंदा ज़्यादातर सुबह देर से ही लौटने लगी थी धीरे-धीरे पास पड़ोस ओर गाँव में भी कानाफूसी हो रही थी गोपाल ने बार-बार बोला की अँधेरे में जाओ ओर सुबह होने से पहले चली आओ पर चंदा अब आज़ाद हो गई थी उसे सुखदेव ही सुखदेव दिख रहा था, शराब की आदि होती चली थी, सुखदेव चंदा को रानी की तरह रखता था पर कहते है ना खुमार उतरते देर नहीं लगती, चंदा सुखदेव के पिछे पागल थी पर सुखदेव ने चंदा को पी लिया था तो धीरे-धीरे उब रहा था।
एक दिन अचानक सुखदेव का दोस्त मुंबई से आया बिना कोई खबर किए ओर चंदा को सुखदेव की बीवी समझ लीया नमस्ते भाभी जी करके चंदा को नखशिख निहारने लगा,
चंदा ने कोई जवाब नहीं दिया सकुचाती चुपके से घर की ओर निकल गई 
जयचंद ने सुखदेव से आँख मारके पूछा क्यूँ दोस्तों मामला क्या है कौन है ये छमीया? भाभी तो नहीं लग रही पर जो भी है माल नं.1 है बाकी।
सुखदेव ने अपने दोस्त को सारी हकिकत बता दी की चंदा कौन है ओर उससे रिश्ता क्या है तो सुखदेव के दोस्त जयचंद की आँखें चमक उठी ओर उसका दिमाग तेज़ गति से दौड़ने लगा की कैसे चंदा का फायदा उठाया जाए, उसने अभी तो सुखदेव को कुछ नहीं बताया पर दो दिन के लिए आया हुआ जयचंद ने कुछ ओर दिन रूकने का मन बना लिया।
चंदा को परखना चाहता था की खुद के कितने काम आ सकती है।
जयचंद ने सुखदेव को पूछा ओर बता इरादा क्या है चंदा को रखैल बनाकर ही रखना है की बीवी भी बनानी है?
सुखदेव जोर से हंस पड़ा अरे यार तू तो मेरी फ़ितरत जानता है एक ड़ाल का पंछी नहीं हूँ हाँ माल अच्छा था तो इस बार ज़्यादा दिन गुज़ार लिए बाकी शादी वादी का लफ़डा नहीं चाहिये। 
जयचंद ने बोला ठीक है तेरी ऐश खतम हो गई हो तो अब मुझे भी थोड़ा लाभ उठाने दे,तेरा हिस्सा तुझे मिल जाएगा।
सुखदेव ने आँख मारकर अंगूठा दिखा दिया।
उस रात चंदा भी थोड़ा हिचकिचा रही थी की कैसे जाऊं आज सुखदेव का दोस्त आया है तो, वो क्या सोच रहा होगा, गोपाल को उसके दोस्त के बारे में बता दूँ या आज हवेली पर जाऊँ ही ना, पर सुखदेव का रंग जो चढ़ा था कैसे नहीं बताना जो होगा देखा जाएगा सोचकर मन बना लिया की गोपाल को कुछ नहीं बताना बेकार में बात का बबाल खड़ा करेगा।
ओर हर रात की तरह चंदा को छोड़ने गोपाल तैयार हो गया पर अब गोपाल हवेली नज़दीक दिखते ही चंदा को जानेका इशारा करके वापस लौट आता था आज भी ऐसे ही किया, 
चंदा आज थोड़ा सकुचाई सी लग रही थी तो सुखदेव ने उसके दोस्त को दूसरे कमरे में भेज दिया, ओर चंदा के पास बैठ गया ओर बोला घबराओ मत मेरी रानी बहुत अज़ीज दोस्त है मेरा हम दोनों  के बीच की बात कहीं नहीं जाएगी तुम निश्चिंत रहो, चंदा बोली कितने दिन रहेगा, सुखदेव ने बोला मेहमान है कैसे पुछ सकता हूँ पर शायद दो चार दिन में चला जाएगा।
बोल आज तेरी पसंद की चीज़ पीएँगी बनाऊं पेग? चंदा ने संमति में सर हिला दिया सुखदेव ने ओर चंदा ने मिलकर आधी बोतल खतम कर दी ओर नशे की हालत में ही सो गए, सुबह दस बजे दोनों की आँखें खुली जयचंद तो कबका उठकर तैयार हो गया था ओर हुक्का गुड़गुडा रहा था चंदा जैसे रूम से बाहर निकली अजीब निगाहों से देखकर नमस्ते करने लगा, आज सुखदेव ने दोनों की जान पहचान करवाई अब चंदा जयचंद के साथ घुल-मिल गई थी।
इधर गोपाल की हालत दिन ब दिन बिगड़ती जा रही थी न कहीं आने जाने का मन करता था ना खाने पीने का तो कुछ बिमारी ने भी घेर रखा था, चंदा की, मुन्ने की, घर की चिंता खाए जा रही थी पर कोई उपाय नहीं सुझ रहा था,
चंदा अब ज्यादातर सुखदेव की हवेली पर ही रहने लगी थी जयचंद उसे मुंबई की रंगीन ज़िदगी के बारे में ऐसे भरमा रहा था की चंदा लालायीत हो उठी मुंबई देखने के लिए, ओर बोली जयचंद जी आप नसीब वाले हो जो इतने बड़े शहर में मजे कर रहे हो हमारी ज़िंदगी तो इस छोटे से गाँव में ही खत्म हो जाएगी,
बस जयचंद इसी वक्त का इंतज़ार कर रहा था बोला चलोगी क्या मुंबई ? ऐश करवाऊँगा तुम्हारे जैसी सुंदरी को तो फिल्मों में चुटकी बजाते काम मिल जाता है, क्यूँ जवानी जला रही हो इस गाँव में पैसों का ढ़ेर लगा दूँगा गिनते थक जाओगी, बोलो चलना है तो परसों सुबह निकल रहा हूँ मन हो तो चली आना।
चंदा के मन में ऐशो आराम ओर पैसों की ऐसी ललक जगा दी की चंदा खुली आँखों से मुंबई के सपने देखने लगी, ओर गोपाल की चंगुल से निकलने के प्लान बनाने लगी अब इस छोटे से गाँव से ऊब चुकी हूँ। गोपाल का प्यार, मुन्ने से ममता मुंबई के सपने के आगे बौने लगने लगे बस अब तो ज़िदगी जी लेनी है बहुत घूँट घूँट कर जी लिया गोपाल की छत टपकती झोंपड़ी में जलकर, गोपाल इतना तो सक्षम है की मुन्ने को पाल लेगा ममता से लिपटी रही तो पूरी ज़िदगी उस जहन्नुम में काटनी पड़ेगा ओर चंदा के मन ने एक फिसलती हुई ख़तरनाक राह चुनने का फैसला कर लिया।
ओर वो घड़ी आ गई आज चंदा ने कितने दिनों बाद गोपाल से हंस कर बात की, मुन्ने को जी भरकर प्यार किया, पूरी दोपहर गोपाल की आगोश में रही, आँखें नम हो रही थी पर आँसू पीना सीख लिया था बहुत दिनों बाद आज गोपाल अपनी पुरानी चंदा को पा कर खुश था सारा गुस्सा पिघल गया ओर चंदा को बेपनाह प्यार करता रहा चंदा दोहरे भावों से घिरी पड़ी रही।
चंदा के मन में थोड़ा डर, थोड़ी उत्सुकता, थोड़ा रंज़, तो थोड़ी खुशी के मिश्र भाव आवाजाही कर रहे थे, आज इस छोटे से गाँव में, छोटी सी झोंपड़ी में आख़री दिन था कल से एक नई दुनिया में कदम रखने जाना है तो आज जी भरकर मुन्ने को प्यार कर रही थी, घर को थोड़ा ठीक-ठाक किया ओर थोड़ी जाने की तैयारी इतने में रात कहाँ हो गई पता ही नहीं चला।
ओर रात होते ही रोज की तरह चंदा ने काम निपटा लिया, आज गोपाल का मन बहुत खिन्न हो रहा था पता नहीं कहते है ना की कुछ बुरा होने वाला होता है तो कुदरत इशारा देती है जिसे हम सिक्स्थ सेन्स कहते है, आँख फडकना या जी मचलना बस वैसा ही कुछ गोपाल महसूस कर रहा था, उसने चंदा को बोला भी की आज कुछ अच्छा नहीं लग रहा मत जाओ ना आज पर चंदा ने बहाने बना कर बात टाल दी ओर कहा की कल जल्दी लौट आऊँगी चलिए थोड़ा दूर तक छोड़ने आइये, ओर दोनों चल पड़े।
चंदा मुन्ने को लेकर चिंतित थी तो गोपाल को बिनती कर लेती थी की मुन्ने का खयाल रखना ओर जरूरी सूचना दिए जा रही थी, इतने में हवेली दिखते ही गोपाल वापस मूड़ने लगा तो चंदा गोपाल के गले लग गई सुनिए अपना ओर मुन्ने का खयाल रखना ओर हो सके तो मुझे माफ़ कर देना, गोपाल को चंदा का इस तरह का बर्ताव समझ में नहीं आया पर मन कुछ ठीक नहीं था तो बिना कुछ बोले पुछे एक आख़री नज़र चंदा को देखकर मूड़ने गया।
चंदा नम आँखें छुपाती जब तक गोपाल आँखों से ओझल नहीं हुआ देखती रही, फिर हवेली की तरफ मूड़ गई कभी ना लौटाने के लिए।
इधर सुखदेव ओर जयचंद ने चंदा को लेकर बहुत घिनौनी प्लानिंग बना रखी थी जिससे अन्जान चंदा मुंबई नगरी के मोहजाल में मोहाँध सपने देख रही थी, चंदा को देखते ही सुखदेव बड़े प्यार से बोला आओ मेरी रानी तुम्हारा ही इंतज़ार है, चंदा ने जयचंद की ओर देखकर बोला जयचंद जी आज पुराना सबकुछ छोड़ छाड़ कर आई हूँ आपके भरोसे ज़िदगी का जुगार खेल रही हूँ कहिये कब निकलना है? ओर सुखदेव से बोली सुनिये आप भी चल रहे है ना हम मुंबई जाकर शादी कर लेंगे ओर आराम से जिएँगे
पर सुखदेव को शादी का बंधन कहाँ चाहिए उसे तो चंदा की कमनीय काया से मतलब था ओर वो भी भोग चुका था तो बहाना बनाकर बोला, सुनो तुम अभी जयचंद के साथ चली जाओ मुझे यहाँ थोड़ा काम है तो वो निपटा कर कुछ ही दिनों में मैं भी आ जाऊँगा..! तुम चिंता मत करो आराम से जयचंद के साथ चली जाओ मेरे भाई जैसा ही है भरोसे के लायक, कुछ दिन घुमो ऐश करो फिर मैं आऊँगा ओर फिर सोचेंगे आगे क्या करना है, चंदा को थोड़ी हिचकिचाहट हुई पर जयचंद ने जो सपने दिखाए थे तो बस मुंबई पहुँचने की जल्दी थी तो ज्यादा सोचे बिना हाँमी भर दी।
सुखदेव ने वैसे तो चंदा को निचोड़ लिया था पर आज की रात वो पूरा कस निकाल लेना चाहता था तो बिना चंदा को पुछे दारु के पैग बना लाया ओर चंदा को हाथ में थमाते बोला लो रानी आज साथ बैठकर पी लेते है फिर पता नहीं कब मौका मिले, चंदा गोपाल ओर मुन्ने को भूलना चाहती थी तो दो पेग पी कर सुखदेव की बाँहों में झुल गई ओर दोनों आधी रात तक जवानी के मद में मदहोश होते रहे।
सुबह 6 बजते ही जयचंद ने दरवाजा खटखटाया तो चंदा की नींद खुली जयचंद बोला चलो जल्दी करो 7 बजे की बस से पहले दिल्ली पहुँचना है वहाँ से ट्रेन से मुंबई, चंदा फटाफट तैयार हो गई दिल में गोपाल ओर मुन्ने के ख़याल आवाजाही कर रहे थे पर आज कुछ ओर सोचना ही नहीं चाहती थी सुखदेव को जल्दी आना बोलकर जयचंद के साथ निकल पड़ी एक अन्जाने अनदेखे दलदल की ओर।
बस में बैठते ही चंदा ने एक सुकून भरी साँस ली मानों बरसों से किसीने उसके वजूद को जकड कर रखा था, ओर आज नीज़ात पाया हो, पर नियती से अंजान चंदा की शायद ये सुकून सभर साँस आख़री थी आगे जो घुटन थी वो क्या सह पाएगी एक फूल सी चंदा।
तीन घंटे में दिल्ली पहुँच गए ट्रेन अभी 2 घंटे बाद की थी तो जयचंद ने एक रैस्टोरेंट में चंदा को बिठाकर बोला सुनो तुम यहाँ बैठो में 15 मिनट का एक काम खत्म करके अभी आया, ओर वेइटर को सूचना देते बोला मैडम को जो चाहिए खिला पीला दो मैं अभी आया, चंदा ने इतने बड़े शहर में पहली बार कदम रखा था तो थोड़ी घबराई हुई थी पर अब तो जो होगा देखा जायेगा सोचकर चाय नाश्ता करने लगी। 
इधर 12 बजने पर भी चंदा घर नहीं आई तो गोपाल को फिक्र हुई पर कभी-कभी चंदा देर से आती थी तो सोचा थोड़ा ओर इंतज़ार कर लूँ, पर ओर दो घंटे बीत गए फिर भी चंदा का कोई अता-पता नहीं तो गोपाल पहुँच गया हवेली ओर सुखदेव से बोला चंदा अभी तक घर क्यूँ नहीं लौटी बुलाओ उसे मुन्ना याद कर रहा है, सुखदेव अन्जान होते हुए बोला क्या बात कर रहे हो चंदा यहाँ से तो सुबह ही निकल गई है घर नहीं आई तो किधर गई, साले तू अपनी बीवी को संभाल नहीं सकता चला आया मुँह उठाकर सीधा हवेली मैने सिर्फ़ रात का ठेका लिया है दिन भर मुझे क्या पता कहाँ मुँह मारती फिरती है निकल यहाँ से ओर ढूँढ किसी ओर सुखदेव की बाँहों में पड़ी होगी ओर नफ्फट बनकर हुक्का गुड़गुड़ाने लगा।
गोपाल का मन किया सुखदेव का खून कर दे पर जब खुद का ही सिक्का खोटा हो तो अपने बस में कहाँ कुछ होता है , मत मार गई गोपाल की क्या करें, किससे पुछे, कहाँ ढूँढे चंदा को दोनों आँखों से सावन भादों बह रहे थे ओर आज आसमान ने गोपाल के हालात को देखकर  उपहास किया या रहम भगवान जाने पर काले बादल अचानक से घिर आए ओर गोपाल के आँसूओं का साथ देते मुसलाधार बरसने लगे आज गोपाल ने एक साथ दोहरे हालात देख लिए बारिश को पा कर चंदा को खो दिया था, काश एक दिन पहले मेघा की महेर होती तो चंदा मेरे साथ होती।
गोपाल पूरा दिन गाँव भर में सबसे चंदा का पता पूछता रहा कहीं से कोई ख़बर नहीं मिली, कहाँ जा सकती है क्या करुँ पुलिस के पास भी नहीं जा सकता पुलिस तपास में सारे राज़ खुल सकते थे। तड़प कर रहे गया गोपाल 
बाँवरा सा गोपाल मुन्ने को पडोसी के पास छोड़कर आया था याद आते ही घर की ओर भागा, मुन्ना चंदा को याद करके बेतहाशा रो रहा था गोपाल की हालत बदतर होती जा रही थी।
इधर चंदा जयचंद का इंतज़ार कर रही थी पर जयचंद अब कहाँ आने वाला था उसने एक दल्ले के हाथों चंदा का सौदा कर दिया था पूरे 50,000 में, कुछ देर बाद एक मवाली जैसा आदमी चंदा के पास आया ओर बोला चलिये आपको मेरे साथ मुंबई चलना है जयचंद भैया को यहाँ काम आन पड़ा है तो उसने मुझे बोला है आपको मुंबई पहुँचाने के लिए, 
चंदा रुंआसी हो गई जयचंद ने ऐसा क्यूँ किया होगा वो कहाँ रह गया, पर उसके बस में कुछ नहीं था उस अन्जान इंसान के साथ जाने के सिवाय कोई चारा नहीं था।
कुछ ही समय में ट्रेन आ गई ओर चंदा बिना कोई मंज़िल वाले रास्ते पर आगे बढ़ती रही।
गोपाल बावला सा हो गया चंदा को ढूँढते पर कहीं से कोई ख़बर नहीं मिली, नियति पर छोड़ पूरा ध्यान मुन्ने के उपर लगा दिया, चंदा के जाते ही वरुण देव की ऐसी कृपा हुई की पानी-पानी हो गया चाहे आसमान हो या गोपाल की आँखें सूखने का नाम ही नहीं ले रही। 
इधर चंदा मुंबई पहुँच गई फ़िलहाल वो आदमी चंदा को एक कोठे पर  गुलाबबानो नाम की  औरत के पास छोड़ गया,चंदा का अब जी घबरा रहा था गुलाबबानों को देखकर ही लग रहा था की किसी गलत जगह पर आ गई थी, मोटी काया, अजीब कपड़े, मुँह में तंबाकू ओर बात-बात पे गाली बकना गुलाबबानों की शख़्सीयत को ओर ख़तरनाक बना रहे थे चंदा को देखकर गुलाबबानों के मुँह से लार टपकाने लगी आज तक एसी कमसिन कली गुलाबबानों के कोठे पर कभी नहीं आई थी चार चाँद लगा देगी ये छमीया सोचकर गुलाबबानों इतरा रही थी।
चंदा थकी हारी आज तो सो गई, 
गुलाबबानों ने भी ज्यादा पूछताछ नहीं की उसे तो पैसों से मतलब था ना की पार्सल से।
सुबह नौ बजे चंदा की नींद खुली बदन टूट रहा था ओर एक गंदी अजीब सी बदबू नाक से बहती सर तक चढ़ गई तो चंदा को उल्टी आ गई, गुलाबबानों आमलेट पका रही थी चंदा को बोली चल छोरी उठ जा नाश्ता तैयार है खा ले फिर तुझसे कुछ बात करनी है,
चंदा ने बोला मैं ये सब नहीं खाती कुछ ओर है तो दीजिये कल की बची रोटी भी चाय के साथ खा लूँगी। 
गुलाबबानों झिल्लाई ये तेरे बाप का घर नहीं जो लाड़ कर रही है आदत डाल ले अब यही तेरा नसीब है, चंदा की आँखें भर आई उसने गुलाबबानों से पूछा जयचंद जी कहाँ है? कब आएँगे मुझे यहाँ नहीं रहना। 
गुलाबबानों ने आग उगलती नज़रों से देखा तो चंदा थरथर्रा गई, कौन जयचंद तुझे ब्याहने कोई नहीं आने वाला तू बिक चुकी है, अब तू मेरे हाथ का खिलौना है चल जल्दी से तैयार हो जा ग्राहक आते होंगे तेरे तो मैं पूरे पैसे वसूल करूंगी कलवा ने क्या माल भेजा है। 
चंदा की समझ से परे था की उसके साथ क्या हो रहा है, गोपाल ओर मुन्ने को याद करके फूट-फूट कर रोने लगी ये खुद ने उसकी ज़िंदगी के साथ ओर दो ज़िंदगी भी बरबाद कर ली थी, कैसे निकल पाएगी यहाँ से कुछ समझ में नहीं आ रहा था, तो गुलाबबानों से दो हाथ जोड़कर बिनती करने लगी आप मेरी माँ जैसी हो इस दलदल में मत धकेलो मेरा पति है बच्चा है मेरी ज़िंदगी बरबाद हो जाएगी।
पर गुलाबबानों दीवार की तरह थी बिना कोई अहसास पत्थर दिल बैठे-बैठे ब्रेड ओर आमलेट खाएं जा रही थी उसे चंदा की भावनाओं से कोई लेना-देना नहीं था।
चंदा की बिनती को अनदेखा कर गुलाबबानों बोली तेरी कोई चापलूसी मेरे गले नहीं उतरने वाली अच्छा होगा तू अब स्वीकार कर ले की अब यहीं पर जीना है यहीं पर मरना है, आज तक गुलाबबानों के चुंगल से कोई निकल नहीं पाया तो तू किस चिड़ी का नाम है, चल खाना है तो खाले वरना नहा धोकर तैयार हो जा किसीसे मिलवाना है तुझे।
एक मछली का व्यापारी कब से तेरे जैसी आइटम मांग रहा है लखपति है बंदा, खुश करना सीख ले ऐसे खरीदार को तेरे साथ मेरी भी चाँदी हो जाएगी, 
चंदा अंदर ही अंदर बेवकूफी के लिए खुद को ही कोसे जा रही थी अच्छी-खासी ज़िंदगी कट रही थी मुंबई के मोह ने बर्बादी की कगार पे लाकर खड़ा कर दिया था कोई भी रास्ता नहीं सूझ रहा था।
गुलाबबानों के जश्नगाह में अब तो रोज 
एक महफ़िल सजती है 
रात के तमस में चंदा के उजाले बदन सी रोशन फिर भी गंदी
चंदा के तन की ताल पर 
सिसकियों की रागिनी मूक सी बजती है पीड़ादायक 
एक मासूम की चित्कार बंद कमरे में 
कहीं दबती रोती तड़पती 
हर राग छेड़े जाती गुहार लगाती छटपटाती,
दूर-दूर तक टकराती 
बेजान बहरों के कानों से लिपटती 
वापस आती है चंदा की चीखें पर
दर्द के आलम में दब जाती है
एक लाश बिछी रहती है बिस्तर पर,
वहसियत की चद्दर लपेटे 
नौंचता है भेड़िये बेटी की उमर की 
एक कली पिंख जाती है। 
रोज दौरे महफ़िल की आग बुझाती चंदा की तड़प किसीको नहीं छूती, भूखे भेड़िये देह की प्यास बुझाते है, ओर गुलाबबानों पैसों की।
चंदा की आत्मा मर चुकी थी, दैनिक क्रिया के तौर पर बिछ जाती, साँस लेने भर को जी रही थी कोई मोह नहीं रहा, हाँ कभी-कभी गोपाल ओर मुन्ने की याद कलेजा छील जाती थी।
इधर गोपाल मुन्ने को बहुत अच्छी परवरिश के साथ पाल रहा था, सुखदेव का कर्ज़ा भी उतार दिया ओर नया घर भी बनवा लिया, कमी थी तो बस चंदा की पर अब बाप बेटे ने अकेले जीना सीख लिया था। 
समय बह रहा था अपनी तान में इधर चंदा ने दलदल में डूबी ज़िंदगी अपना ली थी,
अब गोपाल का मुन्ना पढ़ लिखकर बड़ा हो गया था तो एक दिन गोपाल से बोला बापू अगर आप इजाज़त दे तो मैं मुंबई जाकर कुछ धंधा करना चाहता हूँ इस छोटे से गाँव में कब तक पडे रहेंगे आगे बढ़ना चाहता हूँ, गोपाल ने बोला बेटा तुझे पूरी छूट है तू ही मेरी पूंजी है तेरी खुशी में मेरी खुशी तुझे जो करना है कर
मुन्ना खुश हो गया।
गोपाल के चरण छू लिए ओर मुन्ना जिसका असली नाम चंदा ओर गोपाल ने मिलकर रखा था बिरजू अपने एक शहरी दोस्त अमन के साथ आ गया मुंबई, अमन के मामा जी का मुंबई में भूलेश्वर में कपड़े का शो रूम था तो बड़े-बड़े व्यापारीयों से जान पहचान थी बिरजू ओर अमन की भी पहचान करवा दी,  दोनों दोस्तों ने कुछ दिन मामा जी के घर पर रहकर सबकुछ सेट कर लिया, छोटा सा घर, ओर छोटी सी दुकान, 
आहिस्ता-आहिस्ता धंधा चलने लगा ओर बढ़ने भी लगा।
दोनों दोस्त खुश थे
एक दिन अमन का एक पुराना दोस्त समीर  एक रैस्टोरेंट में मिल गया, अमन ने बिरजू से जान पहचान करवा दी, समीर थोड़ा बड़े बाप का बिगड़ा हुआ बेटा था कभी कभार बीयर सिगरेट शराब के साथ कोठे ओर रेड लाइट एरिया का चक्कर भी लगा लिया करता था।
एक दिन तीनों दोस्त ने बीयर पार्टी कर ली मुन्ने ने पहली बार पी थी तो एक बोतल में ही सर घुमने लगा पर मजा आ रहा था तो थोड़ी ओर पी ली, समीर बोला चलो आज तुम दोनों को जन्नत की सैर करवाता हूँ, ओर इसी हालत में समीर दोनों को गुलाबबानों के कोठे पर ले आया, गुलाबबानों नये दो बकरे को देखकर खुश हो गई समीर से बोली बोलो कौन सा माल भेजूं समीर लगभग सबको पहचानता था, पर चंदा आज भी सबकी पहली पसंद थी उम्र की आँधी छू नहीं पाई थी हराभरा गोरा छरहरा बदन आज कल की लडकियों के मुकाबले अब भी कमसिन था, तो समीर ने बोला मौसी नये लौंडे है चंदा अनुभवी भी है ओर कम्माल भी, तो चंदा की चाँदनी ही भेज दो अगर ग्राहक बाँधने है तो।
गुलाबबानों के चेहरे पर कपटी हंसी थम गई अंदर जाकर चंदा को बोली चल आज तुझे मौका मिला है जवान छोकरे की नथ उतारने का तैयार होकर बाहर आ जा।
इधर बिरजू थोड़ा नशे में था ठीक से कुछ समझ नहीं पा रहा था की कहाँ आ गया है, क्या हो रहा है, एक छोटे से रूम में पलंग पर सर झुकाए बैठ गया ज्यादा रोशनी नहीं थी जी घबरा रहा था ओर दम घुट रहा था, इतने में एक आवाज़ ने बिरजू को चौंका दिया चल छोकरे उठ मैं बिछा दूँ अपना तन भोग ले ओर मिटा ले अपनी हवस।
बिरजू था तो नशे में पर इस आवाज़ ने उसे झकझोर कर रख दिया कैसे भूल सकता था भले 5/6 साल का था जब माँ छोड़कर गई थी, पर रूह में उतर गई थी आवाज़, सारा नशा उतर गया मन किया यहाँ से भाग जाए, चंदा को नौच ले, दुनिया को आग लगा दे, पूरे बदन में ज्वालामुखी सी आग लग गई..!
तकदीर के इस क्रूरा मजाक पर बिरजू का मन किया  फूट-फूट कर रोने को, पूरी ज़िंदगी माँ को ढूँढता रहा,तड़पता रहा वो आज किस हालत में किस रुप में कहाँ आकर मिली।
सोच कर बिरजू पागल हुआ जा रहा था ओर
किसी ग्राहक का ऐसा बर्ताव चंदा की समझ से परे था तो बोली, क्या है रे तुझे तू किसलिए आया है यहाँ चल कुछ करना नहीं है तो निकल इधर से टाइम खोटी मत कर, बिरजू का रोम-रोम जल रहा था थी तो उसकी माँ ही पर आज कुछ नहीं बताना, पूरी तरह छानबीन कर लूँ की सच में ये कौन है फिर यहाँ से छुड़ाने का बंदोबस्त करता हूँ।
बिरजू अब यहाँ एक पल भी नहीं रुक सकता था, कुछ कहे सुने बिना निकल गया ओर घर जाकर फूट-फूट कर रोने लगा।
अमन को कुछ समझ में नहीं आया की बिरजू को अचानक क्या हो गया उसने बिरजू को रो लेने दिया बिरजू के शांत होत ही अमन ने पूछा, भाई अचानक से तुझे क्या हो गया समझ सकता हूँ पहली बार ऐसी जगह आया था तो कुछ असहज महसूस कर रहा होगा, पर समीर ने इतनी पटाखा आइटम दिलवाई ओर तू बिना मौज किए घर आ गया? ओर उपर से रो दिया, बिरजू ने एक जोरदार थप्पड़ अमन के गाल पर जड़ दी खबरदार अगर उस औरत को आइटम बोलकर गाली दी तो, 
अमन का खून खौल गया ओ हैलो मिस्टर बिरजू व्हाट हैपन्ड ? एक बाजारू औरत के लिए तुमने अपने जिगरी दोस्त पर हाथ उठाया,अभी तो तुमने उसे सिर्फ़ चखा है की जनाब की ये हालत है पूरा आम खाएगा तो क्या होगा। 
बिरजू ने अमन के हाथ पकड़ लिए प्लीज़ यार अब उस औरत के लिए एक भी गंदा शब्द अपने मुँह से मत निकालना मुझसे बरदास्त नहीं होगा, वैसे तेरी गलती नहीं अब तुझे किस मुँह से क्या बताऊँ पर वादा कर तू मुझे साथ देगा उस औरत को वहाँ से छुड़ाने में। 
अमन को कुछ समझ में नहीं आ रहा था की ये बिरजू को क्या हो गया है एक रेड लाईट एरिया की बाजारू औरत के लिए एक बार मिलते ही इतनी हमदर्दी हो गई की उसे वहाँ से छुड़ाने की सोच रहा है। अमन बोला बिरजू तू पागल हो गया है गुलाबबानों जैसी चुड़ैल की चंगुल से आज तक चिड़ीया भी अपनी मर्ज़ी से उस कोठे से बाहर नहीं निकली होगी ओर तू उस चंदा को वहाँ से छुड़वाने की सोच रहा है, देखा नहीं वहाँ कैसे मुश्टंडे खड़े थे।
बिरजू के कान चमके क्या क्या बोला तू उस औरत का नाम?
अमन ने बोला चंदा क्यूँ?
बिरजू के चेहरे पर असंख्य भाव आ गए उसने अमन को बोला यार समीर की तो गुलाबबानों से अच्छी खासी जान पहचान है, उसे बोलते है की वो उस औरत को वहाँ से रिहा कर दे। 
अमन ने बिरजू को पानी पिला कर शांत किया ओर बोला पहले तू ये बता की आज अचानक तुझे उस औरत में इतनी दिलचस्पी क्यूँ है पूरी बात बता फिर सोचते है आगे क्या करना है। बिरजू ने सोचा अमन से अब क्या छुपाना ओर अगर माँ को वहाँ से छुड़वाना है तो सच बताना ही पड़ेगा..!
ओर बिरजू ने अमन को एक-एक बात बता दी, अमन का दिमाग हिल गया की किस्मत ने बिरजू के साथ कैसा खेल खेला है ओर आज किस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है।
अमन बोला यार अगर ये बात है तो मैं तेरे साथ हूँ चिंता मत कर हम कुछ भी करके तुम्हारी माँ को गुलाबबानों की जैल से रिहा कलवाएँगे।
बिरजू को आज कुछ अच्छा नहीं लग रहा था माँ यहाँ कैसे पहुँच गई, बापू ने माँ के बारे में कभी कुछ नहीं बताया हर बार पूछने पर टाल देते थे पूरी ज़िंदगी माँ के लिए तरसता रहा, क्या माँ को एक बार भी कभी मेरी याद नहीं आई होगी क्यूँ मुझे इतनी छोटी उम्र में छोड़कर इस दलदल में आ गई होगी क्या मजबूरी रही होगी।
पर अब ये सब सोचने का वक्त नहीं था, ये सब तो जब माँ बताएगी तभी पता चलेगा  बिरजू ने अमन से कहा जल्दी से समीर को फोन करके यहाँ बुला फिर कुछ सोचते है। 
अमन ने समीर को फोन किया समीर आधे घंटे में ही पहुँच गया,अमन ने सारी बातें समीर को बताई ओर पूछा की कैसे बिरजू की माँ को वहाँ से छुड़ाया जा सकता है।
समीर भी एक पल को सकता गया की ऐसा कैसे हो सकता है, चंदा बिरजू की माँ उस छोटे से गाँव से यहाँ मुंबई जैसे शहर में कैसे पहुँच गई, ओर इतने सालों बाद अब बिरजू के सामने एसी गंदी जगह पर, ये उपर वाला भी इंसान के साथ क्या-क्या खेल खेलता है।
समीर बोला यार गुलाबबानों की चंगुल से किसीको छुड़वाना वैसे तो नामुमकिन है, बड़े-बड़े गुंडे ओर पुलिस को पाल रखे है पैसों के दम पर,
पर शायद पैसों से काम बन सकता है, गुलाबबानों पैसों के पिछे पागल है बात करके देखते है शायद काम बन जाए।
ओर तीनों दोस्त चले गुलाबबानों के कोठे पर, गुलाबबानों मुँह में तंबाकू भरकर बैठे-बैठे हुक्का भी गुड़गुडा रही थी, तीनों को देखकर उसकी आँखों में चमक आ गई, सोचने लगी बकरे थैला भरकर बोटी नौचने आ गए, समीर ने गुलाबबानों के बगल में बैठकर थोड़ा मक्खन लगाने की कोशिश की..!
क्यूँ मौसी आज तो आप ही बला की खूबसूरत लग रही हो मन करता है आज आपको ही...
इतना ही सुनते ही गुलाबबानों ने समीर के कान पकड़े देख छोकरे चापलूसी गुलाबबानों के आगे नहीं चलती सीधे काम की बात कर ओर बता इस नये छोरों को गुलाबबानों की खातिरदारी पसंद आई थी की नहीं। 
समीर ने बात को पकड़ लिया अरे मौसी क्या बताऊँ ये अपना बिरजू तो आपका ओर चंदा का कायल हो गया है, बावला चंदा को हंमेशा के लिए खरीदना चाहता है बोलो, क्या बेचोगी चंदा को?
किंमत तुम्हारे मुँह से जो निकले,
गुलाबबानों की आँखें तो चमकी, पर कुछ सोचते हुए बोली तीनों  निकलो यहाँ से गुलाबबानों को बेवकूफ समझ रखा  है क्या सोने के अंडे देने वाली मुर्गी का पेट कोई कम अक्कल ही चीरना चाहेगा, अमा अभी तो चंदा के सिक्के उछलते है बाजार में, ओर कुछ साल इसकी जवानी को तोलने दो पाँच साल बाद आना तब की तब देखेंगे आज तो सिर्फ़ मौज करनी हो तो बोलो पेश कर दूँ।
तीनों के चेहरे लटक गए गुलाबबानों की बात सुनकर  समीर ने इशारा से अमन ओर बिरजू को सांत्वना दी ओर बोला चल ठीक है मौसी जैसी तेरी मर्जी मैं तो तेरे फायदे की बात करने आया था 
समीर बोला चलो यारों आज ऐश ही कर लो,पर मौसी आज भी बिरजू को चंदा ही चाहिए मैं ओर अमन थोड़ा काम से जा बाहर रहे है इस बंदे को खुश कर दो।
अमन ओर समीर बिरजू को अंगूठा दिखाकर बेस्ट आफ लक  बोलकर चले गए  गुलाबबानों ने चंदा को आवाज़ लगाई ओ री चंदा कमरा नं 3 में जा ग्राहक तेरी राह देख रहा है, बोलकर खुद सीढ़ीयाँ चढ़ती उपर चली गई।
चंदा रूम में आते ही बिरजू को देखकर सर पर हाथ रखकर बोली, ओ महात्मा काहे को पैसा ओर हमारा टाइम बर्बाद करने चले आते हो जब कुछ करना नहीं होता तो,क्या सिर्फ़ हमार दर्शन करने आते हो?
बिरजू ने चंदा का हाथ पकड़कर पास में बिठा दिया ओर बोला जी आपने सही कहा मैं आपके दर्शन करने ही आया हूँ  बोलकर चंदा के पैर छू लिए माँ आशीर्वाद दीजिए अपने बेटे को की आपको इस दलदल से निकालने मे कामयाब हो पाऊँ बोलकर चंदा के पाँव पकड़कर रोने लगा।
चंदा की समझ में कुछ नहीं आया,
चंदा बिरजू को उठाकर शांत करने की कोशिश करने लगी ओर बोली देखो भै आपकी बातों का मतलब मेरी समझ नहीं आ रहा, पिछली बार भी आपका बर्ताव मेरी समझ से परे था आज तक आपके जैसा इंसान यहाँ नहीं आया, जो भी आए भेड़िये जैसे नौचने वाले आए ठीक से कुछ बताओं तो समझ में आए की आप क्या चाहते हो।
बिरजू थोड़ा शांत हुआ ओर बोला माँ मैं तो इतने सालों बाद भी आपको पहचान गया सिर्फ़ आपकी आवाज़ से, जब आप छोड़कर गई तब पाँच छह साल का था फिर भी आपकी आवाज़ मेरे जहन में बसी है आपने कैसे अपने मुन्ने को नहीं पहचाना।
चंदा फटी आँखों से बिरजू को देखती रही
बिखर गया चंदा का धैर्य ...
टकटकी बांधे चौंधीयाइ आंखों से बिरजू को देखकर आँखों से सावन भादों बरसने लगे ...
कुछ दर्द  , कुछ क्षोभ , कुछ लज्जा ...
कुछ पीड़ा , कुछ अपमान ...
कुछ ज्यादा बेबसी ...
और ढ़ेर सारे दु:ख में भी चार आँसू खुशियों के बरस पड़े।
बिरजू को शिद्दत से गले लगा लिया मेरा मुन्ना मेरा राजा तू इधर ? इतना बड़ा हो गया है तू, पहले मुझे किस्मत पे विश्वास करने दे, खुद के हाथ पर चीमटा काटकर मिश्र भाव से रोने लगी, बचवा हो सके तो अपनी माँ को माफ़ कर दे
वैसे मेरी गलती माफ़ी के लायक तो नहीं पर शायद भगवान को मुझ पर दया आ गई है जो तुझे यहाँ भेजा, इसलिए की अपने पापों का प्रायश्चित कर सकूँ, जो ज़िंदगी बची है उतनी अच्छे कामों में बिताऊ।
ओ मुन्ने इ बता तोहार बापू कैसा है?उस भले आदमी को बहुत दु:ख दिये है मैंने, क्या बहुत नफ़रत करते है मुझसे..!
बिरजू ने बोला माँ बापू एकदम ठीक-ठाक है, आपके सारे सवालों के जवाब मैं बाद मैं दूँगा पहले हमें ये सोचना है की आपको यहाँ से छुड़ाऊं कैसे पैसों की लालच में गुलाबबानों नहीं फंसी, क्या आप जानती है उनकी कोई ओर कमजोरी या ओर कोई रास्ता?
चंदा बोली बेटे मैं कोई रास्ता जानती होती तो कब की इस नर्क से छुटकारा पा चुकी होती ये जैल से भी बदतर  कारावास है यहाँ जो एक बार आता है वो अर्थी पर ही लौटता है।
फिर भी माँ बेटा मिलकर कुछ सोचते है, ज्यादा देर हो गई तो गुलाबबानों ने दरवाजे पर छड़ी से फ़टकार लगाई,ओ छोरे जल्दी निकल इतने फदिये में सुहागरात ही मनाएगा क्या। 
बिरजू चंदा को ये बोलकर निकल गया की एक दो दिन में कुछ जुगाड़ करके जल्दी वापस आता हूँ अपना खयाल रखना, 
चंदा आज इतनी खुश थी की पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे।
गुलाबबानों ने कुछ अजीब नज़रों से देखा तो चंदा हिचकिचा कर अंदर चली गई,
अमन  बिरजू ओर समीर ने बहुत दिमाग लगाया पर कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था गुलाबबानों ने मुश्टंडे पाल रखे थे जो 24 घंटे कोठे की निगरानी करते तैनात थे चोरी छुपे भी चंदा को नहीं निकाल सकते थे, 
अमन ने कहा
चलो जाकर मुआयना करते है शायद कोई सुराग मिल जाए।
तीनों कोठे पर पहुंचे तो देखा की गुलाबबानों एक लड़की को धक्के मारकर कोठे से निकाल रही थी, चल निकल एक बिमार मछली पूरे तालाब को गंदा करती है तेरा ये गुप्त रोग मेरे कोठे को दीमक की तरह खा जाएगा कहीं ओर जाके इलाज करवा..! 
लड़की रो रही थी मौसी में कहाँ जाऊँगी इस दुनिया में मेरा कोई नहीं, मैं एक कोने में पड़ी रहूँगी मत निकालो मुझे यहाँ से,
अमन का दिमाग राजधानी एक्सप्रेस की तरह दौडने लगा चंदा को छुड़ाने का रास्ता मिल गया।
गुलाबबानों लड़की के साथ बहस करने में व्यस्त थी उतनी देर में अमन ने बिरजू को क्या करना है वो समझा दिया,
आख़िर कार उस लड़की को गुलाबबानों ने धक्के मारकर निकाल दिया।
ओर बिरजू की तरफ़ देखकर बोली ओ छोरे तू तो चंदा की जान के पीछे ही पड़ गया, चल अब तेरी फीस डबल करनी पड़ेगी निकाल पैसे भेजती हूँ तेरे माल को, बोलकर चंदा को आवाज़ लगाई ओ री चंदा आजा तेरा आशिक आया है।
चंदा दौड़ती आई ओर बिरजू को कमरे में आने का इशारा करके दोनों आ गए कमरे में,
बिरजू ने चंदा को बोला माँ जो मैं कहूँ ध्यान से सुनो, अभी हमने गुलाबबानों को एक लड़की को गुप्त रोग की वजह से यहाँ से निकालते हुए देखा है..! आपको करना ये है की कुछ दिन भूखा रहना है, जब खाये बिना तुम अशक्त हो जाओगी तो ड़ाक्टर को दिखाना पड़ेगा, वैसे यहाँ कोई बीमार होता है तो कौनसा डाॅ. आता है बताइये? 
चंदा ने कहा कोई राकेश शर्मा करके है वही यहाँ आकर देखते है ओर दवाई देते है, कोई टेस्ट भी करवाना हो तो उनके ही क्लिनिक में ही होता है।
बिरजू ने कहा ठीक है माँ हम डाक्टर को समझा देंगे की आपकी कमजोरी के लिए कुछ टेस्ट करवाने पड़ेंगे बोलकर  आपको भी गुप्त रोग की पेशन्ट ज़ाहिर कर दे, फिर गुलाबबानों आपको भी एक दिन भी यहाँ नहीं रखेंगे ये तय है, तो समझ गई ना तीन दिन बाद आपको बेहोश होना है।
चंदा समझ गई बोली बेटा अन्न तो क्या पानी की बूंद तक नहीं डालूँगी मुँह में अब तो इस नर्क से ऊब चुकी हूँ, खुले आसमान को देखें ज़माना हो गया इस कालकोठरी से आज़ाद होना चाहती हूँ, बहुत भुगत चुकी अपने कर्मों की सज़ा तेरे बापू के पैर पकड़ कर माफ़ी मांगना चाहती हूँ, ओर उस देवता के चरणों में रहकर बाकी की ज़िंदगी उसकी सेवा में गुजारने चाहती हूँ।
ठीक है अब तुम जाओ आज से तीसरे दिन आना मैं इंतज़ार करुँगी।
दो दिन से चंदा ने कुछ भी खाया पिया नहीं था, तीसरे दिन बहुत कमजोरी लग रही थी ओर चंदा ने बगल में प्याज छुपाकर शरीर का तापमान भी बढ़ाया लिया था, इतने में चंदा का एक आशिक आया तो गुलाबबानों ने आवाज़ लगाई ओ री चंदा चल कमरा नं 4 में पहुँच जा पर चंदा मानों बेहोशी की हालत में पड़ी रही तो गुलाबबानों चंदा के रूम में चिल्लाती हुई आई, क्यूँ री सुनाई नहीं देता कब से चिल्ला रही हूँ चल उठ महारानी अब तक सोई पड़ी है..!
फिर भी चंदा की ओर से कोई हलचल नहीं हुई तो गुलाबबानों ने चंदा को हिलाया पर चंदा को बेहोश देखकर कलवे को आवाज़ लगाई ओ कलवा जल्दी से डाॅक्टर बाबू को फोन लगा चंदा को कुछ हो गया है।
डाक्टर राकेश इंतज़ार ही कर रहे थे, अमन ओर बिरजू ने 2 लाख में डाक्टर से सौदा कर लिया था नकली रिपोर्ट बनवाने के लिए। 
डाक्टर राकेश ने चंदा को अच्छी तरह से जाँच किया फिर बोला मौसी मुझे शंका है शायद चंदा को वोही वाली बिमारी है जो आमतौर पर कोठेवालीयों को होती है, तो कुछ टेस्ट करवाने पड़ेंगे मेरा कंपाउंडर ब्लड लेने आएगा शाम को फिर कल रिपोर्ट आने के बाद हकिकत पता चलेगी तब तक चंदा को आराम करने दीजिए। 
गुलाबबानों डाक्टर की बात सुनते ही दो कदम पीछे हटकर बोली या अल्लाह अब इसे भी इस बिमारी लग गई पता नहीं मेरे कोठे को किसकी नज़र लग गई ओ कलवा कल मौलवी साहब को ले आना थोड़ा झाड़ फूँक करवा लूँ।
दूसरे दिन डाक्टर चंदा की रिपोर्ट लेकर आया ओर गुलाबबानों को दिखाकर बोला मौसी जो शक था वही निकला, चंदा को गुप्त रोग है, हालत बहुत नाजुक है अस्पताल में भर्ती करना होगा वरना यहाँ सबको ये रोग फैल सकता है। 
गुलाबबानों ने डाक्टर से बिना कोई बात किए सीधा समीर को फोन लगाया ओ छोकरे उस दिन तू बोल रहा था ना की तेरा दोस्त अरे वो नया लौंड़ा चंदा को खरीदना चाहता है चल लेजा मुफ़्त में दिया, जल्दी से आके लेजा।
समीर ने तुरंत अमन ओर बिरजू को फोन करके बोला जल्दी से दोनों गुलाबबानों के कोठे पर आ जाओ हमारा मिशन  सफ़ल हुआ है,  डाक्टर ने बिरजू की माँ की गलत रिपोर्ट गुलाबबानों को दिखा दी है गुलाबबानों बौखला गई है अभी फोन आया था की जल्दी से चंदा को यहाँ से ले जाओ।
बिरजू की खुशी का ठिकाना न रहा, अमन ने बिरजू को बधाई दी ओर दोनों निकल पड़े गुलाबबानों के कोठे पर जाने के लिए।
वहाँ पहुँचते ही देखा गुलाबबानों हाय तौबा मचा रही थी ओर कोस रही थी खुद के नसीब को, अमन ओर बिरजू को देखते ही बोली अरे अच्छा हुआ आ गए तुम लो भई ले जाओ अपनी छमीया को यहाँ से, इस बिमारी ने मेरी नाक में दम कर रखा है जो करना है करो इसका बाबा यहाँ से ले जाओ। 
बिरजू ने हाथ पकड़ कर चंदा को उठाया चलिए आप मेरे साथ, चंदा को कमजोरी में भी हिम्मत आ गई झट से खड़ी हो गई बिरजू का काँधा पकड़ कर, ओर गुलाबबानों की तरफ़ एक नफ़रत भरी नज़र डालकर इतना ही बोली, तेरे जैसी औरत धरती पर बोझ है, कलंक है अब भी समय है हो सके तो इस कोठे को अनाथ आश्रम बनाकर पिछडी हुई बेटियों को सहारा देकर उनकी ज़िंदगी सँवारने में मदद करो 
[8/2/2021, 7:37 pm] Bhavna Thaker: "ज़िंदगी के रंग कई रे" (अनुसंधान)

और चंदा बिरजू के साथ चल दी अपनी छोटी सी प्यारी सी दुनिया में वापस आज़ादी की साँस लेने।
बिरजूने माँ के चरण छुएं और घर ले आया। सालों बाद चंदा ने बाहर की दुनिया में कदम रखा था तो आँखें भर आई। अमन ने आज बिरजू को अपनी माँ के साथ अकेला छोड़ दिया दोनों माँ बेटा घंटो बातें करते रहे, और बिरजू ने अमन के साथ मिलकर एक प्लान बनाया वो अपने पिता गोपाल को सरप्राइज़ देना चाहता था, एक गरीब, बेबस, लाचार बाप को सालों से बिछड़ी हुई पत्नी का तोहफा देकर। अमन ने गोपाल को फोन करके मुंबई बुलाया ये कहकर की बिरजू की तबियत ठीक नहीं तो जल्दी आ जाए। बिरजू की तबियत खराब है सुनकर गोपाल भागा दौडा मुंबई जाने के लिए निकल पड़ा। बिरजू ने चंदा को बोला माँ में बापू को लेने स्टेशन जा रहा हूँ एक सरप्राइज़ तो वहीं मिल जाएगी मुझे देखकर दूसरी जब बापू और मैं घर आए तो आप छुप जाना और चुपके से पानी लेकर आना। चंदा ने कहा ठीक है वो भी अपने बिछड़े हुए नरम दिल और सहनशीलता की मूरत समान पति से मिलने बेकरार थी। 
बिरजू स्टेशन चला गया, चंदा आज फिर से सालों बाद साज शृंगार करके सज-धज कर तैयार हुई गोपाल से मिलने, गोपाल की ट्रेन आ गई जैसे ही गोपाल ट्रेन से उतरा बिरजू सामने आ खड़ा हुआ तो गोपाल सन्न रह गया, अरे बचवा तू तो ठिकठाक है फिर मुझे अचानक झूठी ख़बर देकर क्यूँ बुलाया। 
अरे बापू आपकी बड़ी याद आ रही थी ऐसे ही बुलाता तो आप अपने गाँव और खेत को छोड़कर थोड़ी आते। अब आपको कहीं नहीं जाने दूँगा बहुत काम कर लिया अब आराम से अपने बेटे के राज में हंसी खुशी ज़िंदगी बिताईये अब तो मेरा धंधा भी बढिया चलने लगा है।
गोपाल बिरजू की बातों से खुश होकर बोला बेटा काश तेरी माँ भी साथ होती तो तेरी तरक्की देखकर बहुत खुश होती, और दोनों बाप बेटे की आँखें नम हो गई। 
इतने में घर आ गया गोपाल को सोफ़े पर बिठाकर बिरजू अंदर आया माँ को तैयार देखकर खुश हुआ ओर बोला, माँ चलो आज सालों बाद मैं अपने माँ-बाप को एक साथ देखना चाहता हूँ।
चंदा एक धड़क चुक गई कैसे सामना कर पाएगी गोपाल का, कितने दु:ख दिये है मैंने उस भले आदमी को क्या मुझे माफ़ कर पाएँगे बिरजू के बापू, मन में अनगिनत सवालों के साथ चंदा धीरे से बाहर आई पानी का प्याला गोपाल को देकर बोली कैसे हो आप।
गोपाल के हाथ से प्याला छूट गया सालों बाद चंदा की आवाज़ एक अनजाने अकल्प्य मोड़ पर सुनकर, आँखें फ़ाड़कर देखता ही रहा शब्द हलक में ही अटक गए चंदा त त तुम यहाँ कैसे...कि बिरजू बाहर आकर बोला बापू सबकुछ बताता हूँ पहले ये बताईये कैसा लगा मेरा सरप्राइज़ ? गोपाल तो अपना परिवार पूरा पाकर खुशी से कुछ बोल ही नहीं पा रहा था। चंदा गोपाल के पाँव पकड़ कर रोते हुए माफ़ी मांगती रही गोपाल की आँखों से आँसूओं का सैलाब बहने लगा चंदा को उठाकर गले लगा लिया, कुछ देर सालों के बिछड़े तीनों आँसुओं के दरिया में नहाते मिलन का जश्न मनाते रहे। 
मन हल्का होते ही खैर खबर पूछकर अपनी-अपनी दास्ताँ कहते रहे। चंदा को विश्वास नहीं हो रहा था की वापस उसने अपने परिवार को पा लिया है, बार-बार कान्हा जी का शुक्रिया अदा कर रही थी। 
हाँ इत्तेफाक भी होते रहते है ज़िंदगी में ज़िंदगी के खेल निराले है। आज एक बिछड़े परिवार को कसौटी की कगार से खिंच निकाल कर वापस खुशहाली की क्षितिज पर बिठा दिया था ज़िंदगी ने, तभी तो कहते है "ज़िंदगी के रंग कई रे"
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु
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रचनाएँ
ज़िंदगी के रंग कई रे
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कभी-कभी इंसान अपेक्षाओं के पीछे भागते तमस की गर्ता में चले जाते है जहाँ से उभरना नामुमकिन होता है किसीकी किस्मत अच्छी होती है जिसे ईश्वर कृपा से कोई उस दलदल से बाहर निकालने में मदद करता है। ऐसी ही एक लालायित औरत की कहानी है 'ज़िंदगी के रंग कई रे'
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ज़िंदगी के रंग कई रे

8 मार्च 2022
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"ज़िंदगी के रंग कई रे" (भाग 1)धवल उजियारे आसमान में कहीं कोई मेघसभर बादल की परछाई भी नज़र नहीं आ रही चंदा ने चिंतित होकर गोपाल से पूछा।गोपाल क्या होगा इस साल हमारा बारिश के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे, प

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ज़िंदगी के रंग कई रे

8 मार्च 2022
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"ज़िंदगी के रंग कई रे" (भाग 1)धवल उजियारे आसमान में कहीं कोई मेघसभर बादल की परछाई भी नज़र नहीं आ रही चंदा ने चिंतित होकर गोपाल से पूछा।गोपाल क्या होगा इस साल हमारा बारिश के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे, प

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"ज़िंदगी के रंग कई रे" धवल उजियारे आसमान में कहीं कोई मेघसभर बादल की परछाई भी नज़र नहीं आ रही चंदा ने चिंतित होकर गोपाल से पूछा।गोपाल क्या होगा इस साल हमारा बारिश के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे, पूर

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