... जाहिर है, यह भाजपा के 'कांग्रेस मुक्त' नारे की तर्ज पर ही है, किन्तु दोनों में मूल अंतर क्या है, इस बात को नीतीश कुमार बखूबी समझते होंगे. सवाल यह भी है कि क्या देश के कुछ फीसदी युवा भी नीतीश के इस सपने से ऐतबार रखते हैं? जाहिर है, इस मामले में हवाई किले बनाने से सिर्फ अपना समय नुक्सान करने के अतिरिक्त और क्या हासिल हो सकता है भला! वैसे भी, बिहार में एक लम्बे समय तक नीतीश राज कर चुके हैं, कुछ बदलाव भी आये हैं वहां, किन्तु क्या वाकई नीतीश इन बदलावों से 'संतुष्ट' हैं? क्या वाकई, वहाँ के लोगों को रोजी-रोजगार की समस्याओं से निजात मिल गयी है अथवा मिलने की सम्भावना जग रही है? काश, नीतीश कोई 'शिगूफा' छोड़ने से पहले इन बातों को ध्यान में रख लेते! हालाँकि, महागठबंधन का प्रयोग बिहार में सफल रहा है और इसके नायक रहे नीतीश कुमार तीसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री का ताज खुद के माथे पर सजाने में सफल रहे हैं, किन्तु क्या इतने भर से ही राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा की उड़ान भरी जा सकती है? यदि हाँ, तो फिर दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल क्यों नहीं? तो फिर तमिलनाडु की मुख्य्मंत्री जयललिता क्यों नहीं? पश्चिम बंगाल की ममता क्यों नहीं? माया, मुलायम क्यों नहीं? ...
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