अकेले ही आया था वह इस धरा पर,जाएगा भी अकेले ही इस धरा से;
सबसे पहले मां साथ आयी,फिर पिता ने हाथ पकड़ा,और बाद में जुड़ गया परिवार से।
थोड़ा बड़ा हुआ आसपड़ोस का हुआ सामना,कभी इस घर तो कभी उस घर खेलने लगा ;
और बड़ा होने पर स्कूल में प्रवेश के साथ ही, हुआ सामाजिकता से साक्षात्कार;
कॉलेज आ नए साथियों के साथ समय गुजरने लगा, छुुुुटनेे लगा अब परिवार।
ज़िन्दगी में एक नयी पहेली सामने आई,धीरे धीरे दोस्तों का कम होने लगा याराना;
अब गुजरने लगा समय उस खास के साथ,अब तो बस उसे पसंद आने लगा उसका मुस्कुराना।
नौकरी और शादी के बाद बन गयी दूरियां, मित्रों और परिवार तो रह गए वार त्योहार के;
बच्चों के आते ही हुआ जिम्मेदारी का अहसास, कर्तव्य पालन में लगाऑफिस,बीबी और बच्चों के।
बच्चो के नौकरी और शादी के बाद,फिर हम याद आने लगे उनको वार त्योहार पे;
सेवानिवृत्ति के पश्चात वह और उसकी खास,दोनों रह गए इधर से उधर और उधर से इधर के।
एक दिन हुआ वज्रपात ,छोड़ गयी उसकी वह खास सखी उसका सच्चा साथ;
रह गया फिर वो अकेला ,लड़खड़ाते कदमों को साधते साधते देता रहा जिंदगी का साथ।
जीवन का मर्म समझ चुका था वह,अकेले ही आया था ;
जाना भी अकेले ही है उसे इस धरा से,
कुछ समय गुजार बीते दिनों को कर याद,एक दिन धीरे से हो गया अलविदा अकेले ही इस दुनिया से।