नई दिल्लीः तीन साल पहले की बात है। स्थान- मुजफ्फरनगर का कव्वाल। छेड़खानी को लेकर मामूली सी कहासुनी में पहले एक युवक मारा गया बाद में हिंसक प्रतिक्रिया में दो युवकों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। देखते ही देखते मुजफ्फरनगर ही नहीं आसपास के सहारनपुर, बागपत जिले भी जाट-मुस्लिम दंगे की आग में जलने लगे। ठीक ऐसी ही घटना रविवार की रात दीवाली पर अलीगढ़ के कौड़ियागंज में हुई। यहां भी स्पांटेनियस क्राइम(अनायास) हुआ। मामूली कहासनी में संप्रदाय विशेष के दो युवकों की हत्या हुई तो अलीगढ़ भी कव्वाल की राह पर चल पड़ा। मगर प्रशासन के सख्त एक्शन ने अलीगढ़ को मुजफ्फरनगर होने से बचा लिया। अलीगढ़ के व्यापार ी सुरेश प्रसाद कहते हैं कि पहली बार हमने प्रशासन को इतना टाइट पाया। नहीं तो क्या हश्र होता है आप तो जानते ही हैं।...। सवाल उठता है आखिर अलीगढ़ मुजफ्फरनगर होते-होते कैसे बच गया। दरअसल मुजफ्फरनगर की तरह अलीगढ़ में प्रशासन के हाथ-पांव न मुख्यमंत्री ने बांधे या उनके किसी मंत्री या शासन के आला अफसरों ने। डीएम और एसएसपी स्वविवेक से फैसले लेने के लिए स्वतंत्र रहे। नतीजा रहा कि मुजफ्फरनगर की घटना अलीगढ़ में नहीं दोहराई जा सकी।
लग रहा कि अब अखिलेश का ही हुक्म चल रहा सूबे में
कहा जा रहा है कि पहले यूपी में चार-चार मुख्यमंत्री होते थे। अखिलेश के अलावा मुलायम, शिवपाल, रामगोपाल और आजम भी समानांतर सरकार चलाते थे। मगर पिछले कुछ समय से मुलायम कुनबे में मचे बवाल के बीच अखिलेश ने जिस तरह से फैसले लिए, उससे अब चार सीएम का टैग सरकार के माथे से हटने लगा है। अखिलेश के स्वतंत्र होकर फैसले लेने का असर दिखने लगा है। इसका नमूना अलीगढ़ की घटना रही। सूत्र बताते हैं कि पहले एक ही मामले में कई स्तर से फोन पहुंचने पर प्रशासन भी असमंजस में पड़ता था कि किसकी बात मानें किसकी नहीं।
प्रशासन को एक्शन लेने की रही पूरी छूट
जब दीवाली पर अलीगढ़ के कौड़ियागंज में फायरिंग के बाद भीड़ ने दो युवकों को मारा तो सांप्रदायिक खून-खराबे की स्थिति पैदा हो गई। रात में ही भागते-भागते डीएम राजमणि यादव और एसएसपी राजेश पांडेय कई थानों की फोर्स के साथ पहुंचे। उन्होंने पहले शासन को खबर दी। शासन के आला अफसरों ने सीएम अखिलेश को सूचना दी। सीएम की ओर से निडर और स्वतंत्र होकर बवाल की चिंगारी को किसी भी कीमत पर बुझाने का निर्देश दिया गया। मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव गृह और डीजीपी की ओर से पूरी छूट मिलते ही डीएम और एसएसपी ने तय कर लिया क्या करना है। सारे बवाली चिह्नित कर उन्हें हड़का दिया गया कि जरा सा बवाल होने पर तुरंत अंदर कर दिया जाएगा। पूरे कौड़ियागंज कस्बे में भारी पुलिस फोर्स के साथ डीएम-एसपी ने फ्लैगमार्च किया। ताकि अराजक तत्वों में जहां दहशत फैले वहीं आम जनता भारी फोर्स देख कर सुरक्षा को लेकर निश्चिंत हो जाए। पूरी रात दोनों अफसर कौड़ियागंज में डेरा डाले रहे। नतीजा रहा कि चाहकर भी दंगाई दंगा नापक इरादों को अंजाम नहीं दे पाए और अलीगढ़ के दामन पर दंगे का दाग नहीं लग सका। कौड़ियागंज के अशफाक कहते हैं कि कुछ लोगो जिले को हिंसा की आग में झोंकना चाहते हैं। मगर प्रशासन की भूमिका पारदर्शी रही, जिससे नफरत की आग में जिला नहीं जला।
मुजफ्फरनगर दंगा भड़का थे क्योंकि डीएम-एसएसपी नहीं ऊपर से हो रहा था फैसला
अब मुजफ्फरनगर के दंगे की कहानी सुनिए। 27 अगस्त को जाट परिवार की लड़की से छेड़खानी के बाद अल्पसंख्यक युवक की हत्या हो गई। जवाब में अल्पसंख्यक भीड़ ने लड़की के भाई सचिन और गौरव की हत्या कर दी। तत्कालीन एसएसपी मंजिल सैनी व डीएम सुरेंद्र सिंह के निर्देश पर आठ अराजक तत्व गिरफ्तार किए गए। इस बीच दोनों अफसरों का तबादला हो गया। जिससे एक संप्रदाय के लोगों के दिमाग में बात गई कि दूसरे समुदाय के लोगों को बचाया जा रहा है। नतीजा भीड़ का आक्रोश बढ़ गया। शासन के हस्तक्षेप के कारण आरोपियों को छोड़ जाने से लोगों का गुस्सा बढ़ गया। इस बीच पाकिस्तान में दो युवकों की हत्या का एक वीडियो शरारती तत्वों ने वायरल कर दिया। जिससे मामला चरम पर पहुंच गया। भारतीय इंटर कॉलेज नंगला मंडौर में सात सितंबर को महापंचायत रोकने में प्रशासन विफल रहा। वहीं पंचायत से लौट रहे लोगों पर बांसी कला में हमला हो गया। उस समय आरोप लगा कि रसूखदार मंत्री के इशारे पर डीएम और एसएसपी स्ववविवेक से निर्णय नहीं ले पाए। जिससे मामूली कहासुनी से निकली चिंगारी शोला बन गई। 27 अगस्त से शुरू हुई हिंसा सात सितंबर तक जारी रही। इस दंगे में कुल 43 लोगों को जान गंवानी पड़ी।
दंगा रोकने के लिए अलीगढ़ से शासन को मिला फार्मूला
शासन के एक बड़े अफसर इंडिया संवाद से बातचीत में कहते हैं कि यूपी में छोटी घटनाएं कई बार बड़े बवाल का सबब बन चुकी हैं। हर बार लाख प्रयास के बाद भी बवाल नहीं टल पाते। मगर अलीगढ़ में प्रशासन ने जिस तरह से रोल अदा किया, उससे शासन को दंगों को रोकने का बड़ा फार्मूला मिल गया है। यह फार्मूला है कि जिलों के डीएम और एसपी को सख्त एक्शन लेने की पूरी छूट दी जाए।अगर प्रशासन सही कदम उठा रहा हो तो उसमें किसी तरह का रोड़ा न पैदा किया जाए। संप्रदाय कोई भी हो, कार्रवाई में किसी के साथ भेदभाव न किया जाए। तब जाकर किसी भी जिले में दंगे रोके जा सकते हैं।