धर्मेन्द्र सक्सेना लखनऊ। गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज स्थित अस्पताल में 30 बच्चों की मौत को लेकर कोहराम मचा हुआ है। जाहिर है दुख की घड़ी बहुत बड़ी है जिन माताओं की गोद उजड़ी है उसकी भरपाई करना नामुमकिन है क्योंकि मुआवजा सब कुछ कर सकता है लेकिन जिन्दगी वापस नहीं ला सकता। लेकिन यहां बात यह भी ध्यान देने योग्य है कि आखिर मुख्यमंत्री के जनपद स्थित मेडिकल कॉलेज में स्थिति यह कैसे बन गयी कि ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कम्पनी का 70 लाख रुपये बकाया हो गया। आखिर इसका जिम्मेदार कौन है? सरकार की सोच को अंजाम देने का उत्तरदायित्व तो नौकरशाही पर ही है तो क्यों नहीं इस बकाये की गम्भीरता को समझा गया। आखिर क्या मजबूरी थी कि भुगतान नहीं किया गया, किस स्तर पर भुगतान की फाइल रुकी हुई थी और उसका कारण क्या था और क्या वह कारण मासूमों की जिन्दगी से ज्यादा मूल्यवान था?
एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री के दौरे के समय उन्हें क्यों नहीं बताया गया ?
देखने और समझने वाली बात यह है कि आखिर कौन लोग हैं जो सरकार की मंशा के विपरीत काम कर हर बात में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार को फेल साबित करना चाहते हैं। जब योगी आदित्यनाथ मात्र कुछ घंटे पूर्व ही मेडिकल कॉलेज का दौरा करने गये थे तो अगर शासन स्तर पर बकाये भुगतान को लेकर दिक्कत थी तो इस बारे में मुख्यमंत्री की सं ज्ञान में क्यों नहीं लाया गया। क्या जिम्मेदार अधिकारी यह नहीं समझ रहे थे कि ऑक्सीजन जीवन है और अगर इसकी सप्लाई ठप हुई तो इसके परिणाम भयावह होंगे। यह बात दीगर है कि शुरुआती पड़ताल में बताया जा रहा है कि मौतों की वजह ऑक्सीजन की कमी नहीं हैं वहां सिलिंडर मौजूद थे। लेकिन सवाल यह है कि जब व्यवस्था पाइप लाइन से सप्लाई की है तो ऐसी नौबत क्यों आयी कि सिलिंडर पर निर्भर होना पड़ा, इसका अर्थ है कि कहीं न कहीं तो लापरवाही हुई है। फिलहाल तो सरकार द्वारा मैजिस्टीरियल जांच की घोषणा की गयी है जो 24 घंटे में अपनी रिपोर्ट देगी, देखना होगा कि उसमें क्या वजह बतायी जाती है। कल रात 3 ओर बच्चो की मौत से अबतक मरने वाले बच्चो की संख्या 33 हो गई है I दैनिक जागरण समाचार के अनुसार आक्सीज़न की कमी से 48 मरीजों की, अबतक मौत हो चुकी है I
सरकार की मंशा के विपरीत काम करने का एक और उदाहरण है और वह भी गरीब जनता और उसके जीवन से जुड़ा है वह है राजधानी लखनऊ सहित पूरे उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में दवा का संकट होना। अगर सरकार द्वारा निर्धारित की गयी व्यवस्था को ही आधार मान लिया जाये तो नयी व्यवस्था के तहत बीती 1 जून से दवाओं की खरीद के लिए एक नया सॉफ्टवेयर तैयार किया गया है जिसमें पूर्व में मिलने वाली 4000 दवाओं को घटाकर 1000 कर दिया गया। इन दवाओं में जीवन रक्षक दवाएं भी शामिल हैं। स्थिति यह बनी कि इन 1000 दवाओं में भी लोड करते समय 514 दवाओं के नाम लोड किये गये थे आखिर क्यों? इसके चलते जब लगभग तीन माह तक मरीजों को दवाओं के अभाव का सामना करना पड़ा। इस दौरान जब ज्यादा हो हल्ला हुआ तब जाकर एक दिन पूर्व यह आदेश हुआ है कि जो दवाएं लिस्ट में नहीं हैं उन्हें मैनुअली लिस्ट में बढ़ाकर ईएसआई के निर्धारित रेट से अस्पताल खरीद सकते हैं। अब सवाल यह है कि आखिर सरकार की मंशा के विपरीत अधिकारियों ने दवाओं की आपूर्ति क्यों बाधित की?
राज्य की व्यवस्था अगर गड़बड़ाती है तो उसकी सीधी जिम्मेदारी सरकार की मानी जाती है लेकिन सरकार के हाथ-पैर तो सरकारी महकमे के वे लोग हैं जो सरकार की सोच को यथार्थ में उतारते हैं ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि मुफ्त की बदनामी न सरकार झेले और न ही कर्मठ अफसर। और ऐसा तभी होगा जब सरकार इस बात को सुनिश्चित करने का प्रयास करेगी कि आखिर सत्ता की नाव में छेद कौन कर रहा है जिससे बदनामी का पानी भरने से नाव को बचाया जा सके।