जीतेन्द्र भी एक्टिंग का कोई स्कूल हो सकते हैं ये बात तमाम लोगों को अजीब लग सकती है लेकिन अक्षय कुमार को मैं जीतेन्द्र स्कूल का एक्टर मानता हूँ. इसके अलावा अक्षय 'भारत कुमार' वाली छवि और पहचान का विस्तार भी हैं , जो मनोज कुमार, धर्मेंद्र, सनी देओल, आमिर खान से होते हुए फिलहाल उनसे जुड़ गयी है.
जीतेंद्र वी शांताराम जैसे दिग्गज की सार्थक गंभीर फिल्मों से अपना सफर शुरू करके बाद में जंपिंग जैक बने , गुलज़ार ने उन्हें परदे पर अपना लुक और लिबास देकर गंभीर छवि और अभिनय की तरफ खींचने की कोशिश की लेकिन उनका स्टारडम चरम पर पहुंचा साउथ के बैनर्स की फिल्मों , श्रीदेवी जयाप्रदा के साथ तोहफा तोहफा जैसे डांस, कादर खान के दोहरे संवादों वाली मकसद जैसी फिल्मों और हातिमताई जैसी अरेबियन नाइट्स टाइप ड्रामा फिल्मों के ज़रिये. अपने तमाम समकालीनों अमिताभ बच्चन, संजीव कुमार , धर्मेंद्र , शत्रुघ्न सिन्हा , विनोद खन्ना वगैरह की तुलना में सीमित क्षमता के बावजूद वो ज़बरदस्त लोकप्रिय रहे और एक खास तरह की फिल्मों के लिए सफलता की गारंटी भी रहे. अमिताभ बच्चन की फिल्में जब सिल्वर और गोल्डन जुबली मनाती थीं, तब भी जीतेन्द्र की फिल्में 14 -15 हफ्ते खींच लेती थीं. मुझे याद है अमिताभ बच्चन और दिलीप कुमार की शानदार फिल्म शक्ति लखनऊ में नोवेल्टी से जल्दी उतर गयी थी लेकिन बसंत सिनेमा में बाप-बेटे के टकराव की उसी थीम पर बनी जीतेन्द्र की डबल रोल वाली फिल्म फ़र्ज़ और कानून ने अच्छी कमाई की थी. जीतेन्द्र के साथ अच्छी बात ये रही कि कामयाबी के बावजूद उन्होंने भी खुद को कभी आला दर्जे का अभिनेता नहीं माना.
अक्षय कुमार उनकी तुलना में भाग्यशाली हैं कि उनके दौर में सिनेमा में विविधता का मौका ज़्यादा है. इसीलिए अक्षय कुमार सौगंध के बाद खिलाडी सीरीज की एक्शन फिल्मों से होते हुए हीरो के साथ साथ अफलातून और अजनबी में खलनायक की भूमिकाओं में भी हाथ आज़मा सके और सराहे गए. कॉमेडी में हाथ आज़माया और प्रियदर्शन के साथ मिलकर बॉक्स ऑफिस पर ऐसी 'हेराफेरी' की कि सुपरहिट फिल्मों की झड़ी लग गयी.
शाहरुख़ खान की बादशाहत, सलमान की छप्परफाड़ लोकप्रियता और आमिर की अदाकारी के जौहर के आगे टिके रहकर अपनी अलग पहचान बनाना आसान नहीं था . इसके लिए उन्होंने काफी मेहनत की है जो दिखती है. अक्षय ने लगातार अपने काम में सुधार भी किया है और छवि तोड़ने की कोशिश भी. मसाला सिनेमा के खांचे में 'ये दिल्लगी' को उनकी और सैफ अली खान दोनों की अभिनय यात्रा का एक दिलचस्प मोड़ माना जा सकता है. एक दौर में इन दोनों को अमिताभ बच्चन और शशि कपूर की जोड़ी की तरह देखा जाने लगा था. बाद में थोड़े दिन सुनील शेट्टी के साथ जोड़ी बनी और फिर परेश रावल के साथ और अब अनुपम खेर के साथ उनका ग़ज़ब का तालमेल दिखता है . कटरीना कैफ के करियर को बनाने बचने में अक्षय का योगदान सलमान से किसी तरह कम नहीं है. गिनने को कई फ़िल्में हैं लेकिन विविधता की खातिर खिलाडी, मोहरा , संघर्ष, खाकी , स्पेशल 26 , एयरलिफ्ट, हेराफेरी, ऑंखें, फैमिली, खट्टा मीठा, ओ माई गॉड, पटियाला हाउस , बेबी और जॉली एल एल बी -2 ( हालाँकि अरशद वारसी पहली वाली में अक्षय से बेहतर थे) को रखा जा सकता है.
पिछले कुछ समय से एक खास किस्म के राष्ट्रवाद की लहर नए सिरे से उग्र तेवरों के साथ तेज़ी से उमड़ी है जिसके चलते शाहरुख़ खान, आमिर खान और सैफ खान खास तौर पर सोशल मीडिया पर लगातार हमलों के शिकार हुए हैं. मोदी सरकार के आने के बाद असहिष्णुता पर शाहरुख़ का बयान और बाद में उसी मसले पर आमिर खान की टिप्पणी से उनके खिलाफ जैसे नफरत का समंदर उबल पड़ा . उधर अक्षय कुमार अपने कुछ हालिया बयानों और नयी सरकार के प्रति स्पष्ट झुकाव की वजह से इस खेमे की पसंद बन कर उभरे हैं.