आखिर कब तक बाल विवाह खत्म नही होगा। ये कहानी कोई कल्पना नही ये कहानी सच पर आधारित है। राजस्थान के एक सोहना गाँव मे एक बाल विवाह किसी घर में नही बल्कि एक मंदिर में कराई गयी। ये बात एकदम सच है कि दो छोटे बच्चों की शादी बचपन मे ही करा दी गई।
ये कहानी सोहना गाँव के दो मित्रो की है। जिसमे से एक का नाम मनोज और दूसरे का नाम दीपक था। उनकी यारी इतनी गहरी थी की घर आना -जाना ,रहना, सोना खाना- पीना एक दूसरे के घर ही किया करते थे। बचपन से जवानी के एक एक पल दोनो, ने एक साथ बिताए थे। दीपक एक किसान था। मनोज का अपना ट्रांसपोर्ट का बिज़नेस था। दोनो की शादी हो चुकी थी। वे दोनों शतरंज के अच्छे खिलाड़ी थे। दोनो एक दिन शतरंज खेल रहे थे उसी पर मनोज ने उसे कहा दीपक मेरी घरवाली को बच्चा होने वाला है। अगर मेरी लड़की हुई तो मैं तेरे लड़के से उसकी शादी कर दूंगा। और अगर मेरा लड़का हुआ तो मैं तेरे लड़की से शादी कर दूंगा। इतने पर दीपक जोरो से हँसने लगा और बोला भाई मेरे तो अभी बाल -बच्चे नही है। अगर मुझे होते है तो मैं तेरे घर ही शादी कराऊँगा। ये मेरा वादा है,तुझसे। इतने में मनोज की बीवी दोनों को खाना खाने को बुलाती है। दीपक अपने घर आ जाता है और बहुत सोच विचार में, पड़ जाता है। दीपक ने ये बात अपनी पत्नी को जाकर बताई।
2 महीने के बाद मनोज की बीवी को लड़का हो जाता है। मनोज खुशी के मारे फुले नही समा पा रहा था। मनोज ने थोड़ी देरी न करते हुए दीपक को ये खबर सुना डाली, ओर बोला कि अब तेरी बारी है, मेरे दोस्त। 1 साल बाद दीपक की बीवी को बच्चा होने वाला था, इन दोनों का इतना नसीब अच्छा था कि दीपक की पत्नी को लडक़ी हो जाती है दीपक से ज्यादा मनोज खुश दिखाई दे रहा था। दीपक को मनोज के घर अपनी बेटी देने में कोई तकलीफ नही थी। मनोज ने दीपक को शादी का प्रस्ताव दे दिया। मनोज ने अपने लड़के का नाम देव रखा और दीपक ने अपनी लड़की का नाम नेहा रखा। और धीरे -धीरे दोंनो बच्चे बड़े होने लगे
और दोंनो परिवार इस शादी से सहमत को गए। दोंनो बच्चों के 14वर्ष होते ही दोंनो की शादी करवा दी गई। देव और नेहा दोंनो अभी एक कच्ची उम्र से गुजर रहे थे। उन दोंनो में अभी इतनी समझ नही थी। की क्या सही है,और क्या गलत तो फिर वो दोंनो एक दूसरे को क्या समझते और इस शादी को। पर दोंनो इस शादी से बहुत खुश थे। क्योंकि दोंनो को नए -नए कपड़े और गिफ्ट मिल रहे थे। नेहा अपने इतने सारे गहने और कपड़े देख कर बहुत खुश नजर आ रही थी। उधर देव का भी यही हाल था। वह अपने नए जूते और घड़ी देखकर बहुत खुश दिख रहा था। फिर दोंनो की शादी एक मंदिर में करवा दी गई। नेहा खुशी -खुशी देव के घर आ गई। शुरू -शुरू में उसको देव के घर बहुत अच्छा लगा। उसकी मुँह दिखाई की रस्म हुई उसे और भी ज़्यादा अच्छे -अच्छे गिफ्ट मिले। इस गिफ्ट को देखकर नेहा बहुत खुश हो गई। देव के घर उसे कोई कमी न थी। घर में सब काम के लिए नौकर -चाकर लगे थे, खाना बनाने के लिए भी पर नेहा पर एक पाबन्दी सी लग गई थी। अब उसे एक बहू की तरह रहना पड़ता था। सारा दिन उसका घर पर रहना उसे बिल्कुल भी अच्छा नही लगता, और सारा दिन साड़ी पहन कर रहना। इतने सारे गहने पहन कर रहना, इन सबसे अब उसका दम सा घुटने लगता। वह गुस्से से अपने सारे गहने उतार देती। तो उसकी सासु माँ उसको प्यार से समझाती की देख लाडो अब तेरी शादी हो चुकी है। अब तु पहले जैसी नेहा नही रही अब तु हमारे घर की बहू है। और बहू को सज -सवर कर रहना चाहिए। नेहा यह सब सुनकर अपनी सासु माँ से कहती पर सासु माँ मुझे इतने सारे गहने पहनने बिल्कुल भी अच्छे नही लगते यह गहने मुझे बहुत चुभते है। यह सुनकर उसकी सासु माँ कहती नेहा अभी तेरी नई -नई शादी हुई है, न इसलिए तुझे इतने सारे गहने पहनने पड़ रहे है। जब बाद में तु थोड़ी सी पुरानी हो जाएगी। तो फिर तुझे इतने सारे गहने नही पहनने पड़ेगे। यह सुनकर नेहा बहुत खुश हो जाती और कहती ठीक है, सासु माँ यह गहने अब में कभी नही उतारूँगी! यह सुनकर उसकी सासु माँ हँसने लग जाती है। और नेहा से कहती है, की में तेरी सासु माँ नही माँ हूँ। यह कहकर नेहा उनसे कहती है, की माँ तो मेरी घर पर है। आप मेरी माँ कैसे हो सकती हो? इसी बात पर देव बीच में बोल पड़ता है। और कहता है, की यह सही बोल रही है। माँ आप तो सिर्फ मेरी माँ हो। दोंनो की बात सुनकर देव की माँ हँसने लग जाती है। और दोंनो को गले लगाकर कहती है। कि मैं, तुम दोंनो कि माँ हूँ। रोज कि तरह देव अपने स्कूल जाता। और नेहा घर पर रहती। नेहा को शादी के बाद पहली बार जब अपने घर जाने के लिए बोला गया तो वह बहुत खुश हो गई। अपने घर जाने के लिए उसे नई साड़ी और नए गहने पहनने पड़े। नेहा अपने घर जाकर बहुत खुश हुई और कहने लगी कि मैं, अब हमेशा के लिए यही अपने मम्मी -पापा के साथ रहुँगी। यह सुनकर देव नेहा से कहता तु सच में बहुत बड़ी बेवकूफ है। शादी के बाद लड़की अपने ससुराल रहती है, न कि अपने घर। नेहा तुरंत देव को जवाब देती है। कि यह मेरा घर है, में तो यही रहूँगी। तु कौन होता है,मुझको मना करने वाला? फिर उन दोंनो कि लड़ाई हो जाती है। उन दोंनो को लड़ता देख दोंनो के परिवार वहां आकर उन दोंनो को चुप करवाते है। देव कि मम्मी नेहा को जब अपने साथ ले जाने के लिए कहती है, तो वह रोने लग जाती है। और कहती है। कि अब मैं, नही जाऊंगी आप के साथ मुझे यही रहना है। अपने मम्मी और पापा के पास यह सुनकर नेहा कि माँ उसको समझाती है। और कहती है,कि देख लाडो ऐसे जिद नही करते तु जा देव के साथ तेरे पापा और में, फिर खुद तुझको लेने आएंगे। यह सुनकर नेहा देव के साथ वापस उनके घर चली जाती है। देव के घर आकर उसका मन बहुत उदास हो जाता है। वह सोचती है, कि यहां आकर तो मुझे बस एक कमरें में बंद कर दिया जाता है। न कही बाहर जाओ न कही घूमने बस इसी कमरें में दिन रात बंद रहो।अब तो कोई मुझे स्कूल पढ़ने को भी नही भेजता। यह सब सोचकर कब उसको नींद आ जाती है। उसे पता नही चलता। अगले दिन फिर जब उसकी नींद खुलती है, तो वह सीधा अपनी सासु माँ के पास जाती है। और कहती है। कि मुझे आप वापस अपने साथ क्यों लेकर आ गए कुछ दिन रुकने देते मुझे अपनी माँ और पापा जी के पास। उसकी बात सुनकर उसकी सासु माँ उसको फिर से समझाती है। और कहती है, कि देख लाडो अब यही तेरा घर है। हम ही तेरे मम्मी -पापा है। तुझे अब यही रहना है। लड़की शादी के बाद इतना अपने घर नही जाया करती। यह सुनकर नेहा जोर -जोर से रोने लग जाती है। उसको रोता देख देव कि माँ उसको यही बोलती है। कि लाडो इस तरह तेरा बात बात पर रोना अब अच्छी बात नही है। तु अपना घर और परिवार भूलकर अब हमेशा यही रहे हमारे साथ इसी सब में अब तेरी भलाई है। एक दिन मनोज कि अपनी सगी बुआ उनके घर रहने आ जाती है। नेहा को आराम करता देख और नौकर को काम करता देख उनसे यह सब देखा नही जाता। वह मनोज से कहती है, कि अगर घर का सारा काम नौकर ही करेगे तो बहू रानी क्या करेगी? इसको भी थोड़ा बहुत घर का काम करवाओ भई। यह सब सुनकर नेहा घबरा जाती है। और मन ही मन कहती है। कि मुझे तो घर का कोई भी काम करना नही आता? मैं, कैसे घर का काम करुँगी। घर में सबसे बड़े होने के नाते कोई भी बुआ को इस बात के लिए न नही बोल सका। नेहा कि सासु माँ ने सबसे पहले उसको सारे कपड़े तय लगाने सिखाए और उसके बाद उसे धीरे - धीरे रसोई के सारे काम सिखाने लग गई।बुआ के रहते नेहा को थोड़े बहुत काम आ गए थे। जैसे सब्जी काटना आता गुथना। बुआ जब भी नेहा को खाली बैठा हुआ देखती तो वह नेहा को कोई न कोई काम बोल देती। एक दिन जब घर पर मेहमान आए तो, बुआ ने उसे चाय बनाने के लिए बोल दिया। सात -आठ लोगों का चाय नेहा कैसे बना सकती थी। जब चाय बनाने में उसकी सासु माँ ने उसकी मदद करनी चाही तो बुआ ने उसे यह कहकर मना कर दिया कि अब नही करेगी तो कब करेगी। इसे यह सब तु अकेले ही करने दे। नेहा ने अकेले इतने लोगों कि चाय बनाई। चाय अच्छी न बनने पर बुआ ने नेहा को ताने देकर यह कहा कि कुछ तो अपने घर से तु सीख कर आती। इतनी उम्र में, तो मैं अपने ससुराल का सारा काम खुद किया करती थी। तेरी माँ ने तुझे एक चाय तक बनानी न सिखाई। बुआ अक्सर मनोज कि घरवाली को आराम करने को बोलती और नेहा को काम करने को कहती। बुआ के रहते हुए नेहा घर का सारा काम सीख गई। और करने भी लगी। नेहा को घर का सारा काम साड़ी और गहने पहन कर करने होते। ऐसे काम करने में उसको बहुत दिक्कत होती। अब वो घर का काम करे या अपनी साड़ी संभाले। धीरे -धीरे घर की सारी जिम्मेदारी नेहा पर आ गई। इतनी कम उम्र में नेहा अपनी यह सारी जिम्मेदारी कैसे संभाल पाती। जब उसकी पढ़ने कि उम्र थी, तब उसे शादी के बंधन में बांध दिया गया। नेहा घर का सारा काम करके बहुत ज्यादा थक सी जाती। उधर देव मस्त सा रहता सुबह स्कूल जाता और शाम को खेलने। देव को पढता और खेलता देख नेहा को उस पर बहुत गुस्सा आता। धीरे -धीरे वह देव से कटने सी लगी। जब भी देव उस से बात करने आता तो वह सीधे मुँह उससे बात न करती। उससे बहुत ज्यादा चिढ़ती। और कहती देव तुम तो स्कूल भी जाते हो और खेलने भी और एक मैं, हूँ। जो न ही तुम्हारे साथ स्कूल जा सकती हूँ। न खेल सकती हूँ। देव उसकी यह बात सुनकर कहता है, कि तुम अपना सारा काम जल्दी खत्म करके मेरे साथ खेलने आ जाया करो। इस बात पर नेहा उदास होकर कहती है। कि में कैसे आऊ तुम्हारे साथ खेलने सासु माँ और बुआ कहती है, कि घर कि बहू ज्यादा बाहर नही जाया करती। यह बोलकर वह अपने कमरें में चली जाती है। दिन व दिन
नेहा पर सारे घर और काम की जिम्मेदारी बढ़ती ही जा रही थी। इस घर की जिम्मेदारी ने नेहा से उसका बचपन छीन लिया था। जब नेहा की खेलने और पढ़ने की उम्र थी, तब उसको शादी के बंधन में बांध दिया गया। इतने कम उम्र में नेहा की शादी और उस पर सारे घर व काम की जिम्मेदारी ने उसे अपने आप से और अपनों से बहुत दूर कर दिया था। अब इसी जिम्मेदारी में नेहा उलझ कर रहे गई थी। अब उसकी पूरी दुनिया भी इसी में सिमट कर रहे गई थी।
शिक्षा - बाल विवाह करवाना एक दड़नीय अपराध है। इस शादी से दो मासूम जिंदगी बर्बाद हो जाती है।
निक्की तिवारी -स्वरचित कहानी ✍️