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माँ का संघर्ष ( दूसरा अध्याय )

13 नवम्बर 2021

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एक गाँव में एक समाज  सुधारक  महिला रहती थी | 
 गाँव की सभी महिलाएं उनके  पास अपनी हर समस्या लेकर  आती थी और वो उसका निवारण  बहुत आसानी से निकाल देती थी| 
 इस  महिला  का  नाम सुधा  था |
 सुधा बहुत मेहनती औरत थी | उनके परिवार में उनके साथ  उनके दो बेटे रहा करते थे.  
कम उम्र में विधवा हो जाने के  कारण सुधा ही अपने  घर  कि  मुखिया हुआ करती थी |
अपने दोनों बेटों की जिम्मेदारियों  से लेकर सभी काम अकेले  सुधा  को ही करने पड़ते थे |
 सुधा अक्सर काम के सिलसिले  में  बहुत देर तक बाहर ही रहा  करती थी |
अपने बच्चों कि देखभाल के लिए  एक दाई को छोड़कर चली जाया  करती थी | 
यह दाई बच्चों कि देखभाल के  साथ - साथ घर के काम भी कर  लिया करती थी|
ज़ब  सुधा को अपने काम से  थोड़ी बहुत फुर्सत मिलती तो वह  अपना सारा समय अपने बच्चों  के साथ बिताया करती आये दिन  ज़ब सुधा को किसी काम के  सिलसिले में बाहर जाना पड़ता तो वह दाई पर पूरा घर छोड़कर  चली जाती |
उसकी  दाई  बहुत  ईमानदार  थी और  समझदार भी देखते ही  देखते सुधा के दोनों बेटे कब बड़े  हो गये कुछ पता ना चला अपने दोनों बेटों पर सुधा जान  छिड़कती थी और उन दोनों के  हर सपनों को पूरा करती थी|
बड़े होने के साथ दोनों बेटों कि  डिमांड भी बढ़ती गई  पर  सुधा  ने कभी भी अपने बेटों की इच्छाओं को ना नही किया | उनकी  हर  इच्छा  पूरी  की|
दोनों लड़को की परवरिश में और  पढ़ाई में सुधा ने कभी कोई कसर नही छोड़ी| माँ के साथ एक पिता  का भी हर फ़र्ज बहुत अच्छे से  निभाया|
अपने एक बेटे का नाम राम और  दूसरे का श्याम रखा दोनों ही  पढ़ाई में बहुत  होशियार  थे |
 राम ने कॉलेज खत्म होते ही  अपनी पसंद की लड़की से शादी  कर ली |
राम की इस शादी से उसकी  माँ  बहुत खुश हुई उन्होंने  कहा अब  मेरी  जिम्मेदारी खत्म हुई अब  तेरा सारा काम मेरी बहू किया  करेगी | यह सुनकर नई दुल्हन  थोड़ा शर्मा गयी|
  शादी के बाद दोनों कि अच्छी  नौकरी लग गई और उन्होंने  माँ  को घर पर आराम करने  को कहां माँ ने  भी उनकी हाँ में हामी  भर  दी |
दोनों अपनी शादीशुदा  जिंदगी  में  बहुत खुश थे |
माँ भी घर पर सिर्फ आराम किया  करती घर पर काम करने के लिए  नौकर-चाकर थे ही| 
 माँ घर पर सिर्फ आराम करती,  पर ज़ब घर के खर्चे ज़्यादा होने  होने लगे तो राम की पत्नी ने  कामवाली को हटवा दिया और  माँ को सारा काम करने को कहा|  माँ घर का सारा काम करने लगी | माँ को घर का सारा काम करता  देख श्याम से रहा नहीं गया उसने  भी यह फैसला किया कि अब मैं  भी शादी करुँगा और नौकरी  वाली बहू नहीं लाऊंगा, पर सुधा  के नसीब में सुख नहीं था,दूसरी  बहू आते ही साथ घर पर और  कलेश शुरुआत हो  गया दोनों  बहू में काम ना करने को लेकर  तू - तू  में - में  शुरु ही गई और बात  और ज़्यादा बढ़ ना चाहते  हुये भी माँ को काम करना ही  पड़ता।

सुधा को घर का सारा काम करना पड़ता था।दोनों बहू न माँ की सेवा करती न माँ के किसी भी काम में हाथ बटातीं |  सुधा घर का सारा काम करके थक जाती और सोने जाती तो उसमें भी दोनों से रहा नही जाता, और वो दोनों माँ को जगा कर कहती की आप सो जाओगे तो घर का काम कौन करेगा?माँ अपनी दोनों बहू को बेटी समान मानती और उनकी बातों को कभी भी दिल पर  नहीं लेतीं  और फिर से घर का काम करने लग जाती थी ।
 देखते ही देखते वर्ष बीतते गये पर और दोनों बहुओं को बच्चा भी हो गया उनके बच्चों की देखभाल भी सुधा ही किया करती थी |  दोनों बहुओं ने अपना अपना किचन भी अलग कर दिया कभी माँ को राम के पास खाना खाने जाना पड़ता था,तो कभी श्याम के पास माँ से यह सब देखा नही जा रहा था फिर भी उन्होंने अपने मुँह से एक भी शब्द ना बोला हर अन्याय को चुपचाप सहती चली गई थी |
   माँ को जो रहने के लिए कमरा दिया गया था वो भी बहुत छोटा था | उसमे भी माँ का अपना गुजारा ठीक से नही हो पाता पर बेचारी माँ करती भी तो क्या करती | जैसे -तैसे उसमे ही रहती और अंदर ही अंदर घुटती रहती |
  जब भी घर में कोई त्यौहार होता तो माँ को सब घर के सदस्य अकेला छोड़ देते और अपनी मौज -मस्ती करते रहते  थे |
  माँ बेचारी अंदर ही अंदर बहुत रोती कभी अपने बच्चों को कोसती तो कभी अपने आपको और भगवान से कहती इससे अच्छा तो मेरी अपनी कोई खुद की औलाद ना ही होती तो वो ही अच्छा रहता।कम से कम मुझे अपने बच्चों से यह सब दुख तो नही मिलता तभी एक आवाज़ माँ को सुनाई देती है | राम की माँ अब आप भी नीचे आ सकती हो हम लोगों के साथ बैठ सकती हो।यह सुनकर माँ तुरंत नीचे आ जाती है,और कहती है,की तुम्हें याद है बेटा इसी तरह हर त्यौहार पर तुम दोनों मेरे पैर छूने आते थे | और में तुम्हें सदा सुखी रहो खुश रहो का आर्शीवाद दिया करती थी। यह सुनकर राम और श्याम दोनों मुस्कुरा जाते है और फिर सब अपने में मग्न और व्यस्त हो जाते है |
  इसी तरह दिन पर दिन गुजरते गए और सब माँ पर और जुल्म करते चले गए |जब भी कोई सुधा से मिलने आता तो उनसे यह कहां जाता की माँ अब अपने गाँव में रहा करती है।यहां उनका मन नही लगता था यह सुनकर आए हुए लोग चले जाते थे|
  एक दिन सर्दी में माँ ठंड से इतना कांप रही थी और अपने बच्चों को आवाज़ दे रही थी। लगातार आवाज़ देने पर छोटी बहू ने कहा खुद तो आप सोती नही कम से कम हमें तो सोने दीजिए।यह सुनकर बेचारी माँ चुपचाप अपने कमरें में चली गई और जोर -जोर से रोने लगी। माँ को रोता देख श्याम उनके कमरें में आता है, और उनसे पूछता है,की माँ आपको क्या हुआ कोई दिक्कत हो तो बताओ।यह सुनकर माँ कहती है की,बेटा मुझे बहुत ठंड लग रही है |क्या कोई कंबल ओढने को मिलेगा? तभी श्याम कहता है, की क्यों नही माँ मैं अभी कंबल लेकर आता हूँ |श्याम जल्दी से माँ के लिए एक कंबल ले आया और उसने माँ को छू कर देखा तो उन्हें बहुत तेज बुखार था |माँ को डॉक्टर के पास ले जाने के लिए अपनी गाड़ी निकालता है, तो उसकी पत्नी उसे रोक देती है और कहती है, की इन्हें आप कहां लेकर जा रहे हो ज़्यादा उम्र हो जाने के बाद इंसान का शरीर पहले जैसा नही रहता और जवाब दे जाता है |आप इन्हें कही भी मत लेकर जाओ मामूली बुखार है, अपने आप ठीक हो जाएगा यह सुनकर माँ अपनी किस्मत को कोसने लग जाती है और कहती है, की तुम माँ होकर माँ का दुख नही समझती एक दिन तुम्हारी औलाद भी तुम्हारे साथ ऐसा ही करेगी | लाख बेटों के मानाने के बाद भी माँ ने फिर डॉक्टर के पास जाने से मना कर दिया। देर रात तबियत अधिक  बिगड़ने के कारण सुधा का देहांत हो जाता है।जिस माँ ने अत्यधिक कष्ट  सहने  के बावजूद अपने बेटों को हर  सुख  सुविधाएं  दी आज उन्हीं बेटों के कारण  उनका देहांत हुआ।
 माँ का पार्थिव शरीर सभी दुखी होने का नाटक करते है।फिर जैसे -तैसे उनका क्रिया-कर्म करके फिर सब अपने  काम में व्यस्त हो जाते है |
 शिक्षा:- इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हम  अपने जीवन मे कितने भी  सफल  हो जायें। संघर्षो  के साथ  हमें सफल  बनाने वाले माता-पिता का सदैव सम्मान करना चाहिए।

स्वरचित कहानी
निक्की तिवारी ✍️
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सोच अच्छी है, विषय भी अच्छा है। 🙏🏻🌷🙏🏻

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Mukesh Choudhary

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👍👍👍

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ABHISHEK DWIVEDI

ABHISHEK DWIVEDI

Bhut khub good thinking

18 नवम्बर 2021

Nishu pathak

Nishu pathak

👌👌

16 नवम्बर 2021

काव्या सोनी

काव्या सोनी

Behtreen likha aapne awesome 👏👌👌

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