नमस्कार दोस्तों आज में आप सबके लिए एक ऐसी लड़की कि कहानी लेकर आ रही हुँ। जो एक व्हीलचेयर पर होते हुये भी अपने सारे सपने खुद पूरा कर रही है।मेरा नाम इन्दु है। आज मैं आप सबको इसी कहानी से अवगत करना चाहती हूँ। मेरा जन्म 1987 में रांची में हुआ था। मेरे पापा जो कि एक कॉलेज में लेक्चरआर थे। मेरा बचपन रांची में बीता मेरी मम्मी एक हॉउस वाइफ थी। एक हॉउस वाइफ के साथ - साथ वह एक अच्छी ग्रहणी भी थी। उनके लालन -पालन में मेरा बचपन बहुत अच्छा बीता। पहला भाग -मेरा बचपन अक्सर मेरे ननिहाल में बीतता। जब गर्मी कि छुट्टियों में अपने नानी के यहां जाती थी,तो मुझे वहां बहुत ख़ुशी मिलती थी, वहां मुझे बहुत अच्छा लगता था। वहां से आने का मेरा बिल्कुल भी मन नही करता था | मेरे पापा मुझे बाहर खेलने को ज़्यादा नही भेजते थे। उनका कहना था,कि अपना समय बाहर खेलने में नही बल्कि पढ़ाई में ज़्यादा लगाओ क्यूंकि एक ज्ञान ही है, जो कोई भी किसी व्यक्ति से नहीं छीन सकता। ज्ञान कि शक्ति बहुत बड़ी शक्ति होती है। दुनिया में अगर तुम्हारे पास ज्ञान नही है। तो कुछ भी नही है। ज्ञान और अच्छी शिक्षा से ही तुम पुरी दुनिया को पर विजय पर सकते हो किसी को भी अपना बना सकते हो। बचपन मे मेरे पर इस बात का ज़्यादा असर नही पड़ा मैं अक्सर गर्मी कि छुट्टियों मेंअपनी नानी के यहां जाया करती थी। मम्मी पापा के लाख मना करने पर भी नही मानती थी।अक्सर अपनी जींद में आकर खाना - पीना सब छोड़कर अपनी जीद मनवा हि लेती थी। क्यूंकि यहां घर पर रहकर मुझे सिर्फ पढ़ाई करने के अलावा और कहीं भी जाने कि परमिशन नही मिलती थी।
मेरी शॉपिंग भी ज़्यादातर मेरी मम्मी ही करती थी। मेरी पसंद ना पसंद सबका ध्यान उन्हीं को रहता था। बाहर कम जाने से मेरे फ्रैंड्स भी ज़्यादा न थे। मैं अपनी मम्मी व पापा कि एकलौती संतान थी, जो कुछ भी था, वह मेरा ही था। इसलिए मेरा ध्यान ज़्यादा पढ़ाई मे नही लगा,क्यूंकि मुझे इस बात का पता था। कि मेरे पापा कि सारी प्रॉपर्टी मेरे ही नाम होगी। तभी में अक्सर पढ़ाई से भागती रहती थी। हमारी लाइफ बहुत मस्त थी । जब भी पापा को अपने काम से फुर्सत मिलती तो वह मम्मी और मुझको बाहर घुमाने ले जाते।जब भी हम बाहर घूमने जाते तो बहुत एन्जॉय करते व मस्ती भी। बाहर जाकर ऐसा लगता मानो कि हमें जिंदगी कि सारी खुशियाँ मिल गई हो। क्यूंकि पापा के ज़्यादा कठोर व्यवहार से हम ज़्यादा उनसे किसी भी बात कि डिमांड भी नही किया करते थे।अक्सर हमारे दिन घर पर ही गुजरते। आगे जाकर मेरा व्यवहार भी ऐसा हो गया कि में, भी सबसे कम बोलने लगी मुझे भी अकेलापन बहुत अच्छा लगने लगा। घर पर कोई बड़ा व छोटा तो था, ही नही जिससे में बोलती व बात करती। मेरी मम्मी भी अक्सर अपने ही काम में उलझी रहती। उनका रिश्तेदारों के यहां आना -जाना लगा ही रहता था। कभी नानी के यहां, तो कभी और रिश्तेदारों के यहां । तो मेरा बचपन यूं ही अकेले में बीतता चला गया। देखते - देखते वक़्त भी गुजरता चला गया न करते - करते मेरा स्कूल कॉलेज कब पूरा हो गया मुझे पता भी न चला। दूसरा भाग - मेरा बचपन कब जवानी में बीत गया। मुझे पता न चला। कॉलेज खत्म होते ही मैंने हिंदी में एम .ए कि उपाधि प्राप्त कि और हिंदी लिटरेचऱ का कोर्स किया और अपनी लेखन क्रिया में भाग लेने लग गई। फिर में, इतना लिखती चली गई कि मेरी कहानी कविता, में जो कुछ भी लिखती थी वो सब -छपती चली गई। कॉलेज खत्म होते ही मेरे लिए मेरे रिश्ते आने शुरू हो गये। फिर इस रिश्तों के सिलसिले में, अक्सर मेरे पापा से मेरा मनमुटाव रहना शुरू हो गया, जितनी जल्दी उन्हें मेरी पढ़ाई पुरी करने कि थी। उतनी ही जल्दी अब मेरी शादी कि भी होने लगी। मैं इतनी जल्दी शादी नही करना चाहती थी। मेरा सपना एक बहुत बड़ी लेखिका बनने का था। मेरा यह सपना बहुत जल्दी पूरा भी हो गया देखते ही देखते में, एक बहुत बड़ी लेखिका बन गई। मेरी कहानी,कविता मैगज़ीन में छपने लगे। देखते ही देखते मेरे लिए और रिश्तों का आना शुरू हो गया। तीसरा भाग शादी-बहुत जल्दी एक साबुन के बिजनेस मेन के साथ मेरी शादी करवा दी गयी। एक महीने तक तो मेरी शादी बहुत अच्छी चली फिर पता नही क्यों, मेरे ओर मेरे पत्ति में आएं दिन झगडे शुरू हो गये। उनका मुझपर यह इल्जाम् लगाना कि में, उनका ख्याल सही से नही रखती, उन्हें समय से नाश्ता नही देती। और उनकी कोई भी बात नही मानती। इस रोज़ के लड़ाई- झखड़े में, मेरे पत्ति ने कई बार मुझपर हाथ भी उठाया पर मैंने यह बात अपने घर में, बतानी सही न समझी मेरे मायके जाने पर भी उन्होंने रोक लगा दी। मेरा घर से बाहर आना - जाना सब बंद करवा दिया। फिर वह घर पर बहुत देर से आने लगे। रात को वह अक्सर शराब पीकर आने लगे।