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बांझ ( अध्याय आठवां )

1 दिसम्बर 2021

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हेमा की शादी के एक साल बाद ही उसकी सासु माँ बच्चे के लिए जैसे उसके पीछे ही पड़ गई। अरे तेरी शादी के एक साल हो गए है। अब तो तु हमें माँ बनने की खुशखबरी जल्दी से दे दें। यह सुनकर हेमा शर्मा कर अपने कमरें में चली गई। हेमा के घर आते ही घर का माहौल बहुत खुशनुमा सा हो गया था। हेमा को घर की लक्ष्मी कहां जाता था। पर जैसे -जैसे दिन बीतते गए। हेमा को घर की लक्ष्मी से कुलक्षिणी कहां जाने लगा।
रात दिन हेमा घर का सारा काम करती और सबके ताने सुनती। पर फिर भी हमेशा मुस्कुराती रहती। किसी से भी एक शब्द उल्टा न बोलती। आए दिन हेमा की सास उसको यही ताने देती की सामने वाली की भी तो बहू है। उसकी गोद तो शादी के छ महीने बाद ही भर गई। और एक हमारी बहू है। पता नही इसके घर आते ही घर का सारा माहौल मातम में बदल गया। अरे ओ मनहूस अब टीवी ही देखती रहेगी या  मेरे लिए एक कप चाय भी बनाएंगी। यह सुनकर हेमा अंदर किचन में चाय बनाने चली गई। तभी हेमा का फ़ोन बजने लगा। जैसे ही वह बजते हुए फ़ोन की तरफ अपना हाथ बढाती है। तभी उसकी सास उसे फिर से टोक देती है। बस सारा दिन टीवी और एक फ़ोन पर ही इसका सारा ध्यान रहता है। यह नही की डॉक्टर के पास चली जाए अपना इलाज करवाने। पर माँ डॉक्टर से इलाज चल तो रहा है। हमारा अरे मेरा मतलब किसी अच्छे से डॉक्टर को दिखा। तभी तो पता चलेगा की तेरे अंदर क्या कमी है। यह सुनकर उसका चेहरा मायूस सा हो गया। और वह चाय बनाने चली गई। शाम को अपने पति के आते ही हेमा ने उनसे डॉक्टर के पास जाने को कहां था। उसके पति ने यह कहकर मना कर दिया की आज मेरे पास समय नही है। कल चलेंगे । यह सुनकर वह रात का खाना बनाने में व्यस्त हो गई। इसी तरह सब हेमा से अनजाने जैसा व्यवहार करने लगे। वह सबके इस और ज्यादा ध्यान न देती और रोज की तरह अपने काम में लग जाती। देखते ही देखते सामने वाली बहू को बच्चा हो गया। उसकी सास उसको फिर से ताने देने लगी। और कहने लगी की मुझे तो अब कोई आस न दिख रही तेरी माँ बनने की और न ही हमारी दादी बनने की। यह सुनकर हेमा कहती की आप क्यों नही बोलती? इनको की मेरे साथ डॉक्टर के पास चले।यह सुनकर उसकी सास तुरंत कहती। अरे तेरा ठेका ले रखा है, क्या हमने?  तु जा अपनी माँ के साथ। क्या तेरे भाई बहन नही है। तेरा इलाज करवाने के लिए जो हम तेरे पर अपने इतने रुपए खर्च करे। यह सुनकर उसकी आँखों में आंसू आ जाते है। और वह रोने लग जाती है। यह देखो इसके मगरमच्छ के आंसू। तु यह ड्रामे अपने घर में जाकर करना यहां नही, समझी। अब जा और सारे कपड़े धो। कल से ऐसे ही पड़े है सारे कपड़े। बेचारी न किसी से अपना दुख कहती बस अंदर ही अंदर रोती रहती। हर जुल्म सहती रहती। रात को खाने पर उसका पति उस पर अपना गुस्सा निकालता और दिन में उसकी सास उसको सुनाती। फिर हेमा ने अपना इलाज करवाना शुरू किया। उसके इलाज का सारा खर्च उसके मायके वाले उठाते। अस्पताल से घर आते ही उसकी सास उसको कोई न कोई काम बोल देती। उसे कभी भी आराम न करने को मिलता। सारा दिन काम करके जब वो सोने जाती तो उसकी सास उसको रात भर जगा कर अपने पैरों की मालिश करवाती। दिन भर इसी दौड़ भाग में वह अपने शरीर को बिल्कुल भी आराम न दे पाती। दिन व दिन गुजरते चले गए। पर हेमा को माँ बनने की खुशखबरी न मिली। फिर भी उसने हिम्मत न हारी। हर जगह से अपना इलाज करवाया। पर उसे निराशा ही हाथ लगी। धीरे -धीरे उसकी सास उसको बांझ बुलाने लग गई। और कहती यह कैसी लड़की से हमारी शादी करवा दी। अगर हमें पहले ही पता होता की यह हमारे घर को एक चिराग भी न दे पाएंगी। तो हम इस लड़की से अपने लड़के की शादी कभी न करवाते। यह तो बांझ है। जब शादी के पाँच साल बाद भी इसका बच्चा न हुआ तो अब क्या होगा। चल निकल जा मेरे घर से। यह कहकर उसकी सास ने उसे घर से बाहर निकाल दिया। (पहला भाग ) - हेमा खुशी -खुशी अपने मायके अपनी माँ और भाई के साथ रहने लग गई। जब उसकी भाभी को पता चला की वह माँ बनने वाली है। तो उसने हेमा से एक दुरी सी बना ली। वह न ही हेमा के साथ उठती, बैठती ना ही उससे बात करती। हेमा को अपनी भाभी का उसके प्रति यह व्यवहार अच्छा न लगा।
पर वह वहां से चुपचाप चली गई। कुछ न बोली। देखते ही देखते उसकी भाभी की गोद भराई की रस्म शुरू हुई। पर उसकी भाभी ने उसे इस गोद भराई की रस्म में आने से यह कहे कर मना कर दिया की तुम बांझ हो। इसलिए मेरे सामने भी मत आना क्या पता कल को मेरे साथ भी कोई ऐसी अनहोनी हो जाए। यह सुनकर हेमा अपने कमरें में जाकर रोने लग गई। और अपनी माँ से रोते हुए कहने लगी की माँ बताओं की अगर मैं माँ नही बन पाई तो क्या इसमें मेरी गलती है। जो सब मुझसे ऐसा व्यवहार कर रहे है। क्या मेरे इस गोद भराई की रस्म में आने से भाभी के होने वाले बच्चे पर कोई गलत प्रभाव पड़ेगा। उसकी बात सुनकर उसकी माँ ने कहां की तेरे पापा के जाने के बाद तुझे तेरे भाई ने इस इस घर में रखा। तेरे लिए भी तो उसने इतना सब कुछ किया। तु यह सब बातें दिल से न लगा। और चुपचाप  यही रहे हमारे साथ जो तुझे तेरी भाभी बोलती है। वह सुन ले इसी में तेरी भलाई है। ससुराल से तो तुझे निकाल ही दिया सबने अब क्या यहां से भी जाने का मन कर रहा है। तेरा जो सबकी बातों को इतना दिल से लगा लेती है। जिसको जो बोलना है। बोलने दे। सबकी बातों पर इतना ध्यान देगी तो अपनी आगे की जिंदगी कैसी जी पाएगी। हेमा बहुत कम पढ़ी लिखी थी। उसके पापा के देहांत के बाद उसकी शादी जल्दी कर दी गई। लड़का हेमा से बहुत पढ़ा लिखा था। और उसकी नौकरी भी अच्छी थी। पर किसको क्या पता था? की यह शादी के बाद एक बच्चे के लिए हेमा को छोड़ देगा। मायके में रहना हेमा की मजबूरी बन गई। माँ के बुढ़िया होने और बीमार रहने के कारण हेमा को यहां भी घर का सारा काम अकेले करता पड़ता। दिन व दिन बीतने और उसकी भाभी का बच्चा हो गया। बच्चे को देखकर हेमा की ममता और उभर आई। पर भाभी न उसे अपना बच्चा छूने देती न गोद में लेने देती। बस दूर से बच्चे को देखकर हेमा अपना दिल बहला लेती। और यही सोचती की अगर उसका भी कोई अपना बच्चा होता तो उसे भी सब कितना प्यार मान -सम्मान देते। यह सोच कर उसकी आँखे नम सी हो गई। बेचारी माँ को अपनी बेटी का यह दुख न देखा गया। और वह स्वर्गवास हो गई। माँ के जाने के बाद उसकी भाभी ने उसे घर का नौकर ही बना दिया। झाडू,पोचा घर का सभी काम वह उसी से करवाती। यहां तक की बच्चे की सारी देखभाल भी वही करती। दिन भर उसकी भाभी भईया बाहर घूमते और वह घर के काम के साथ बच्चे का भी ध्यान रखती। एक दिन बाजार से वह बच्चे के लिए कुछ कपड़े ले लेकर आई थी। जैसे ही वह कपड़े उसे पहनाने लग तो उसकी भाभी ने उसे मना कर दिया। की यह तुम्हारा लाया हुआ कोई भी कपड़ा नही पहेनेगा तभी उसके भईया कहते की तुम भी हद करती हो सारा दिन तो हमारा बच्चा हेमा के पास ही रहता है। इसका इतना भी हक नही है, की बच्चे को कुछ अपनी पसंद का पहना दे। तभी उसकी भाभी कहती है। की आप अपनी बहन का इतना पक्ष न लो जी वरना अकेले ही रहना दोंनो भाई, बहन यहां में तो चली जाऊगी अपने मायके। यह सुनकर उसका भाई चुप हो गया। इसी तरह उसकी भाभी हेमा के साथ आए दिन कोई न कोई ऐसा व्यवहार करती जिससे उसे अपने भाई के यहां रहने का मन न करता। फिर भी वह अपने दिल पर पत्थर रख कर यहां रहती। उसकी भाभी उसे कभी भी अपने साथ न ही कही बाहर बाजार ले जाती न ही कही घुमाने। दिन भर उसका घर के अंदर रहना उसके लिए मानो एक सज़ा जैसा हो गया। ( दूसरा भाग )
अब जैसे -जैसे बच्चा बढ़ा होता गया। हेमा के लिए मुश्किलें उतनी ही बढ़ती चली गई। बच्चे के बिना अब उसका एक पल भी घर में मन न लगता। जब भी वह बच्चे को अपने आप से दूर पाती तो उसका दिल बैठ सा जाता।
 दिन व दिन उसकी हालत इतनी बिगड़ती चली गई। की उसे अपना कोई होश भी न रहा बच्चे की जुदाई ने उसे पागल सा कर दिया। हाथ में एक गुड्डा सा लेकर हेमा दिन भर इधर से उधर घुमती रहती। उसके दिमागी हालत इतनी खराब सी हो गई थी की। उसे गुड्डे में भी अपनी भाभी का ही बच्चा नजर आता। कभी माँ न बनने के इस सदमे ने हेमा को पागल सा कर दिया। न वो कुछ खाती न पीती दिन भर बस उसी कि याद में खोई रहती। हेमा कि यह हालत देख कर उसे डॉक्टर के पास ले जाया गया। पर डॉक्टर भी उसका इलाज सही से न कर पाए। उनका कहना था। कि इन्हें सिर्फ एक बच्चा चाहिए जो इन्हें नही मिला तो यह कभी भी ठीक नही हो पाएगी। अब उसके भईया भाभी यही सोचने लगे कि हम इसके लिए बच्चा कहां से लेकर आए। हेमा कि भाभी उसे अपना बच्चा देने के लिए कभी न राजी होगी। इसलिए उसके भईया ने उसे अनाथ आश्रम से एक बच्चा लाकर दे दिया। हेमा इस बच्चे को पाकर बहुत खुश थी। दिन भर उसी बच्चे कि परवरिश में लगी रहती। देखते ही देखते बच्चा दो साल का हो गया। जब एक दिन वह बाजार जा रही थी तो वह बच्चा भी उसे के पीछे - पीछे चल दिया। और उस बच्चे का एक सड़क हादसे में एक्सीडेंट हो गया और वह मर गया। यह सदमा हेमा को बर्दाश्त न हुआ। वह अपने बच्चे के को खोने के गम में पागल सी हो गई। उसे कोई भी बच्चा रास्ते में नजर आता तो वह उसे अपना बच्चा समझ लेती। और उसे गोद में उठा कर ले जाती। इसी तरह हेमा पर बहला फुसला कर बच्चे को उठाने वाली और बच्चा चोरी करने वाली का महिला का नाम घोषित कर दिया गया। पुलिस ने हेमा को जेल में बंद कर दिया। फिर जब उसके भाई को यह भाई पता चली कि हेमा जेल में बंद है। तो उन्होंने उसको जेल से रिहा करवाया। और अपने साथ उसे घर लेकर आ गए। हेमा को आता देख उसकी भाभी ने उसे अंदर न आने दिया। और यह कहकर उसे घर से निकाल दिया कि अगर कल को यह हमारे बच्चे को भी लेकर अगर कही भाग गई तो हम क्या करेगे? आप ऐसा करो कि इसे अनाथ आश्रम में ही भेज दो या किसी पागलखाने में डलवा दो बेचारी जी कर भी अब क्या करेगी। न इसका कोई आगे है, न पीछे। यह सुनकर हेमा खुद ही घर छोड़कर चली जाती है। कैसा लगता है, न जब एक औरत होकर दूसरी औरत के दुख और दर्द को न समझें? हेमा का बांझ होना जैसे उसके लिए कोई इतना बड़ा गुनाह हो गया कि उसे अपने परिवार वाले भी न समझ पाए। तो गैरों कि तो हम बात ही क्या करे। हेमा का दर्द न ही उसके ससुराल वालो ने समझा न ही मायके वालो ने। इस बांझ ने हेमा को पागल बना दिया। उससे उसका घर बाड़ सब छीन लिया। एक बच्चे कि लालसा ने उसे बच्चा चोरी करने के जुर्म में उसे जेल तक भेजवा दिया।      
     शिक्षा - माना कि माँ बनना औरत को अपने आप में पूर्ण करता है। पर साथ में हमें यह भी समझना होगा कि एक औरत होना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है। सारे गुण को देखकर हमें इसे अवगुण समझना चाहिए।
    
            निक्की तिवारी
            स्वरचित कहानी ✍️

Jyoti

Jyoti

बहुत खूब

5 दिसम्बर 2021

Avinash Lambert

Avinash Lambert

Good writing

3 दिसम्बर 2021

3 दिसम्बर 2021

काव्या सोनी

काव्या सोनी

Behtreen likha 👌👌👌

1 दिसम्बर 2021

9
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आखिर कब तक
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