अपने सेईख के लिए पुकार मत कर, अलस्योनी!
तेरी पुकार से सागर की लहरें थम जाएँगी
और तब? सूरज उगेगा, तारे चमकेंगे,
कर्णधार अपने पथ पहचानते रहेंगे
पर कितने द्वीपों में कितनी विरहिनियाँ सहम जाएँगी!
सागर कुछ रखता नहीं
कुछ बदल देता है,
कुछ बाँट-बिखेर देता है,
और कुछ (सदा उपेक्षा से नहीं,
कभी करुणा से भी)
किनारे की सिकता को फेर देता है।
कहाँ है सेईख? उसी का स्वर तो
हवाओं में गाता था!
कितनी चट्टानों की कितनी खोहों-कन्दराओं से
कितनी स्वर-लहरियाँ उपजाता था!
तुम उसे न पुकारो, अलस्योनी,
हवाएँ ही उसे टेरेंगी, खोज लाएँगी
हर कन्दरा में गुहारेंगी
सागर की हर कोख को बुहारेंगी
और जब पाएँगी घेरेंगी
और भोर की लजीली ललाई में
तुम एक पहुँचा जाएँगी!
पुकार मत करो, अलस्योनी!
सागर की लहरें ठिठक जाएँगी
और तुम्हारी-सी अनगिन विरहिनियाँ
राह देखती थक जाएँगी
कि यह कैसी हुई अनहोनी
भोर में पुकार मत करो, अलस्योनी!