सोया था मैं नींद में को
एकाएक सपने में
गया जाग
सपना आग का
लपलपाती ग्रसती
हँसती
समाधि की विभोर आग।
फिसलता हुआ
धीरे-धीरे गिरा फिर
सुते हुए, ठंडे
जागने में।
आग शान्त, रक्षित,
सँजोयी हुई
और भी कई आगों के साथ
सोयी हुई।
पहले भी तो
जागा हूँ
ऐसे, सपने में
जलते हुए समाधिस्थ
अपने में;
फिसल कर गिरने को
जागने की नींद में
आगें सब सुँती हुई, ठंडी
सोई हुई,
और भी पुरानी कई आगों के
साथ ही सँजोयी हुई
खोयी हुई!