shabd-logo

सोया नींद में, जागा सपने में

8 जुलाई 2022

17 बार देखा गया 17

सोया था मैं नींद में को

एकाएक सपने में

गया जाग

सपना आग का

लपलपाती ग्रसती

हँसती

समाधि की विभोर आग।


फिसलता हुआ

धीरे-धीरे गिरा फिर

सुते हुए, ठंडे

जागने में।


आग शान्त, रक्षित,

सँजोयी हुई

और भी कई आगों के साथ

सोयी हुई।

पहले भी तो

जागा हूँ


ऐसे, सपने में

जलते हुए समाधिस्थ

अपने में;

फिसल कर गिरने को

जागने की नींद में

आगें सब सुँती हुई, ठंडी

सोई हुई,

और भी पुरानी कई आगों के

साथ ही सँजोयी हुई

खोयी हुई!

77
रचनाएँ
सागर-मुद्रा
0.0
अज्ञेय जी का पूरा नाम सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय है। इनका जन्म 7 मार्च 1911 में उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया के कुशीनगर में हुआ। इस कविता का संदेश है कि व्यक्ति और समाज एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसलिए व्यक्ति का गुण उसका कौशल उसकी रचनात्मकता समाज के काम आनी चाहिए। सागर मुद्रा में कवि ने कविताओ का वर्णन किया हैं। सागर मुद्रा के लेखक सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' हैं। इनकी अन्य प्रमुख कृतियाँ है- हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, इन्द्रधनुष रौंदे हुए, अरी ओ करूणा प्रभामय, आँगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार, क्योंकि मैं उसे जानता हूँ, महावृक्ष की नीचे, नदी की बाँक पर छाया, असाध्यवीण आदि।
1

नशे में सपना

7 जुलाई 2022
0
0
0

नशे में सपना देखता मैं सपने में देखता हूँ नशे में सपना देखनेवाले को सपने में देखता हुआ नशे में डगमग सागर की उमड़न। इतने गहरे नशों में इतने गहरे सपनों में इतने गहरे नशे में। सागर इतना गहरा, व

2

जो औचक कहा गया

7 जुलाई 2022
0
0
0

मैं ने जो नहीं कहा वह मेरा अपना रहा रहस्य रहा  अपनी इस निधि, अपने संयम पर मैं ने बार-बार अभिमान किया। पर आज हार की तीक्ष्ण धार है साल रही : मेरा रहस्य उतना ही रक्षित है उतना-भर मेरा रहा कि

3

देना पाना

7 जुलाई 2022
0
0
0

 दो? हाँ, दो, बड़ा सुख है देना! देने में अस्ति का भवन नींव तक हिल जाएगा पर गिरेगा नहीं और फिर बोध यह लाएगा कि देना नहीं है निःस्व होना और वह बोध तुम्हें फिर स्वतन्त्रतर बनाएगा।३ लो? हाँ, ल

4

कन्हाई ने प्यार किया

7 जुलाई 2022
0
0
0

कन्हाई ने प्यार किया कितनी गोपियों को कितनी बार। पर उड़ेलते रहे अपना सारा दुलार उस के रूप पर जिसे कभी पाया नहीं जो कभी हाथ आया नहीं। कभी किसी प्रेयसी में उसी को पा लिया होता तो दुबारा किसी को प

5

फूल की स्मरण प्रतिभा

7 जुलाई 2022
0
0
0

यह देने का अहंकार छोड़ो। कहीं है प्यार की पहचान तो उसे यों कहो  ‘मधुर, यह देखो फूल। इसे तोड़ो; घुमा-कर फिर देखो, फिर हाथ से गिर जाने दो  हवा पर तिर जाने दो- (हुआ करे सुनहली) धूल।’ फूल की

6

छिलके

7 जुलाई 2022
0
0
0

 छिलके के भीतर छिलके के भीतर छिलका। क्रम अविच्छिन्न। तो क्या? यह कैसे है सिद्ध कि भीतरतम है, होगा ही, बाहर से भिन्न? मैं अनन्य एकाएक जैसे प्यार।

7

काल की गदा

7 जुलाई 2022
0
0
0

काल की गदा एक दिन मुझ पर गिरेगी। गदा मुझे नहीं नाएगी : पर उस के गिरने की नीरव छोटी-सी ध्वनि क्या काल को सुहाएगी?

8

देखा है कभी

7 जुलाई 2022
0
0
0

मैं ने देखी हैं झील में डोलती हुई कमल-कलियाँ जब कि जल-तल पर थिरक उठती हैं छोटी-छोटी लहरियाँ। ऐसे ही जाती है वह, हर डग से थरथराती हुई मेरे जग को  घासों की तरल ओस-बूँदें तक को कर बेसुध चूम लेती

9

मरण के द्वार पर

7 जुलाई 2022
0
0
0

(1) ज्योति के भीतर ज्योति के भीतर ज्योति। प्यार है वह-वह सत् और तत् तदसि एवं-एतत्। (2) कहीं एक है वह जिस का है यह। पर इस से मेरा क्या नाता जब कि इस से भी कुछ नहीं आता-जाता कि मैं भी हूँ

10

सपने में

7 जुलाई 2022
0
0
0

सपने में अनजानी की पलकें मुझ पर झुकीं गाल मेरे पुलकाती सरक गयीं गीली अलकें मेरे चेहरे को लौट-लौट सहला मुझ को सिहरा कर निकल गयीं। मैं जाग गया जागा हूँ उस अनपहचानी के अनुराग पगा  वह कौन?

11

सपने में-जागते में

7 जुलाई 2022
0
0
0

सपने के भीतर सपने में अपने सीढ़ियों पर बैठा हुआ होता हूँ धूप में। -देखने को सपने जागते मे जागता भागता हूँ अँधेरी गुफा में खोजता हुआ दरार चौड़ाने को। झाँकने को पार। -जागने को?

12

दोनों सच हैं

7 जुलाई 2022
0
0
0

वे सब बातें झूठ भी हो सकती थीं। लेकिन यों तो सच भी हो सकती थीं। बात यह है कि अनुभूतियाँ बातें नहीं हैं और असल में विचार भी शब्दों के फन्दे में आते नहीं हैं। अपनी-अपनी जगह दोनों सच हैं या

13

भले आए

7 जुलाई 2022
0
0
0

राम जी भले आये-ऐसे ही आँधी की ओट में चले आये बिन बुलाये। आये, पधारो। सिर-आँखों पर। वन्दना सकारो। ऐसे ही एक दिन डोलता हुआ आ धमकूँगा मैं तुम्हारे दरबार में : औचक क्या ले सकोगे अपनी करुणा क

14

छातियों के बीच

7 जुलाई 2022
0
0
0

उस ने वहाँ अपनी नाक गड़ाते हुए हुमक कर कहा और दुहराता रहा (दुलार पढ़ा हुआ नहीं भी था-पर क्या बात भी पढ़ी हुई नहीं थी?) ‘हाँ, यहाँ, तुम्हारी छातियों के बीच मेरा घर है! यहाँ! यहाँ!’ और चेहरे से

15

अभागे, गा!

7 जुलाई 2022
0
0
0

मरता है? जिस का पता नहीं उस से डरता है? -गा! जीता है? आस-पास सब कुछ इतना भरा-पुरा है और बीच में तू रीता है? -गा! दुःख से स्वर टूटता है? छन्द सधता नहीं, धीरज छूटता है? -गा! याकि सुख से ह

16

क्यों

7 जुलाई 2022
0
0
0

क्यों यह मेरी ज़िन्दगी फूटे हुए पीपे के तेल-सी बूँद-बूँद अनदेखी चुई काल की मिट्टी में रच गयी? क्यों वह तुम्हारी हँसी घास की पत्ती पर टँकी ओस-सी चमकने-चमकने को हुई कि अनुभव के ताप में उड़ गयी?

17

पाठभेद

7 जुलाई 2022
0
0
0

एक जगत् रूपायित प्रत्यक्ष एक कल्पना सम्भाव्य। एक दुनिया सतत मुखर एक एकान्त निःस्वर एक अविराम गति, उमंग एक अचल, निस्तरंग। दो पाठ एक ही काव्य।

18

देर तक हवा में

7 जुलाई 2022
0
0
0

देर तक हवा में अलूचों की पंखुरियों को तिरछी झरते देखा किया हूँ। नहीं जानता कि तब अतीत में कि भविष्य में कि निरे वर्तमान के क्षण में जिया हूँ। भले ही उस बीच बहुत-सी यादों को उमड़ते आशाओं

19

धार पर संतार दो

7 जुलाई 2022
0
0
0

चलो खोल दो नाव चुपचाप जिधर बहती है बहने दो। नहीं, मुझे सागर से कभी डर नहीं लगा। नहीं, मुझ में आँधियों का आतंक नहीं जगा। नाव तो तिर सकती है मेरे बिना भी; मैं बिना नाव भी डूब सकूँगा। मुझ

20

घर छोड़े

7 जुलाई 2022
0
0
0

 हाँ, बहुत दिन हो गये घर छोड़े। अच्छा था मन का अवसन्न रहना भीतर-भीतर जलना किसी से न कहना पर अब बहुत ठुकरा लिये परायी गलियों के अनजान रोड़े। यह नहीं कि अब याद आने लगे चेहरे किन्हीं ऐसे अप

21

मैं ने ही पुकारा था

7 जुलाई 2022
0
0
0

ठीक है मैं ने ही तेरा नाम ले कर पुकारा था पर मैं ने यह कब कहा था कि यों आ कर मेरे दिल में जल? मेरे हर उद्यम में उघाड़ दे मेरा छल, मेरे हर समाधान में उछाला कर सौ-सौ सवाल अनुपल? नाम : नाम

22

याद

7 जुलाई 2022
0
0
0

याद : सिहरन : उड़ती सारसों की जोड़ी याद : उमस : एकाएक घिरे बादल में कौंध जगमगा गई। सारसों की ओट बादल बादलों में सारसों की जोड़ी ओझल, याद की ओट याद की ओट याद। केवल नभ की गहराई बढ़ गई थोड़ी। कैसे

23

गाड़ी चल पड़ी

7 जुलाई 2022
0
0
0

पैर उठा और दबा धीमी हुई गाड़ी और रुक गयी। इंजन घरघराता रहा। मैं मुड़ा, एक लम्बी दीठ-भर मेरी आँखों ने उस की आँखों को थाहा। कुछ कहा नहीं, न कुछ चाहा। फिर पैर, हाथ, तन पहले-से सध आये, दीठ की

24

बालू घड़ी

7 जुलाई 2022
0
0
0

 तुम मेरी एक निजी घड़ी जिस में मैं ओक भर-भर समय पूरता हूँ और वह बालू हो कर रीत जाता है। जिस बालू को मैं फिर बटोरता हूँ। किस के पैरों की छाप है इस बालू पर जिसे ताकते-ताकते मेरा सारा चेतन जीवन

25

अलस

7 जुलाई 2022
0
0
0

भोर अगर थोड़ा और अलसाया रहे, मन पर छाया रहे थोड़ी देर और यह तन्द्रालस चिकना कोहरा; कली थोड़ी देर और डाल पर अटकी रहे, ओस की बूँद दूब पर टटकी रहे; और मेरी चेतना अकेन्द्रित भटकी रहे, इस

26

मों मार्त्र

7 जुलाई 2022
0
0
0

उधार के समय में खरीदे हुए प्यार पर चुरायी हुई मुस्कानें। चलती-फिरती पपड़ायी सूरतें, इश्तहारी नंगी सूरतें  एक में दूसरी और क्या पहचानें?

27

मन दुम्मट-सा

7 जुलाई 2022
0
0
0

मन दुम्मट-सा गिरता है सूने में अँधेरे में; न जाने कितनी गहरी है भीत मेरी उदासी की ओ मीत! गिरता है गिरता है कहीं नहीं थिरता है धीरज; नीचे ही सही राह भी होती उतरने की, तो गिरता, डूब जा

28

कैसा है यह जमाना

7 जुलाई 2022
0
0
0

कैसा है यह ज़माना कि लोग इसे भी प्यार की कविता मानेंगे! पर कैसा है यह ज़माना कि हमीं ऐसी ही कविता में अपना प्यार पहचानेंगे।

29

कौन-सी लाचारी

7 जुलाई 2022
0
0
0

कौन-सी लाचारी से नाल पर, खिली यह कली फूलदान में मूल से कटी हुई? वही क्या हम में नहीं हैं जो काल के डंठल पर, खिल रहे हैं अनादि कूल से कटे?

30

सागर मुद्रा - 1

7 जुलाई 2022
0
0
0

आकाश बदलाया धूमायित भवें कसता हुआ झुक आया। सागर सिहरा सिमटा अपनी ही सत्ता के भार से सत्त्वमान प्रतिच्छायित भीतर को खिच आया। फिर सूरज निकला रुपहली मेघ-जाली से छनती हुई धूप-किरनें लह

31

सागर मुद्रा - 2

7 जुलाई 2022
0
0
0

सागर की लहरों के बीच से वह बाँहें बढ़ाये हुए मेरी ओर दौड़ती हुई आती हुई पुकारती हुई बोली  ‘तुम-तुम सागर क्यों नहीं हो?’ मेरी आँखों में जो प्रश्न उभर आया, अपनी फहरती लटों के बीच से वह पलकें उठ

32

सागर मुद्रा - 3

7 जुलाई 2022
0
0
0

 रेती में चार टूटी पर सँवारी हुई सीपियाँ, एक ढहा हुआ बालू का घरहरा खारे पानी से मँजी हुई चैली का दंड जिस पर नारंगी के छिलके की कतरन का फरहरा। जहाँ-तहाँ बच्चों की पैरछाप की कैरियाँ। खाली ब

33

सागर मुद्रा - 4

7 जुलाई 2022
0
0
0

सागर पर उदास एक छाया घिरती रही मेरे मन में वही एक प्यास तिरती रही लहर पर लहर पर लहर  कहीं राह कोई दीखी नहीं, बीत गया पहर, फिर दीठ नहीं ठहर गयी जहाँ गाँठ थी। जो खोलनी ही तो हम ने चाही नहीं,

34

सागर मुद्रा - 5

7 जुलाई 2022
0
0
0

 कुहरा उमड़ आया हम उस में खो गये सागर अनदेखा गरजता रहा। फिर हम उमड़े सागर अनसुना बरजता रहा, कुहरा हम में खो गया। सब कुछ हम में खो गया, हम भी हम में खो गये। सागर कुहरा हम कुहरा सागर

35

सागर मुद्रा - 6

7 जुलाई 2022
0
0
0

 सागर के किनारे हम सीपियाँ-पत्थर बटोरते रहे, सागर उन्हें बार-बार लहर से डुलाता रहा, धोता रहा। फिर एक बड़ी तरंग आयी सीपियाँ कुछ तोड़ गयी, कुछ रेत में दबा गयी, पत्थर पछाड़ के साथ बह गये। हम

36

सागर मुद्रा - 7

7 जुलाई 2022
0
0
0

 वहाँ एक चट्टान है सागर उमड़ कर उस से टकराता है पछाड़ खाता है लौट जाता है फिर नया ज्वार भरता है सागर फिर आता है। नहीं कहीं अन्त है न कोई समाधान है न जीत है न हार है केवल परस्पर के तनावों

37

सागर मुद्रा - 8

7 जुलाई 2022
0
0
0

यों मत छोड़ दो मुझे, सागर, कहीं मुझे तोड़ दो, सागर, कहीं मुझे तोड़ दो! मेरी दीठ को और मेरे हिये को, मेरी वासना को और मेरे मन को, मेरे कर्म को और मेरे मर्म को, मेरे चाहे को और मेरे जिये को मुझ

38

सागर मुद्रा - 9

7 जुलाई 2022
0
0
0

क्षितिज जहाँ उद्भिज है एक छाया-नाव सरकती चली जाती है परिभाषा की रेखा-सी। और फिर क्षिति और सागर मिल जाते हैं शब्दों से परे एक नाद में  संवेदन से परे एक संवाद में। कहाँ, कौन किस से अलग है, जब कि

39

सागर मुद्रा - 10

7 जुलाई 2022
0
0
0

हाँ, लेकिन तुम्हारा अविराम आन्दोलन शान्ति है, ध्रुव आस्था है, सनातन की ललकार है; जब कि धरती की एकरूप निश्चलता जड़ता में उस सब का निरन्तर हाहाकार है। जो मर जाएगा, जो बिना कुछ पाये, बिना जान

40

सागर मुद्रा - 11

7 जुलाई 2022
0
0
0

सोच की नावों पर चले गये हम दूर कहीं; किनारे के दिये झलमलाने लगे। फिर, वहाँ कहीं, खुले समुद्र में हम जागे। तो दूर नहीं थी दूर उतनी : चले ही अलग-अलग हम आये थे। लाये थे अलग-अलग माँगें। तब, व

41

सागर मुद्रा - 12

7 जुलाई 2022
0
0
0

 लहर पर लहर पर लहर पर लहर  सागर, क्या तुम जानते हो कि तुम क्या कहना चहाते हो? टकराहट, टकराहट, टकराहट  पर तुम तुम से नहीं टकराते; कुछ ही तुम से टकराता है और टूट जाता है जिसे तुम ने नहीं तोड़ा

42

सागर मुद्रा - 13

7 जुलाई 2022
0
0
0

ओ सागर ओ मेरी धमनियों की आग, मेरे लहू के स्पन्दित राज-रोग, सागर ओ महाकाल ओ जीवन दिग्विहीन आगम, प्रत्यागम निरायाम, द्वारहीन निर्गमन, सागर, ओ जीवन-लय, ओ स्पन्द! ओ सदा सुने जाते मौन, ओ

43

सागर मुद्रा - 14

7 जुलाई 2022
0
0
0

सागर, ओ आदिम रस जिस में समस्त रूपाकार अपने को रचते हैं, जिस में जीवन आकार लेता है, बढ़ता है, बदलता है, ओ सागर, काल-धाराओं के संगम, काल-वाष्प के उत्स, काल-मेघ के लीलाकाश, काल-विस्फोट की प्रयोग-भ

44

एक दिन यह राह

7 जुलाई 2022
0
0
0

एक दिन यह राह पकड़ूँगा सदा यह जानता था। पर अभी कल भी मुझे सूझा नहीं था कि वह दिन आज होगा!

45

मुझे आज हँसना चाहिए

7 जुलाई 2022
0
0
0

एक दिन मैं राह के किनारे मरा पड़ा पाया जाऊँगा तब मुड़-मुड़ कर साधिकार लोग पूछेंगे  हमें पहले क्यों नहीं बताया गया कि इस में जान है? पर तब देर हो चुकी होगी। तब मैं हँस न सकूँगा। इस बात को ले क

46

रह गए

7 जुलाई 2022
0
0
0

सब अपनी-अपनी कह गये  हम रह गये। ज़बान है पर कहाँ है बोल जो तह को पा सके? आवाज़ है पर कहाँ है बल जो सही जगह पहुँचा सके? दिल है पर कहाँ है जिगरा जो सच की मार खा सके? यों सब जो आये कु

47

जन्म-शती

7 जुलाई 2022
0
0
0

 उसे मरे बरस हो गये हैं। दस-या बारह, अठारह, उन्नीस या हो सकता है बीस? मेरे जीवन-काल की बात है अभी तो तुझे कल जैसी याद है। कैसे मरे? कुछ का ख़याल है कि मरे नहीं, किसी ने मारा। कुछ कहते हैं, ल

48

कविता की बात

7 जुलाई 2022
0
0
0

 नहीं, मैं अपनी बात नहीं कहता। यह नहीं कि वह मुझे कहनी नहीं है पर वह जिसे भी कही जाएगी अनकहे कही जाएगी और जब तक उसे और उसे मात्र कह न पाएगी अनकही रह जाएगी। तुम से मैं कहता हूँ तुम्हारी ही बात

49

नदी का बहना

7 जुलाई 2022
0
0
0

 देर तक देखा हम ने नदी का बहना। पर नहीं आया हमें कुछ भी कहना। फिर उठे हम, मुड़े चलने को; तब नैन मिले, हुए मानो जलने को; एक को जो कहना था दूसरे ने सुन लिया  ‘किसी भविष्य में नहीं, पिया! न

50

देलोस से एक नाव

7 जुलाई 2022
0
0
0

दाड़िम की ओट हो जा, लड़की! भोर-किरणों की ओट देलोस की ओर से एक नाव आ रही है! क्या जाने, भोर-पंछियों के शोर के साथ खित्तारे के स्वर भी उमड़ते हुए आने लगें! मैं ने तो इसी लिए अंजीर की ओट ली है औ

51

कहाँ

8 जुलाई 2022
0
0
0

मन्दिर में मैं ने एक बिलौटा देखा चपल थीं उस की आँखें और विस्मय-भरी उस की चितवन; और उस का रोमिल स्पर्श न्यौतता था सिहरते अनजान खेलों के लिए जिस का आश्वासन था उस के लोचीले बिजली-भरे तन में!

52

देखता-अगर देखता

8 जुलाई 2022
0
0
0

 प्रेक्षागृह की मुँडेर पर बैठ मैं ने उसे बाहर रंगपीठ की ओर जाते हुए देखा था, यद्यपि वह नटी नहीं थी, और नाटक-मंडली अपना खेल दिखा कर कब की चली जा चुकी थी मंडली के आर्फ़िउस की वंशी वहाँ फिर सुनाई

53

जो तू सागर से बनी थी

8 जुलाई 2022
0
0
0

जो तू सागर से बनी थी (जलजा की प्रिया की परछाईं)! एक दिन शान्त, सोहनी, सुहासिनी, धूप-सुनहली, चाँदनी-रुपहली, नाविक की मनमोहिनी एक दिन वरुण की बाज-लदी कोहनी, आधी विनाशिनी!

54

मिरिना की ताँतिन

8 जुलाई 2022
0
0
0

यह मेरा ताना यह मेरा बाना गहरे में छिला कर मैं ने फूल का नाम चुन लिया उसी पर...बदल-बदल रंगों को...बूटी बुनी।.. पर यह जो उभरता आता है मुझे चौंकाता है : यह तो किसी दूसरे ताँती ने आ कर किसी द

55

नरक की समस्या

8 जुलाई 2022
0
0
0

नरक? खैर, और तो जो है सो है, जैसे जिये, उस से वहाँ कोई खास कष्ट नहीं होगा। पर एक बात है : जिस से-जिस से यहाँ बचना चाहा वह-वह भी वहीं होगा!

56

समाधि-लेख

8 जुलाई 2022
0
0
0

मैं बहुत ऊपर उठा था, पर गिरा। नीचे अन्धकार है-बहुत गहरा पर बन्धु! बढ़ चुके तो बढ़ जाओ, रुको मत  मेरे पास-या लोक में ही-कोई अधिक नहीं ठहरा!

57

जीवन-यात्रा

8 जुलाई 2022
0
0
0

अधोलोक में? चलो, वहीं जाना होगा तो वहीं सही। जितनी तेज़ चलेंगे, यह राह बचेगी उतनी थोड़ी। जो विलमते, पड़ाव करते पैदल जाएँगे जाएँ हम-तुम क्यों न कर लें सवारी के लिए घोड़ी?

58

कस्तालिया का झरना

8 जुलाई 2022
0
0
0

चिनारों की ओट से सुरसुराता सरकता झरने का पानी। अरे जा! चुप नहीं रहा जाता तो चाहे जिस से कह दे, जा, सारी कहानी। पतझर ने कब की ढँक दी है धरा की गोद-सी वह ढाल जहाँ हम ने की थी मनमानी

59

अरियोन

8 जुलाई 2022
0
0
0

 कितनी धुनें मैं ने सुनी हैं कितने बजैयों से और गीत मैं ने सुने हैं कितने गवैयों से जिन से कुंजबेलों की पत्तियाँ कँपने लगीं, या कि बन-झरने की लहरें ठिठक गयीं? यही एक तान कभी नहीं सुनी ऐसा गान

60

प्रतिद्वन्दी कवि से

8 जुलाई 2022
0
0
0

बन्धु! तेजपात की दो डालें पाने के लिए तुम इतने उतावले होगे? दाफ़ूनी को बावले प्रार्थी से बचाने के लिए देवता ने उस की छरहरी देहलता को तेजपात की झाड़ी में बदल दिया था  अब तेजपात की डाली को तुम्ह

61

विषय : प्यार

8 जुलाई 2022
0
0
0

यहाँ हेलास के द्वीपों में हम अपनी बहुओं को प्यार करते हैं और चाहते हैं कि वे जैसी हैं उस से कुछ दूसरी होतीं। वहाँ गिब्त में वे वेश्याओं को प्यार नहीं करते पर चाहते हैं कि वे जैसी हैं वैसी ही

62

अलस्योनी

8 जुलाई 2022
0
0
0

अपने सेईख के लिए पुकार मत कर, अलस्योनी! तेरी पुकार से सागर की लहरें थम जाएँगी और तब? सूरज उगेगा, तारे चमकेंगे, कर्णधार अपने पथ पहचानते रहेंगे पर कितने द्वीपों में कितनी विरहिनियाँ सहम जाएँगी! स

63

शहतूत

8 जुलाई 2022
0
0
0

वापी में तूने कुचले हुए शहतूत क्यों फेंके, लड़की? क्या तूने चुराये पराये शहतूत यहाँ खाये हैं? क्यों नहीं बताती? अच्छा, अगर नहीं भी खाये तो आँख क्यों नहीं मिलाती? और तूने यह गाल पर क्या लगाया?

64

दो जोड़ी आँखें

8 जुलाई 2022
0
0
0

 म्निमोसिनी, मुझे नींद दे! क्यों रात-भर दो जोड़ी आँखें मुझे सताती हैं! एक जोड़ी पूरे चेहरे में जड़ी हैं पर कितनी बर्फीली ठंडी है उसकी चितवन! और दूसरी सुलगती है, दिपती है पर कोई चेहरा उस के प

65

डगर पर

8 जुलाई 2022
0
0
0

नागरों की नगरी में देवताओं में होड़ होती होगी। मेरे ग्राम का कोई नाम नहीं, तेरे का होगा, मुझे उस से काम नहीं। यह मेरा घोड़ा है, लदा है माल जालिपा की डाल, फल  चखोगी-लोगी? या कि घोड़े की दुलकी

66

सोया नींद में, जागा सपने में

8 जुलाई 2022
0
0
0

सोया था मैं नींद में को एकाएक सपने में गया जाग सपना आग का लपलपाती ग्रसती हँसती समाधि की विभोर आग। फिसलता हुआ धीरे-धीरे गिरा फिर सुते हुए, ठंडे जागने में। आग शान्त, रक्षित, सँजोयी हुई

67

फूल हर बार आते हैं

8 जुलाई 2022
0
0
0

 फूल हर बार आते हैं, ठीक है, हम अन्ततः नहीं आते पर हर बार वसन्त के साथ वहाँ पहाड़ पर हिम गलता है और यहाँ नदी भरती है अमराई बौराती है और कोयलें कूकती हैं बयार गरमाती है और वनगन्ध सब के लिए बिख

68

बड़े शहर का एक साक्षात्कार

8 जुलाई 2022
0
0
0

अधर में लटका हुआ भारी ठोस कन्था। कसैले भूरे कोहरे में झिपती-दिपती प्रकाश की अनगिन थिगलियाँ। कि कोहरे को थर्राती हुई एक भर्राती हुई आवाज़ बोली  उस कन्थे की एक थिगली मेरा घर है। जानते हो न? उस

69

नदी का पुल - 1

8 जुलाई 2022
0
0
0

ऐसा क्यों हो कि मेरे नीचे सदा खाई हो जिस में मैं जहाँ भी पैर टेकना चाहूँ भँवर उठें, क्रुद्ध; कि मैं किनारों को मिलाऊँ पर जिन के आवागमन के लिए राह बनाऊँ उन के द्वारा निरन्तर दोनों ओर से रौंदा जा

70

नदी का पुल - 2

8 जुलाई 2022
0
0
0

इस लिए कि मैं कोई नहीं हूँ मैं उपकरण हूँ जिन के काम आया हूँ उन्हीं का बनाया हूँ नदी से ही उन का सीधा नाता है। वही उन की सच्चाई है जो मेरे लिए खाई है।

71

काल स्थिति - 1

8 जुलाई 2022
0
0
0

जिस अतीत को मैं भूल गया हूँ वह अतीत नहीं है क्यों कि वह वर्तमान अतीत नहीं है। जिस भविष्य से मुझे कोई अपेक्षा नहीं वह भविष्य नहीं है क्यों कि वह वर्तमान भविष्य नहीं है। स्मृतिहीन, अपेक्षाहीन वर्त

72

काल स्थिति - 2

8 जुलाई 2022
0
0
0

लेकिन हम जिन की अपेक्षाएँ अतीत पर केन्द्रित हो गयी हैं और भविष्य ही जिन की मुख्य स्मृति हो गयी है क्यों कि हम न जाने कब से भविष्य में जी रहे हैं हमारा क्या क्या इसलिए हमरा वर्तमान वही नहीं है जो

73

गजर

8 जुलाई 2022
0
0
0

 गजर बजता है और स्वर की समकेन्द्र लहरियाँ फैल जाती हैं काल के अछोर क्षितिजों तक। तुम : जिस पर मेरी टकराहट  इस वर्तमान की अनुभूति से फैलाता हुआ हमारे भाग का वृत्त अतीत और भविष्यत् काल के अछोर

74

कातिक की रात

8 जुलाई 2022
0
0
0

घनी रात के सपने अपने से दुहराने को मुझे अकेले न जगा! कृत्तिकाओं के ओस-नमे चमकने को तकने मुझे अकेले न जगा! तकिये का दूर छोर टोहने इतनी भोर में मुझे अकेले न जगा! सोया हूँ? मूर्छित हूँ! पर

75

लक्षण / सागर-मुद्रा

8 जुलाई 2022
0
0
0

नदी में मछलियाँ उछलती हैं  क्षितिज पर उमड़ रहे होंगे बादलों के साये। क्या तुम्हारे चौके में आटा नहीं उछलता कि यह प्रवासी लौट आये?

76

काँपती है

8 जुलाई 2022
0
0
0

पहाड़ नहीं काँपता, न पेड़, न तराई; काँपती है ढाल पर के घर से नीचे झील पर झरी दिये की लौ की नन्ही परछाईं।

77

कोहरे में भूज

8 जुलाई 2022
0
0
0

कोहरे में नम, सिहरा खड़ा इकहरा उजला तन भूज का। बहुत सालती रहती है क्या परदेशी की याद, यक्षिणी?

---

किताब पढ़िए