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मेरी गद्दी का वारिस

12 दिसम्बर 2022

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नई बहुएं अपने व्यवहार में आधुनिकता और पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव रखती थी इसलिए उन्होंने आते ही अपने विचारों को फैलाना शुरू किया और वे उस घर के संस्कारों से विचलित हो उठी थी। दो महीने हो गए लेकिन वे अपने आपको एक पिंजरे के पक्षी के समान महसूस कर रही थी।। वे परम्पराओं और प्राचीन विचारों के बीच अपनी जिंदगी की घुटन महसूस कर रही थी।
हालांकि वे किसीके खिलाफ कुछ कह नहीं पा रही थी लेकिन वे कब तक चुप रहती। हमारे पिता अपने तन और मन से नियंत्रण खो बैठे और माता जी का शरीर भी जर्जर होता जा रहा था लेकिन उनके हाथों और पैरों की शक्ति उन्हें रोक नहीं पाती थी।
हमने हमारी माता और पिता के लिए एक अलग से कमरा बना रखा था जिसमें घर के हर सदस्य की मजबूरी बन जाती थी कि सुबह शाम मां बाप के दर्शन करने अवश्य ही जाते थे। 
हम सभी के लिए यह मंदिर से कम नहीं था और जहां हमारे ईश्वर हमारे मां बाप थे ।
हम सदैव सोचते थे कि हमें हमारे ईश्वर की सेवा करने का मौका है इससे हमें चूकना नहीं चाहिए क्योंकि जिन्होंने हमारे इस सुंदर उपवन को इस तरह सजा कर रखा जिसमें हर सुमन एक महक के साथ खिला हुआ था।
बहुत पहले की बात है एक दिन हमारे पिता ने हम सभी भाईयों को अपने कमरे में बुलाया और कहा बेटे आज तक मैने जिम्मेदारियों की दुनिया में कोई कसर नही छोड़ी और न्याय और सच्चाई के साथ सभी जिम्मेदारियों को निभाया लेकिन इस समय मै अधिक भार वहन नहीं कर सकता हूं क्योंकि मेरी दुनिया अब ईश्वर का भजन ध्यान करने की है और हम उस दुनिया में अपना वक्त गुजारना चाहते हैं इसलिए आपसे मैं कहता हूं कि मेरी इन जिम्मेदारियों को निभाने का जिम्मा मैं अपने बड़े बेटे रजनीश को देना चाहता हूं। इसके लिए आप सभी भाईयों और पास में बैठी संस्कारी बहुओं से जानना चाहता हूं कि किसी को इस बात से कोई आपत्ति हो तो मुझे इस समय बता दें। लेकिन मैं सभी से अनुरोध करना चाहूंगा कि जो भी समस्या है आज सभी लोगों के सामने बता दें क्योंकि मैंने इस गृहस्थी को बड़ी मुश्किलों से यहां तक लाकर खड़ा किया है और अगर तुम इसे आगे बढ़ाने में सहयोग नहीं करते हो  तो इसे पीछे लेकर भी मत जाना।
मेरे सिर की सफेदी की लाज रखना और जीते जी मेरी खुशियों को कायम रखना  मेरे लिए मेरी जिंदगी की सच्ची सेवा यही है।
उसी समय मैंने खड़ा होकर पिता के निर्णय को चुनौती देते हुए एक बात  बताई जो सभी के लिए आश्चर्य पैदा करने वाली थी ।
मैंने खड़ा होकर कहा कि मैं ईश्वर समान मेरे पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए तत्पर हूं आज तक मैने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया है और  मैं आप सभी मैं बड़े भाई होने के नाते पिता की ज़िम्मेदारियों से मुकर नहीं सकता । लेकिन मैं अपनी बात में एक परिवर्तन करने की आवश्यकता महसूस करता हूं कि मैं अपनी नौकरी के कार्य में व्यस्त रहने के कारण घर के कार्यों में पूरी तरह समय नहीं दे पाऊंगा और घर के विषय में शायद पूरी जानकारी भी नहीं रखता हूं लेकिन यदि मेरे स्थान पर मेरे छोटे भाई को यह जिम्मेदारी सौंप दी जाये तो यह बहुत उचित रहेगा क्योंकि वह हमेशा घर पर ही रहता है और घर के विषय में हर समस्या और समाधान की जानकारी रखता है। मैं उनके अंदर इस जिम्मेदारी निभाने की काबिलियत भी महसूस करता हूं। 
सभी लोगों की सहमति हो तो मेरे छोटे भाई को इस जिम्मेदारी को सौंपा जा सकता है एकदम से घर के अंदर सन्नाटा सा छा गया सभी लोग सोच में पड़ गए और कहने लगे कि पिता के बाद जिस पद की योग्यता और समर्थता हमारे बड़े भाई रखते हैं उसके लिए हमारे भाई क्या कह रहे हैं।
हम सभी भाईयों ने इस बात के विषय में चर्चा की और इस बात से इंकार कर दिया कि हम हमारे घर की परंपरा को तोड नहीं सकते हैं और तुम्हें ही हमारे घर का मुखिया रहकर हमारा मार्गदर्शन करना होगा भले ही हम घर पर क्यो नही रहते हो।
हमारे लिए हमारे संस्कार और संस्कृति की दुनिया चाहिए।
सभी भाईयों ने इस बात का समर्थन किया लेकिन सबसे छोटी दोनों बहु जो कमरे के एक कोने में बैठकर आपस में कुछ फुसफुसा रही थी।
पास में बैठी मेरी मां से मैंने कहा मां तुम अपनी सभी बहुओं से जाकर चर्चा कर लो क्योंकि इस बात का उन्हें भी बराबर अधिकार है और हम उसे इग्नोर नहीं कर सकते हैं।
मां मेरे पास से खड़ी होकर गई और उन चारों को इकट्ठे करके बोली कि तुम्हारे पिता के निर्णय से तुम्हें कोई दिक्कत हो तो उसे अभी भी कह दो और बाद में तुम्हें दिक्कत होगी तो उसमें परिवर्तन करना बहुत ही कठिन काम हो जायेगा।
सभी बहुओं ने ना  में सिर हिलाया । 
सबसे छोटी बहु :- हम दोनों अपने पिता और पति के वचनों से वचनबद्ध थी और उनके वचनों का पालन करना हमारा कर्तव्य था क्योंकि हमें हमारे पिता की विदाई की नम आंखें हमेशा याद है जिन्होंने हमें कहां था कि बेटी मेरी नाक मत कटवा देना नहीं तो मेरा मरा हुआ मुंह देखोगी।
हम कुछ कहना चाहते हुए भी कुछ नहीं कह सकती थी क्योंकि हम पिछले दो महीनों से हमारे ससुर जी की बातों का पालन करती हुई आ रही थी।
खैर कोई नहीं अभी हम हमारे ससुर जी की उम्मीदों पर पानी नहीं फेरना चाहती थी ।
इसलिए सभी की सहमति से हमारे बड़े जेठजी को इस घर का मुखिया बना दिया गया।
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रचनाएँ
टूटते परिवारों की व्यथा
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इस पुस्तक पूर्ण रुपेण एक पारिवारिक रिश्तों को शर्मशार करने की कहानी है जिसमें एक संयुक्त परिवार के लोगों के बीच कैसे बिखराव होता है और वह परिवार अपनी बर्बादी का आलम अपनी आंखों के सामने देखता है।
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1 दिसम्बर 2022
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गांव के अतीत की स्मृतियों में घूमती हुई कुछ तस्वीरें जिनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान की दुनिया रहती थी । हर छोटे-बड़े का सम्मान और इज्जत उसके व्यक्तित्व और स्टेटस के आधार पर होती थी । बड़े कभी अपने से छो

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मेरे घर में खुशबू थी संस्कारों की

2 दिसम्बर 2022
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संस्कारों को मत भूलना

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संस्कार कभी नहीं मरते

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6 दिसम्बर 2022
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28 दिसम्बर 2022
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मेरे ईश्वर छोड़कर चले गए

30 दिसम्बर 2022
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