रजनीश :- मुझे घर का मुखिया बनने का मौका मिल गया। अभी मैंने अपने पिता के निर्णयों का स्वागत किया था और कभी भी उनकी बातों को नहीं ठुकराया लेकिन अब मुझे खुद सभी बातों का निर्णय करना होगा इसलिए मुझे अनुभव की आवश्यकता है। इसलिए मैं अपने पिता के साथ बैठकर कुछ बातें सीखने की कोशिश करने लगा जिससे मेरे निर्णय में किसी का नुक़सान नहीं हो सके।
मेरे पिता कहते थे कि बेटे तुम एक जिम्मेदार और सम्मानित पद पर बैठे हो जो परिवार के लिए देश के राष्ट्रपति से कम नहीं होता है जिस तरह एक देश का राष्ट्रपति अपने निजी हित से परे होकर निर्णय करता है उसी तरह तुम्हें कभी भी अपना पराये का भेदभाव नहीं करना है क्योंकि यदि तुम निर्णय करने में अपना पराया करोगे तो यह तुम्हारे अंदर की आत्मा बल्कि तुम्हारा मन फैसला कर रहा होगा।
हर मनुष्य के अंदर ईश्वर विद्यमान है और कण-कण में ईश्वर का निवास है और सच्चाई के साथ ईश्वर चलता है और अनीति और अन्याय दैत्यों के लक्षण है इसलिए यदि तुम आत्मा की आवाज सुनकर फैसले करोगे तो हमेशा ही न्याय करोगे।
मेरे पिता कहने लगे बेटा यदि मनुष्य अकेले में होकर एक सवाल का जबाव खोजने निकले कि मै कौन हूं तो वह अपने सात जन्मों में भी हल खोज नहीं पायेगा।
मैंने अपने पिता को विश्वास दिलाया कि पिताजी मुझे चाहे अपनी तन की चमड़ी क्यों ना बेचनी पडे लेकिन मैं सदैव सच्चाई के साथ ही न्याय करूंगा।
मैं न्याय के लिए अपना सर्वस्व लुटा दूंगा लेकिन कभी भी ग़लत फैसले नहीं करूंगा।
इस तरह मैंने मेरे जीवन के जिम्मेदार पद को ईश्वर और अपने पूजनीय पिता को साक्षी मानकर स्वीकार कर लिया।
मेरे प्रथम और अंतिम गुरु मेरे पिता ही थे जिन्होंने मुझे अपनी छाया बनाकर अपनी कुर्सी का कार्यभार संभालने के लिए दिया था। मैंने पिता के पदचिन्हों पर चलने की कसम खा रखी थी लेकिन मैं बदलते परिवेश में कुछ आधुनिक विचारों को भी सम्मान देने लगा था।
हम तीनों भाई नौकरियां करते थे और उसके अलावा मेरे छोटे भाई की पत्नी भी नौकरी कर रही थी। सब कुछ प्रसन्नता के साथ चल रहा था। सभी लोगों को जो भी जिम्मेदारी सौंपी हुई थी उसे बखूबी निभाया जा रहा था।
लेकिन कभी-कभी मुझे अपनी सबसे छोटी दोनों बहुओं के स्वभाव में फर्क दिखाई देता था । मुझे लग रहा था शायद वे इस संयुक्त परिवार में घुटन सी महसूस कर रही हो। उन्हें मैंने घर पर खाना बनाने की जिम्मेदारियां दे रखी थी और मेरी पत्नी और मेरा छोटा भाई खेती के कामों को संभालता था। इसके अलावा हम बचे हुए लोग नौकरी करने चले जाते थे और मेरे मम्मी पापा बच्चों के साथ खेलते रहते थे।
सभी को समानता के साथ खाना पीना मिलता था । ऐसा नहीं था कि नौकरी करने वाले लोग आकर घर में मुफ्त की रोटियां तोड़ते थे, हम लोग भी नौकरी से आने के बाद खेतों और पशुओं के काम में हाथ बंटाते थे।
मैंने एक दिन घर के सभी सदस्यों को इकट्ठा किया, मैनै सभी को संबोधित करते हुए कहा कि आज मैंने घर के सभी सदस्यों को इकट्ठा इसलिए किया है कि घर के किसी भी सदस्य के साथ कोई भेदभाव या असमानता का व्यवहार तो नहीं हो रहा है अगर किसी को इस तरह का लगता है तो बेफ़िक्र होकर आज सबके सामने रख सकता है।
यह घर हमारे लिए घर नहीं एक स्वर्ग है जहां पर सभी को खुशियां ही खुशियां मिलनी चाहिए ।
सभी की खुशी में हमारी खुशियों का संसार है।
मेरी इस बात को सुनकर सभी लोग चुप हो गए । कोई भी व्यक्ति ने चूं तक नहीं की। उसी समय मेरे पिताजी बोले बेटा इस स्वर्ग की मर्यादाओं को कभी मत तोडना और सदैव घर को एक खिलते हुए फूलों के चमन की तरह सजाना।
उसी समय मेरे सभी भाईयों ने मुझे आश्वासन देते हुए कहा कि भैया हमें अभी तक कोई समस्या नहीं है। हम लोग आपके सानिध्य में इस घर की मान मर्यादाओं को कभी भी खण्डित नहीं होने देंगे।
मुझे जिस बात का शक था वह मेरे अंदर से खत्म हो गया। आज मेरी छोटी बहुएं बिल्कुल शांत होकर बैठी हुई थी।
मैंने सभी को खुशीपूर्वक कहा देखो मैं इस घर का मुखिया हूं और मैं मेरे पिता की मर्यादाओं को निभा रहा हूं लेकिन मेरा सभी से अनुरोध है कि आप सभी में से किसी भी सदस्य को कोई भी समस्या हो तो वह मुझे बता सकता है । इस बात की किसी भी व्यक्ति को चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
मेरे सभी भाईयों और घर की औरतों ने इस बात का हां जबाव दिया।
मुझे सभी लोगों के द्वारा मेरा सम्मान करने से बहुत खुशी हुई।
सभी लोग मेरे बच्चे को बहुत ही सम्मान के साथ रखते थे और वह सभी का लाडला था इसलिए वह हमेशा हाथों ही हाथों पर रहता था। यह उसका सौभाग्य था कि वह इतने लोगों के प्रेम की दुनिया में अपनी जिंदगी के बचपन को काट रहा था।
वक्त खुशी और प्रसन्नता के साथ गुजर रहा था,सभी लोग प्रसन्न थे। किसी को कोई समस्या नहीं थी ।