shabd-logo

घर की खुशियां

2 दिसम्बर 2022

11 बार देखा गया 11
रजनीश:- घर के मुखिया और सोहन,सम्पत और संस्कार के पिता।
चंचल:- रजनीश की पत्नी और सोहन,सम्पत और संस्कार की मां।
सोहन :- घर के बड़े बेटे 
भूमि:- सोहन की पत्नी 
सम्पत :-घर के मंझले बेटे
प्रिया:- सम्पत की पत्नी 
संस्कार:-घर के बड़े बेटे
रानी:-संस्कार की पत्नी।

(इस कहानी के सम्पूर्ण पात्र काल्पनिक है और किसी जाति,राष्ट्र,लिंग और धर्म से इनका कोई संबंध नहीं है और इस कहानी का भी किसी सच्ची घटना के साथ कोई संबंध नहीं है यह पूरी तरह कवि की कल्पना के ऊपर लिखी जा रही है। कहानी भावनाओं से मैं किसी भी व्यक्ति को ठेस पहुंचाने की भावना बिलकुल नहीं रखता हूं।)

राजस्थान राज्य के सीकर जिले में रजनीश शिक्षक के पद पर नौकरी करते थे। इनका परिवार एक गांव में ही रहता था। केवल रजनीश नौकरी के कारण ही शहर में रहते थे। रजनीश पुराने विचारों के व्यक्ति थे जो हमेशा मानवीय मूल्यों और आदर्शों से अपनी जिंदगी जी रहे थे।

रजनीश:- हम हमारे पिता के चार पुत्र थे। हमारे घर में संस्कारों की धारा प्रवाह होती थी हमारे पिता जो भी कह देते थे हम सभी भाईयों की कोई औकात नहीं कि हम उस बात का विरोध कर सके। लेकिन हमारे पिताजी किसी बात का निर्णय लेने से पहले हम सभी को एक साथ बैठाकर उस पर चर्चा जरुर करते थे। घर में बीस बीघा जमीन और पांच भैंसें हमेशा रहा करती थी। सभी लोगों के काम बांट रखें थे और महीने भर के लिए अलग-अलग जिम्मेदारी दे दी जाती थी।
मैं घर में सबसे बड़ा बेटा था घर में पैसे की कोई कमी नहीं थी और रूपयों के साथ संस्कारों की कोई कमी नहीं थी।
मैं पढाई करने के बाद नौकरी लग गया और मेरे सभी छोटे भाई अभी पढ़ रहे थे मेरे साथ मेरे छोटे भाई की शादी हो गई थी।
इसलिए मेरी मां के अलावा मेरे घर में दो स्त्रियों का प्रवेश हो गया था।
मेरी पत्नी को मेरी शादी के समय ही भेज दिया था लेकिन मेरे छोटे भाई की पत्नी को कुछ सालों बाद मुकुलावे के साथ ही भेजा जायेगा।
हम सभी भाईयों में आपसी प्रेम और समंजन की कोई कमी नहीं थी।
हर समस्या को हम लोग एक साथ बैठाकर सुलझा लेते थे। शादी के बाद मेरी पत्नी ने थोडी सी असहजता महसूस की थी लेकिन कुछ दिनों बाद उसे भी मेरे यहां का माहौल पसंद आ गया था क्योंकि हर व्यक्ति सम्मान और आदर की डोरी में बंधा हुआ था सभी के साथ समानता का व्यवहार किया जाता था और हर व्यक्ति की इच्छा को पूरा करने की कोशिश की जाती थी।

बीस बीघा जमीन होते हुए भी हम कम से कम मजदूरों में जमीन से पैदावार उठा लेते थे। सभी लोग मिलकर मेहनत करते थे और सभी लोग बराबर खाते भी थे। पहले सभी के लिए हमारी मम्मी अकेले ही खाना बना लेती थी लेकिन जब से मेरी पत्नी आई है मेरी पत्नी खाना पकाती है और मेरी मां भैंसों की देखभाल करती है। 
खाना बनाने के बाद मेरी पत्नी भी पशुओं के कामों में सहायता कर देती थी।
सभी लोग शाम और सुबह दूध पीते थे और घी से चुपड़ी हुई रोटियां खाते थे ।
शुद्ध खान-पान और कठोर मेहनत के बलबूते पर हमने पूरा साम्राज्य खड़ा किया हुआ था।
जहां प्रेम की गंगा बहती थी और संस्कारों की पवन का प्रवाह होता था।
पूरे दिन वक्त का पता ही नहीं चलता था कि किस तरह समय गुजर जाता है।
वह समय हमारे लिए स्वर्णिम समय था और परिवार की अपार खुशियों के बीच हमारे जीवन में मन की कली-कली खिली हुई थी।
नौकरी लगने के कुछ समय तक मेरी नौकरी पास के ही गांव में ही रही इसलिए मैं भी घर के कामों में हाथ बंटा लिया करता था।
सब कुछ प्रेम की राह में चल रहा था। किसी के मन में किसी भी तरह की कोई खटास नहीं थी क्योंकि खटास पैदा करने वाले उस समय लोग बसते भी नहीं थे। 
उस समय लोगों के मन में अनंत गहराइयों तक प्रेम , भाईचारा और अपनापन बसता था। कोई भी व्यक्ति किसी का बुरा नहीं चाहता था लोग दूसरे की प्रगति को देखकर खुश होते थे और गरीब लोगों को अपने साथ लेकर चलने की आदत रखते थे।
यह संस्कारों की ही माया थी जो लोगों को प्रेम और अपनत्व से जीना सीखा रहा था।
ईश्वर ने मनुष्य को बनाने के साथ उसके लिए संस्कार और संस्कृति भी पैदा की है। 
जिस दिन दुनिया से संस्कारों की पोटली खत्म हो जायेगी उस दिन मनुष्य जानवरों की भांति व्यवहार करने लगेगा।
मनुष्य और जानवरों के बीच की दरार संस्कारों के गारे से भरती हैं।

10
रचनाएँ
टूटते परिवारों की व्यथा
0.0
इस पुस्तक पूर्ण रुपेण एक पारिवारिक रिश्तों को शर्मशार करने की कहानी है जिसमें एक संयुक्त परिवार के लोगों के बीच कैसे बिखराव होता है और वह परिवार अपनी बर्बादी का आलम अपनी आंखों के सामने देखता है।
1

परिवार की कीमत

1 दिसम्बर 2022
0
1
0

गांव के अतीत की स्मृतियों में घूमती हुई कुछ तस्वीरें जिनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान की दुनिया रहती थी । हर छोटे-बड़े का सम्मान और इज्जत उसके व्यक्तित्व और स्टेटस के आधार पर होती थी । बड़े कभी अपने से छो

2

घर की खुशियां

2 दिसम्बर 2022
0
0
0

रजनीश:- घर के मुखिया और सोहन,सम्पत और संस्कार के पिता।चंचल:- रजनीश की पत्नी और सोहन,सम्पत और संस्कार की मां।सोहन :- घर के बड़े बेटे भूमि:- सोहन की पत्नी सम्पत :-घर के मंझले बेटेप्रिया:- सम्प

3

मेरे घर में खुशबू थी संस्कारों की

2 दिसम्बर 2022
0
0
0

रजनीश:- हम चारों भाई बहुत प्रेम और भाईचारे के साथ रहते थे रूपये के साथ हमारे घर में संस्कारों की कोई कमी नहीं थी।मेरे पिताजी हमसे बार-बार उस कहानी को सुनाते थे जो एक पिता ने मरते हुए अपने बच्चों को सब

4

संस्कारों को मत भूलना

3 दिसम्बर 2022
0
0
0

मेरे छोटे भाई की पत्नी ने आकर घर में अपनी पढ़ाई की धौंस दिखाते हुए मेरे परिवार की खुशियों को छीनने की कोशिश की लेकिन मेरे पिता इस स्थिति से भांप गए।एक दिन शाम को हम सब एक साथ बैठे हुए थे मेरे पिता कुर

5

संस्कार कभी नहीं मरते

4 दिसम्बर 2022
0
0
0

जब छोटी बहु ने यह स्वीकार कर लिया कि मुझे इस बात से कोई दिक्कत नहीं है आप जैसा करना चाहते हो वैसा कर सकते हो।लेकिन मैंने बीस साल तक जो मेहनत की है। वह मेहनत व्यर्थ जाएगी,उसके लिए मुझे संतोष करना पड़ेग

6

संस्कार की विस्तार होने लगा

6 दिसम्बर 2022
0
0
0

रजनीश:- मेरे पिता के निर्णय से मुझे आश्चर्य हो रहा था हां मैं भी इस बात का पक्षधर था क्योंकि आजादी के बाद संविधान से मिले स्त्रियों के अधिकारों को समाज के दकियानूसी सोच के लोग अभी भी अनुसरण नहीं करते

7

मेरी गद्दी का वारिस

12 दिसम्बर 2022
0
0
0

नई बहुएं अपने व्यवहार में आधुनिकता और पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव रखती थी इसलिए उन्होंने आते ही अपने विचारों को फैलाना शुरू किया और वे उस घर के संस्कारों से विचलित हो उठी थी। दो महीने हो गए लेकिन वे

8

मेरे निर्णय सबकी सहमति

28 दिसम्बर 2022
0
0
0

रजनीश :- मुझे घर का मुखिया बनने का मौका मिल गया। अभी मैंने अपने पिता के निर्णयों का स्वागत किया था और कभी भी उनकी बातों को नहीं ठुकराया लेकिन अब मुझे खुद सभी बातों का निर्णय करना होगा इसलिए मुझे अनुभव

9

मेरे ईश्वर छोड़कर चले गए

30 दिसम्बर 2022
1
0
0

रजनीश:- घर के मुखिया और सोहन,सम्पत और संस्कार के पिता।चंचल:- रजनीश की पत्नी और सोहन,सम्पत और संस्कार की मां।सोहन :- घर के बड़े बेटे भूमि:- सोहन की पत्नी सम्पत :-घर के मंझले बेटेप्रिया:- सम्प

10

घर में मातम छा गया

21 जनवरी 2023
0
0
0

मेरे पिताजी की अंतिम सांसें आज प्रकृति के पंचतत्व में विलीन हो गई और मेरे घर के आंगन से एक अमूल्य हीरा हमेशा के लिए चला गया।हम सभी के मन में असीमित दुख था। मैंने और मेरे छोटे भाई ने पिताजी की लाश का प

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए