रजनीश:- घर के मुखिया और सोहन,सम्पत और संस्कार के पिता।
चंचल:- रजनीश की पत्नी और सोहन,सम्पत और संस्कार की मां।
सोहन :- घर के बड़े बेटे
भूमि:- सोहन की पत्नी
सम्पत :-घर के मंझले बेटे
प्रिया:- सम्पत की पत्नी
संस्कार:-घर के बड़े बेटे
रानी:-संस्कार की पत्नी।
(इस कहानी के सम्पूर्ण पात्र काल्पनिक है और किसी जाति,राष्ट्र,लिंग और धर्म से इनका कोई संबंध नहीं है और इस कहानी का भी किसी सच्ची घटना के साथ कोई संबंध नहीं है यह पूरी तरह कवि की कल्पना के ऊपर लिखी जा रही है। कहानी भावनाओं से मैं किसी भी व्यक्ति को ठेस पहुंचाने की भावना बिलकुल नहीं रखता हूं।)
राजस्थान राज्य के सीकर जिले में रजनीश शिक्षक के पद पर नौकरी करते थे। इनका परिवार एक गांव में ही रहता था। केवल रजनीश नौकरी के कारण ही शहर में रहते थे। रजनीश पुराने विचारों के व्यक्ति थे जो हमेशा मानवीय मूल्यों और आदर्शों से अपनी जिंदगी जी रहे थे।
रजनीश:- हम हमारे पिता के चार पुत्र थे। हमारे घर में संस्कारों की धारा प्रवाह होती थी हमारे पिता जो भी कह देते थे हम सभी भाईयों की कोई औकात नहीं कि हम उस बात का विरोध कर सके। लेकिन हमारे पिताजी किसी बात का निर्णय लेने से पहले हम सभी को एक साथ बैठाकर उस पर चर्चा जरुर करते थे। घर में बीस बीघा जमीन और पांच भैंसें हमेशा रहा करती थी। सभी लोगों के काम बांट रखें थे और महीने भर के लिए अलग-अलग जिम्मेदारी दे दी जाती थी।
मैं घर में सबसे बड़ा बेटा था घर में पैसे की कोई कमी नहीं थी और रूपयों के साथ संस्कारों की कोई कमी नहीं थी।
मैं पढाई करने के बाद नौकरी लग गया और मेरे सभी छोटे भाई अभी पढ़ रहे थे मेरे साथ मेरे छोटे भाई की शादी हो गई थी।
इसलिए मेरी मां के अलावा मेरे घर में दो स्त्रियों का प्रवेश हो गया था।
मेरी पत्नी को मेरी शादी के समय ही भेज दिया था लेकिन मेरे छोटे भाई की पत्नी को कुछ सालों बाद मुकुलावे के साथ ही भेजा जायेगा।
हम सभी भाईयों में आपसी प्रेम और समंजन की कोई कमी नहीं थी।
हर समस्या को हम लोग एक साथ बैठाकर सुलझा लेते थे। शादी के बाद मेरी पत्नी ने थोडी सी असहजता महसूस की थी लेकिन कुछ दिनों बाद उसे भी मेरे यहां का माहौल पसंद आ गया था क्योंकि हर व्यक्ति सम्मान और आदर की डोरी में बंधा हुआ था सभी के साथ समानता का व्यवहार किया जाता था और हर व्यक्ति की इच्छा को पूरा करने की कोशिश की जाती थी।
बीस बीघा जमीन होते हुए भी हम कम से कम मजदूरों में जमीन से पैदावार उठा लेते थे। सभी लोग मिलकर मेहनत करते थे और सभी लोग बराबर खाते भी थे। पहले सभी के लिए हमारी मम्मी अकेले ही खाना बना लेती थी लेकिन जब से मेरी पत्नी आई है मेरी पत्नी खाना पकाती है और मेरी मां भैंसों की देखभाल करती है।
खाना बनाने के बाद मेरी पत्नी भी पशुओं के कामों में सहायता कर देती थी।
सभी लोग शाम और सुबह दूध पीते थे और घी से चुपड़ी हुई रोटियां खाते थे ।
शुद्ध खान-पान और कठोर मेहनत के बलबूते पर हमने पूरा साम्राज्य खड़ा किया हुआ था।
जहां प्रेम की गंगा बहती थी और संस्कारों की पवन का प्रवाह होता था।
पूरे दिन वक्त का पता ही नहीं चलता था कि किस तरह समय गुजर जाता है।
वह समय हमारे लिए स्वर्णिम समय था और परिवार की अपार खुशियों के बीच हमारे जीवन में मन की कली-कली खिली हुई थी।
नौकरी लगने के कुछ समय तक मेरी नौकरी पास के ही गांव में ही रही इसलिए मैं भी घर के कामों में हाथ बंटा लिया करता था।
सब कुछ प्रेम की राह में चल रहा था। किसी के मन में किसी भी तरह की कोई खटास नहीं थी क्योंकि खटास पैदा करने वाले उस समय लोग बसते भी नहीं थे।
उस समय लोगों के मन में अनंत गहराइयों तक प्रेम , भाईचारा और अपनापन बसता था। कोई भी व्यक्ति किसी का बुरा नहीं चाहता था लोग दूसरे की प्रगति को देखकर खुश होते थे और गरीब लोगों को अपने साथ लेकर चलने की आदत रखते थे।
यह संस्कारों की ही माया थी जो लोगों को प्रेम और अपनत्व से जीना सीखा रहा था।
ईश्वर ने मनुष्य को बनाने के साथ उसके लिए संस्कार और संस्कृति भी पैदा की है।
जिस दिन दुनिया से संस्कारों की पोटली खत्म हो जायेगी उस दिन मनुष्य जानवरों की भांति व्यवहार करने लगेगा।
मनुष्य और जानवरों के बीच की दरार संस्कारों के गारे से भरती हैं।