रजनीश:- मेरे पिता के निर्णय से मुझे आश्चर्य हो रहा था हां मैं भी इस बात का पक्षधर था क्योंकि आजादी के बाद संविधान से मिले स्त्रियों के अधिकारों को समाज के दकियानूसी सोच के लोग अभी भी अनुसरण नहीं करते हैं और कुछ मां बाप समाज के नियमों का उल्लघंन करते हैं तो उन्हें समाज से निष्कासित कर दिया जाता है।
समाज में यह कैसा नियम है जो नारी की उन्नति से उसके दिमाग में उसकी बेइज्जती का कीड़ा काटने लगता है ।
""हे मनुष्य तुम स्त्री के खिलते चेहरे को क्यों नहीं देख पाते हो।
वह भी एक इंसान का ही रूप है जो अपने जन्म को क्यों कोसती हैं। क्या स्त्री केवल घर के कार्य करने या बच्चों को जन्म देने के लिए ही बनी है। क्या उसे इस बात का अधिकार नहीं है कि वह पढ-लिखकर भागीदारी निभा सके ।""
मेरे पिता ने छोटी बहु को पढ़ने लिखने की अनुमति देने के बाद मेरे भाइयों को खुशी हो या नहीं हो।
लेकिन मुझे बहुत खुशी हो रही थी क्योंकि मुझे जिस चीज की कमी मेरे घर के संस्कारों में महसूस हो रही थी वह आज पूरी हो गई है अर्थात् नारी के सपनों का सम्मान करना मेरे घर के संस्कारों का विस्तार है।
कहते हैं समय के साथ हर चीज में संशोधन होना जरूरी है और गलत बातों का विरोध होना भी आवश्यक है। यदि गलत बातों का विरोध नहीं होता है तो ग़लत परम्पराओं का निर्माण होता है जो रूढ़िवादी सोच को विस्तार देता है।
इस तरह हमारे परिवार की खुशियां और अधिक बढ़ गई क्योंकि देश की आजादी के बाद में हमारे घर में नारी की आज़ादी पहली बार मिली है।।
छोटी बहु ने पढाई शुरू कर दी और वह घर में पूरे संस्कारों के साथ अपनी जिंदगी जी रही थी और जब भी वक्त मिलता उस समय वह घर के हाथों में सहयोग करती और बाकी समय में वह पढ़ाई करती रहती थी,मेरे माता पिता ,भाई और मां और खुद मै उसका कभी भी विरोध नहीं करते थे।
वह अपनी पढ़ाई बहुत प्रसन्नता के साथ कर रही थी।
सब कुछ सही चल रहा था और कुछ समय बाद हमारे घर में एक खुशी और आने वाली थी। मेरी पत्नि के गर्भ में एक बच्चा पल रहा था। वह नए मेहमान के रूप में हमारे घर में कदम रखने वाला था। हमारे घर में बहुत प्रसन्नता हो रही थी क्योंकि हम सभी भाईयों के जन्म के बाद हमारे घर में काफी दिनों से कोई बच्चा नहीं था इसलिए घर के हर सदस्य को बच्चे खिलाने के लिए हौंस लगी हुई थी।
वह दिन दूर नही था जब हमारे बच्चे में नए मेहमान का आगमन होने वाला था।
एक दिन अचानक से मेरी पत्नी के पेट में पीड़ा होने लगी उस समय हमारे घर खुशियों से भर गया क्योंकि सभी को उम्मीदे थी हमारे घर में एक बच्चे का जन्म होने वाला है।
हमारे पडौस में रहने वाली बच्चे पैदा करने वाली औरत (दाई) को बुलाकर लाया गया और कुछ समय तक मेरी पत्नी असहनीय पीडा झेलती रही लेकिन लगभग आधे घंटे बाद हमारे घर में खुशिओ की किलकारियां गूंजने लगी।
हमारे घर में सबसे ज्यादा प्रसन्नता मेरे पापा और मम्मी को हुई थी क्योंकि आज वे दादा-दादी बन चुके थे।
हमारे घर के हर सदस्य के चेहरे पर मुस्कानों की दुनिया नजर आ रही थी ।
मैंने मेरे भाई को बुलाकर बाजार भेजकर मिठाई मंगाई और सारे गांव में मिठाई का वितरण किया गया।
मेरे दिल में असीम खुशियां और सपनों की उड़ानें थी क्योंकि मेरे भविष्य के सहारे ने मुझे अपना सुंदर चेहरा दिखा दिया था।
एक माता पिता के दिल में शादी के बाद जो महत्वपूर्ण अरमान होते हैं वे बच्चे के जन्म की होती है।
मनुष्य के जीवन की अभिलाषाओं में बच्चे,धन और एक अच्छी पत्नी होती है जिसके लिए वह जिंदगी भर संघर्ष करता रहता है।
इसी तरह म्हारे घर में खुशियों की डोरी खत्म नहीं हुई मेरे पहले बच्चे के जन्म के बाद हमारी छोटी बहु की मेहनत रंग लाई और वह अपनी मेहनत के बलबूते पर लेक्चरर बनकर हमारे परिवार की सबसे बड़ी खुशी बन गई।
आगामी पांच सालों में मेरे घर में तीन बच्चों ने जन्म ले लिया और हमारे घर में दो छोटे भाइयों की नौकरियां लगने के बाद चार नौकरियां हो गई और नौकरी के बाद दो छोटे भाइयों की शादी हो गई थी। सभी भाईयों की शादी हो चुकी थी और घर में चार-चार बहुएं आ गई।
हम दोनों बड़े भाइयों की बहुएं पिता के संस्कारों को पूरा मानती थी और नई आने वाली दो बहुएं हमारी छोटी बहु से ज्यादा आधुनिक विचारों की आ गई।
मेरे पत्नि ने तीन बच्चों को जन्म दे दिया और छोटी बहु ने भी एक बच्चे को जन्म दे दिया खुशियों की कोई कमी नहीं थी लेकिन हमारे पिता की उम्र के साथ हाथ पैर और दिमाग भी जबाव देते जा रहे थे इसलिए वे हमेशा अपने पोतों के साथ रहकर खुश रहते थे । सब कुछ सही चल रहा था।
अभी नई दो बहुओं का आगमन हुआ था इसलिए वे घर में लोगों की जिंदगी की खुशियां बनकर प्रसन्नता बिखेर रही थी।
हमारे घर में एक के बाद एक खुशी आती जा रही थी चाहे वह नए बच्चों के साथ नए मेहमानों का आगमन या नववधू का का प्रवेश या बचे हुए दो भाईयों की नौकरी लगना।
जिन भाईयो और बहुओं की नौकरी नहीं लगी थी वह घर की खेती एवं घर की आय व्यय का ब्यौरा रखते एवं पूरी ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्य का निर्वहन करते थे।