गांव के अतीत की स्मृतियों में घूमती हुई कुछ तस्वीरें जिनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान की दुनिया रहती थी । हर छोटे-बड़े का सम्मान और इज्जत उसके व्यक्तित्व और स्टेटस के आधार पर होती थी । बड़े कभी अपने से छोटों का बुरा नहीं करते थे और छोटे कभी बड़ों का अनादर नहीं करते थे , इन दोनों व्यक्तित्व के बीच मान-सम्मान और मान मान-मर्यादा की एक छोटी सी लकीर होती थी जिसे क्रॉस करने की हिम्मत किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व में नहीं होती थी ।
परिवार में चार लोग हो या पचास लोगों का एक समूह, हर व्यक्ति अपने संतुलन में रहकर एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करता था । जो निर्णय परिवार के बड़े-बुजुर्ग और अनुभवी लोगों के द्वारा ले लिया जाता था । उसके खिलाफ कोई भी उंगली उठाये यह किसी की मजाल नहीं होती थी।
एक समय था जब हर व्यक्ति के जीवन में एक ख़ुशी परिवार और अपार खुशियों का संसार होता था हर तरफ लोगों के मन में मानवता और अपनापन रहता था, हर एक रिश्ता प्रेम और खून के रिश्ते से जुड़ा रहता था उस समय की धुंधली यादे आज भी मेरी स्म्रतियों के इर्द गिर्द घूमती रहती है क्योंकि इस समय का एक छोटा सा हिस्सा मैंने अपने जीवन में खुद देखा है , अगर यह समय किसी ने देखा होगा तो उसे उस दुनिया का अनुपम और अद्भुत समय याद होगा और उसे भुलाना बड़ा कठिन होता है ,
संयुक्त परिवार मनुष्य के जीवन की अपार खुशियां थी जिसमें मनुष्य सभी लोगों के साथ संयुक्त रूप से उठता-बैठता,खाता-पीता और होता जागता था।
लोगों के अंदर प्रेम की भावनाएं भरी हुई थी और हर मनुष्य के अंदर सहनशीलता सामंजस्य और किसी भी गलती को माफ करने की क्षमता दिखाई देती थी सभी लोग एक दूसरे के साथ अपनापन और भाईचारे के साथ रहते थे।
एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रतिस्पर्धा दिखाई नहीं देती थी यदि उस परिवार में कोई भी व्यक्ति कड़क या कठोर स्वभाव का होता था उसे यह कहकर टाल दिया जाता था कि यह तो पागल है और पागलों जैसी बातें करता है इसकी बातों पर कोई भी ध्यान मत देना।
उसके साथ यह नहीं किया जाता था कि उसे घर से बाहर कर दिया जाता बल्कि उसके व्यवहार को लोग हंसकर टाल देते थे लोगों के अंदर सहन करने की असीम संभावनाएं होती थी उसे हमेशा साथ लेकर चला जाता था।
घर के अंदर एक मुखिया होता था जिसके हर निर्णय का सभी लोग सम्मान करते थे और उसकी हर बात पत्थर की लकीर बन जाती थी।
घर में कोई भी समस्या होती तो उसके लिए सभी लोग एक साथ बैठकर विचार करते थे। वे लोग पूरी समस्या को सुनकर उस पर विचार विमर्श करते थे और उसे सुलझाने की कोशिश करते थे इसके पश्चात जो भी कोई व्यक्ति दोषी होता था उसे सजा देकर ही छोड़ते थे।
किसी भी व्यक्ति के साथ भाई-भतीजावाद नहीं किया जाता था इसलिए उस समय संयुक्त परिवार चलते थे। संयुक्त परिवार में रहने वाले लोग कभी भी अपनी मर्यादाएं नहीं तोडते थे।
उनके हर निर्णय में सच्चाई और ईमानदारी होती थी। इसलिए उस समय परिवारों के विखंडन की समस्या कम होती थी।