नई दिल्ली : नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत को लेकर यह बात अंतर्राष्टीय स्तर पर खूब चर्चा में है कि भारत की छवि भारत से बाहर बदल रही है। जानकारों का कहना है कि नेहरू के दौर में भारत ने विदेश नीति की जो परम्पराएं स्थापित की थी वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उन्हें बदल रहे हैं। भारत की विदेश नीति में आये बदलाव का सबसे बड़ा उदाहरण भारत का अमेरिका से खुली दोस्ती निभाना शामिल है।
इस दौर में भारत ने अमेरिका से कई ऐसे समझौते किये जो आजतक की सरकारें नहीं कर पायी। दरअसल मोदी सरकार इस बात को भली भांति जानती है कि इंटरनेशनल स्तर पर भारत बिना अमेरिका से दोस्ती के नहीं उभर सकता। एक तरफ भारत ने अमेरिका से कई साल से अटका मिलिट्री अग्रीमेंट समझौता कर लिया तो वहीँ दूसरी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका के दुश्मन कहे जाने वाले वियतनाम में होने वाले गुट निरपेक्ष देशों के सम्मलेन में हिस्सा न लेने का मन बना लिया है।
ख़बरों की माने तो सम्मलेन में हिस्सा लेने के लिए मोदी को निमंत्रण पत्र मिला था लेकिन उन्होंने इसका कोई जवाब नही दिया। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने गुट निरपेक्ष आंदोलन को इसकी स्थापना के समय से ही बड़ा महत्व दिया। इस संगठन का उद्देश्य था कि अमेरिका और सोवियत संघ में में बंटी दुनिया में से किसी का भी साथ न देना बल्कि विकासशील देशों को आगे बढ़ाना था।
गुट निरपेक्ष संगठन हमेशा अमेरिका का विरोधी रहा है लेकिन भारत ने पहली बार अमेरिका का पक्ष लेकर अपना रुख बदला है। फ़िलहाल भारत को अमेरिका की जरूरत है और वह उसके लिए कुछ भी करने को तैयार है। हालाँकि इस सम्मलेन में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी या विदेश मंत्री सुषमा स्वराज शामिल हो सकती हैं लेकिन मोदी के इस सम्मलेन में शामिल न होने से भारत के अंतरराष्ट्रीय रुख का पता जरूर चलता है।