नई दिल्ली : अमेरिकी अखबार 'न्यूयॉर्क टाइम' ने नोटबंदी एक रिपोर्ट पब्लिस की है जिसमें भारत में पुराने नोट बंद हुए दो महीने बीत चुके है लेकिन हालात नीहं सुधरे है. भारत की इकोनॉमी लागातार बिगड़ रही है रियल एस्टेट और कारों की बिक्री में लगातार गिरावट आई है. मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है कैश की कमी से दुकानदारों कि मुश्किलें बढ़ रही है . इस बात के आसार कम दिख रहे है कि मोदी सरकार नई करंसी खत्म करने में कारगर साबित होगी.
गलत तरीके से प्लान और लागू किया गया.
अखबार ने लिखा है कि मोदी सरकार ने नोटबंदी का फैसला गलत तरीके से प्लान और लागू किया. बैंक में पैसे जमा करने और निकालने के लिए लोग घंटों लाइन में लगे रहे . सरकार ने नए नोट ज्यादा तादाद में नहीं छापे। इसके चलते उनकी सप्लाई पर असर पड़ा . कैश की कमी की सबसे ज्यादा मार भारत के छोटे शहरों और गांवों में पड़ी. आरबीआई के मुताबिक, 23 दिसंबर को 9.2 लाख करोड़ चलन में थे, जबकि 4 नवंबर को 17.7 लाख करोड़। यानी नोटबंदी के एक महीने के बाद बाजार में कैश आधा रह गया. कुछ हफ्ते में ज्यादातर करंसी के बाहर होने से कोई भी इकोनॉमी बैठ नहीं सकती. लेकिन भारत में स्थिति अलग है. यहां 98% ट्रांजेक्शन कैश में होता है. हालांकि भारत में डेबिट कार्ड्स और मोबाइल से मनी ट्रांसफर का चलन बढ़ा है. हालांकि ज्यादातर दुकानदार अभी भी इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट नहीं ले रहे हैं.
अखबार ने लिखा है कि पीएम मोदी ने 8 नवंबर को नोटबंदी के फैसले के बाद 88 फीसदी करंसी चलन से बाहर हो गई. इस कवायद का मकसद ये पता लगाना था कि किसने ब्लैकमनी छिपाकर रखी है या फिर कौन टैक्स बचाकर करप्शन कर रहा है. लेकिन मोदी सरकार ने बाद में कहा कि वह चाहती है कि लोग इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन करें. हालांकि भारत में डिजीटल लिटरेसी की जरुरत है ज्यादातर दुकानदार अभी भी इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट नहीं ले रहे हैं.
करंसी बदलने से करप्शन खत्म होने की कम संभावना
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक 'इस बात की संभावना कम है कि सरकार के नोटबंदी के फैसले और नई करंसी से करप्शन खत्म हो जाएगा. हालांकि भारतीय मीडिया ने कहा कि लोगों ने काफी तादाद में पुराने जमा कराए. लेकिन इसका मतलब ये हुआ कि या तो ब्लैकमनी बाहर ही नहीं आई या फिर पैसे जमा करने के लिए जमकर टैक्स की हेराफेरी की गई. इसे सरकार नहीं पकड़ पाई.