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अम्मा की सूनी आँखें

12 सितम्बर 2024

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गांव की पगडंडियों पर,  
जहाँ खामोशी की चादर बिछी रहती है,  
अम्मा के आँगन में,  
बस वही पुरानी खाट सजती है।  

बेटों की यादें मन के कोने में,  
बाँधी हुई हैं अम्मा ने गांठ में,  
पर वो बस यादें हैं,  
जो वक्त के साथ फीकी पड़ गईं।  

शहर में डॉ और इंजीनियर बने,  
बेटे अब बड़े हो गए,  
पर अम्मा की आँखों में,  
अब भी वही मासूमियत है जो उन्हें,  
अपने आँचल में छुपा लेती थी।  

रात की चाँदनी जब सिरहाने आ बैठती है,  
अम्मा की सूनी आँखें,  
उसके आँगन की दहलीज पर,  
बेटों की राह तकती रहती हैं।  

उनके सपनों में भी अब,  
बस एक ही सपना होता है,  
बेटों का हँसता चेहरा,  
जो कभी दूर से नहीं, पास से देख सके।  

उदासी ने उनके चेहरे पर,  
अपना रंग बिखेर दिया है,  
पर दिल अब भी उतना ही,  
नर्म और प्यारा है।  

अम्मा अकेली है, पर हिम्मतवाली है,  
अपने हिस्से के हर दर्द को,  
वो खुद ही सह लेती है।  
पर आँखों की नमी,  
बेटों की कमी को बयां कर देती है।  

गांव की इस धूल में,  
अम्मा के आँसू भी अब खो गए हैं,  
पर वो आस का दीपक,  
अब भी जलाए बैठी है,  
कि कभी न कभी,  
बेटे लौटेंगे,  
और उसके आँगन में,  
फिर से चहकेंगे। 

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मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

बहुत सुंदर एवं मार्मिक लिखा है आपने सर 👌👌 आप मेरी कहानी प्रतिउतर और प्यार का प्रतिशोध पर अपनी समीक्षा और लाइक जरूर करें 🙏🙏

12 सितम्बर 2024

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रचनाएँ
पगडंडी
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"पगडंडी" ग्रामीण जनजीवन पर आधारित एक काव्य संग्रह है, जिसमें गाँवों की सहजता, प्राकृतिक सुंदरता, और वहाँ के लोगों की संघर्षमयी लेकिन संतुलित जीवनशैली को प्रस्तुत किया गया है। इस संग्रह की कविताएँ गाँव की पगडंडियों से जुड़ी यादें, किसानों का परिश्रम, खेतों की हरियाली, और गाँव की सांस्कृतिक धरोहरों का चित्रण करती हैं। कविताओं में ग्रामीणों के आत्मविश्वास, उनकी चुनौतियों, और कठिनाइयों का बारीक वर्णन किया गया है। संग्रह में जहां एक ओर गाँव की सादगी और शांतिपूर्ण जीवनशैली की महक है, वहीं दूसरी ओर आधुनिकता और शहरीकरण से आ रही चुनौतियों का चित्रण भी है। "पगडंडी" के माध्यम से पाठक गाँवों के लोगों के संघर्ष, उनके आपसी सहयोग, परंपराओं और त्यौहारों से रूबरू होते हैं। इस संग्रह की कविताएँ पाठकों को न केवल ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों से परिचित कराती हैं, बल्कि उनके अदम्य साहस, प्रेम, और प्रकृति के साथ गहरे संबंध को भी महसूस कराती हैं। कुल मिलाकर, "पगडंडी" गाँव की पगडंडियों से शुरू होकर ग्रामीण जीवन की जड़ों और आत्मीयता का स्पर्श कराती है।

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