गांव की पगडंडियों पर,
जहाँ खामोशी की चादर बिछी रहती है,
अम्मा के आँगन में,
बस वही पुरानी खाट सजती है।
बेटों की यादें मन के कोने में,
बाँधी हुई हैं अम्मा ने गांठ में,
पर वो बस यादें हैं,
जो वक्त के साथ फीकी पड़ गईं।
शहर में डॉ और इंजीनियर बने,
बेटे अब बड़े हो गए,
पर अम्मा की आँखों में,
अब भी वही मासूमियत है जो उन्हें,
अपने आँचल में छुपा लेती थी।
रात की चाँदनी जब सिरहाने आ बैठती है,
अम्मा की सूनी आँखें,
उसके आँगन की दहलीज पर,
बेटों की राह तकती रहती हैं।
उनके सपनों में भी अब,
बस एक ही सपना होता है,
बेटों का हँसता चेहरा,
जो कभी दूर से नहीं, पास से देख सके।
उदासी ने उनके चेहरे पर,
अपना रंग बिखेर दिया है,
पर दिल अब भी उतना ही,
नर्म और प्यारा है।
अम्मा अकेली है, पर हिम्मतवाली है,
अपने हिस्से के हर दर्द को,
वो खुद ही सह लेती है।
पर आँखों की नमी,
बेटों की कमी को बयां कर देती है।
गांव की इस धूल में,
अम्मा के आँसू भी अब खो गए हैं,
पर वो आस का दीपक,
अब भी जलाए बैठी है,
कि कभी न कभी,
बेटे लौटेंगे,
और उसके आँगन में,
फिर से चहकेंगे।