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जंगल से प्यार।

21 जनवरी 2022

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[ जंगल से प्यार ]   [ पांचवीं  [अंतिम किश्त] ]
 
[उधर उपरी डाली पर बैठे चिड़िया गण आपस में चर्चा कर रहे थे कि अब हमें यहां से उड़ जाना चाहिए वरना सांप अगर उपर आ जाएं तो हमारी ज़िन्दगी में भी खतरा उतपन्न हो जाएगा । उनमें से एक ने कहा कि नीचे डगाल पर बैठा वह लड़का तो खतरे में है । वह तो बेमौत मारा जायेगा । हमें उसकी मदद करनी चाहिए । तो उनमें से एक चिड़िया ने कहा कि एक अन्जान शख़्स के लिए हम क्यूं खतरा मोल लें ? फिर सांपों से लड़कर हम उनका क्या बिगाड़ लेंगे ।]
[ पिछले अध्याय तक ]

 तभी दुसरे नंबर पर बैठी चिड़िया ने कहा कि ध्यान से देखो उस बच्चे का चेहरा जाना पहचाना नहीं लगता ? और नीचे देखो वे दो कुत्ते जिनकी पनाहों में हम लगभग 20 दिनों तक उस बच्चे के घर में रहे थे । अरे ये बच्चा तो अखिलेश प्रताप सिंग है जिसने हमारी पूजनीया माताश्री को बचाया भी था और मनोयोग से उनकी सेवा भी किया था । साथ ही हमारी माता को बचाकर उसने हमें भी एक तरह से बचाया ही था । हालाकि हमारी माता तो कुछ महीनों पूर्व इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कहकर स्वर्ग को प्रस्थान कर गई है, पर हमारी माता ने इस बच्चे को वचन दिया था कि कभी तुम्हें हमारी मदद की ज़रूरत पड़ेगी तो हम ज़रूर करेंगे और तुम्हें मदद पहुंचाने हम कभी पीछे नहीं हटेंगे । हम आपके लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं करेंगे । क्या तुम तीनों को अपनी माता के वचन और उस बच्चे का चेहरा याद नहीं है ? तब बाक़ी तीनों ने कहा कि हां हमें याद आ गया और हमने उस बच्चे को भी पहचान लिया है । पर सांपों से हम कैसे लड़ें , ये तो हमें आता नहीं । फिर सांपों से लड़ने में हमारी जान भी जा सकती है । तब पहले वाली उस चिड़िया जिसका नाम था लक्षमण ने कहा कि जंग लड़ने के लिये हौसला सबसे महत्वपूर्ण होता है। हर काम मां की कोख से सीखकर कोई नही आता। लडेंगे तो सीख ही जाएंगे कैस खुद को बचाते हुए दुशमन को परास्त करना है। फिर यहां जीत हार से ज्यादा महत्वपूर्ण है उस बालक को बचाने का प्रयास करना , जिसने हमारी माता को बचाया था। जिसके उपरांत हमारी माता ने उस बालक को वचन दिया था की कभी हम आपके काम आ पाएंगे तो यह हमारा सौभाग्य होगा।
 क्या तुम्हें अपनी माता के दिए वचन से कुछ लेना देना नहीं है ? क्या अपनी माता के द्वारा दिए वचन को झूठा साबित करने को हम उतारू हैं ? क्या हम इतना स्वार्थी हो गए हैं की जिसने हमारे प्राण बचाए हैं उसके लिए हम कुछ नहीं कर सकते । आखिर वचन दिया क्यूं  जाता है ? सिर्फ़ कुछ पलों के लिए वाहवाही लूटने के लिए , या दिल से निभाने के लिए ? फिर यह वचन तो हमारी माता ने हम सबकी तरफ़ से उस छोटे से बच्चे को दिया था । क्या हम अपनी माता श्री द्वारा दिए गये वचन को एक हवाबाज़ी मानकर हाथ पे हाथ धर के बैठे रहें ? और हमारी माता वहां स्वर्ग से हम सबके क्रित्य को देखकर आंसू बहा रही होगी और सोच रही होगी कि मैंने उस छोटे से बच्चे को वचन क्यूं दिया था ? जब मेरे खुद के बच्चे वचन की क़ीमत ही नहीं जानते । वचन देने का मतलब ही नहीं जानते । सुनो भाइयों हम पूरे चार हैं अगर एक एक सांप के उपर हम दो दो मिलकर हमला करें तो वे दोनों सांप पीछे हटने में मजबूर हो जाएंगे । 
इतना कहते ही लक्षमण अकेले ही  *जय मां काली, कलकत्ते वाली, तेरा वचन न जाये  खाली ,जय मां काली*
 
का उद्घोष करते  हुए तेज़ी से नीचे की ओर जाने लगा । उसे लग रहा था कि नीचे से उपर आने वाला सांप अखिलेश के बहुत पास पहुंच चुका था। लक्ष्मण ने जब नीचे की ओर उड़ान भरा तो यह भी नहीं देखा कि उसके बाक़ी तीन भाई उसके साथ आ रहे हैं या नहीं । सांप के पास पहुंच कर उसने सबसे पहले अपनी चोंच से सांप के पूंछ पर वार किया । जिससे वह सांप ठिठक गया और पीछे मुड़कर लक्ष्मण के पैरों पर वार किया । सांप के वार से लक्ष्मण का संतुलन बिगड़ गया और वह नीचे गिरने लगा । लेकिन वह जल्द ही संभल गया । उसने अब और ज़ोर व गुस्से से उस सांप की गर्दन पर वार किया । जिससे सांप की गर्दन से खून निकलने लगा । सांप ने भी पलटकर लक्ष्मण के पंखों पर हमला किया । इस वार से लक्ष्मण के पंख उखड़कर अलग हो गए। 
उधर राम भरत और शत्रुघन ने देखा कि उनका भाई लक्ष्मण उस बच्चे को बचाने और माता के वचन को निभाने अकेले ही सांप से लड़ रहा है तो उनके मन में ग्लानि पैदा हुई कि हम भी कितने खुदगर्ज़ हैं कि अपने भाई लक्ष्मण को अकेले ही सांप से लड़ने के लिए छोड़ दिए हैं ,और हम तीनों पत्थर की मूर्ति बनकर बैठे हैं । इसके बाद तीनों ने एक दूसरे को इशारा किया और फिर वे तीनों भी *हर हर महादेव*  का उद्घोष करते हुए दोनों सापों के उपर टूट पड़े। दो-तीन चिड़ियों के द्वारा एक साथ अपनी चोंच से किए गए हमले को दोनों सांप झेल नहीं पाए और घायल होकर नीचे गिर गए। जहां शेरू और शेखू ने उन दोनों का मिन्टों में ही काम तमाम कर दिया । 

उधर अकेले लड़ते हुए  लक्ष्मण भी बुरी तरह से घायल हो गया था । अखिलेश उन चारों को लेकर अपने घर आ गया। घर आकर उसका पहला काम था कि लक्ष्मण का उपचार करना । उसने एक चिकित्सक को भी बुलवा कर भी लक्ष्मण का इलाज करवाया । लेकिन लक्ष्मण की हालात तीसरे दिन से और बिगड़ने लगी और चौथे दिन सुबह सुबह उसना स्वर्गवास हो गया । उसके तीनों भाई राम भरत और शत्रुघन ज़ोर ज़ोर से रोने लगे । अखिलेश के भी दुखों का कोई ठिकाना नहीं रहा । उधर शेरू, शेखू की भी आंखें छलकने लगीं । इसके बाद अखिलेश ने पूरे विधि विधान से अपने खलिहान के मद्ध्य में लक्ष्मण का अंतिम संस्कार करके उसकी म्रित काया को वहीं दफ़नवा दिया । वहीं पर लक्ष्मण के नाम से एक समाधी भी बनवा दी गई। कुछ समय बाद अखिलेश ने लक्ष्मण की समाधी के पास ही एक भव्य मंदिर बनवा दिया । जिसके अंदर लक्षमण भगवान की मूर्ती स्थापित कर दी गई और मंदिर की दीवारों पर चिड़ियों की रेखा चित्र खुदवा दी गई । 
आज सिरपुर में स्थित यह मंदिर, जहां पहले वीर प्रताप और अखिलेश प्रताप की जागीरदारी थी ,समुचे भारत में लक्षमण जी का इकलौता  मंदिर है। भारत देश के  किसी और स्थान में लक्षमण जी का मंदिर नहीं है । लोग इसे भगवान लक्षमण के लिए बनाया गया मंदिर समझते हैं पर इसके पीछे एक किवदंती भी है कि यह मंदिर लक्ष्मण नाम की चिड़िया की याद व शान में उसकी कुर्बानी को महत्व देने 50 वर्ष पूर्व सिरपुर के ज़मींदार के सुपुत्र अखिलेश प्रताप सिंग द्वारा बनाया गया था। वास्तव में इस किवदंती के पीछे कोई सच्चाई है या नहीं आज की पीढी के लोग नहीं जानते ।  पिछले कुछ दशकों से इस मंदिर परिसर में हर वर्ष संक्रान्ति के दिन  एक विशाल मेला लगता है । इस मंदिर की एक खासियत और है कि इस मंदिर के दस किमी के दायरे में एक भी सांप दिखाई नहीं देता । साथ ही इसी दायरे में भगवान शंकर जी का एक भी मंदिर नहीं है ।
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जंगल से प्यार
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अखिलेश उस घायल पंक्षी को अपने घर लाकर ऊसका उपचार कर उसे ठीक कर देता है। इसके बाद वे सारे पंक्षी उन्हें यह वचन देते हुए वहां से चले जाते हैं की कभो हमारो मदद की जरूरत पड़ेगी तो हम आपके लिए जां न्यौछवर भी कर देंगे।

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