।।अजीब सा प्यार।।
अंकल, सुनिए तो
आइसक्रीम है क्या? आप की दुकान पर ।
बड़ी-बड़ी आखों में चमक, चेहरे पर मुस्कान लिए एक सात साल की लड़की ने जब तेज़ आवाज़ में बोला तो मैंने काउंटर से अपना सर ऊपर उठा कर देखा, और बोला कि आइसक्रीम तो नहीं है ।
तो वो तुरंत बोली, नहीं है तो मेरे लिए अपने बड़े से उस फ्रीजर में जमा दो ना अंकल। प्लीज ।
मुझे बहुत हसीं आई ये सुनकर। मैंने कहा-कि, अच्छा ठीक है ।
यह सुनकर वह तुरंत भागी और थोड़ी देर में एक कटोरी में पानी चीनी का घोल लेकर हाजिर भी हो गयी।
मासूमियत से बोली- कि, लो अंकल मेरी आइसक्रीम को जमा दो।
ये देखकर मेरी हसीं छूट पड़ी । वो गुस्सा हो गयी। बोली हँसते क्यों हो? देख लेना मेरी आइसक्रीम तुम्हारी दुकान में रखी आइसक्रीम से भी अच्छी होगी ।
मैने उससे कटोरी ले ली और फ्रीजर में रख दी। वो ये देखकर बहुत खुश हो गयी ।
अभी दस मिनट भी नहीं हुये थे वो फिर से आ गयी। पूछने लगी कि, आइसक्रीम जमी कि नहीं ।
मैने बोला-नहीं, कल सुबह तक जमेगी।
वो चली गई । चेहरे पर मुस्कान लिए शायद आइसक्रीम खाने की प्रसन्नता में ।
मैं अपनी ग्रेजुएट की पढ़ाई के साथ-साथ एक दुकान पर पार्ट टाइम जॉब किया करता था। साथ में एक बड़े से बंगले पर रहकर चौकीदारी का काम भी करता था। गरीब परिवार से था। घर में माँ-पिता जी के अलावा एक छोटी बहन भी थी। जिससे मैं बहुत प्यार करता था । वो 12 में पढ़ती थी ।
जहाँ दुकान थी वहां ऊपर सरकारी कर्मचारियों के लिए घर भी थे। वो लड़की वहीं रहती थी। उसके दो छोटे भाई थे।वो बहुत ही शैतान थी। नीचे और भी बहुत सी दुकानें थी ।
बौबी यही नाम था उसका।बेहद शैतान, या यूं कह लो-कि शैतान की नानी ।😃
अगले दिन बौबी दुकान के सामने ही बैठी मिलीं । मैं जैसे ही पहुंचा बोली-जल्दी दुकान खोलो अंकल, मेरी आइसक्रीम अब तक जमा गयी होगी?
मैंने हँसते हुए उसके सर पर हाथ फेर कर कहा-हाँ ।
दुकान खुलते ही वो मुझे देखकर बोली-जल्दी से दो ना।
मैंने फ्रीजर खोला देखा कि आइसक्रीम तो जमी ही नहीं, क्योंकि रातभर लाईट ही नहीं थी।
मैने उसके मुसकराते हुए चेहरे को देखा, उन आखों में चमक देखी, मैं परेशान सा हो गया कि-कैसे उस लड़की को बताऊँ, कि आइसक्रीम तो जमी ही नहीं।
अभी मैं कुछ सोच पाता कि अचानक उसकी मम्मी ऊपर से नीचे उसको ढूंढते हुए आई।वो बहुत गुस्से में थीं। मैंने पूछा-कि क्या हुआ भाभी, आप नाराज़ क्यों है?
भाभी ने बताया कि, ये सुबह खाली पेट 5 बजे से नीचे बैठी हुई है ।
ये सुनकर मुझे यकीन ही नहीं हुआ ।मैंने उससे कहा-कि, जाओ घर और नहा के खा पी के तब आइसक्रीम खाने आओ।
वो यह सुनकर खुश हुई और बोली, अंकल आप भी खाना।
मैंने सर हिला दिया ।
वो चली गयी परन्तु मैं सोच में पड़ गया कि क्या किया जाये ।
मैंने तुरंत दुकान बन्द की और अपनी साईकिल उठा कर तेज़ रफ़्तार से चलाते हुए दूसरी दुकान की तरफ भागा ।
थोड़ी देर में मैं वापस आ गया। वो नीचे अभी तक नहीं आई थी ।
मै बैठ कर उसका इन्तजार करने लगा। थोड़ी देर में वो भागती हुई आई और बोली-अब तो दे दो आइसक्रीम मेरी ।
मैंने उसको आइसक्रीम की कटोरी दी। देखकर वो बहुत बहुत खुश हो गयी।और मैं उसके चेहरे की चमक को देखकर बहुत खुश हो गया ।
वो वहीं बैठ गयी और अपनी जेब में से एक छोटा सा चम्मच निकाल कर आइसक्रीम खाने में भग्न हो गयी । आखिर में एक चम्मच मेरी तरफ बढाकर बोली-खाकर देखो अंकल। बहुत टेस्टी है।
मैं मना न कर पाया और खा कर बोला-वाह, ये तो सच में बहुत ही टेस्टी है।
उसके चेहरे पर एक अजीब सा सुकून देखकर मुझे बहुत ही अच्छा लगा।
बहुत दिनों बाद वो फिर से आइसक्रीम जमाने के लिए आई। और मैं वैसे ही उसको आइसक्रीम की कटोरी में पानी चीनी की आइसक्रीम जमा के देता रहा।
समय गुज़रता गया। राखी का त्यौहार आया। मैं घर ना जा सका। सूनी कलाई लिए मैं बैठा था। अचानक बौबी आई और बोली- अंकल, मम्मी बुला रही है। मैंने पूछा-कि, आज क्या मिला गिफ्ट? उसने अपनी जेब से एक तुड़ा मुड़ा सा दस का नोट निकाल कर दिखाया , जो शायद आखिरी सांसे गिन रहा था। मुझे ये देखकर बहुत हसीं आई । मैने बोला- लाओ नया नोट दे दूँ । मैने उसको एक नया नोट दे दिया जिसे लेकर वो बहुत बहुत खुश हो गयी।
मैंने उसको साथ लिया और उसके घर की ओर चल पड़ा । भाभी ने खाना खिलाया और राखी भी बाँध दी। जब मैंने उनको पैसे देकर पैर छुए तो बौबी भी एक राखी लेकर ज़िद करनें लगी कि, मैं भी राखी बाँध कर पैसे लूंगी। ये देखकर उसके पापा बोले-बेटा, ये तो अंकल हैं भाई नहीं। मैंने भी बोला-कि तो भाई बना लेतीं हूँ ।उसका ये बचपना देखकर सब हंसने लगे। और राखी भी मेरी कलाई पर बन्ध गयी। जब उसको मैंने दस का एक नोट दिया तो वो भाग कर अपनी गुल्लक ले आई। तब उसमें मैंने दस के दो नोट डाल दिए ।
वो तपाक से बोली- अब पैर तो छुओ।
सब हंसने लगे और मैंने उसके छोटे छोटे पाँव को छू लिया तो वो दादी अम्मा की तरह बोली कि-खुश रहो।
सब हंसने लगे।
समय गुज़रता गया। वो 5 में आ गयी। मेरी साईकिल सीखने की कोशिश करती थी। गिरती थी, फिर उठ जाती थी 15 दिनों में उसने साईकिल चलानी सीख ली।बहुत खुश हो गयी वो और मेरी साईकिल से स्कूल भी जाने लगी।
एक दिन मैंने कहा-कि, चलो आज तुम्हारा टेस्ट लेते हैं साईकिल का। उसने तुरंत मुझे पीछे बिठाया और साईकिल चलानी शुरू कर दी। हम लोग मार्केट तक गये।वहीं उसके पापा के दोस्त की दुकान थीं । उन्होंने हमें बड़ी ही अजीब सी नज़रों से देखा।हम लोग कुछ सामान लेकर वापस घर की तरफ चल दिए ।
उसने पूछा-कि मेरा टेस्ट कैसा रहा? मैंने उसके सिर पर हाथ फेर कर कहा कि-बहुत ही अच्छा । ये सुनकर वो खुश हो गयी और घर की तरफ़ चली गयी ।
समय यूँ ही गुज़रता गया। परीक्षा शुरू हो गयी सबकी। मैं भी काफी व्यस्त हो गया। परीक्षा के समाप्त होने के बाद मै अपने घर चला गया।
तकरीबन 6 महीनों बाद मैं वापस आया।बहन को कालेज में एडमीशन करवा कर और बहुत सारे कामों को निपटा कर मैं आगे की अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए खुद को तैयार कर रहा था। मुझे एम0 ए0 में एडमिशन लेना था।
मैं भाभी और सभी से मिलने गया। सब बहुत ही खुश हुए। गांव से काफी सामान भी साथ लाया था। मैंने बौबी को आवाज़ दी। काफ़ी देर तक जब वो नहीं आई तो मैंने भाभी से पूछा-कि, कहाँ है हमारी शैतान की नानी। तब भाभी बोली कि-सोयी है। पेट दर्द है। क्लास में सबसे आगे आई है first position। अब 6 में आ गयी है।
मैंने कहा-शाबाश । इतनें में उसके वो दुकान वाले अंकल भी आ गये। वो मुझे फिर अजीब सी नज़रों से देखने लगे और मैं चला आया वापस घर। रात काफ़ी हो चुकी थी तो मैं सो गया।
अगले दिन मैंने साईकिल को साफ और ठीक-ठाक किया ताकि बौबी चला सके। बहुत ही इन्तजार किया लेकिन वो नहीं आई ।
4 दिन बीत गये। मुझे चिंता सी हुई और मैं घर उसको देखने गया। भाभी ने बताया कि अभी लेटी है। मुझे सुनकर गुस्सा आ गया।मैंने बोला-कि, चलो उसको किसी डाक्टर को दिखा देते हैं। तब भाभी ने हंस के बताया कि, अब वो ''बड़ी हो गयी है''। एक-दो दिन में ठीक हो जाएगी। मैं समझ गया।और वापस लौट आया। सोचने लगा कि समय कितनी तेज़ी से गुज़रता चला जाता है ।
2-3 दिन बाद वो दुकान पर आई । कुछ लम्बी सी हो गयी थी। चेहरा कुछ बुझा सा उदास।मुझे उस पर बड़ी दया सी आई । मेरी आँखे सी नम हो गयी। वो धीरे से बोली- नमस्ते भैया। मैने उसको मुबारकबाद दी। वो चली गयी।
6 की पढाई कुछ मुश्किल थी। मैंने उसकी पढ़ाई का जिम्मा लिया और उसके घर जाकर 2 घंटे पढ़ाने लगा।वो खूब दिल लगाकर पढ़ती थी। अब कुछ सीरियस सी हो गयी थी वो शैतान सी बच्ची ।
एक दिन मैं उसको पढ़ा रहा था तो वो अंकल फिर आये। और मुझको अजीब सी नज़रों से देखा और भाभी को कुछ बोला। अगले दिन पढ़ाने लगा तो भाभी वहीं पास में आकर बैठ गयीं। मुझे कुछ समझ आ रहा था।शायद मेरे लिए ये बड़ा ही दुखदायी समय था। अंकल मुझपर शक कर रहे थे। मुझे काफी दुख भी हुआ । मैंने वहां जाना छोड़ दिया ।
समय और आगे बढ़ा और मैंने अपनी एम0ए0 पूरी कर ली।बौबी भी आगे बढ गई । वो कभी-कभी आती थी, पूछती थी कि आप ने मुझे पढ़ाना क्यों छोड़ दिया?
क्या जवाब देता मैं उसको। मासूमियत उसकी अभी भी वैसे ही थी। मैंने कहा बहुत ही कठिन है अब तुम्हारी पढ़ाई।मुझे भी समझ नहीं आती।ये बोलकर मैं हंसने लगा।
एक दिन की बात है मैं तैयार हो कर कालेज जाने वाला था कि बौबी भागती हुई आई और बोली कि-मम्मी सीढ़ियों से नीचे गिर गयी है पापा नही है। मैं घर तुरंत पहुंचा तो देखा कि भाभी चल भी नहीं पा रही हैं, शायद हड्डी टूट गयी थी। मैंने उनको रिक्शा में बिठाया और हॉस्पिटल ले आया। पूरे 4 घन्टे लगे वहां फिर भैया भी आ गये। और हम लोग उनको लेकर घर आ गये।
वो बौबी के अंकल भी आ गये थे। मुझे उनका इस तरह अजीब सी नज़रों से देखना अच्छा नहीं लगता था। मैं वहां से चला आया।
सरकारी घर बिक जाने के कारण उन लोगों को वो घर छोड़कर जाना पड़ा। अब रोज़ मिल पाना मुश्किल हो गया था।
समय गुज़रता गया और मैं नौकरी की तलाश में भटकने लगा। वो अभी भी सामान लेने वहीं मोनी भैया की दुकान पर आती थी। 10 में पहुंच गयी थी वो ।
परन्तु मुझे वो फिर कभी भी नहीं मिल पायी।
समय गुज़रता गया । काफी साल गुजर गये। जाब मिली, छूट भी गयी। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ? एक दिन खाली बैठे-बैठे सोचा कि कुछ भी काम करूँ। जब नौकरी मिलेंगी तो वो भी कर लेंगे ।
एक दुपहरी में, गरम हवा की तपिश बदन को छू रही थी।सूरज आग उगल रहा था।पूरी सड़क खाली पड़ी थी। ना आदम दिख रहे थे, न आदम जात। ऐसे में मैं अपनी आइसक्रीम की छोटी सी गाड़ी लिए चला जा रहा था। जब भी कोई बच्ची आइसक्रीम खाने आती तो मुझे वो चीनी पानी के घोल की आइसक्रीम याद आ जाती । और मैं मुस्कुरा देता।
वहीं पास में ही कालेज था। कुछ बिक्री हो जायेगी यही सोच कर एक तरफ खड़ा हो गया। मैंने एक किताब निकाली और पढ़ने लगा। तभी वहां काफी बच्चे निकले । कुछ मुझसे आइसक्रीम माँगने लगे। जब सब चले गये तो एक लड़की आई । उसने आइसक्रीम मांगी और खाते खाते बोली-हूँ, चीनी पानी के घोल से ही बनी है ना??बहुत ही अच्छी आइसक्रीम है।
ये सुनते ही मैंने अपना चश्मा साफ किया और उसकी तरफ देखा। मेरी आखों में आंसू उमड़ पड़े। वो बोली- रोईए मत, परन्तु यह क्या हाल बना रखा है?
ये सुनकर मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि ये वही शैतान की नानी है।
उसने अपने बैग से बहुत सारे पैसे निकाले और मुझे देती हुई बोली, ये एडवांस है। शाम को 5 से 8 इस पते पर आना।
वो चली गयी ।और मैं यूँ ही तन्हा खड़ा उन पैसों को देखता रहा।
खैर शाम को मैं उसके बताए पते पर पहुंचा। वो मेरा ही इंतजार कर रही थी।
वो मुझे देखकर बोली-जल्दी चलिये। और वो मुझे एक तरफ लेकर चल पड़ी।
क्या देखता हूँ कि 8-10 बच्चे एक कमरे में बैठे हुए हैं । बौबी ने मेरा परिचय देते हुए कहा-कि, यह शशी भूषण जी हैं, आपके नये टीचर। और मेरे बचपन के गुरु मेरे टीचर।
मेरी आखों से आंसू झरने लगे।
वो बोली सर, संभालिये अपनी क्लास ।।
अंकल, सुनिए तो
आइसक्रीम है क्या? आप की दुकान पर ।
बड़ी-बड़ी आखों में चमक, चेहरे पर मुस्कान लिए एक सात साल की लड़की ने जब तेज़ आवाज़ में बोला तो मैंने काउंटर से अपना सर ऊपर उठा कर देखा, और बोला कि आइसक्रीम तो नहीं है ।
तो वो तुरंत बोली, नहीं है तो मेरे लिए अपने बड़े से उस फ्रीजर में जमा दो ना अंकल। प्लीज ।
मुझे बहुत हसीं आई ये सुनकर। मैंने कहा-कि, अच्छा ठीक है ।
यह सुनकर वह तुरंत भागी और थोड़ी देर में एक कटोरी में पानी चीनी का घोल लेकर हाजिर भी हो गयी।
मासूमियत से बोली- कि, लो अंकल मेरी आइसक्रीम को जमा दो।
ये देखकर मेरी हसीं छूट पड़ी । वो गुस्सा हो गयी। बोली हँसते क्यों हो? देख लेना मेरी आइसक्रीम तुम्हारी दुकान में रखी आइसक्रीम से भी अच्छी होगी ।
मैने उससे कटोरी ले ली और फ्रीजर में रख दी। वो ये देखकर बहुत खुश हो गयी ।
अभी दस मिनट भी नहीं हुये थे वो फिर से आ गयी। पूछने लगी कि, आइसक्रीम जमी कि नहीं ।
मैने बोला-नहीं, कल सुबह तक जमेगी।
वो चली गई । चेहरे पर मुस्कान लिए शायद आइसक्रीम खाने की प्रसन्नता में ।
मैं अपनी ग्रेजुएट की पढ़ाई के साथ-साथ एक दुकान पर पार्ट टाइम जॉब किया करता था। साथ में एक बड़े से बंगले पर रहकर चौकीदारी का काम भी करता था। गरीब परिवार से था। घर में माँ-पिता जी के अलावा एक छोटी बहन भी थी। जिससे मैं बहुत प्यार करता था । वो 12 में पढ़ती थी ।
जहाँ दुकान थी वहां ऊपर सरकारी कर्मचारियों के लिए घर भी थे। वो लड़की वहीं रहती थी। उसके दो छोटे भाई थे।वो बहुत ही शैतान थी। नीचे और भी बहुत सी दुकानें थी ।
बौबी यही नाम था उसका।बेहद शैतान, या यूं कह लो-कि शैतान की नानी ।😃
अगले दिन बौबी दुकान के सामने ही बैठी मिलीं । मैं जैसे ही पहुंचा बोली-जल्दी दुकान खोलो अंकल, मेरी आइसक्रीम अब तक जमा गयी होगी?
मैंने हँसते हुए उसके सर पर हाथ फेर कर कहा-हाँ ।
दुकान खुलते ही वो मुझे देखकर बोली-जल्दी से दो ना।
मैंने फ्रीजर खोला देखा कि आइसक्रीम तो जमी ही नहीं, क्योंकि रातभर लाईट ही नहीं थी।
मैने उसके मुसकराते हुए चेहरे को देखा, उन आखों में चमक देखी, मैं परेशान सा हो गया कि-कैसे उस लड़की को बताऊँ, कि आइसक्रीम तो जमी ही नहीं।
अभी मैं कुछ सोच पाता कि अचानक उसकी मम्मी ऊपर से नीचे उसको ढूंढते हुए आई।वो बहुत गुस्से में थीं। मैंने पूछा-कि क्या हुआ भाभी, आप नाराज़ क्यों है?
भाभी ने बताया कि, ये सुबह खाली पेट 5 बजे से नीचे बैठी हुई है ।
ये सुनकर मुझे यकीन ही नहीं हुआ ।मैंने उससे कहा-कि, जाओ घर और नहा के खा पी के तब आइसक्रीम खाने आओ।
वो यह सुनकर खुश हुई और बोली, अंकल आप भी खाना।
मैंने सर हिला दिया ।
वो चली गयी परन्तु मैं सोच में पड़ गया कि क्या किया जाये ।
मैंने तुरंत दुकान बन्द की और अपनी साईकिल उठा कर तेज़ रफ़्तार से चलाते हुए दूसरी दुकान की तरफ भागा ।
थोड़ी देर में मैं वापस आ गया। वो नीचे अभी तक नहीं आई थी ।
मै बैठ कर उसका इन्तजार करने लगा। थोड़ी देर में वो भागती हुई आई और बोली-अब तो दे दो आइसक्रीम मेरी ।
मैंने उसको आइसक्रीम की कटोरी दी। देखकर वो बहुत बहुत खुश हो गयी।और मैं उसके चेहरे की चमक को देखकर बहुत खुश हो गया ।
वो वहीं बैठ गयी और अपनी जेब में से एक छोटा सा चम्मच निकाल कर आइसक्रीम खाने में भग्न हो गयी । आखिर में एक चम्मच मेरी तरफ बढाकर बोली-खाकर देखो अंकल। बहुत टेस्टी है।
मैं मना न कर पाया और खा कर बोला-वाह, ये तो सच में बहुत ही टेस्टी है।
उसके चेहरे पर एक अजीब सा सुकून देखकर मुझे बहुत ही अच्छा लगा।
बहुत दिनों बाद वो फिर से आइसक्रीम जमाने के लिए आई। और मैं वैसे ही उसको आइसक्रीम की कटोरी में पानी चीनी की आइसक्रीम जमा के देता रहा।
समय गुज़रता गया। राखी का त्यौहार आया। मैं घर ना जा सका। सूनी कलाई लिए मैं बैठा था। अचानक बौबी आई और बोली- अंकल, मम्मी बुला रही है। मैंने पूछा-कि, आज क्या मिला गिफ्ट? उसने अपनी जेब से एक तुड़ा मुड़ा सा दस का नोट निकाल कर दिखाया , जो शायद आखिरी सांसे गिन रहा था। मुझे ये देखकर बहुत हसीं आई । मैने बोला- लाओ नया नोट दे दूँ । मैने उसको एक नया नोट दे दिया जिसे लेकर वो बहुत बहुत खुश हो गयी।
मैंने उसको साथ लिया और उसके घर की ओर चल पड़ा । भाभी ने खाना खिलाया और राखी भी बाँध दी। जब मैंने उनको पैसे देकर पैर छुए तो बौबी भी एक राखी लेकर ज़िद करनें लगी कि, मैं भी राखी बाँध कर पैसे लूंगी। ये देखकर उसके पापा बोले-बेटा, ये तो अंकल हैं भाई नहीं। मैंने भी बोला-कि तो भाई बना लेतीं हूँ ।उसका ये बचपना देखकर सब हंसने लगे। और राखी भी मेरी कलाई पर बन्ध गयी। जब उसको मैंने दस का एक नोट दिया तो वो भाग कर अपनी गुल्लक ले आई। तब उसमें मैंने दस के दो नोट डाल दिए ।
वो तपाक से बोली- अब पैर तो छुओ।
सब हंसने लगे और मैंने उसके छोटे छोटे पाँव को छू लिया तो वो दादी अम्मा की तरह बोली कि-खुश रहो।
सब हंसने लगे।
समय गुज़रता गया। वो 5 में आ गयी। मेरी साईकिल सीखने की कोशिश करती थी। गिरती थी, फिर उठ जाती थी 15 दिनों में उसने साईकिल चलानी सीख ली।बहुत खुश हो गयी वो और मेरी साईकिल से स्कूल भी जाने लगी।
एक दिन मैंने कहा-कि, चलो आज तुम्हारा टेस्ट लेते हैं साईकिल का। उसने तुरंत मुझे पीछे बिठाया और साईकिल चलानी शुरू कर दी। हम लोग मार्केट तक गये।वहीं उसके पापा के दोस्त की दुकान थीं । उन्होंने हमें बड़ी ही अजीब सी नज़रों से देखा।हम लोग कुछ सामान लेकर वापस घर की तरफ चल दिए ।
उसने पूछा-कि मेरा टेस्ट कैसा रहा? मैंने उसके सिर पर हाथ फेर कर कहा कि-बहुत ही अच्छा । ये सुनकर वो खुश हो गयी और घर की तरफ़ चली गयी ।
समय यूँ ही गुज़रता गया। परीक्षा शुरू हो गयी सबकी। मैं भी काफी व्यस्त हो गया। परीक्षा के समाप्त होने के बाद मै अपने घर चला गया।
तकरीबन 6 महीनों बाद मैं वापस आया।बहन को कालेज में एडमीशन करवा कर और बहुत सारे कामों को निपटा कर मैं आगे की अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए खुद को तैयार कर रहा था। मुझे एम0 ए0 में एडमिशन लेना था।
मैं भाभी और सभी से मिलने गया। सब बहुत ही खुश हुए। गांव से काफी सामान भी साथ लाया था। मैंने बौबी को आवाज़ दी। काफ़ी देर तक जब वो नहीं आई तो मैंने भाभी से पूछा-कि, कहाँ है हमारी शैतान की नानी। तब भाभी बोली कि-सोयी है। पेट दर्द है। क्लास में सबसे आगे आई है first position। अब 6 में आ गयी है।
मैंने कहा-शाबाश । इतनें में उसके वो दुकान वाले अंकल भी आ गये। वो मुझे फिर अजीब सी नज़रों से देखने लगे और मैं चला आया वापस घर। रात काफ़ी हो चुकी थी तो मैं सो गया।
अगले दिन मैंने साईकिल को साफ और ठीक-ठाक किया ताकि बौबी चला सके। बहुत ही इन्तजार किया लेकिन वो नहीं आई ।
4 दिन बीत गये। मुझे चिंता सी हुई और मैं घर उसको देखने गया। भाभी ने बताया कि अभी लेटी है। मुझे सुनकर गुस्सा आ गया।मैंने बोला-कि, चलो उसको किसी डाक्टर को दिखा देते हैं। तब भाभी ने हंस के बताया कि, अब वो ''बड़ी हो गयी है''। एक-दो दिन में ठीक हो जाएगी। मैं समझ गया।और वापस लौट आया। सोचने लगा कि समय कितनी तेज़ी से गुज़रता चला जाता है ।
2-3 दिन बाद वो दुकान पर आई । कुछ लम्बी सी हो गयी थी। चेहरा कुछ बुझा सा उदास।मुझे उस पर बड़ी दया सी आई । मेरी आँखे सी नम हो गयी। वो धीरे से बोली- नमस्ते भैया। मैने उसको मुबारकबाद दी। वो चली गयी।
6 की पढाई कुछ मुश्किल थी। मैंने उसकी पढ़ाई का जिम्मा लिया और उसके घर जाकर 2 घंटे पढ़ाने लगा।वो खूब दिल लगाकर पढ़ती थी। अब कुछ सीरियस सी हो गयी थी वो शैतान सी बच्ची ।
एक दिन मैं उसको पढ़ा रहा था तो वो अंकल फिर आये। और मुझको अजीब सी नज़रों से देखा और भाभी को कुछ बोला। अगले दिन पढ़ाने लगा तो भाभी वहीं पास में आकर बैठ गयीं। मुझे कुछ समझ आ रहा था।शायद मेरे लिए ये बड़ा ही दुखदायी समय था। अंकल मुझपर शक कर रहे थे। मुझे काफी दुख भी हुआ । मैंने वहां जाना छोड़ दिया ।
समय और आगे बढ़ा और मैंने अपनी एम0ए0 पूरी कर ली।बौबी भी आगे बढ गई । वो कभी-कभी आती थी, पूछती थी कि आप ने मुझे पढ़ाना क्यों छोड़ दिया?
क्या जवाब देता मैं उसको। मासूमियत उसकी अभी भी वैसे ही थी। मैंने कहा बहुत ही कठिन है अब तुम्हारी पढ़ाई।मुझे भी समझ नहीं आती।ये बोलकर मैं हंसने लगा।
एक दिन की बात है मैं तैयार हो कर कालेज जाने वाला था कि बौबी भागती हुई आई और बोली कि-मम्मी सीढ़ियों से नीचे गिर गयी है पापा नही है। मैं घर तुरंत पहुंचा तो देखा कि भाभी चल भी नहीं पा रही हैं, शायद हड्डी टूट गयी थी। मैंने उनको रिक्शा में बिठाया और हॉस्पिटल ले आया। पूरे 4 घन्टे लगे वहां फिर भैया भी आ गये। और हम लोग उनको लेकर घर आ गये।
वो बौबी के अंकल भी आ गये थे। मुझे उनका इस तरह अजीब सी नज़रों से देखना अच्छा नहीं लगता था। मैं वहां से चला आया।
सरकारी घर बिक जाने के कारण उन लोगों को वो घर छोड़कर जाना पड़ा। अब रोज़ मिल पाना मुश्किल हो गया था।
समय गुज़रता गया और मैं नौकरी की तलाश में भटकने लगा। वो अभी भी सामान लेने वहीं मोनी भैया की दुकान पर आती थी। 10 में पहुंच गयी थी वो ।
परन्तु मुझे वो फिर कभी भी नहीं मिल पायी।
समय गुज़रता गया । काफी साल गुजर गये। जाब मिली, छूट भी गयी। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ? एक दिन खाली बैठे-बैठे सोचा कि कुछ भी काम करूँ। जब नौकरी मिलेंगी तो वो भी कर लेंगे ।
एक दुपहरी में, गरम हवा की तपिश बदन को छू रही थी।सूरज आग उगल रहा था।पूरी सड़क खाली पड़ी थी। ना आदम दिख रहे थे, न आदम जात। ऐसे में मैं अपनी आइसक्रीम की छोटी सी गाड़ी लिए चला जा रहा था। जब भी कोई बच्ची आइसक्रीम खाने आती तो मुझे वो चीनी पानी के घोल की आइसक्रीम याद आ जाती । और मैं मुस्कुरा देता।
वहीं पास में ही कालेज था। कुछ बिक्री हो जायेगी यही सोच कर एक तरफ खड़ा हो गया। मैंने एक किताब निकाली और पढ़ने लगा। तभी वहां काफी बच्चे निकले । कुछ मुझसे आइसक्रीम माँगने लगे। जब सब चले गये तो एक लड़की आई । उसने आइसक्रीम मांगी और खाते खाते बोली-हूँ, चीनी पानी के घोल से ही बनी है ना??बहुत ही अच्छी आइसक्रीम है।
ये सुनते ही मैंने अपना चश्मा साफ किया और उसकी तरफ देखा। मेरी आखों में आंसू उमड़ पड़े। वो बोली- रोईए मत, परन्तु यह क्या हाल बना रखा है?
ये सुनकर मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि ये वही शैतान की नानी है।
उसने अपने बैग से बहुत सारे पैसे निकाले और मुझे देती हुई बोली, ये एडवांस है। शाम को 5 से 8 इस पते पर आना।
वो चली गयी ।और मैं यूँ ही तन्हा खड़ा उन पैसों को देखता रहा।
खैर शाम को मैं उसके बताए पते पर पहुंचा। वो मेरा ही इंतजार कर रही थी।
वो मुझे देखकर बोली-जल्दी चलिये। और वो मुझे एक तरफ लेकर चल पड़ी।
क्या देखता हूँ कि 8-10 बच्चे एक कमरे में बैठे हुए हैं । बौबी ने मेरा परिचय देते हुए कहा-कि, यह शशी भूषण जी हैं, आपके नये टीचर। और मेरे बचपन के गुरु मेरे टीचर।
मेरी आखों से आंसू झरने लगे।
वो बोली सर, संभालिये अपनी क्लास ।।
🙏